Sunday, April 11, 2021

क्या था ऑपरेशन गुलमर्ग?

 


।।चार।।

अगस्त 1947 में विभाजन के पहले ही कश्मीर के भविष्य को लेकर विमर्श शुरू हो गया था। कांग्रेस की इच्छा थी कि कश्मीर का भारत में विलय हो और मुस्लिम लीग का कहना था कि रियासत में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान हैं, इसलिए उसे पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहिए। तमाम तरह के विमर्श के बावजूद महाराजा हरिसिंह अक्तूबर के तीसरे सप्ताह तक फैसला नहीं कर पाए। फिर जब स्थितियाँ उनके नियंत्रण से बाहर हो गईं, तब उन्होंने भारत में विलय का फैसला किया। उन परिस्थितियों पर विस्तार से हम किसी और जगह पर विचार करेंगे, पर यहाँ कम से कम तीन घटनाओं का उल्लेख करने की जरूरत है। 1.जम्मू में मुसलमानों की हत्या. 2.गिलगित-बल्तिस्तान में महाराजा के मुसलमान सैनिकों की बगावत और 3.पश्चिम से कबायलियों का कश्मीर पर हमला।

हाल में मेरी इस सीरीज के दूसरे भाग को जब मैंने फेसबुक पर डाला, तब एक मित्र ने बीबीसी की एक रिपोर्ट के हवाले से लिखा, कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि पाकिस्तान से आने वाले ये कबायली हमलावर थे या वे मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए आए थे? जम्मू-कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे, जबकि उसके शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। 1930 के बाद से अधिकारों के लिए मुसलमानों के आंदोलनों में बढ़ोतरी हुई। अगस्त 1947 में देश के बंटवारे के बाद भी यह रियासत हिंसा की आग से बच नहीं पाई… जम्मू में हिंदू अपने मुसलमान पड़ोसियों के ख़िलाफ़ हो गए। कश्मीर सरकार में वरिष्ठ पदों पर रह चुके इतिहासकार डॉ. अब्दुल अहद बताते हैं कि पश्तून कबायली पाकिस्तान से मदद के लिए आए थे, हालांकि उसमें कुछ 'दुष्ट लोग' भी शामिल थे।… उधर, प्रोफ़ेसर सिद्दीक़ वाहिद इस बात पर सहमत होते हैं कि पाकिस्तानी कबायलियों का हमला जम्मू में जारी अशांति का जवाब था।

ऑस्ट्रेलिया के लेखक क्रिस्टोफर स्नेडेन ने अपनी किताब कश्मीर द अनरिटन हिस्ट्री में भी इस बात को लिखा है। हालांकि उनकी वह किताब मूलतः पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बारे में है, पर उन्होंने किताब की शुरुआत में ही लिखा है कि इस सिलसिले में प्राप्त ज्यादातर विवरणों में बताया जाता है कि पाकिस्तान से आए पश्तून कबायलियों ने स्थिति को बिगाड़ा, इस किताब में बताया गया है कि जम्मू के लोगों ने इसकी शुरुआत की। विभाजन के बाद जम्मू के इलाके में तीन काम हुए। पहला था, पश्चिमी जम्मू प्रांत के पुंछ इलाके में मुसलमानों ने महाराजा हरिसिंह के खिलाफ बगावत शुरू की। दूसरे, पूरे जम्मू-प्रांत में साम्प्रदायिक हिंसा शुरू हो गई, तीसरे पश्चिमी जम्मू क्षेत्र में बागियों ने एक इलाके पर कब्जा करके उसे आज़ाद जम्मू-कश्मीर के नाम से स्वतंत्र क्षेत्र घोषित कर दिया। पूरी रियासत साम्प्रदायिक टुकड़ों में बँटने लगी। यह सब 26 अक्तूबर, 1947 के पहले हुआ और लगने लगा कि पूरे जम्मू-कश्मीर को किसी एक देश के साथ मिलाने का फैसला लागू करना सम्भव नहीं होगा। इस घटनाक्रम पर भी हम आगे जाकर विचार करेंगे, पर पहले उस ऑपरेशन गुलमर्ग का विवरण देते हैं, जिसका उल्लेख पिछले आलेख में किया था।   

