पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान के सात सूबों की राजधानियों
पर कब्जा कर लिया है। उत्तर में कुंदुज, सर-ए-पोल
और तालोकान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया। ये शहर
अपने ही नाम के प्रांतों की राजधानियां हैं। दक्षिण में ईरान की सीमा से लगे निमरोज़
की राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया है। उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान
सीमा से लगे नोवज्जान प्रांत की राजधानी शबरग़ान पर भी तालिबान का कब्जा हो
गया है। मंगलवार की शाम को उत्तर के बागलान प्रांत की राजधानी पुल-ए-खुमरी
पर तालिबान का कब्जा हो गया। ईयू के एक प्रवक्ता के अनुसार देश के 65% हिस्से पर
या तो तालिबान
का कब्जा है या उसके साथ लड़ाई चल रही है।
उधर खबरें यह भी हैं कि अफगान सुरक्षा बलों ने पिछले
शुक्रवार को हेरात प्रांत के करुख जिले पर जवाबी कार्रवाई करते हुए फिर से कब्जा
कर लिया। तालिबान ने पिछले एक महीने में हेरात प्रांत के एक दर्जन से अधिक जिलों
पर कब्जा कर लिया था। हेरात में इस्माइल खान का ताकतवर
कबीला सरकार के साथ है। उसने तालिबान को रोक रखा है। फराह प्रांत
में अफगान वायुसेना ने तालिबान के ठिकानों पर बम गिराए। अमेरिका के बम वर्षक विमान
बी-52 भी इन हवाई हमलों में अफगान सेना की मदद कर
रहे हैं। तालिबान ने इन हवाई हमलों को लेकर कहा
है, कि इनके माध्यम से आम अफगान लोगों को निशाना
बनाया जा रहा है। उधर अमेरिका का कहना है कि हमारा सैनिक अभियान 31 अगस्त को
समाप्त हो जाएगा। उसके बाद देश की रक्षा करने की जिम्मेदारी अफगान सेना की है। अमेरिका के
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अफगानिस्तान के नेताओं को अपनी भूमि
की रक्षा के लिए अब निकल कर आना चाहिए।
हवाई हमलों के बावजूद तालिबान की रफ्तार थमी नहीं है। इस दौरान सवाल उठाया जा रहा है कि अफगान सेना तालिबान के मुकाबले लड़ क्यों नहीं पा रही है? कहा यह भी जा रहा है कि अमेरिकी सेना को कम से कम एक साल तक और अफगानिस्तान में रहना चाहिए था। कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमेरिकी सेना को हटना ही था, तो पहले देश में उन कबीलों के साथ मोर्चा बनाना चाहिए था, जो तालिबान के खिलाफ खड़े हैं।
ऐसा नहीं कि सारे कबीले तालिबान के साथ हैं। पिछले
महीने ह्वाइट हाउस में अपने भाषण में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा,
अफ़ग़ानिस्तान में एक और साल की लड़ाई कोई हल नहीं है, बल्कि वहाँ
अनंत काल तक लड़ते रहने का एक बहाना है। उन्होंने इस बात से भी इनकार किया
अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्ज़ा कोई ऐसी बात नहीं है जिसे टाला नहीं
जा सकता है। उन्होंने कहा कि तीन लाख अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के सामने 75 हज़ार
तालिबान लड़ाके कहीं से नहीं टिक सकेंगे।
इस बात के जवाब में अमेरिकी विशेषज्ञ ही बता
रहे हैं कि अफगान सेना में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है। वहाँ के सैनिक अपने
हथियारों और उपकरणों को बाहर बेचने के आदी हैं। तालिबान के पास विशेष दूरबीनें,
चश्मे, बंदूकें और गाड़ियाँ ऐसे ही नहीं आ गई हैं। तालिबान भारी हथियारों का
इस्तेमाल भी कर रहे हैं। बेशक वे उन्हें बाहर से भी मिले होंगे, पर सम्भव है कि
देश की सरकारी व्यवस्था के छिद्रों का लाभ उन्हें मिला हो।
पारंपरिक रूप से तालिबान के गढ़ रहे उत्तरी
अफगानिस्तान के सबसे अहम शहर कुंदूज पर तालिबान का कब्जा उसकी अब तक की सबसे बड़ी
