Tuesday, August 8, 2023

मॉनसून-सत्र और नई रणनीतियाँ


दिल्ली सेवा-विधेयक को लोकसभा ने पास कर दिया और सोमवार 7 अगस्त वह राज्यसभा से भी पास हो गया। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के बहुमत को देखते हुए इसके पास होने में संदेह नहीं था। राज्यसभा में भी उसके पास होने के आसार थे, पर जिस बहुमत से वह पास हुआ है, उससे लगता है कि विरोधी गठबंधन से भी कुछ वोट उसके पक्ष में गए हैं। ऐसा तब हुआ, जब विपक्ष ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, यहाँ तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ह्वील चेयर पर बैठकर वोट देने आए और शिबू सोरेन भी मौजूद रहे। मतदान के समय गैर-भाजपा पार्टियों का जो रुख रहा है, वह भविष्य की राजनीति की ओर इशारा कर रहा है। इस दौरान आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा का एक प्रस्ताव विवाद का विषय बन गया, जिसी जाँच होगी. 

आज मंगलवार से अविश्वासप्रस्ताव पर भी चर्चा होगी। 10 अगस्त को प्रधानमंत्री जब इसपर हुई बहस का उत्तर देंगे, तब देश की निगाहें बहुत सी बातों पर होंगी। पिछले साढ़े चार या साढ़े नौ साल के प्रसंग उठेंगे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। उनकी संसद सदस्यता भी बहाल हो गई है। वे भी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेंगे। सत्र में अब यही हफ्ता शेष है, पर जो भी होगा वह रोचक और सनसनीखेजहोगा। बीजेपी ने लोकसभा सदस्यों को ह्विप जारी कर दिया है, जिसमें उनसे 7 से 11 अगस्‍त के बीच सदन में उपस्थित रहने और सरकार का समर्थन करने के लिए कहा गया है।

करीब चार घंटे की बहस के बाद दिल्ली सेवा विधेयक लोकसभा से पास हो गया, राज्यसभा  संशय अब सिर्फ राज्यसभा की परिस्थितियों को लेकर है। सदन में एनडीए और विरोधी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के पास लगभग बराबर सीटें हैं। ऐसे में गुट-निरपेक्ष पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस ने अपना रुख साफ कर दिया है। दोनों ने गुरुवार को लोकसभा में सरकार का साथ दिया। दोनों के राज्यसभा में नौ-नौ सदस्य हैं।

दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी, जेडीएस और टीडीपी ने अपना रुख साफ नहीं किया था। इन तीनों के राज्यसभा में एक-एक सांसद हैं। लगता है कि इन्होंने भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार का साथ दिया है। तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस ने स्पष्ट कर दिया था कि वह बिल के विरोध में है। उसके राज्यसभा में सात सांसद हैं। एनडीए के राज्यसभा में 100 सदस्य हैं। बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन से उसे 118 सदस्यों का साथ मिल गया था। माना जा रहा था कि नामित 5 सदस्य भी सरकार का साथ देंगे और तीन निर्दलीय सांसद भी हैं। गठबंधन 'इंडिया' के साथ राज्यसभा में 101 सदस्य हैं। बीआरएस के सात सांसदों के समर्थन से उसके पास 108 सदस्यों का संख्याबल था, पर उसे 102 वोट मिले। 

दोनों सदनों में मणिपुर हिंसा मामले पर गतिरोध इस हफ्ते भी जारी रहा। 12 दिन हो चुके हैं और सत्र के पाँच दिन बचे हैं। विपक्ष लगातार मणिपुर हिंसा मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग कर रहा है। विरोधी दलों की रणनीति है कि बात चाहे दिल्ली के विधेयक पर हो या अविश्वास प्रस्ताव पर, वे मणिपुर के मसले पर सरकार को घेरेंगे। वे इस बात को लेकर नाराज़ है कि सरकार ने राज्यसभा में मणिपुर पर 11 अगस्त यानी सत्र के आखिरी दिन चर्चा कराने की योजना बनाई है।

विरोधी दल चाहते हैं कि सोमवार को ही चर्चा हो। शुक्रवार को उन्होंने राज्यसभा के नेता सदन पीयूष गोयल और संसदीय-कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात की, ताकि गतिरोध खत्म हो। सरकार भी ऐसा संदेश देना नहीं चाहती कि मणिपुर पर वह कुछ छिपाने की मंशा रखती है या बहस से भाग रही है। विरोधी खेमे में भी लोग मानते हैं कि ऐसा संदेश न जाए कि नियमों की आड़ में विपक्ष बहस से भाग रहा है। राज्यसभा में आप के संजय सिंह और लोकसभा में रिंकू सिंह के निलंबन से विरोधी सदस्यों के व्यवहार में बदलाव आया है। सोमवार को पता लगेगा कि वे आसन के पास आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे या नहीं। काफी सदस्य वैल में जाने से हिचक रहे हैं और अपनी-अपनी सीट से ही खड़े होकर विरोध व्यक्त कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राज्यसभा में कुछ और सदस्य निलंबित हो गए तो सरकार को वोटिंग के दौरान आसानी हो जाएगी।

