शायद यह टाइम्स ऑफ इंडिया के बांग्ला बाज़ार में प्रवेश की पेशबंदी है या नए पाठकों की तलाश। आनन्द बाज़ार पत्रिका ने एबेला नाम से नया दैनिक पत्र शुरू किया है, जिसका लक्ष्य युवा पाठक हैं। यह पूरी तरह टेब्लॉयड है। रूप और आकार दोनों में। हिन्दी में जागरण के आई नेक्स्ट, अमर उजाला के कॉम्पैक्ट, भास्कर के डीबी भास्कर और हिन्दुस्तान के युवा की तरह। पर इन सबके मुकाबले बेहतर नियोजित।
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एबेला माने इस घड़ी या इस बेला। सुबह या शाम। 32 पेज के इस अखबार में 10 पेज खबरों के बाकी पर खेल, सिनेमा और मनोरंजन। खबरें पेश करने का तरीका भी आनन्द बाज़ार की तरह संज़ीदा न होकर थोड़ा रोचक और हटकर है। मसलन 21 सितम्बर के अंक में 20 के भारत बंद की खबर बंद के अर्थशास्त्र पर ज्यादा है। पहले पेज का शीर्षक है ममता केन खुशि। लेफ्ट का बंद होने के बावज़ूद इस बंद से ममता क्यों खुश हैं।
एबेला पूरी तरह रंगीन है। सामग्री और छपाई दोनों में। कॉमिक्स का पेज है। पहेलियाँ हैं, इंटरव्यू हैं और रोचक बातें है। इसके लिए ब्लर्ब और बॉक्सों का पूरा इस्तेमाल किया गया है। पूरा मसाला है, पर सनसनी उतनी नहीं है जितनी यूरोपियन टेब्लॉयड अखबारों में होती है। कीमत है एक रुपया।
पाठक को ध्यान रख कर समाचार पत्र बनते जा रहे हैं।
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