Monday, April 5, 2021

बांग्लादेश पर चीनी-प्रभाव को रोकने की चुनौती

 


बांग्लादेश की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती समारोह के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने बांग्लादेश के महत्व पर रोशनी डाली है। मैत्री के तमाम ऐतिहासिक विवरणों के बावजूद पिछले कुछ समय से इन रिश्तों में दरार नजर आ रही थी। इसके पीछे भारतीय राजनीति के आंतरिक कारण हैं और चीनी डिप्लोमेसी की सक्रियता। भारत में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ, नागरिकता कानून में संशोधन, रोहिंग्या और तीस्ता के पानी जैसे कुछ पुराने विवादों को सुलझाने में हो रही देरी की वजह से दोनों के बीच दूरी बढ़ी है।

पिछले कुछ समय से भारतीय विदेश-नीति में दक्षिण एशिया के देशों से रिश्तों को सुधारने के काम को महत्व दिया जा रहा है। म्यांमार में फौजी सत्ता-पलट के बाद भारत की संतुलित प्रतिक्रिया और संरा मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव पर मतदान के समय भारत की अनुपस्थिति से इस बात की पुष्टि होती है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर जो चुप्पी साधी है, वह भी विदेश-नीति का असर लगता है।  

भारत-बांग्‍लादेश सीमा चार हजार 96 किलोमीटर लंबी है। दोनों देश 54 नदियों के पानी का साझा इस्तेमाल करते हैं। दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार-सहयोगी बांग्लादेश है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच 10 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था प्रगतिशील है और सामाजिक-सांस्कृतिक लिहाज से हमारे बहुत करीब है। हम बहुत से मामलों में बेहतर स्थिति में हैं, पर ऐतिहासिक कारणों से दोनों देशों के अंतर्विरोध भी हैं। उन्हें सुलझाने की जरूरत है। 

भारत-विरोधी भावनाएं

हमारी विदेश-नीति के सामने इस समय चीनी-प्रभाव का सामना करने की चुनौती है। यह चुनौती खासतौर से हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी गतिविधियों के बरक्स है। भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में चीन बड़ा फैक्टर है। बांग्लादेश पर ही, बल्कि दक्षिण एशिया के सभी देशों पर यह बात लागू होती है। भारत और उसके पड़ोसियों के बीच आकार और अर्थव्यवस्था में काफी बड़ा अंतर है। छोटे देशों के मन में भय की भावना रहती है।

पड़ोसी देशों में राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर भारत-विरोधी भावनाएं हैं। नरेंद्र मोदी की इस यात्रा के दौरान मुस्लिम कट्टरपंथी गुट हिफाजत-ए-इस्लाम के उग्र प्रदर्शन के कारण दस से ज्यादा लोगों की मौत का समाचार है। हमारे सोचने भर से ऐसी प्रवृत्तियाँ  खत्म नहीं हो जाएंगी। चीन का असर आसानी से खत्म होने वाला नहीं है। अपनी आक्रामक और कुशल-आर्थिक नीतियों के कारण चीन ने दक्षिण एशिया के सभी देशों में जगह बना ली है। इन देशों के हित भी उन्हें चीन से जोड़ते हैं।

चीनी रणनीति दोतरफा है। एक तरफ उसे भारत-विरोध की हवा का लाभ मिलता है, दूसरी तरफ उसने इन देशों में जबर्दस्त पूँजी निवेश किया है। भारतीय डिप्लोमेसी देर से जागी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तार को रोकने के लिए चतुष्कोणीय समूह (क्वाड) के गठन के बाद देर-सबेर आसपास के देशों पर भी उसमें शामिल होने का दबाव आएगा। बहरहाल चीन-पाकिस्तान रिश्तों को हम बदल नहीं सकते, पर नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव से सुधार सकते हैं।

भारत की सुस्ती

पिछले साल पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ टकराव के समय भारत को आशा थी कि बांग्लादेश उसका साथ देगा, पर ऐसा हुआ नहीं। बांग्लादेश ने तटस्थ व्यवहार किया। उसके बाद भारत चेता। पिछले साल 18 अगस्त को भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला अचानक बांग्लादेश यात्रा पर गए। चीन ही नहीं, पाकिस्तान ने भी बांग्लादेश की तरफ हाथ बढ़ाया है। पिछले साल पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने शेख हसीना के साथ फोन पर वार्ताएं की थीं। चीनी विदेशमंत्री ने नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेशमंत्रियों के साथ वर्चुअल बैठक भी की थी।

यह भी सच है कि चीन कितना ही निवेश कर ले, कुछ बातें भारत के पक्ष में ही रहेंगी। मसलन कोरोना-वैक्सीन की डिप्लोमेसी में भारत ने अग्रणी भूमिका अदा की है और बांग्लादेश को एक करोड़ से ऊपर वैक्सीन की डोज मुहैया कराई हैं। सन 2014 में संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण के एक फैसले के बाद दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का विवाद निपट गया है। गैस की खोज करने में भारत बांग्लादेश की सहायता कर सकता है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति का रास्ता बांग्लादेश और म्यांमार से होकर गुजरता है। भारत और जापान अब इस इलाके के देशों के साथ मिलकर त्रिपक्षीय समझौतों पर काम कर रहे हैं। ऐसे समझौतों में भारत की भूमिका स्थानीयता के कारण महत्वपूर्ण होगी और जापान की भूमिका तकनीकी और परियोजनाओं को कुशलता से लागू करने से जुड़ी होगी।

तीस्ता पानी का विवाद लम्बे अर्से से लटका पड़ा है। उसे सुलझाना चाहिए। बांग्लादेश साल में दिसम्बर से मार्च महीनों के दौरान तीस्ता नदी का 50 फीसदी पानी चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 की ढाका यात्रा के दौरान आश्वासन दिया था कि जल्द ही यह मामला सुलझा लिया जाएगा, पर कुछ हुआ नहीं है।

