Thursday, October 9, 2014

अब खुल रहा है ई-बाज़ार...

पिछले एक हफ्ते की गतिविधियों को देखते हुए शायद दिनकर की पंक्तियों को कुछ संशोधित करके इस तरह कहने की घड़ी आ रही है, सेनानी करो प्रयाण अभय, सायबर आकाश तुम्हारा है. चीन की ई-कॉमर्स वेबसाइट अलीबाबा न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो गयी. उसके संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष जैक मा 21 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक बन गए. नौजवानों को स्टीव जॉब्स, जुकेनबर्ग और बिल गेट्स जैसा एक और रोल मॉडल मिल गया है. उधर भारत में सबसे बड़े ई-रिटेल ग्रुप फ्लिपकार्ट ने अपनी बंपर सेल के 'बिग बिलियन डे' को बिगबैंग के अंदाज़ में मनाया. यह अलग बात है कि कुछ नासमझी, कुछ अनुभवहीनता और कुछ तकनीकी सीमाओं ने फ्लिपकार्ट को फ्लॉपकार्ट बनाने में देर नहीं की और सोशल मीडिया ने उसका जमकर मज़ाक उड़ाया. 

बहरहाल बीच सड़क पर रपटे फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापकों सचिन बंसल और बिनी बंसल ने फौरन अपने ग्राहकों से माफी माँगी. बहरहाल 90-99 फीसदी छूट के साथ ऑनलाइन रिटेल बाजार में फ्लिपकार्ट ने नई क्लिक-वॉर का एलान कर दिया है. उसका मुकाबला अमेज़न जैसी संस्था से है, जिसे दुनिया में ई-रिटेल का जनक माना जा सकता है. अमेजन के संस्थापक और सीईओ जेफ बेजोस भारत में ई-कॉमर्स के विकास को लेकर बहुत उत्साहित हैं. ई-रिटेल ही नहीं हम ई-बैंकिंग में महा-विस्फोट के द्वार पर खड़े हैं. बिटकॉइन के प्रवेश ने मुद्रा और नकदी को नए अर्ध दिए हैं. तमाम वित्तीय-उपकरणों की परिभाषा बदल रही है. पर भारत के नज़रिए से रोचक खबर है विश्व बैंक की छमाही रिपोर्ट में इस बात का संकेत कि मॉनसून की विफलता के बावजूद भारतीय अर्थ-व्यवस्था तमाम अंदेशों को ठुकराते हुए अगले साल साढ़े छह फीसदी की दर से संवृद्धि की और बढ़ रही है.

सात साल पहले सन 2007 में फ्लिपकार्ट ने भारत में ऑन-लाइन रिटेल का काम शुरू किया. उसके अगले साल ही दुनिया को मंदी ने घेर लिया. वक्त के साथ लुका-छिपी खेलती इस संस्था ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने लिए संसाधन जुटाए और यह देश की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेलर बन गई. उसने भारत के बड़े और छोटे शहरों में खरीदारी के तौर-तरीकों को बदला है. किराना बाज़ार को छोड़ बाकी पारंपरिक उपभोक्ता बाजारों इसने में सेंध लगाई है. इसे देखते हुए अमेज़न ने भी यहाँ डेरा जमा दिया और यहाँ तकरीबन दो अरब डॉलर का निवेश करने का घोषणा करके इरादों की घोषणा कर दी. देश के तमाम छोटे-बड़े रिटेलर अब किसी न किसी रूप में इंटरनेट की मदद लेने की बात सोचने लगे हैं. सवाल है कि क्या इस होड़ और दौड़ में कोई दम है या यह गुब्बारे की तरह फूट जाएगी?

'बिग बिलियन डे' सेल से फ्लिपकार्ट ने केवल सबसे बड़ी बिक्री का नया रिकॉर्ड ही नहीं बनाया बल्कि पहले 10 घंटे में एक अरब हिट का नया रिकॉर्ड भी कायम किया. उसे सोमवार को फेसबुक से कहीं ज्यादा हिट मिले. 24 घंटे के अंदर 'बिग बिलियन डे' सेल की वजह से फ्लिपकार्ट के 10 लाख से ज्यादा मोबाइल एप्लीकेशन डाउनलोड किए गए. उसने सोमवार को 25 हजार से ज्यादा टीवी सेट और पांच लाख से ज्यादा मोबाइल फोन बेचे. पांच लाख से ज्यादा परिधानों और जूतों की यूनिट एक दिन में बिकीं. कंपनी का दावा है कि एक दिन में 600 करोड़ रुपए की कीमत के प्रोडक्ट बेच लिए. दूसरी ओर फ्लिपकार्ट पर शॉपिंग करने वाले ग्राहकों को काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा और कई बार साइट के क्रैश होने से खासी परेशानी खड़ी हो गई.

