वैश्विक-घटनाक्रम के लिहाज से यह समय गहमागहमी से भरपूर है। जून के महीने में ब्रिक्स और जी-7 के शिखर सम्मेलन होने वाले हैं। जी-7 का शिखर सम्मेलन 26 से 28 जून तक बवेरियन आल्प्स में श्लॉस एल्मौ में होने वाला है। ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन भी उसी के आसपास होगा। दोनों सम्मेलनों में भारत की उपस्थिति और दृष्टिकोण पर दुनिया का ध्यान केंद्रित रहेगा। इन दोनों सम्मेलनों से पहले इसी हफ्ते जापान में हो रहे क्वॉड शिखर सम्मेलन का भी राजनीतिक महत्व है। ये सभी सम्मेलन यूक्रेन-युद्ध की छाया में हो रहे हैं। दुनिया में नए शीतयुद्ध और वैश्विक खाद्य-संकट का खतरा पैदा हो गया है। पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कारण भारत-चीन रिश्तों की कड़वाहट को देखते हुए भी खासतौर से ब्रिक्स सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण हैं।
चीन के साथ रिश्ते
मार्च के महीने में चीन के विदेशमंत्री वांग यी
की अचानक हुई भारत-यात्रा से ऐसा संकेत मिला कि चीन चाहता है कि भारत के साथ
बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू किया जाए। दोनों देशों के बीच कड़वाहट इतनी थी कि दो-तीन
महीने पहले तक इस बात को लेकर संशय था कि चीन में होने वाले ब्रिक्स शिखर-सम्मेलन
में भारत शामिल होगा भी या नहीं। पर अब यह साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस
सम्मेलन में शामिल होंगे। अलबत्ता शिखर सम्मेलन की तैयारी के सिलसिले में 19 मई को
हुए ब्रिक्स विदेशमंत्री सम्मेलन में एस जयशंकर ने भारत के दृष्टिकोण को काफी हद
तक स्पष्ट कर भी दिया है। उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर परोक्ष रूप में चीन
की आलोचना की और यह भी कहा कि समूह को पाकिस्तान-प्रेरित सीमा पार आतंकवाद को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
लद्दाख का गतिरोध
चीन के प्रति भारत के सख्त रवैये की पहली झलक गत
25 मार्च को चीनी विदेशमंत्री वांग यी की अघोषित दिल्ली-यात्रा में देखने को मिली।
दिल्ली में उन्हें वैसी गर्मजोशी नहीं मिली, जिसकी
उम्मीद लेकर शायद वे आए थे। भारत ने उनसे साफ कहा कि पहले लद्दाख के गतिरोध को दूर
करें। इतना ही नहीं वे चाहते थे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी मुलाकात हो,
जिसे शालीनता से ठुकरा दिया गया। दोनों देशों की सेनाओं के बीच 15
दौर की बातचीत के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला है। अब खबर है कि पैंगोंग झील के
पास अपने कब्जे वाले क्षेत्र में चीन दूसरे पुल का निर्माण कर रहा है। इन सभी
बातों के मद्देनज़र शिखर सम्मेलन से पहले इस हफ्ते हुई विदेशमंत्री स्तर की बैठक
काफी महत्वपूर्ण थी।
विदेशमंत्री-सम्मेलन
गत 19 मई को ब्रिक्स-विदेशमंत्रियों की डिजिटल
बैठक के एक दिन पहले खबर आई थी कि पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के पास चीन दूसरा
पुल बना रहा है। उसके पहले दोनों देशों के बीच 15वें दौर की बातचीत में भी लद्दाख
के गतिरोध का कोई हल नहीं निकला। इस पृष्ठभूमि में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने
संप्रभुता और अखंडता की बात करते हुए चीनी नीति पर प्रहार भी किए। उन्होंने
यूक्रेन संघर्ष का जिक्र करते हुए चीन की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा, ‘ब्रिक्स ने बार-बार संप्रभुता, क्षेत्रीय
