Monday, September 3, 2012

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में उम्मीदें और उलझाव

तेहरान में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं पाकिस्तान यात्रा पर ज़रूर जाना चाहूँगा, पर उसके पहले माहौल बेहतर बनना चाहिए। व्यावहारिक रूप में इसका मतलब यह है कि मुम्बई हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पर इस मामले से जुड़े सात अभियुक्तों के खिलाफ पाकिस्तानी अदालत में कारवाई बेहद सुस्ती से चल रही है। रावलपिंडी की अडियाला जेल में सुनवाई कर रही अदालत में पाँच जज बदले जा चुके हैं। अभियुक्तों के खिलाफ साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी भारत की है। पाकिस्तान के वकील और जज सातों अभियुक्तों से हमदर्दी रखते हैं। यह अदालत इंसाफ करे तो भारत-पाक रिश्तों को बेहतर बनाने में इससे बड़ा कदम कोई नहीं हो सकता। भारत की सबसे बड़ी निराशा इस कारण है कि लश्करे तैयबा का प्रमुख हफीज़ सईद खुले आम घूम रहा है। पाकिस्तानी अदालतों को उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।
पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहमान मलिक का कहना है कि हम हफीज सईद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए, पर सबूतों के अभाव में कुछ भी सम्भव नहीं। आप हमें सबूत दीजिए। पिछले दिनों पाकिस्तान से एक आयोग भारत आया था, जिसे 26/11 से जुड़े सबूत दिए गए। आयोग चाहता था कि उसे इस मामले से जुड़े गवाहों से ज़िरह करने का मौका मिले, पर सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। सरकार को अंदेशा था कि गवाहों और भारतीय न्यायिक अधिकारियों से ज़िरह के बाद पाकिस्तानी आयोग अपने अलग निष्कर्ष निकाल सकता है। उस वक्त तक मामला सुप्रीम कोर्ट में था। पाकिस्तानी अदालतों में मुम्बई हत्याकांड के सिलसिले में दूसरे किस्म के निष्कर्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को प्रभावित कर सकते थे। अब सुप्रीम कोर्ट से फैसला आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा है कि इस हत्याकांड की साज़िश पाकिस्तान में रची गई थी। तेहरान में पाकिस्तानी राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद मनमोहन सिंह ने संकेत दिया है कि एक और पाकिस्तानी आयोग को भारत आने का निमंत्रण दिया जाएगा, जिसे भारतीय गवाहों से सवाल पूछने की अनुमति होगी। यह एक बड़ा कदम साबित हो सकता है, पर काफी कुछ पाकिस्तान की न्याय-व्यवस्था पर निर्भर करेगा। बातचीत के बारे में भारतीय विदेश सचिव रंजन मथाई के अनुसार तेहरान में जरदारी ने 2008 के मुंबई हमलों में शामिल लोगों को सजा दिलाने की अपने देश की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने अपने देश की कुछ मुश्किलों का जिक्र भी किया।

हफीज़ सईद को पाकिस्तानी समाज, राजनीति और न्याय-व्यवस्था के भीतर जो स्थान मिला है उससे लगता नहीं कि उसपर कारवाई हो पाएगी। पाकिस्तानी समाज को भारत के बारे में अपनी समझ को साफ करना है। उनका आतंकवाद दो तरह का है। एक है अफगानिस्तान केन्द्रित आतंकवाद, जो अमेरिका के खिलाफ है। दूसरा है भारत केन्द्रित आतंकवाद, जिसके मुख्य सूत्राधार हैं लश्करे तैयबा और जैशे मुहम्मद। दोनों देशों के बीच इतनी समानताएं हैं कि किसी को भी आश्चर्य होगा कि दोनों एक-दूसरे के दुश्मन क्यों हैं? पाकिस्तानी समाज में दो तरह की धाराएं बहती हैं। एक धारा अपने साझा अतीत को मान्यता देती है। दूसरी धारा भारत की ओर पीठ करके सोचती है। पाकिस्तान के आधुनिकीकरण में यह अंतर्विरोध साफ दिखाई पड़ता है। पिछले चार दशक से वहाँ आर्थिक प्रगति के बजाय भावनाओं की खेती हो रही है। इसे पाकिस्तान का नया मध्य वर्ग भी समझता है, पर अभी वह दबाव में है। सामान्य लोगों की भावनाओं को जेहादी ताकतें भड़का कर रखती हैं।

भारत और पाकिस्तान के बीच फौजी टकरावों के समानांतर सहयोग की प्रवृत्तियाँ भी पनपती रही हैं। दोनों देशों के बीच भरोसे का माहौल बनाने का विचार सिद्धांत रूप में स्वीकृत है। सीमा रेखा के दो-एक सवालों के अलावा नदियों के पानी का बँटवारा मुख्य विवाद है। पर सबसे बड़ा विवाद कश्मीर को लेकर है, जो पार्टीशन का बुनियादी विवाद है। इसके बरक्स हमारे सहयोग का आधार काफी मजबूत है। हिन्दू और मुसलमानों ने सैकड़ों साल से एक साथ रहना सीख लिया है। वे अपनी असहमतियों को आसानी से सहमतियों में बदल देते हैं। हमारा खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज़, भाषा और गीत-संगीत सब कुछ मिला-कुछ मिला-जुला है। और इसी साझीदारी की बुनियाद पर हम भविष्य के सहयोग की रचना कर सकते हैं। आर्थिक स्थितियों का लोगों के जीवन और रोज़गार पर असर होता है। इसलिए कारोबारी रिश्ते ट्रम्प कार्ड साबित हो सकते हैं।

भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा 7 से 9 सितम्बर को पाकिस्तान यात्रा पर जा रहे हैं। इस दौरान कुछ समझौते होंगे। इस दौरान भारत-पाकिस्तान संयुक्त आयोग की बैठक भी होगी। यह बैठक पाँच साल बाद हो रही है। 2008 में मुम्बई हादसे के बाद पहली बार यह बैठक हो रही है। उसके पहले 2005 में यह बैठक हुई थी। पहली ज़रूरत है दोनों देशों के लोगों के सम्पर्कों का बढ़ना। एक अरसे से वीज़ा-व्यवस्था में सुधार की ज़रूरत है। सम्भावना है कि 7 से 9 सितम्बर के बीच नई वीज़ा व्यवस्था तैयार हो जाएगी। इसके तहत एक ग्रुप टूरिस्ट वीज़ा व्यवस्था शुरू होने वाली है। वृद्ध व्यक्तियों और बच्चों के लिए ऑन अराइवल वीज़ा की व्यवस्था की जा रही है। इसके अलावा व्यापारियों के लिए साल भर के मल्टीपल एंट्री वीज़ा की व्यवस्था भी की जा रही है।

वीज़ा के अलावा व्यापारिक सहयोग के रास्ते पर भी दोनों देश आगे बढ़ रहे हैं। दोनों देशों के लोगों का मिज़ाज़ एक सा है। उनके बीच व्यापार सहज और स्वाभाविक है। मुम्बई और हैदराबाद में पाकिस्तानी वाणिज्य दूत और कराची-लाहौर में भारतीय वाणिज्य कार्यालयों की ज़रूरत होगी। दोनों देशों के बीच अभी बैंकिंग सम्पर्क नहीं है। टेलीफोन सम्पर्क भी सीधे नहीं हैं। सम्भावना है कि दो भारतीय और दो पाकिस्तानी बैंकों की शाखाएं एक-दूसरे के देश में खुलेंगी। इनके बगैर कारोबार सम्भव नहीं है। दोनों देशों के बीच ज़मीनी रास्ते से वाघा के रास्ते कारोबार होता है। सन 2006 के कम्पोज़िट डायलॉग के बाद राजस्थान में भारत के मुनाबाओ और पाकिस्तान के सिंध के स्टेशन खोकरापार की रेलवे लाइन ठीक की गई और थार एक्सप्रेस के नाम से ट्रेन शुरू की गई। पार्टीशन से पहले इस लाइन पर कराची से अहमदाबाद के बीच सिंध मेल चलती थी। जिस तरह पंजाब में कारोबारी व्यवस्थाएं बनी हैं उसी तरह की व्यवस्थाएं राजस्थान और गुजरात में भी बन सकती हैं। दूसरा कारोबारी गेट खोलने पर भी दोनों देशों के बीच अप्रेल में सहमति हुई थी।

एक अरसे से दोनों देश एक-दूसरे पर आरोप जड़ने से बच रहे हैं। पर पिछले महीने असम की साम्प्रदायिक हिंसा के बाद सोशल मीडिया के मार्फत कई तरह के चित्रों और वीडियो के प्रसारण से बदमज़गी बढ़ गई। इस किस्म की बदमज़गी का अंदेशा हमेशा रहेगा, क्योंकि अब सूचनाओं की बमबारी पहले के मुकाबले कहीं तेज़ होती है। इन सूचनाओं में अर्धसत्य और सरासर झूठ के लिपटे होने की सम्भावनाएं भी खूब हैं। इसका सामना हमें अपने तरीके से करना चाहिए। और इसे सेंसरशिप से भी रोका नहीं जा सकता, क्योंकि अब रोक लगाने वाले औजारों के मुकाबले सूचना को फैलाने वाले औज़ार ज्यादा ताकतवर हैं। विश्वास इस बात का करना चाहिए कि सीमा के दोनों ओर समझदार लोगों की पर्याप्त सेख्या मौज़ूद है। पिछले अप्रेल में जब आसिफ अली ज़रदारी अजमेर शरीफ जा रहे थे तब वे कुछ देर के लिए दिल्ली रुके थे। उन्होंने तब मनमोहन सिंह को पाकिस्तान यात्रा का निमंत्रण दिया था। सम्भव है कि विदेशमंत्री की पाकिस्तान यात्रा के बाद मनमोहन सिंह की यात्रा का कार्यक्रम भी घोषित हो। दोनों देशों की आंतरिक राजनीति इन दिनों गरमाई हुई है। इस राजनीति को आपसी रिश्ते प्रभावित करते हैं। शिवसेना को पाकिस्तानी कलाकार और खिलाड़ी पसंद नहीं हैं तो लश्करे तैयबा को भारतीय प्रधानमंत्री नापसंद हैं। और इसी नापसंदगी को परास्त करने में समझदारी है।
सी एक्सप्रेस में प्रकाशित

1 comment:

  1. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी..

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