Thursday, February 26, 2015

रेल बजट माने जादू का पिटारा

 शेयर बाजार की खबरें हैं कि पिछले दो दिन से रेलवे से जुड़ी कम्पनियों के शेयरों में उछाला देखने को मिल रहा है. ऐसी क्या खुश खबरी हो सकती है जिसे लेकर शेयर बाजार खुश है? क्या निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने वाली है? क्या रेलमंत्री सामान्य यात्री की सुविधाएं बढ़ा सकते हैं? तमाम खामियों के बावजूद हमारी रेलगाड़ी गरीब आदमी की सवारी है. सिर्फ इसके सहारे वह अपनी गठरी उठाए महानगरों की सड़कों पर ठोकरें खाने के लिए अपना घर छोड़कर निकलता है. किराया बढ़ने का मतलब है उसकी गठरी पर लात लगाना. रेलगाड़ी औद्योगिक गतिविधि भी है. वह बगैर पूँजी के नहीं चलती. मध्य वर्ग की दिलचस्पी अपनी सुविधा में है. सरकार को तमाम लोगों के बारे में सोचना होता है. 

क्या राजधानी और शताब्दी का खाना बेहतर हो जाएगा? स्वच्छ भारत के इस दौर में क्या रेलवे प्लेटफॉर्मों की गंदगी कम होगी? क्या रेलवे रिजर्वेशन में दलालों का धंधा खत्म होगा? रेल बजट माहौल भी बनाता है. पिछले कई साल से इसकी सफलता या विफलता किराए और माल-भाड़े में की गई कमी-बेशी के आधार पर आँकी जाती रही है. या फिर इस बात से कि किस नेता या किस राज्य सरकार के अनुरोध पर किस शहर से किस शहर तक नई रेलगाड़ी चलेगी. क्या इस बजट में बिहार के विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर ट्रेनों की घोषणा होगी? क्या पूर्वोत्तर में भाजपा की पैठ बनाने के लिए बजट का इस्तेमाल होगा?

रेल बजट को देखने के कई नजरिए हैं. राजनीति भी एक नजरिया है. सन 2012 में रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को हाथों-हाथ बर्खास्त कर दिया गया. ऐसा पहली बार हुआ जब रेल बजट एक मंत्री ने पेश किया और उसे पास करते वक्त दूसरे मंत्री आ चुके थे. हर बजट में रेलमंत्री नई रेलगाड़ियों की घोषणाएं करते हैं. कौन देखता है कि सभी गाड़ियाँ चलीं या नहीं. पिछले साल 160 के आसपास गाड़ियों की घोषणा हुई थीं. कितनी चलीं इसका पता नहीं. कहा जा रहा है कि सुरेश प्रभु लोक-लुभावन घोषणाओं से बचेंगे. वे सुधार समर्थक हैं. आर्थिक सुधार भी हों और जनता भी खुश रहे, यह बड़ा पेचीदा और मुश्किल काम है. इस लिहाज के रेल बजट जादू का पिटारा है.

पिछले साल एनडीए सरकार के रेल बजट में किराया और माल-भाड़ा बढ़ाने की घोषणा की गई तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ा था. मोदी सरकार के अच्छे दिनों पर पहला हमला तभी शुरू हुआ था. किराया कम रखते हैं तो रेलवे-सेफ्टी, नई लाइनों को बिछाने और विद्युतीकरण के कामों की अनदेखी होती है. सरकार किस हद तक लोकलुभावन तौर-तरीकों को अपनाएगी या रेलवे के दीर्घकालीन स्वास्थ्य के बारे में विचार करेगी यह देखने वाली बात होगी. इसमें सामान्य यात्री की सुविधाओं पर ध्यान होगा या बुलेट ट्रेन की चमक-दमक पर, यह आज नजर आएगा.

रेलगाड़ी हमारी विसंगतियों की कहानी कहती है. अंग्रेजों को देश की तमाम खामियों-खराबियों के लिए कोसा जाता है. रेलगाड़ी के लिए हम उनका शुक्रिया अदा कर सकते हैं. उन्होंने अपने कारोबार के लिए ही इसे बनाया पर राष्ट्रीय आंदोलन को पैर जमाने में भी इसकी भूमिका रही. दूसरी ओर महात्मा गांधी ने हिन्द स्वराज में आधुनिक सभ्यता के जिन दोषों को गिनाया है उनमें रेलगाड़ी भी है. उनके विचार से रेल नहीं होती तो अंग्रेजों का जितना पक्का नियंत्रण हिन्दुस्तान पर था उतना नहीं होता. लोगों के एक जगह से दूसरी जगह जाने पर संक्रमण के कारण महामारी फैलती है. रेलगाड़ी के कारण अनाज वहाँ खिंच जाता है जहाँ उसकी ज्यादा कीमत मिलती है. इससे अकाल बढ़ते हैं.