मेजर-जनरल ओंकार सिंह कलकट विभाजन के पहले से ब्रिटिश सेना में थे और विभाजन के बाद पाकिस्तान में उनकी नियुक्ति थी। वे वर्तमान पाकिस्तान के बन्नू स्थित फ्रंटियर ग्रुप में ब्रिगेडियर सीपी मरे की कमांड में ब्रिगेड मेजर थे। दोनों क्रमशः भारत और इंग्लैंड में अपनी नई नियुक्तियों के लिए रवाना होने की तैयारी कर रहे थे। मेजर कलकट को पाकिस्तान में इस बात की भनक लगी कि कश्मीर पर हमले की योजना बनाई जा रही है। दरअसल उन्हें ब्रिगेडियर मरे की अनुपस्थिति में उनकी डाक खोलने का अधिकार प्राप्त था। यह जानकारी उन्हें अक्तूबर में हुए हमले के दो महीने पहले यानी अगस्त में ही लग गई थी। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। किसी तरह भागकर वे 18 अक्तूबर को दिल्ली पहुँचे और ऑपरेशन गुलमर्ग के तीन दिन पहले  इसकी सूचना भारत के अधिकारियों को दी, पर किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। तत्कालीन रक्षामंत्री सरदार बलदेव सिंह, ब्रिगेडियर कलवंत सिंह और डीजीएमओ कर्नल पीएन थापर के अलावा कुछ अंग्रेज अफसरों के पास यह जानकारी भेजी गई थी। 

20 अगस्त 1947 को उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल फ्रैंक वॉल्टर मैसर्वी के एक पत्र को खोला, तो उसमें ऑपरेशन गुलमर्ग की योजना थी। मेजर कलकट ने इसकी इत्तला फौरन ब्रिगेडियर मरे को दी, जिन्होंने उन्हें सलाह दी कि इसका जिक्र किसी से न करें, क्योंकि किसी को पता लग गया तो वह आपकी हत्या भी कर सकता है। बहरहाल इसके बाद पाकिस्तानी सेना को कलकट पर कुछ संदेह हुआ और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कलकट किसी तरह से भागने में सफल हो गए और भारतीय पंजाब के अम्बाला शहर पहुँचे और 18 अक्तूबर को एक मालगाड़ी में बैठकर दिल्ली पहुँचे। अगले दिन उन्होंने रक्षामंत्री और उपरोक्त फौजी अफसरों को इस बात की जानकारी दी। उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया, जबकि उन्हीं दिनों कई स्रोतों से इस बात की जानकारी आने लगी खी कि कश्मीर पर हमला होने वाला है। 

पाकिस्तान से रवाना होने के पहले कलकट ने अपने मुसलमान दोस्तों और मियाँवाली के जिलाधीश की सहायता से अपने परिवार को पाकिस्तान से निकालकर भारत भिजवा दिया था। और जब वे पूर्वी पंजाब में अपने परिवार की तलाश कर रहे थे तभी ऑपरेशन गुलमर्ग शुरू हो गया। और भारतीय अधिकारियों को उनकी सुध आई और उनकी खोज शुरू हुई। 24 अक्तूबर को वे मिल गए और उन्हें प्रधानमंत्री से मिलवाया गया। प्रधानमंत्री ने सब लोगों को फटकार लगाई कि एक अफसर की बातों की इस तरह अनदेखी की गई।

सन 1983 में मेजर जनरल कलकट ने किताब लिखी फार फ्लंग फ्रंटियर्स। इसमें उन्होंने अपने अनुभवों का विवरण दिया है। इस किताब की प्रस्तावना फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने लिखी थी, जो 1947 में ब्रिगेडियर थे। इस किताब को सैनिक उपयोगिता के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

ऑपरेशन गुलमर्ग की तैयारी पर आलेख कल

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