Tuesday, August 24, 2021

उद्धव ठाकरे को राजनीतिक नुकसान पहुँचाएगी नारायण राणे की गिरफ्तारी


महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से जुड़े बयान देने के कारण  केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी से महाराष्ट्र की ठंडी पड़ती राजनीति में फिर से गर्मा आ गई है। मुम्बई में एक तरफ शिवसेना के कार्यकर्ताओं का आंदोलन शुरू हो गया है, दूसरी तरफ राणे समर्थकों ने मुंबई-गोवा के पुराने हाईवे को जाम कर दिया है। पर इसका नुकसान शिवसेना को ही होगा। नारायण राणे खाँटी मराठा नेता है और उनका जनाधार मजबूत है। इस
 गिरफ्तारी से उनका राजनीतिक आधार न केवल मजबूत होगा, बल्कि शिवसेना की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

राणे शिवसेना के भीतर से निकले नेता हैं और वे उद्धव ठाकरे के परम्परागत विरोधी हैं। बीजेपी उन्हें ठाकरे के मुकाबले खड़ा करने में कामयाब होती नजर आ रही है। इतना ही नहीं उनकी सहायता से वह शिवसेना के आंतरिक असंतोष को भी उघाड़ने का प्रयास करेगी। महाराष्ट्र सरकार में शामिल कांग्रेस और एनसीपी बाहरी तौर पर कुछ भी कहें, पर ठाकरे के व्यवहार से वे भी बहुत खुश नहीं हैं।

राजनीतिक निहितार्थ

ठाकरे का भाषण और राणे की प्रतिक्रिया भारतीय राजनीति के लिहाज से सामान्य परिघटना है, पर लगता है कि तिल का ताड़ बन गया है। राणे के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज हुई हैं। महाराष्ट्र सरकार ने गिरफ्तारी का फैसला करके अपना ही नुकसान किया है। सच यह है कि गिरफ्तारियाँ राजनेताओं को नुकसान नहीं लाभ पहुँचाती रही हैं।

नारायण राणे केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हैं और उनके गिरफ्तारी आम गिरफ्तारी नहीं है, इसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। पहले देखें कि राणे ने कहा क्या था। हाल में मोदी सरकार में शामिल अन्य मंत्रियों की तरह नारायण राणे महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में जन-आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी इस तरीके से जनता के बीच अपनी जगह बना रही है। खासतौर से उत्तर प्रदेश में इसका ज्यादा महत्व है, क्योंकि वहाँ विधानसभा चुनाव काफी करीब हैं।

बीजेपी महाराष्ट्र में  वापसी के लिए लगातार कोशिश कर रही है। सन 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव होंगे। यह सब उसके पहले की तैयारी है। बहरहाल यह यात्रा पिछले दिनों रायगढ़ के महाड पहुंची थी, जहाँ पत्रकारों को संबोधित करते हुए नारायण राणे ने उद्धव ठाकरे को लेकर कहा था, 'यह कैसा मुख्यमंत्री है जिसको अपने देश के स्वतंत्रता दिवस का पता नहीं। मैं वहां होता तो कान के नीचे लगाता।नारायण राणे का कहना है कि मैंने थप्पड़ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था।

ठाकरे का भ्रम

दरअसल उद्धव ठाकरे स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन के दौरान अपने सहयोगी से पीछे मुड़कर कुछ पूछते हुए नजर आए थे। माना जा रहा है कि उन्होंने पूछा कि यह कौन सा स्वतंत्रता दिवस है। उद्धव ठाकरे अमृत महोत्सव या हीरक महोत्सव को लेकर कनफ्यूज्ड नजर आए। इस बात को याद दिलाते हुए नारायण राणे ने कहा था, देश को आजादी मिले हुए कितने साल हो चुके हैं... अरे हीरक महोत्सव क्या? मैं होता तो कान के नीचे लगाता।'

उन्होंने इसके बाद कहा, स्वतंत्रता दिवस के बारे में आपको मालूम नहीं होना चाहिए? कितना गुस्सा दिलाने वाली बात है। हालांकि बीजेपी के नेता थप्पड़ शब्द का समर्थन नहीं कर रहे हैं, पर वे याद दिला रहे हैं कि उद्धव ठाकरे किस प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं।

गिरफ्तारी के पहले शिव-सैनिकों ने मंगलवार को महाराष्ट्र के 17 शहरों में राणे के खिलाफ प्रदर्शन किया था। नासिक में भारतीय जनता पार्टी के दफ्तर पर पत्थरबाजी भी हुई थी और मुंबई में राणे के घर के बाहर प्रदर्शन हुआ। इन सब बातों के बावजूद शिवसेना के गढ़ कोंकण में राणे की जन आशीर्वाद यात्रा जारी है। केवल गिरफ्तारी तक मामला सीमित नहीं है। राणे की यात्रा के खिलाफ 49 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। ज्यादातर एफआईआर कोविड-19 के प्रतिबंधों से जुड़ी हैं।

राजनीतिक ईर्ष्या?

राणे ने अपने बयान की सफाई में कहा, उद्धव ठाकरे ने भाजपा विधायक प्रसाद लाड के लिए कहा था कि हम उन्हें ऐसा तमाचा मारेंगे कि वह अपने पैरों पर खड़े होने लायक नहीं बचेंगे। मैंने इसी के जवाब में उनके कान के नीचे बजाने की बात कही थी। अगर मेरे खिलाफ एफआईआर हुई है तो ठाकरे के खिलाफ केस क्यों नहीं किया गया था? ईर्ष्या की वजह से मेरी जन आशीर्वाद यात्रा को रोकने का काम किया जा रहा है।

इस मामले को लेकर महाराष्ट्र भाजपा के नेता चंद्रकांत पाटील ने कहा है कि इस गिरफ्तारी का नाटक महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार ने राणे की बढ़ती लोकप्रियता से जनता का ध्यान हटाने के लिए किया है। उन्होंने कहा ठाकरे जब मुख्यमंत्री नहीं थे, तब उन्होंने प्रधानमंत्री के लिए चोर शब्द का इस्तेमाल किया था। वास्तव में बात अपशब्दों की नहीं है, पिछले कई महीनों से लगातार अपशब्दों का इस्तेमाल राजनीति में हो रहा है, तब कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और नारायण राणे के बीच लम्बे अरसे से लाग-डाट चली आ रही है। शिवसेना से ही होते हुए नारायण राणे भारतीय जनता पार्टी में आए हैं। शिवसेना में रहते हुए उन्होंने उद्धव ठाकरे को बढ़ावा मिलने पर उसका विरोध किया था। बीजेपी ने उन्हें ठाकरे के मुकाबले उतारा है। मराठा समुदाय में राणे की धमक और धाक है। खासकर कोंकण इलाके के वे प्रभावी नेता हैं। शिवसेना के भीतर भी एक तबके में परिवारवाद को लेकर असंतोष है। बताया जाता है कि जिस तरह से पार्टी में आदित्य ठाकरे और उनके करीबियों का वर्चस्व बढ़ा है उससे कई पुराने नेता नाखुश हैं।

नारायण राणे ने जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान एक सभा में कहा कि शिवसेना के वरिष्ठ नेता और नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे पार्टी से ऊब गए हैं और फाइलों पर दस्तखत करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं।  हालांकि, शिंदे ने खुलकर कभी अपनी नाराजगी नहीं जताई, लेकिन उनके निकटवर्ती सूत्र बताते हैं कि वे खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं। लगता है कि नारायण राणे शिवसेना के अंतर्विरोधों को बढ़ाने का काम करेंगे।

AWAZ में प्रकाशित

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