इस साल का नोबेल शांति-पुरस्कार एक विसंगति की ओर इशारा कर रहा है। इस
पुरस्कार की घोषणा जिस वक्त हुई है उस वक्त भारत और पाकिस्तान की सुरक्षा सेनाएं
जम्मू-कश्मीर की नियंत्रण रेखा पर एक अघोषित युद्ध लड़ रहीं है। दोनों देश एटम
बमों से लैस हैं, दोनों के पास दुनिया के बेहतरीन शस्त्रास्त्र हैं, दोनों बदलाव
के एक महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं और दोनों के नागरिकों के सामने भोजन, आवास,
शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की बुनियादी सुविधाओं का संकट है। नोबेल पुरस्कार
समिति ने संयुक्त पुरस्कार क्या सोचकर दिया कहना मुश्किल है, पर दोनों देशों के
नागरिकों को इस पुरस्कार के गहरे निहितार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। यह
पुरस्कार मलाला और कैलाश सत्यार्थी से ज्यादा इन दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण
है।
Sunday, October 12, 2014
Saturday, October 11, 2014
ई-रिटेल का खेल, अभी तो यह शुरुआत है
फ्लिपकार्ट की ‘बिग-बैंग’ सेल के बाद भारत के ई-रिटेल को लेकर कई
बातें रोशनी में आईं हैं। इसकी अच्छाइयों और बुराइयों के किस्से सामने हैं, कई
पेचीदगियों ने सिर उठाया है और सम्भावनाओं का नया आसमान खुला है। इस नए बाज़ार ने व्यापार
कानूनों के छिद्रों की ओर भी इशारा किया है। यह बाज़ार इंटरनेट के सहारे है जिसकी पहली
पायदान पर ही हम खड़े हैं। ‘बिग बिलियन डे’ की सेल ने नए मायावी संसार की झलक
भारतवासियों को दिखाई साथ ही फ्लिपकार्ट की प्रबंध क्षमता और तकनीकी प्रबंध पर
सवाल भी उठाए। इसके लिए उसके सह-संस्थापकों सचिन बंसल और बिनी बंसल ने फौरन अपने
ग्राहकों से माफी माँगी। उनकी असली परीक्षा अब अगले कुछ दिनों में होगी।
Thursday, October 9, 2014
अब खुल रहा है ई-बाज़ार...
पिछले एक हफ्ते की गतिविधियों को देखते हुए शायद ‘दिनकर’ की पंक्तियों
को कुछ संशोधित करके इस तरह कहने की घड़ी आ रही है, ‘सेनानी
करो प्रयाण अभय, सायबर आकाश तुम्हारा है.’ चीन की ई-कॉमर्स
वेबसाइट अलीबाबा न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो गयी. उसके संस्थापक और
कार्यकारी अध्यक्ष जैक मा 21 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया के सबसे अमीर
लोगों में से एक बन गए. नौजवानों को स्टीव जॉब्स, जुकेनबर्ग और बिल गेट्स जैसा एक
और रोल मॉडल मिल गया है. उधर भारत में सबसे बड़े ई-रिटेल ग्रुप फ्लिपकार्ट ने अपनी
बंपर सेल के 'बिग बिलियन डे' को बिगबैंग के अंदाज़ में मनाया. यह अलग बात है कि कुछ
नासमझी, कुछ अनुभवहीनता और कुछ तकनीकी सीमाओं ने फ्लिपकार्ट को ‘फ्लॉपकार्ट’ बनाने में
देर नहीं की और सोशल मीडिया ने उसका जमकर मज़ाक उड़ाया.
Monday, October 6, 2014
खेलों में हम फिसड्डी ही साबित क्यों होते हैं?
इंचियॉन के एशिया खेलों में जब भारत की टीम जा रही थी तब
उम्मीद ज़ाहिर की गई थी कि सन 2010 के ग्वांगझो एशियाड के मुकाबले इस बार हमारे
खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करेंगे। ग्वांगझो में हमें कुल 65 मेडल मिले थे। एशिया
खेलों में वह हमारा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसके पहले सन 1982 के
दिल्ली एशियाड में हमें 57 मेडल मिले थे। पहले एशिया खेल सन 1951 में दिल्ली में
हुए थे। तब पदक तालिका में हम 51 मेडलों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 60
मेडलों के साथ जापान पहले स्थान पर रहा। 1982 में कुल 57 मेडलों के साथ हम पाँचवें
पर, 2010 में छठे पर और इस बार 57 मेडलों के साथ हम आठवें स्थान पर रहे। 342
मेडलों के साथ चीन का पहला नम्बर रहा।
Sunday, October 5, 2014
सामूहिक इच्छा होगी तो सब साफ हो जाएगा
महात्मा गांधी के चरखा यज्ञ की सामाजिक भूमिका पर कम लोगों
ने ध्यान दिया होगा। देशभर के लाखों लोग जब चरखा चलाते थे, तब कपड़ा बनाने के लिए
सूत तैयार होता था साथ ही करोड़ों लोगों की ऊर्जा एकाकार होकर राष्ट्रीय ऊर्जा में
तबदील होती थी। प्रतीकात्मक कार्यक्रमों का कुशलता से इस्तेमाल व्यावहारिक रूप से
बड़े परिणाम भी देता है। जैसे लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय जवान, जय किसान’ के
नारे ने संकट के मौके पर देश को एक कर दिया। यह एकता केवल संकटों का सामना करने के
लिए ही नहीं चाहिए, बल्कि राष्ट्रीय निर्माण के लिए भी इसकी जरूरत है। भ्रष्टाचार
के खिलाफ अन्ना-आंदोलन या निर्भया मामले में जनता के रोष के पीछे भी यह राष्ट्रीय
एकता खड़ी थी। इस एकता या सर्वानुमति की अक्सर जरूरत होगी, क्योंकि हमारी व्यवस्था
इतनी प्रभावशाली नहीं है कि सारे काम हल करके दे दे। उसे प्रभावशाली बनाने के लिए
भी जनांदोलनों की जरूरत है।
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