Wednesday, September 5, 2012

वॉशिटगटन पोस्ट की टिप्पणी को पीत पत्रकारिता कहना गलत है

अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने मनमोहन सिंह के बारे में आम भारतीय नागरिक के दृष्टिकोण को पेश करने की कोशिश की है। देश में घोटाले को बाद घोटाले ने मनमोहन सिंह की छवि को सबसे ज्यादा धक्का पहुँचाया है। अखबार कहता है कि एक सम्माननीय, विनम्र और बुद्धिमान मनमोहन सिंह की जगह निष्प्रभावी ब्यूरोक्रेट ने ले ली जो गहराई तक भ्रष्ट सरकार के सिंहासन पर बैठा है। 
"An honorable, humble and intellectual technocrat (who) has slowly given way to a dithering, ineffectual bureaucrat presiding over a deeply corrupt government."
अखबार के ताज़ा अंक में India’s ‘silent’ prime minister becomes a tragic figure शीर्षक से प्रकाशित टिप्पणी में हिन्दी पाठकों के लिए नया कुछ नहीं है। पश्चिमी पाठकों के लिए विस्मय की बात ज़रूर है कि उनकी नज़रों में सम्मानित व्यक्ति का का क्या से क्या बन गया। सायमन डेन्यर की इस टिप्पणी में रामचन्द्र गुहा और संजय बारू जैसे पत्रकारों, लेखकों को उधृत किया गया है। 

कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए इस मौके पर की गई यह टिप्पणी महत्वपूर्ण हो गई है। बीजेपी के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा है कि प्रधानमंत्री को अब फौरन इस्तीफा दे देना चाहिए। पर इससे ज्यादा रोचक टिप्पणी है सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी की, जिन्होंने कहा है कि हम वॉशिंगटन पोस्ट के सम्पादक से माफी माँगने को कहेंगे। उन्होंने कहा, यह पीत पत्रकारिता है। "How can a US daily take the matter such lightly and publish something regarding the prime minister of another country. I will speak to the ministry of external affairs (MEA) and government officials and definitely do something over this issue." इसके पहले टाइम की अंडर अचीवर वाली टिप्पणी पर भी कांग्रेस की प्रतिक्रिया ऐसी ही थी।  क्या अम्बिका सोनी की पीत पत्रकारिता की परिभाषा यही है? बेशक इस टिप्पणी के राजनीतिक निहितार्थ सम्भव हैं और यह बीजेपी समेत दूसरे विपक्षी दलों की मदद कर सकती है, पर क्या यह एक सामान्य भारतीय नागरिक की राय से फर्क बात है? 



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