जीत है। अफगानिस्तान को मध्य एशिया से जोड़ने वाले रास्ते पर पड़ने वाला यह शहर
ड्रग तस्करी के रूट पर पड़ता है। अफगानिस्तान से यूरोप जाने वाली अफीम और हेरोइन
यहीं से होकर गुजरती है। इस शहर पर कब्जे का मतलब है कि तालिबान के पास एक बड़ा आय
स्रोत भी आ गया है।
तालिबान इससे पहले साल 2015 और 2016 में भी कुछ
समय के लिए कुंदूज पर कब्जा कर चुका है, लेकिन तब वह
अपना नियंत्रण बरकरार नहीं रख पाया था। अफगान बलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती
कुंदूज से तालिबान को खदेड़ना होगा। अगर वह वहां लंबे समय तक काबिज रहा तो उसके
पास आय का एक नया स्रोत विकसित हो जाएगा, जो अफगान सरकार
के लिए मुश्किल खड़ी करेगा। यों भी तालिबान ने दूसरे देशों से जोड़ने वाली सड़कों
के कई सीमांत चौकियों पर कब्जा कर लिया है और वहाँ टैक्स की उगाही कर रहे हैं।
ईरान सीमा के पास जरांज पर कब्जा भी तालिबान के
लिए बड़ी रणनीतिक जीत है। ईरान के रास्ते अफगानिस्तान को होने वाला कारोबार यहीं
से गुजरता है। यह शहर उसी 217 किलोमीटर लंबे डेलाराम-जरांज हाइवे पर है जो भारत ने
अफगानिस्तान में बनाया है। इस पर कब्जा अफगान सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। इस
कब्जे के बाद इस रास्ते के जरिए होने वाली कारोबारी गतिविधियां तालिबान के हाथ में
आ जाएंगी।
सरकार कहती है कि हमने शांति लाने के लिए छह
महीने की सुरक्षा योजना बनाई है। अफगानिस्तान के सुरक्षा बल अगले-दो तीन महीनों
में जमीनी हालात को बदल देंगे। तालिबान के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचेगा- बैठकर
शांति से बात करने का। आम लोगों पर हमले की बात करने पर तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्ला
मुजाहिद कहते हैं, ‘हमने नहीं, सरकार
ने देश के अलग-अलग हिस्सों में नागरिकों पर हमले का आदेश दिया है। वे बमबारी कर
रहे हैं। हमारे गरीब लोगों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ रहा है। वे अलग-अलग
प्रांतों में अपराध कर रहे हैं। हम इस पर खामोश नहीं बैठेंगे। कुंदूज और सर-ए-पोल
अब तालिबान के नियंत्रण में हैं, तख़र और शबरग़ान में भी तालिबान आगे
बढ़ा है।
उपराष्ट्रपति अमीरुल्ला सालेह के प्रवक्ता रिज़वान
मुराद कहते हैं, हमने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय
को बताया है कि तालिबान और उसकी समर्थक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने
मदरसों से 20,000 से अधिक लड़ाके अफगानिस्तान भेजे हैं। तालिबान के अल कायदा और
दूसरे अन्य कट्टरपंथी समूहों से भी संबंध हैं। हमारे सैनिक कम से कम 13 आतंकवादी
समूहों के खिलाफ लड़ रहे हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और संयुक्त राष्ट्र में
अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व कर चुकी श्कुला जरदान कहती हैं, हाल के दिनों में दो ऐसी चीजें हुई हैं जिनसे माहौल बदला है और लोगों
को उम्मीद मिली है। पहला यह कि राष्ट्रपति अशरफ गनी ने स्पष्ट किया है कि सरकार
तालिबान के खिलाफ पूरी ताकत के साथ लड़ेगी और दूसरा ये कि हेरात से शुरू हुआ ‘अल्लाह-हू-अकबर
आंदोलन’ पूरे देश में फैल गया है। इससे तालिबान की
धार्मिक वैधता को चुनौती मिली है। महिला
अधिकार कार्यकर्ता और देश के चुनाव आयोग से जुड़ी रहीं जरमीना कहती हैं, अफगानिस्तान के लोग फिर से तालिबान का शासन नहीं चाहते हैं। उन्होंने
अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाकर बता दिया है कि वे तालिबान की विचारधारा के समर्थक
नहीं हैं।

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