अखंडता, अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान किया है। हमें
उन प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरना चाहिए।’ इस बैठक के उद्घाटन सत्तर में चीन के
राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हुए। उन्होंने इस मौके पर कहा कि इतिहास और
वास्तविकता दोनों हमें बताते हैं कि दूसरों की कीमत पर अपनी सुरक्षा की तलाश करना
केवल नए तनाव और जोखिम पैदा करेगा।
सुरक्षा-परिषद सुधार
बैठक में, विदेश मंत्री जयशंकर ने 8-प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें न केवल कोरोना महामारी से सामाजिक-आर्थिक सुधार की तलाश करनी चाहिए, बल्कि लचीला और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला भी बनानी चाहिए। यूक्रेन युद्ध के असर से ऊर्जा, भोजन और वस्तुओं की लागत में तेज वृद्धि हुई है। विकासशील दुनिया की खातिर इसे कम किया जाना चाहिए। ब्रिक्स ने बार-बार संप्रभु समानता, क्षेत्रीय अखंडता और अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान की पुष्टि की है। हमें इन वादों पर खरा उतरना चाहिए। ब्रिक्स को सर्वसम्मति से और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, डिजिटल दुनिया और संधारणीय विकास की अवधारणाओं पर भी अपने विचार व्यक्त किए।
ब्रिक्स का उदय
ब्रिक्स (ब्राजील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका)
पांच बड़े विकासशील देशों का समूह है जो दुनिया की 41 प्रतिशत आबादी, 24 प्रतिशत जीडीपी तथा 16 प्रतिशत कारोबार का प्रतिनिधित्व करता है। नवोदित
देशों के आपसी सहयोग को बढ़ाने के विचार से ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने 2009 में
इस समूह का गठन किया था। दक्षिण अफ्रीका इसमें 2010 में शामिल हुआ। सन 2009 के बाद
से इस समूह के सालाना सम्मेलन होते रहे हैं। आगामी शिखर सम्मेलन 14वाँ होगा, जिसकी
अध्यक्षता चीन करेगा। दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के पहले तक 2009 और 2010 में चार
देशों के सम्मेलन हुए थे। पाँच देशों का पहला सम्मेलन 2011 में हुआ था। सन 2021 का
सम्मेलन भारत में हुआ था। यह सम्मेलन भारत-चीन तनाव के बीच ही हुआ था।
उलझाने की चीनी-नीति
इस दौरान ऐसे संकेत भी मिले हैं, जिनसे लगता है
कि चीन अपने रिश्ते भारत के साथ सुधारना चाहता है, पर लद्दाख सीमा पर तनाव कम नहीं
होने के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पा रही है। भारतीय सेना के नए प्रमुख जनरल मनोज
पांडे ने हाल में कहा है कि हमारा उद्देश्य अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल
करना है। सीमा विवाद को सुलझाना पहला मकसद होना चाहिए, लेकिन
चीन इस सीमा विवाद को उलझाए रखना चाहता है। हमें नजर आ रहा है कि चीन की मंशा सीमा मुद्दे को बरकरार रखने की
रही है। दिल्ली स्थित सेना मुख्यालय में गत 9 मई को पत्रकारों के एक समूह के साथ
बात करते हुए, सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि भारत की
उत्तरी सीमा पर चीन के साथ जारी गतिरोध उनके लिए ‘अत्यधिक चिंता’ का विषय रहा है।
यूक्रेन-संकट का असर
यूक्रेन-संकट की पृष्ठभूमि में चीन और रूस के
रिश्ते क्रमशः मजबूत हो रहे हैं। पर भारत की दिलचस्पी किसी एक गुट के साथ जुड़ने
की नहीं है। चीन और रूस दोनों ही भारत को मनाने की कोशिश कर रहे हैं, पर भारतीय
राजनय के सामने इन रिश्तों के परिभाषित करने की चुनौती है। चीन अपना प्रभाव बढ़ाने
