Sunday, December 12, 2021

कोरोना और वैश्विक-जागरूकता


संयोग है कि आज अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज दिवसहै और हम  ओमिक्रॉन पर चर्चा कर रहे हैं, जो सार्वभौमिक-स्वास्थ्य के लिए नए खतरे के रूप में सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिन हर साल 12 दिसंबर को मनाया जाता है। सार्वभौमिक-स्वास्थ्य वैसा ही एक अधिकार है, जैसे जीवित रहना, शिक्षा प्राप्त करना, रोजगार पाना और विचरण करना जैसे मानवाधिकार हैं। उद्देश्य सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज के बारे में जागरूकता को बढ़ाना है। इस साल की थीम हैकिसी के स्वास्थ्य की उपेक्षा न हो, सबके स्वास्थ्य पर निवेश हो। आइए दुनिया के स्वास्थ्य और उससे जुड़ी जागरूकता पर एक नजर डालें।

गरीबों को मयस्सर नहीं

दूसरे से तीसरे साल में प्रवेश कर रही महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य-कवरेज पर विचार के लिए यह उचित समय है। टीकाकरण ठीक से हुआ, तो सार्वभौमिक इम्यूनिटी पैदा हो सकती है। पर इसमें भारी असमानता वैश्विक गैर-बराबरी को रेखांकित कर रही है। टीके कारगर हैं, पर उस स्तर को नहीं छू पा रहे हैं, जिससे हर्ड इम्युनिटी पैदा हो। अमीर देशों में टीके इफरात से हैं और लगवाने वाले उनका विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ गरीब देशों में लोग टीकों का इंतजार कर रहे हैं, और उन्हें टीके मयस्सर नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि अमीर देश, वैक्सीन वितरण के लिए यूएन समर्थित ‘कोवैक्स’ पहल में मदद करने के बजाय, टीकों को अपने कब्जे में रखेंगे, तो महामारी का जोखिम बढ़ेगा।

अनैतिक-अत्याचार

तमाम नकारात्मक खबरों के बावजूद विशेषज्ञों को भरोसा है कि आने वाले साल में महामारी पर नियंत्रण पाना संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य विशेषज्ञ मारिया वान करखोव ने हाल में पत्रकारों से कहा था, महामारी को रोकने के औजार हमारे हाथों में है। जरूरत ऐसे पड़ाव पर पहुँचने की है जहाँ से कह सकें कि संक्रमण पर नियंत्रण पा लिया गया है। अब तक हम ऐसा कर भी सकते थे, पर कर नहीं पाए। अमीर देशों में करीब 65 प्रतिशत लोग टीके लगवा चुके हैं और गरीब देशों में सात प्रतिशत को टीके की कम से कम एक खुराक मिली है। यह असंतुलन अनैतिक और अत्याचार है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुरुवार को अमीर देशों को चेतावनी दी कि वे अपने यहाँ बूस्टर शॉट्स की व्यवस्था के बारे में फिलहाल न सोचें, बल्कि गरीब देशों के लिए टीके भेजें, क्योंकि वहाँ टीकाकरण बहुत धीमा है।

जबर्दस्त असंतुलन

जनसंख्या के आधार पर देखें, तो अमीर देशों में गरीब देशों की तुलना में 17 गुना टीकाकरण हुआ है। पीपुल्स वैक्सीन अलायंस संगठन के अनुसार अकेले ब्रिटेन में तीसरे बूस्टर शॉट्स की संख्या निर्धनतम देशों के कुल वैक्सीनेशन से ज्यादा है। युनिसेफ के अनुसार 10 दिसंबर तक दुनिया के 144 देशों को कोवैक्स के माध्यम से केवल 65 करोड़ से कुछ ऊपर डोज़ मिल पाई हैं। अफ्रीका की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पहली डोज़ भी नहीं मिल पाई है। ये गरीब देश पूरी तरह से कोवैक्स-व्यवस्था पर ही निर्भर हैं। उदाहरण के लिए हेती में 1.00, कांगो में 0.02 और बुरुंडी में 0.01 फीसदी लोगों को कम से कम एक डोज़ लगी है।

ओमिक्रॉन का हमला

इस असंतुलन के कारण कुछ जगहों पर कोरोना बगैर रोक-टोक के फैल रहा है। इस वजह से नए और पहले से ज्यादा खतरनाक वेरिएंटों के उभरने का खतरा बढ़ गया है। ओमिक्रॉन जैसे एक नए वेरिएंट के सामने आने के बाद खतरा और ज्यादा बढ़ा है। ओमिक्रॉन का तेज प्रसार चेतावनी है। डब्लूएचओ ने इस नए वेरिएंट को तकनीकी शब्दावली में 'चिंतनीय वेरिएंट' (वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न/वीओसी) बताया है। डब्लूएचओ ने कहा कि यह काफी तेज़ी से और बड़ी संख्या में म्यूटेट होने वाला वेरिएंट है। डब्लूएचओ को इसके पहले मामले की जानकारी 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका से मिली थी। बहुत तेजी से यह भारत तक भी पहुँच गया। शनिवार की सुबह तक भारत के पांच राज्यों में ओमिक्रॉन वेरिएंट के कुल 32 मामलों का पता चला था। 59 देशों में यह वायरस पहुंच चुका है, जबकि कुछ दिन पहले तक केवल दो देशों में था।

