Saturday, July 9, 2011

NoW का अंत

न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड यानी Now ऐसा कोई बड़ा सम्मानित अखबार नहीं था। पर 168 साल पुराने इस अखबार को एक झटके में बन्द करने की ऐसी मिसाल नहीं मिलेंगी। रूपर्ट मर्डोक ने युनाइटेड किंगडम की पत्रकारिता को लगभग बदल कर रख दिया। अखबारों की व्यावसायिकता को इस हद तक सम्माननीय बना दिया कि कमाई के नाम पर कुछ भी करने का उनका हौसला बढ़ा। तुर्रा यह कि पत्रकारिता के प्रवचन भी वह लपेट कर देते थे। बहरहाल इंग्लैंड में पत्रकारिता, अपराध और सरकार के रिश्तों पर नई रोशनी पड़ने वाली है। हमारे देश के लिए भी इसमें कुछ संकेत छिपे हैं बशर्ते उन्हें समझा जाए।


इंग्लैंड के इस मीडिया स्कैंडल का फौरी परिणाम यह है कि बीस्काईबी को खरीदने की मर्डोक की मुहिम पर विराम लग गया है और देश में बहस शुरू हो गई है कि पत्रकारिता की साख बचाने वाली प्रेस कॉम्प्लेंट कमीशन और ऑफकॉम जैसी संस्थाएं कर क्या रहीं थीं? साथ ही यह भी कि प्रधानमंत्री डेविड केमरन ने तमाम बातों को जानते हुए भी अपना मीडिया प्रमुख एंडी कॉलसन को क्यों बनाया जो न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड के पूर्व सम्पादक हैं। इस मामले में आज की सरकार पर भी जिम्मेदारियाँ हैं और पिछले लेबर सरकार पर भी। न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड में जो कुछ हुआ वह उसके नए मालिक रूपर्ट मर्डोक की सहमति के बगैर नहीं हो सकता था।

भारत के मीडिया में हाल के दिनों में जो प्रवृत्ति उभरी है उसके दुष्परिणाम क्या होंगे यह इंग्लैंड के इस प्रकरण में दिखाई पड़ रहा है। इस मामले को दैनिक अखबार गार्डियन ने उठाया है। गार्डियन जैसे अखबारों और उनकी पत्रकारिता का मज़ाक उड़ाते हुए मैने अपने देश के कुछ पत्रकारों को देखा है। बेशक इंग्लैंड के पाठक और भारत के पाठक में फर्क है। वहाँ की पत्रकारिता की अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया की पत्रकारिता से तुलना नहीं की जा सकती। वर्ल्ड के पूर्व सम्पादक की गिरफ्तारी की खबर आते ही देश की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं ने इस अखबार का विज्ञापन बन्द कर दिया था। पर यह भी सच है कि पत्रकारिता के गढ़ में आज सन्नाटा है। लंदन की मशहूर फ्लीट स्ट्रीट आज पत्रकारिता विहीन है
1.10 1843  को निकला अखबार का पहला अंक


न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड के इस प्रकरण के बाद पत्रकारिता, कारोबार और सरकार के रिश्तों पर बहस फिर से शुरू होगी। न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड पर जो आरोप है वह हमारे देश के मीडिया को शायद आरोप भी न लगें।  पर बाजार में सफल होने के लिए मीडिया के गोरखधंधों की अब इंग्लैंड में जमकर खिंचाई हो रही है। इस विषय पर आगे विचार करने के पहले समझने की कोशिश करें कि माज़रा है क्याः-

मामला क्या है?