गांधी की यह उलटबांसी आधुनिक सभ्यता और तकनीक के मर्म में छिपी इंसान विरोधी प्रवृत्तियों पर रोशनी डालती है. पर गांधी ने देश को समझने के लिए रेल-यात्रा ही की थी. उनके दरिद्र नारायण की सवारी रेलगाड़ी है. संचार और संवाद के लिहाज से आधुनिक भारत के सभी रंगों को एक साथ उभारने में रेलगाड़ी का जवाब नहीं. राष्ट्र राज्य को एक बनाए रखने वाली जीवन रेखा. नरेंद्र मोदी की अच्छे दिनों की सौगात रेलगाड़ी पर सवार होकर ही आएगी. रेलगाड़ी वैसी ही तकनीक है जैसे मोबाइल फोन. अमीर आदमी के इस्तेमाल की चीज गरीबों के इस्तेमाल में भी आ जाती है.

पिछले साल मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया और जीरो डिफैक्ट, जीरो इफैक्ट के नाम से जो पहल शुरू की है उसमें पहली कोशिश रक्षा और रेलवे के क्षेत्र में की गई है. पिछले साल कैबिनेट ने रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 49 फीसदी और रेलवे के ढांचागत क्षेत्र में 100 फीसदी के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. इससे रेल परियोजनाओं के आधुनिकीकरण और विस्तार में मदद मिलेगी. एक अनुमान है कि इस क्षेत्र में हजारों करोड़ रुपए की नकदी की जरूरत है. एफडीआई मंजूरी से प्रस्तावित हाई स्पीड रेल गलियारे की परियोजना में तेजी आएगी. माल परिवहन के लिए विशेष रेल गलियारे को भी बढ़ावा मिलेगा.

भारतीय रेलवे 6000 हॉर्स पावर के डीजल इंजनों और 12000 हॉर्स पावर के विद्युत इंजनों के देश में ही निर्माण की योजना भी बना रहा है, जिसके लिए पूँजी के अलावा तकनीक की जरूरत होगी. इस दिशा में जापान-अमेरिका और कुछ यूरोपियन कम्पनियों के साथ बात चल रही है. कारोबारी गतिविधियाँ बढ़ानी हैं तो रेल परिवहन ठीक होना चाहिए. सौ-सौ डिब्बों वाली मालगाड़ियाँ चलाने की जरूरत होगी. रेल परिवहन सड़क परिवहन की तुलना में किफायती होता है. सड़क परिवहन के मुकाबले इसमें चौथाई से भी कम ईंधन लगता है और उससे चार गुना ज्यादा वज़न ढोया जा सकता है. पर्यावरण प्रदूषण भी नियंत्रित रहता है.


देश में रेलवे का महा-विस्तार सम्भव है और इसकी मदद से बड़ी तादाद में नए रोजगार तैयार होंगे. इसका विस्तार दूसरे कारोबारों के विकास के लिए एक बुनियादी जरूरत है. हमारी रेल कई तरह की दिक्कतों और पूँजीगत तंगियों के बावजूद सफलता और कौशल की कहानी है. भारत के पास इस वक्त करीब 65 हजार किमी का रेलवे नेटवर्क है जो दुनिया में तीसरे नम्बर पर है. देश के तमाम शहरों का विकास रेलवे स्टेशनों के साथ हुआ है. रेलवे न होता तो वे शहर भी न होते. हमें तय करना है कि हमारी प्राथमिकता में बुलेट ट्रेन को होना भी चाहिए या नहीं. इतनी महंगी तकनीक क्या व्यवहारिक होगी? क्या उसके पहले हमें सामान्य रेल व्यवस्था को ठीक नहीं करना चाहिए? पर तकनीक केवल शोशेबाज़ी ही नहीं होती. दिल्ली मेट्रो की सफलता ने देश के दूसरे शहरों का सपना जगाया है. देखना यह भी है कि इस सपने में क्या वे करोड़ों लोग शामिल हैं जो सपने देख ही नहीं पाते. 
प्रभात खबर में प्रकाशित

No comments:

Post a Comment