तेज संक्रमण

दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन से संक्रमित एक व्यक्ति औसतन 3 से 3.5 व्यक्तियों को संक्रमण दे रहा है, जबकि डेल्टा का संक्रमण 0.8 था। दक्षिण अफ्रीका में लॉकडाउन नहीं है, इसलिए भी संक्रमण की गति ज्यादा है। दक्षिण अफ्रीका में यह चौथी लहर है, इसलिए काफी संख्या में लोगों के शरीरों में इम्युनिटी पैदा हो चुकी है। फिर भी तेज संक्रमण के दो कारण हो सकते हैं। एक, या तो यह वेरिएंट शरीर की कोशिकाओं में जल्दी प्रवेश कर पाने में कामयाब है या यह इम्युनिटी को भेदने में सफल है। दो बातें और स्पष्ट हो रही हैं। एक, यह तेजी से फैलता जरूर है, पर घातक नहीं है। दूसरे, जिन्हें टीके लग चुके हैं, उनपर इसका असर मामूली है।

नियंत्रण संभव है

विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड पूरी तरह से गायब तो नहीं होगा, लेकिन यह नियंत्रित एंडेमिक या स्थानिक रोग बन सकता है, जिसके साथ हम फ्लू की तरह रहना सीख लेंगे। यह तभी होगा, जब दुनिया के ज्यादातर इलाकों से इसका सफाया होगा। सफाया करने के लिए तेज टीकाकरण होना चाहिए, जिसका यूरोप में विरोध हो रहा है। महामारी की एक और लहर के साथ यूरोप के देश प्रतिबंधों और टीकाकरण के खिलाफ आंदोलनों की लहर का सामना कर रहे हैं। जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मर्केल जाते-जाते टीका नहीं लगवाने वालों के लिए लॉकडाउन की घोषणा करके गई हैं। बिना टीके वाले लोग सार्वजनिक स्थानों पर नहीं जा सकेंगे।

एंटी-वैक्सीन आंदोलन

यूरोप के लिए टीके की सप्लाई की समस्या नहीं है, उसका विरोध ज्यादा बड़ी समस्या है। इस वजह से टीकाकरण की रफ्तार धीमी पड़ गई है। जर्मनी में आगामी फरवरी से सभी पात्र लोगों के लिए वैक्सीन को अनिवार्य कर दिया है। पड़ोसी देश ऑस्ट्रिया में भी फरवरी से अनिवार्य टीकाकरण की योजना है। ग्रीस ने घोषणा की है कि जनवरी के मध्य से 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए टीके अनिवार्य होंगे। इनकार करने वालों को हर महीने 100 यूरो का जुर्माना भरना होगा। प्रतिबंधों के विरोध ने राजनीति की शक्ल ले ली है। वियना की सड़कों पर 40,000 और ब्रसेल्स में 35,000 लोगों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन नीदरलैंड्स में हुए हैं। रोटरडैम और हेग में दंगे भी भड़के और दर्जनों गिरफ्तारियाँ भी हुईं। चेक गणराज्य, स्विट्जरलैंड और जर्मनी में भी रैलियाँ हुईं हैं। नॉर्वे, डेनमार्क, स्पेन और ब्रिटेन में सुपर-स्प्रैडर घटनाएं भी हुई हैं। यानी कि पार्टियाँ, सम्मेलन, मनोरंजन कार्यक्रम वगैरह।

बूस्टर की जरूरत

बूस्टर डोज़ की माँग भी बढ़ रही है। मेडिकल जरनल लैंसेट में गत 2 दिसंबर को प्रकाशित रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में 2,878 लोगों पर हुई स्टडी से पता लगा है कि बूस्टर ने डेल्टा वेरिएंट के जोखिम को कम कर दिया। ऐसा ही अध्ययन इसराइल में हुआ है, जहाँ 7,28,000 लोगों को बूस्टर दिया गया, जिससे अस्पताल में भरती की जरूरत 93 फीसदी कम पाई गई। भारत में भी बूस्टर की माँग है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने फ्रंट लाइन स्वास्थ्य-कर्मियों के लिए कोविड-19 वैक्सीन के बूस्टर डोज की मांग की है। पिछले सोमवार को टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) की बैठक में बच्चों के टीके और बूस्टर डोज पर कोई फैसला नहीं हुआ। इसकी आवश्यकता और मूल्य का पता लगाने के लिए अध्ययन की आवश्यकता है। उधर स्कूलों के खुल जाने के बाद बच्चों के टीके जरूरत महसूस की जा रही है। इसमें देरी खतरनाक साबित होगी। कुल मिलाकर दुनिया में जिस वैचारिक एकता और जागरूकता की जरूरत है, वह भी होनी चाहिए। क्या ऐसा है? आप खुद सोचिए…

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

 

 

 

1 comment:


  1. Wow kya post likha hai aapne bahut acha lga aapka ye post

    Informative post vaccination kya hai puri jankari paaye

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