Friday, June 11, 2021

चुनावी पृष्ठभूमि में पंजाब और उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हुईं


अगले साल के फरवरी-मार्च महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधान सभा चुनाव होंगे। उसके पहले इन सभी राज्यों में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली में हैं। गुरुवार को उनकी मुलाकात गृहमंत्री अमित शाह से हुई है और आज वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी उनकी मुलाकात होगी। कयास हैं कि केंद्रीय नेतृत्व के साथ उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार, पंचायत चुनाव समेत कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए जितिन प्रसाद से भी उनकी मुलाकात हुई है।

उधर पंजाब में तेज गतिविधियाँ चल रही हैं। कांग्रेस पार्टी घोषणा कर चुकी है कि हम मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे, पर प्रदेश के नेतृत्व में विकल्प की भी तलाश हो रही है। इस तलाश के पीछे कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे टकराव की भूमिका भी है। दोनों नेताओं के बीच राज्य में पोस्टर युद्ध चल रहा है। लगता यह भी है कि सिद्धू को बढ़ावा देने में हाईकमान की भूमिका भी है।

Thursday, June 10, 2021

क्यों साथ छोड़ रहे हैं ‘कांग्रेस के युवा-सितारे?’

कांग्रेस का मार्च 2018 का ट्वीट
बुधवार को जैसे ही जितिन प्रसाद के कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की खबर आई कर्नाटक के युवा सांसद तेजस्वी सूर्य ने कांग्रेस पार्टी के एक पुराने ट्वीट को शेयर किया। यह ट्वीट मार्च 2018 में हुए कांग्रेस महासमिति के सम्मेलन के मौके पर जारी किया गया था। इसमें अंग्रेजी में लिखा था द यंग गन्स ऑफ द पार्टी एट कांग्रेस प्लैनरी-2018।इसमें पार्टी के पाँच युवा नेताओं की तस्वीरें थीं। ये थे ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा और दिव्य स्पंदना।

तेजस्वी सूर्य ने अपने ट्वीट में लिखा, कांग्रेस अपने युवाओं के साथ कैसा बर्ताव करती है? इनमें से दो पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। दो का एक-एक पैर बाहर है। और एक (यानी दिव्य स्पंदना) लापता है।

सात साल पहले कांग्रेस पार्टी से भगदड़ का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह बजाय कम होने के तेज होता जा रहा है। केवल विधायकों या उस स्तर के नेताओं को ही शामिल किया जाए, तो यह संख्या अबतक सैकड़ों में पहुँच चुकी है। हाल में केरल विधानसभा के चुनावों के ठीक पहले जब पीसी चाको ने पार्टी छोड़ी, तो किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं की तरफ अब कोई ध्यान दे भी नहीं रहा है।

उठा-पटक जारी

पार्टी के भीतर लगातार उठा-पटक जारी है। पंजाब विधानसभा के चुनाव करीब हैं और वहाँ नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच टकराव चल रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सिद्धू को लगता है कि उन्हें हाईकमान का सहारा है। राजस्थान में भी कलह है।

वास्तव में किसी पार्टी का भविष्य उसके युवा नेताओं से जुड़ा होता है। पर जब उदीयमान युवा नेता पार्टी छोड़कर जाने लगें, तो सवाल पैदा होते हैं कि यह हो क्या रहा है। पिछले कुछ वर्षों में राहुल गांधी ने अपने जिन युवा सहयोगियों को बढ़ावा दिया है, वे क्यों भाग रहे हैं? पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने बुधवार को पार्टी छोड़कर पार्टी को गहरा सदमा पहुँचाया है। इन खबरों से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता है।

कांग्रेस की टूट का लम्बा सिलसिला

काँग्रेस की स्थापना के समय सन् 1885 का चित्र

भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 1885 में हुआ था और इस पार्टी ने देश की आज़ादी की लड़ाई में बड़ा योगदान दिया था। आजादी के बाद इसी पार्टी ने सबसे अधिक समय तक देश पर शासन किया। 1947 से अब तक टुकडों-टुकड़ों में कांग्रेस ने कोई 54 साल तक केंद्र की सरकार चलाई।

इस बीच पार्टी का कई बार विभाजन हुआ और वर्तमान कांग्रेस भी इसका एक धड़ा ही था जिसे कांग्रेस (आई) यानी कांग्रेस इंदिरा कहा जाता था। बाद में चुनाव आयोग ने इसे ही असली कांग्रेस का दर्जा दे दिया। जवाहर लाल नेहरू के नाती और इंदिरा गाँधी के बेटे राजीव गाँधी की पत्नी सोनिया गाँधी इस समय कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। उन्होंने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था। एक छोटे से दौर में उनके पुत्र राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बने थे, पर 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद सोनिया गांधी फिर से का4यकारी अध्यक्ष की भूमिका निभा रही हैं। पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव जून में कराने की योजना थी, पर महामारी के कारण यह चुनाव फिर टल गया है।

