Sunday, October 31, 2021

त्रिपुरा की हिंसा के राजनीतिक निहितार्थ


हाल में बांग्लादेश में मंदिरों पर हमलों के बाद देश के पूर्वोत्तर के राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा हुई है। इसमें भी सबसे ज्यादा गंभीर खबरें त्रिपुरा से आ रही हैं। राज्य सरकार का कहना है कि बाहर से आए कुछ तत्व राज्य में हिंसा भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। गत 15 अक्तूबर को बांग्लादेश में कुछ दुर्गापूजा पंडालों और मंदिरों पर हमले हुए थे। उसकी प्रतिक्रिया पूर्वोत्तर में हुई है। त्रिपुरा में भी बांग्लादेश की हिंसा के विरोध में रैलियाँ हुई हैं। अब सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से अफवाहें फैलाई जा रही हैं।

हालांकि बांग्लादेश सरकार ने तेजी से कार्रवाई करके अपने यहाँ हिंसा को दबा दिया और इसकी साजिश रचने वालों की गिरफ्तारियाँ की हैं, पर पूर्वोत्तर भारत में इसकी प्रतिक्रिया हुई है। सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग ने हिंसा के विरोध में रैलियां निकालीं। मीडिया रिपोर्टों में सामने आया है कि बांग्लादेश पुलिस ने 693 लोगों को हिरासत में लिया है। भारत में विश्व हिंदू परिषद ने इन घटनाओं को बांग्लादेश में हिंदुओं का नरसंहार बताते हुए, इसे रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र को भी चिट्ठी लिखी है। त्रिपुरा की रैली भी इसी अभियान का एक हिस्सा थी।

शेष भारत में भी इस हिंसा के राजनीतिक निहितार्थ हैं। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम पर हिंसा भड़काने के आरोप लगाए हैं। वहीं कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है, हमारे मुसलमान भाइयों के साथ त्रिपुरा में हिंसा की जा रही है। हिंदू होने के नाम पर हिंसा और नफ़रत फैलाने वाले लोग हिंदू नहीं हैं। सरकार कब तक नहीं देखने और सुनने का नाटक करती रहेगी।

राजधानी अगरतला से अरीब 155 किलोमीटर दूर स्थित पानीसागर इलाके में विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को एक रैली निकाली। रैली के दौरान कुछ मुस्लिम व्यापारियों के घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई और फिर उन्हें जला दिया गया। आरोप है कि एक मस्जिद में भी तोड़फोड़ की गई। स्थानीय पुलिस का कहना है कि विश्व हिंदू परिषद की रैली में करीब 3,500 कार्यकर्ता शामिल थे। हिंसा के संबंध में दो मामले दर्ज किए हैं लेकिन अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

पत्रकार समृद्धि सकुनिया ने एक ट्वीट में बताया कि पिछले एक हफ्ते में पूरे राज्य में नफरती अपराधों के कम से कम 21 मामलों की पुष्टि हुई है। इनमें से 15 मामले अलग-अलग मस्जिदों के तोड़ फोड़ के थे। त्रिपुरा पुलिस का कहना है कि सोशल मीडिया पर झूठी खबरें, तस्वीरें और वीडियो फैला कर मामले को और भड़काने की कोशिश की जा रही है। पुलिस ने कहा है कि झूठी खबरों को फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

उत्तर त्रिपुरा ज़िले में गुरुवार 28 अक्तूबर को फिर सांप्रदायिक हिंसा की खबर है। यह हमला उस जगह से थोड़ी ही दूर पर हुआ जहां 48 घंटे पहले एक मस्जिद तोड़ दी गई थी, दुकानें जला दी गईं थीं और अल्पसंख्यकों के घरों में तोड़फोड़ की गई थी। इस हमले के लिए विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। उत्तर त्रिपुरा ज़िले के एसपी भानुपाड़ा चक्रवर्ती ने कहा कि पानीसागर इलाके में मस्जिद के जलाए जाने की ग़लत ख़बर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है।

दूसरी तरफ विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेता पूर्णाचंद्रा मंडल के मुताबिक त्रिपुरा के कुल 51 जगहों पर बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाओं को लेकर विरोध प्रदर्शन किए गए थे। उनके मुताबिक हिंसा तब शुरू हुई जब एक प्रदर्शनकारी पर लोगों ने पत्थर से हमला किया और एक व्यक्ति को अस्पताल ले जाना पड़ा।

बीजेपी सांसद विनोद सोनकर ने हिंसा के लिए तृणमूल कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया, जो त्रिपुरा में अपने पैर पसारने की कोशिश में हैं। आरोपों पर जवाब देते हुए राज्य में टीएमसी की प्रभारी सुष्मिता देव ने कहा, "अगर हिंसा के पीछे तृणमूल है तो बिप्लब देव की सरकार और पुलिस किसी को गिरफ़्तार करने में कामयाब क्यों नहीं हो पाई। मुझे लगता है कि सरकार पुलिस के एक धड़े की मदद से आग में घी डालने का काम करके धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण करने का काम कर रही है जैसा कि बीजेपी के डीएनए में है।"