ऑनलाइन शॉपिंग का की एक वजह है आकर्षक ऑफर, डील और वाजिब दाम. पर महत्वपूर्ण बात यह है कि छोटे से कस्बे में बैठा व्यक्ति ऐसी चीजें खरीद सकता है, जो उसके बाज़ार में नहीं मिलतीं. जिनके लिए उसे दिल्ली, मुम्बई या बेंगलुरु जाना पड़ता. पर इसकी ज्यादा बड़ी वजह है इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तेजी से बढ़ रही संख्या. ऑनलाइन-कल्चर ने बाजार अर्थशास्त्रियों को भी चौंका दिया है. इसमें युवाओं के साथ महिलाओं का बड़ा वर्ग भी जुड़ गया है. घर में सफाई करने वाला मॉप, छोटी सिलाई मशीन, रोटी बनाने वाली मशीन से लेकर सलवार सूट और साड़ियों के सेट तक ऑनलाइन खरीदे जा रहे हैं. इसे लोकप्रिय बनाने में इंटरनेट की ही भूमिका है. पिछले सोमवार को फ्लिपकार्ट के डील की चर्चा तेजी से सोशल मीडिया पर हुई. ट्विटर और फेसबुक के ट्रेंडिंग टॉपिक में यह शामिल हो गया. जब भीड़ और माँग बढ़ी और चीजें आउट ऑफ स्टॉक नज़र आईं तो उसपर तीखी प्रतिक्रिया भी हुई.

इंटरनेट ने नो उल्लू बनाविंग का पूरा इंतज़ाम कर रखा है. एक सज्जन ने ट्वीट किया, वह कौन शख्स है जिसे एक रुपए में पेन ड्राइव लेने में सफलता मिली, देश जानना चाहता है. कुछ उपभोक्ताओं ने नोटिस किया कि डील को बेहतर दिखाने के लिए कुछ चीजों की एमआरपी बढ़ा दी, जिन्हें पहले कम कीमत पर बेचा जा रहा था. क्रोम और मोज़ीला पर ऐसे एक्सटेंशन उपलब्ध हैं जो तमाम साइटों की कीमतें कम्पेयर कर सकते हैं. किसी सामान की कीमत को ट्रैक किया जा सकता है कि किस तारीख को कितनी कीमत रही है. उपभोक्ता यह जानकारी भी दे रहे हैं कि अमेज़न ने जब गलती से गलत नम्बर का जूता भेज दिया तो शिकायत करने पर न केवल सही नम्बर का जूता भेजा बल्कि पुराना जूता भी उपभोक्ता के पास रहने दिया. एक पुस्तक न भेज पाने पर रुपए तो वापस किए ही साथ ही एक मुफ्त वाउचर भेजा ताकि भविष्य की खरीदारी में उसका इस्तेमाल किया जा सके. सोशल मीडिया में इन बातों की चर्चा से ई-रिटेल को ताकत मिली है. साथ ही कम्पनियों की प्रतियोगिता बढ़ी है.

अभी तो दीपावली के मौके पर भारी खरीदारी होगी. अमेजन डॉट इन इसी हफ्ते दोबारा सेल लगा रहा है. यह सेल 10 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक चलेगी. स्नैपडील ने भी अपनी दीवाली सेल को 25 अक्टूबर तक बढ़ा दिया है. अनेक उत्पादक इस तरह दामों को गिराने के खिलाफ हैं. उनका मानना है कि इससे बाज़ार बिगड़ रहा है. इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बेचने वाली कंपनी एलजी ने एक चिट्ठी लिखकर आगाह किया है कि ई-कॉमर्स पोर्टल से खरीदे गए एलजी प्रोडक्ट के असली होने की कंपनी की जिम्मेदारी नहीं है. यानी वास्तविक बाज़ार और वर्च्युअल बाज़ार में द्वंद्व है. ई-कॉमर्स में तेज गतिविधियाँ हैं, पर भारत में इससे जुड़े नियमन की नहीं है.

हमारे यहाँ एकल ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी और मल्टी-ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत है लेकिन ई-कॉमर्स के बारे में ऐसा कोई फैसला नहीं है. देसी ई-कॉमर्स कंपनियाँ अपने पास कोई माल खरीदकर एकत्रित नहीं करती हैं. वे केवल एक मंच मुहैया कराती हैं जहां खरीदार और विक्रेता आपस में मिलते हैं. यह खुदरा नहीं बल्कि सेवा क्षेत्र का कारोबार है इसलिए इसमें विदेशी निवेश नहीं रुक पाया. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के अनुसार केवल 13 फीसदी भारतीय (यानी 15 करोड़ से कुछ ज्यादा) ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. चीन में 44 फीसदी, ब्राजील में 42.2 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका में 39.4 फीसदी नागरिक इंटरनेट पर हैं. यानी अभी सम्भावनाओं का काफी बड़ा आकाश खुला है. विडंबना है कि भारत में ई-कॉमर्स आज भी फायदे का सौदा नहीं है. फिर भी हम उसकी धूम देख रहे हैं.

प्रभात खबर में प्रकाशित

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