अप्रैल, 2017 में दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते के तहत दोनों देश परमाणु बिजली संयंत्र के लिए उपकरण, सामग्री की आपूर्ति और निर्माण कर सकते हैं। बांग्लादेश के पहले नाभिकीय बिजलीघर के लिए भारत और रूस के साथ त्रिपक्षीय समझौता है। इस परियोजना के निर्माण-कार्यों में भारत की भागीदारी भी है। जो भारतीय परियोजनाएं चल रही हैं, उन्हें पटरी पर लाने की जरूरत है। रिलायंस और अडानी समूहों की बिजली परियोजनाएं धीमी गति से चल रही हैं। अखौरा-अगरतला रेल लिंक, आंतरिक जलमार्गों की ड्रैजिंग और भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन परियोजनाओं में सुस्ती है।

चीनी विस्तार

बॉर्डर रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) कार्यक्रम के तहत चीन मध्य एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को चीन से जोड़ने वाल जमीनी और समुद्री मार्गों का विकास कर रहा है। सड़कों, बिजलीघर, बंदरगाह, रेलवे लाइनें, 5-जी नेटवर्क और फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क बिछाने का काम चल रहा है। चीन की यह योजना उसे 139 देशों के साथ जोड़ेगी। बांग्लादेश भी इस परियोजना का भागीदार है।

चीन बड़े पैमाने पर बांग्लादेश में निवेश कर रहा है। सन 2016 की बांग्लादेश-यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 24 अरब डॉलर के निवेश का वायदा किया था। बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी देश अब चीन है। चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग ने जुलाई 2019 में बांग्लादेश का दौरा किया और शेख हसीना से मुलाकात की। मोटा अनुमान है कि इस समय बांग्लादेश में करीब 10 अरब डॉलर के चीनी-निवेश से इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें विशेष आर्थिक क्षेत्र, सड़कें, बंदरगाह और बिजलीघर शामिल हैं।

चीन ने म्यांमार में बंदरगाहों की सुविधा हासिल की है। भविष्य में वह बांग्लादेश के पायरा-पोर्ट का लाभ उठाने की कोशिश करेगा। पिछले साल चीनी बाज़ार को 97 फीसदी बांग्लादेशी उत्पादों के लिए खोला। बांग्लादेश की 8256 वस्तुएं चीनी बाजारों में बगैर किसी रोकटोक के प्रवेश कर गई हैं। इसके अलावा सिल्हट हवाई अड्डे के टर्मिनल का ठेका चीनी कम्पनी को मिला है, जिसमें भारतीय कम्पनी एलएंडटी की निविदा सफल नहीं हो पाई। ढाका शहर के पास चीन एक मेगा स्मार्ट सिटी का विकास कर रहा है। चीनी परियोजनाएं बहुत तेजी से लागू होती हैं, पर उनके साथ समझौतों में दोष भी हैं। उनके मूल उपकरण के समझौते उदार शर्तों पर होते हैं, पर उनके स्पेयर पार्ट्स की शर्तें बदल जाती हैं।

सामरिक सहयोग

चीनी प्रभाव केवल इंफ्रास्ट्रक्चर तक सीमित नहीं है। बांग्लादेश के पास चीन में बनीं मिंग क्लास की दो पनडुब्बियाँ हैं। उसकी तीनों सेनाओं के पास ज्यादातर रक्षा-उपकरण चीनी हैं। इनमें टैंक, फ्रिगेट, पनडुब्बियाँ और लड़ाकू विमान शामिल हैं। दोनों देशों के बीच सन 2002 में एक रक्षा सहयोग का समझौता हुआ था, जो आज भी प्रभावी है। बांग्लादेश ने 2016 में जब चीन से दो पनडुब्बियां खरीदीं, तब भारत का माथा ठनका।

उसे पनडुब्बी की जरूरत क्यों है? बताया गया कि म्यांमार के साथ उसके रिश्ते खराब हो रहे हैं। चीनी पनडुब्बियों के साथ चीनी सेना की गतिविधियाँ भी बढ़ेंगी। बहरहाल इस इलाके में नौसैनिक गतिविधियाँ बढ़ रहीं हैं। थाईलैंड भी चीनी पनडुब्बियाँ खरीदने जा रहा है। दिसम्बर, 2020 में भारत ने किलो क्लास की एक पनडुब्बी अपग्रेड करके म्यांमार को उपहार में दी है।  

भारत ने भी अब सामरिक सहयोग की दिशा में सोचना शुरू किया है। सन 2022 में होने वाले बांग्लादेश के पहले एयरशो में भारत भी हिस्सा लेगा। यह एयरशो रक्षा उद्योग में बांग्लादेश की महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक होगा। इस साल बेंगलुरु के एयरोइंडिया-2021 के दौरान बांग्लादेश के वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल मसीहुज़्जमां सर्निबात ने भारत के हल्के लड़ाकू विमान तेजस पर उड़ान भरी।

भारत के विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला ने पिछले साल मार्च में कहा था कि भारत बांग्लादेश को किसी भी प्रकार का सैनिक साजो-सामान दे सकता है। बांग्लादेश की दिलचस्पी ब्रह्मोस और आकाश मिसाइलों में देखी गई है। क्वाड समूह की दिलचस्पी बंगाल की खाड़ी में चीनी प्रभाव को रोकने में है। बांग्लादेश को भी वैश्विक ध्रुवीकरण की दिशा दिखाई पड़ रही है।  

नवजीवन में प्रकाशित

 

No comments:

Post a Comment