न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड  इंग्लैंड का 168 साल पुराना अखबार है, जिसे न्यूज़ इंटरनेशनल नाम की संस्था चलाती है। इस संस्था पर स्वामित्व रूपर्ट मर्डोक की कम्पनी न्यूज़कॉर्प का है। पिछले 168 सालों से छप रहा यह अख़बार ब्रिटेन में सबसे अधिक बिकता है। 28 लाख 12 हजार कॉपियाँ। अख़बार हर रविवार को आता था।  इस रविवार को आने वाले आखिरी अंक में कोई विज्ञापन नहीं होगा और विज्ञापन के स्थान पर चैरिटी संस्थानों को दिए जाएंगे। सन अख़बार हफ्ते में छह दिन आता था और रविवार को यही अख़बार न्यूज़ ऑफ द वर्ल्ड के नाम से आता था जिसकी सेलेब्रिटा स्कूप, सेक्स स्कैंडल और अपराध से जुड़ी खबरों के मामले में अलग पहचान थी। पिछले कुछ साल से इस अख़बार का नाम फोन हैकिंग से जुड़ गया था।

किन लोगों के फोन हैक किए गए?

पुलिस के अनुसार करीब 4000 लोगों की लिस्ट उसके पास है। इनमें राजमहल से जुड़े लोग, सेलेब्रिटी, राजनेता और आपराधिक वारदात के पीड़ित लोग हैं।  खबरों के अनुसार अख़बार ने मिली डाउलर नाम की एक लड़की का फोन उसकी हत्या के बाद हैक करवाया था। अख़बार ने उन परिवारों के भी फोन हैक करवाए थे जिनके रिश्तेदार सात जुलाई को लंदन पर हुए हमलों में मारे गए थे। 

फोन हैक क्यों किए गए?

दरअसल अखबार एक्सक्ल्यूसिव खबरों को हासिल करने के लिए यह काम करता था। इस सिलसिलें में सन 2007 में इस अखबार के रॉयल एडीटर क्लाइव गुडमैन और एक प्राइवेट इनवेस्टीगेटर ग्लेन मलकेयर को जेल भी हुई। टेबलऑइड अखबारों में प्रतियोगिता बड़ी भीषण है और पत्रकारों पर कानून उल्लंघन करने की सीमा तक जाने का दबाव है। मलकेयर के घर से मिली फाइल में जिसमें तमाम प्रतिष्ठित लोगों के नाम थे। देश में फोन हैकिंग गैर-कानूनी है। 

ताज़ा स्थिति क्या है?

लंदन पुलिस का कहना है कि उन्होंने न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड के पूर्व संपादक एंडी कॉलसन को नौ घंटे की पूछताछ के बाद ज़मानत पर रिहा किया गया है। पुलिस ने कॉलसन को कॉलसन को भ्रष्टाचार के आरोपों और फ़ोन हैकिंग के मामले में दिन में गिरफ़्तार किया था। ज़मानत मिलने के बाद कॉलसन का कहना था कि वो बहुत कुछ कहना चाहते थे लेकिन कह नहीं सके। इस बीच फोन हैंकिंग मामले में पुलिस ने तीसरे व्यक्ति को गिरफ़्तार किया है जिसकी उम्र 63 साल बताई गई है। पुलिस ने इस व्यक्ति की पहचान अभी उजागर नहीं की है। एंडी कॉलसन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के नज़दीकी सहयोगी रह चुके हैं।

क्या इसमें कहीं भ्रष्टाचार भी है?

हाँ पुलिस पर आरोप है कि वह पैसे लेकर जाँच करती है। सन 2006 की जाँच में उसने गुडमैन और मलकेयर को तो सजा दिलवा दी, पर ज्यादा बड़े नाम सामने आने से रोक दिए। इस सिलसिलें में तमाम मामले अदालतों में हैं। सायना मिलर को अदालत ने एक लाख पाउंड का हर्जाना दिलवाया है। एंडी ग्रे को 20 हजार पाउंड मिले हैं। मैक्स क्लिफर्ड के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सात लाख पाउंड पर राजीनामा किया है। 


सन 2009 में गार्डियन अखबार ने इस मामले को उठाया तो हाउस ऑफ कॉमन्स की कुछ कमेटियों ने न्यूज़ इंटरनेशनल के बड़े अफसरों से पूछताछ की, इनमें कॉलसन भी थे। 


2 comments:

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी आपने सर । आभार

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  2. इसी बहाने काफी कुछ जानने को भी मिल गया1 आभार।

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