Wednesday, June 9, 2021

जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस छोड़ी


उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के युवा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे। 2019 में भी कांग्रेस छोड़कर उनके बीजेपी में आने की चर्चा चली थी, पर अंतिम क्षणों में वह घोषणा रुक गई। उस वक्त खबर थी कि जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल होने के लिए दिल्ली रवाना हो चुके हैं। बहरहाल बाद में खबर आई कि प्रियंका गांधी ने उन्हें फोन करके मना लिया और प्रसाद रास्ते से लौट गए। अब कहा जा रहा है कि इसबार जितिन प्रसाद ने दो दिनों से अपना फोन बंद कर रखा था।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर करने के बीजेपी के अभियान की शुरुआत हो गई है। जितिन प्रसाद ब्राह्मणों के बड़े नेता माने जाते हैं और यूपी में ब्राह्मण मतदाताओं की 10% की बड़ी हिस्सेदारी है।  जितिन प्रसाद ने बीजेपी मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता लेने के बाद कहा कि मैंने कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का फैसला बहुत सोच-समझकर लिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के नाम पर कोई राजनीतिक दल है तो वह एकमात्र बीजेपी है। उन्होंने कहा, "मैं ज्यादा बोलना नहीं चाहता हूं, मेरा काम बोलेगा। मैं बीजेपी कार्यकर्ता के रूप में 'सबका साथ, सबका विश्वास' और 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के लिए काम करूंगा।"

यूपी में महत्वपूर्ण भूमिका

पीयूष गोयल ने उन्हें बीजेपी मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता दिलाई। उन्होंने जितिन प्रसाद को उत्तर प्रदेश का बड़ा नेता बताया और कहा कि यूपी की राजनीति में प्रसाद की बड़ी भूमिका होने वाली है। गोयल ने उत्तर प्रदेश की जनता के हित में जितिन प्रसाद के किए गए कामों का भी उल्लेख किया और कहा कि उनके आने से यूपी में बीजेपी का हाथ और मजबूत हुआ है।

नेतन्याहू के हटने पर भी इसराइल की राजनीतिक अस्थिरता खत्म नहीं होगी

नफ्ताली बेनेट (बाएं) और नेतन्याहू

इसराइल का नवगठित राजनीतिक गठजोड़ आगामी रविवार तक टूटा नहीं, तो 71 वर्षीय बिन्यामिन नेतन्याहू की 12 साल पुरानी सरकार का गिरना लगभग तय नजर आ रहा है। उनकी सरकार गिराने के लिए जो गठजोड़ बना है, उसमें विचारधाराओं का कोई मेल नहीं है। यह गठजोड़ नेतन्याहू के साथ पुराना हिसाब चुकाने के इरादे से एकसाथ आए नेताओं ने मिलकर बनाया है, जो कब तक चलेगा, कहना मुश्किल है। खासतौर से यदि विपक्ष का नेतृत्व नेतन्याहू जैसे ताकतवर नेता के हाथ में होगा, तो इसका चलना और मुश्किल होगा। फिलहाल लैपिड-बेनिट गठबंधन यदि विश्वास मत नहीं जीत पाया, तो इसराइल में फिर से चुनाव होंगे।

इसराइल में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की चुनावी प्रक्रिया की वजह से किसी एक पार्टी के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना मुश्किल होता है। इसी वजह से वहाँ पिछले दो साल में चार बार चुनाव हो चुके हैं। मार्च में हुए चुनाव में बिन्यामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी सबसे आगे रही थी, लेकिन वह सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा सकी जिसके बाद दूसरे नंबर की मध्यमार्गी येश एटिड पार्टी को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया था। उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि तक बहुमत साबित करना था। उनकी समय-सीमा खत्म होने ही वाली थी कि नेतन्याहू-विरोधी नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब हम सरकार बनाएँगे। अभी तक देश में ऐसा गठबंधन असम्भव लग रहा था, जो सरकार बना सके।

बेमेल गठजोड़

आठ पार्टियों के गठबंधन के लिए हुए समझौते के तहत बारी-बारी से दो अलग दलों के नेता प्रधानमंत्री बनेंगे। सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफ्ताली बेनेट 2023 तक प्रधानमंत्री रहेंगे। उसके बाद 27 अगस्त को वे यह पद मध्य येश एटिड पार्टी के नेता येर लेपिड को सौंप देंगे। फलस्तीनी मुसलमानों की पार्टी इसराइल में किंगमेकर बनकर उभरी है। मंसूर अब्बास का कहना है कि समझौते में कई ऐसी चीज़ें हैं, जिनसे अरब समाज को फ़ायदा होगा।