के लिए ब्रिक्स का विस्तार भी करना चाहता है। यह बात विदेशमंत्री सम्मेलन में चीन
के विदेशमंत्री वांग यी ने भी कही। उन्होंने कहा कि हम ब्रिक्स के विस्तार के आधार
और प्रक्रिया को तय करना चाहते हैं और इस सिलसिले में सर्वानुमति तैयार करेंगे।
अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मैक्सिको और तुर्की काफी पहले से इसमें शामिल
होने की इच्छा व्यक्त करते रहे हैं। हाल में मिस्र, ईरान, नाइजीरिया, सूडान,
सीरिया और पाकिस्तान तक ने इसमें शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है।
रूस-चीन गठजोड़
अगले महीने होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में
मेजबान देश चीन के निमंत्रण पर अर्जेंटीना इसमें भाग लेगा। वह इसका स्थायी सदस्य
बनने की इच्छा पहले से व्यक्त करता रहा है। धीर-धीरे ब्रिक्स प्लस की अवधारणा जन्म
लेती जा रही है। उधर रूस की दिलचस्पी इस बात में है कि ब्रिक्स देशों के बीच
कारोबार किसी प्रकार से अमेरिकी बंदिशों से बचने का आधार बने। पर यह इतना आसान
नहीं है। इसकी वजह यह है कि चीनी की तमाम कम्पनियों के हित अमेरिका के साथ जुड़े
हुए हैं। चीन की तमाम वित्तीय-कम्पनियाँ रूस पर लगाई गई आर्थिक-पाबंदियों का
अनुपालन कर रही हैं। ब्रिक्स के नजरिए से देखें, तो इस साल मार्च में ब्रिक्स के
नए विकास बैंक ने रूस की अपनी सभी परियोजनाओं को स्थगित कर दिया था। यूक्रेन-युद्ध
के कारण ब्रिक्स के राजनीतिक दृष्टिकोण का महत्व बढ़ गया है। चीन ने रूसी नीति का
काफी हद तक समर्थन किया है। उसने इस संकट के लिए नाटो को जिम्मेदार ठहराया है। उधर
स्वीडन और फिनलैंड ने नाटो में शामिल होने की अर्जी देकर इस मामले को और जटिल बना
दिया है।
मोदी की जापान-यात्रा
भारत की दृष्टि यूरोप से ज्यादा एशिया की
सुरक्षा-व्यवस्था में है। इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 24 मई को
जापान में हो रहे क्वॉड शिखर-सम्मेलन में शिरकत करना भी खासा महत्वपूर्ण है।
उन्हें जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने निमंत्रित किया है। अमेरिका के
राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री स्कॉट
मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। संयोग से स्कॉट मॉरिसन ऐसे वक्त में आ रहे हैं, जब वे अपने देश में चुनाव हार चुके हैं। बहरहाल पिछले
वर्ष मार्च में वर्चुअल माध्यम से हुई पहली बैठक के बाद इस बैठक में क्वॉड नेताओं
की चौथी बार मुलाकात होगी। मोदी दूसरी बार व्यक्तिगत रूप से क्वॉड शिखर सम्मेलन
में भाग लेंगे। माना जा रहा है कि क्वॉड शिखर सम्मेलन में नेता यूक्रेन पर रूसी
हमले और तीन महीने के पश्चिमी प्रतिबंधों के असर का आकलन करेंगे। भारत क्वॉड का
एकमात्र ऐसा सदस्य है जो रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल नहीं है, और उसने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की सीधी आलोचना भी नहीं की है। उधर
अमेरिका ने क्वॉड की गतिविधियां बढ़ा दी हैं, ताकि
एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन की दादागीरी को टक्कर दी जा सके। चीन की आक्रामक
विदेश-नीति और दक्षिण चीन सागर के साथ ही हिमालय के क्षेत्र में विवादित इलाकों पर
दावों ने जापान, भारत और उसके दूसरे पड़ोसियों के साथ
रिश्ते खराब किए हैं। चीन की यह नीति उसपर भारी पड़ने वाली है।
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