मोदी-मानहानि मामले में राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से बड़े मौके पर राहत मिली है। इससे कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने सूरत की सीजेएम अदालत द्वारा सुनाई गई दो साल की सज़ा को स्थगित कर दिया है। अब उनकी सदस्यता बहाल होगी और वे चुनाव भी लड़ पाएंगे। यह फौरी राहत है, पूरी राहत नहीं। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सेशन कोर्ट में अपील अभी विचाराधीन है। पूर्णेश मोदी का कहना है कि कानूनी लड़ाई सेशंस कोर्ट में होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सूरत की अदालत के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं। उसके अनुसार अदालत जजों ने यह नहीं बताया कि राहुल गांधी को मानहानि के मामले में अधिकतम सजा क्यों दी गई।

विधि-विशेषज्ञ मानते हैं कि निचली अदालत के फैसले को सेशंस कोर्ट निरस्त भी कर सकता है और जिन आधारों पर राहुल गांधी को अधिकतम सजा दी गई है, उनकी पुष्टि भी कर सकता है। सजा कम भी की जा सकती है या निचली अदालत के फैसले को बरकरार भी रखा जा सकता है। उसके बाद दस्तक देने के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे हैं। राहुल गांधी की सदस्यता का संकट फिलहाल दूर हो गया है।   

संसदीय-रणक्षेत्र पार करने के बाद विरोधी गठबंधन के सामने कई तरह की चुनौतियाँ हैं। बेंगलुरु में कहा गया था कि गठबंधन की अगली बैठक अब मुंबई में होगी। 25-26 अगस्त की तारीख भी घोषित हो गई थी, पर वह बैठक टल गई है। अब वह सितंबर के पहले हफ्ते में होने की संभावना है। अभी तक नई तारीख तय नहीं हुई है। एनसीपी और शिवसेना बैठक की मेजबानी करने वाले हैं। जिन मुद्दों पर वह बैठक होने वाली थी, संभवतः उन्हें लेकर सहमति अभी बनी नहीं है।

मुंबई में इस गठबंधन की पहली रैली भी होने की संभावना है। पर ज्यादा बड़ा काम है गठबंधन के संयोजक या कनवीनर के नाम की घोषणा। गठबंधन के राजनीतिक नैरेटिव या विचारधारा के छत्र को तैयार करने का काम भी बड़ा है, जिसके नीचे सब खड़े होंगे। उससे भी बड़ा काम है उस गणित को तैयार करने का, जिसके आधार पर चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशियों से वन-टु-वन का मुकाबला किया जाएगा। बहरहाल विरोधी एकता की गाड़ी मंथर गति से चल रही है। असली सवाल गणित और केमिस्ट्री के उठेंगे। बाहर-बाहर काफी एकता नज़र आती है, पर भीतर की दीवारें अभी कच्ची हैं। संसद में बहस के दौरान अमित शाह ने कहा था, देखिएगा दिल्ली सेवा विधेयक पास होने के बाद आम आदमी पार्टी गठबंधन से अलग हो जाएगा। दूसरी तरफ 'आप' ने कहा है कि हम गठबंधन में बने रहेंगे। यह गठबंधन गुजरात में भी होगा। देखना होगा कि तेलंगाना में होगा या नहीं। 

गठबंधन के नेता के नाम को लेकर या दूरे शब्दों में कहें कि मोदी के मुकाबले में राहुल के नाम को लेकर बात करने से कांग्रेस पार्टी बच रही है। समन्वय समिति और संयोजक के नाम को लेकर किसी स्तर पर अनिश्चय है। नीतीश कुमार ने इस विपक्षी-एकता की पहल की है। उनकी अपेक्षाएं भी होंगी। पर ज्यादा बड़ा सवाल है कि गठबंधन की केंद्रीय अवधारणा कहाँ बन रही है और कौन इस विचार का सूत्रधार है?

समन्वय समिति और उप-समितियों के सदस्यों के नाम अभी घोषित नहीं हुए हैं। इन्हें 2024 के चुनाव का साझा कार्यक्रम और प्रचार के बिंदुओं को तैयार करना है। स्पष्ट नहीं है कि यह एकता लोकसभा चुनाव के लिए है या राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी काम करेगी। गठबंधन की एकसूत्रता सबसे बड़ी चुनौती है। निश्चित रूप से फैसले होने में समय लगता है, पर वह ज्यादा बचा भी नहीं है। पाँच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं, जिससे दबाव बढ़ रहा है।

कोलकाता के दैनिक वर्तमान में 7 अगस्त, 2023 को प्रकाशित लेख का अपडेटेट आलेख

 

3 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 अगस्त 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  2. ये तो होना ही था :)

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  3. बहुत बढियां

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