गुरुवार की घटना से चार दिन पहले राज्य में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन जमात-ए-उलेमा (हिंद) ने मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब से मुलाक़ात कर आगाह किया था कि ऐसी घटना हो सकती है और हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच शांति को ख़तरा है। इसी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे इमाम अब्दुल रहमान ने कहा, पुलिस और प्रशासन ने कड़ाई से परिस्थिति को संभाला होता तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता था।

रहमान अगरतला शहर के जामा मस्जिद के मुख्य इमाम भी हैं। त्रिपुरा में मुसलमानों की कुल आबादी 40 लाख है। उन्होंने कहा, इतिहास की बात करें तो त्रिपुरा में जब राजशाही थी तब भी और 1949 में भारत में विलय के बाद भी धार्मिक हिंसा कभी नहीं हुई है। पहली बार 2019 बैदादीगीह में एक संगठित भीड़ ने मस्जिदों और मुसलमानों पर हमला किया और अब ऐसा पूरे राज्य में हो रहा है।

त्रिपुरा के शाही परिवार के प्रमुख प्रियदत्त किशोर देब बर्मा कहते है कि राज्य में हिंदू-मुस्लिम विभाजन एक हालिया घटना है जो कि 'धार्मिक ध्रुवीकरण के ज़रिए राजनीतिक फ़ायदे' के लिए किया जा रहा है। वे कहते हैं, "त्रिपुरा में कभी हिंदू-मुस्लिम झगड़े नहीं थे, दोनों वर्षों से शांति से रह रहे हैं और उनके साथ यहां के लोग भी रहते हैं। अब हम देख रहे हैं कि त्रिपुरा में कुछ गुट आ रहे हैं और मस्जिदों को जलाने और मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नारे लगाने का काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ये लोग बांग्लादेश के उन लोगों के बहकावे में आ रहे हैं जो चाहते हैं कि वहां से हिंदुओं को निकाला जाए और भारत के शेख हसीना की सरकार के साथ रिश्ते ख़राब हों। अगर वे बांग्लादेश में अपने लक्ष्य में कामयाब हो जाते हैं तो इसका असर सीधा इस इलाके के विकास पर पड़ेगा और पहले से ही घनी आबादी वाले इस राज्य में और रिफ्यूजी आ जाएंगे और यहां की शांति भंग होगी।

देब बर्मन त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और उन्होंने सीएए और एनआरसी पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था और एक नई पार्टी शुरू की। वे कहते हैं कि ये अलग-अलग घटनाएं नहीं है और उन्हें इसमें एक राजनीतिक डिज़ाइन दिखती है।

त्रिपुरा तीन तरफ़ 856 किलोमीटर लंबे बॉर्डर से बांग्लादेश से घिरा है। लेकिन बांग्लादेश में बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा पूर्व में की गई हिंसा का यहां बहुत असर नहीं देखने को नहीं मिला है, सिवाय कुछ प्रदर्शनों के। 1980 में त्रिपुरा में बंगालियों और आदिवासियों के बीच हिंसा हुई थी, जिसमें दोनों हिंदू मुस्लिम शामिल थे।

त्रिपुरा में आदिवासी विद्रोह और आज़ाद देश की असफल मांग को लेकर सशस्त्र विद्रोह का एक लंबा इतिहास रहा है और ग़ैर-आदिवासी बंगालियों पर हमला करते रहे हैं, वो उनपर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने आदिवासी समुदाय को अल्पसंख्यक में बदल दिया है।

विश्व हिन्दू परिषद और हिन्दू जागरण मंच जैसे संगठनों की इन रैलियों के दौरान हिंसा हुई और कुछ घरों, दुकानों और मस्जिदों में तोड़-फोड़ की गई। गत 21 अक्तूबर को गोमती जिले के उदयपुर में निकाली जा रही रैली का पुलिस से टकराव भी हुआ। पुलिस ने शहर के उन इलाकों से रैली को निकालने से रोका जहाँ मिश्रित आबादी है। इस घटना में 15 लोग घायल हुए, जिनमें तीन पुलिसकर्मी शामिल हैं। इसी प्रकार की रैलियाँ अगरतला में भी निकाली गईं, जहाँ उपद्रवियों ने एक मस्जिद के सीसीटीवी को तोड़ डाला। इसी तरह 21 अक्तूबर को उत्तरी त्रिपुरा के धरमपुर में करीब 10 हजार लोगों ने एक रैली निकाली।

इसके बाद 26 अक्तूबर को उत्तरी त्रिपुरा के पानीसागर में एक रैली निकाली गई, जो शहर के चमटिल्ला, जालेबाशा और रोवा बाजार इलाकों से गुजरी। आरोप है कि रैली में शामिल कुछ लोगों ने कुछ घरों और दुकानों पर हमले किए। आरोप है कि उसी रोज रैली में शामिल हुए कुछ लोगों ने बाद में रोवा बाजार से 800 मीटर की दूरी पर चमटिल्ला गाँव की मस्जिद में तोड़फोड़ की।

उसके बाद रात में त्रिपुरा-असम की सीमा के पास चुराईबाड़ी में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो गए। प्रशासन ने उन्हें तितर-बितर कराया और पानीसागर तथा धर्मनगर में धारा 144 लगा दी गई।

 

 

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