Tuesday, March 26, 2019

आतंकी लाइफ-लाइन को तोड़ना जरूरी

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पुलवामा के हत्याकांड और फिर बालाकोट में की गई भारतीय कार्रवाई की गहमागहमी के बीच हमने गत 7 मार्च को जम्मू के बस स्टेशन पर हुए ग्रेनेड हमले पर ध्यान नहीं दिया. घटना के फौरन बाद ही इसे अंजाम देने वाला मुख्य अभियुक्त पकड़ लिया गया, पर यह घटना कुछ बातों की तरफ इशारा कर रही है. पिछले नौ महीनों में इसी इलाके में यह तीसरी घटना है. आतंकवादी जम्मू के इस भीड़ भरे इलाके में कोई बड़ी हिंसक कार्रवाई करना चाहते हैं, ताकि जम्मू और कश्मीर घाटी के बीच टकराव हो. भारतीय सुरक्षाबलों की आक्रामक रणनीति के कारण पराजित होता आतंकी-प्रतिष्ठान नई रणनीतियाँ लेकर सामने आ रहा है.

पुलवामा के बाद जम्मू क्षेत्र में हिंसा भड़की थी. ऐसी प्रतिक्रियाओं का परोक्ष लाभ आतंकी जाल बिछाने वाले उठाते हैं. जम्मू में ग्रेनेड फेंकने वाले की उम्र पर गौर कीजिए. नौवीं कक्षा के छात्र को कुछ पैसे देकर इस काम पर लगाया गया था. आईएसआई के एजेंट किशोरों के बीच सक्रिय हैं. कौन हैं ये एजेंट? जमाते-इस्लामी और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर प्रतिबंधों से जाहिर है कि अब उन सूत्रधारों की पहचान हो रही है. वे हमारी उदार नीतियों का लाभ उठाकर हमारी ही जड़ें काटने में लगे हैं. उन तत्वों की सफाई की जरूरत है, जो जहर की खेती कर रहे हैं.

गर्मियाँ आने वाली हैं, जब आतंकी गतिविधियाँ बढ़ती हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान भी वे हरकतें करेंगे. उधर पाकिस्तान को लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानियों के हाथ में फिर से सत्ता आने वाली है. आईएसआई के सूत्रधारों ने पूरे इलाके में भारतीय व्यवस्था के प्रति जहर भरना शुरू कर दिया है. कश्मीर में ही नहीं, वे पंजाब में खत्म हो चुके खालिस्तानी-आंदोलन में फिर से जान डालने का प्रयास कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने अमेरिका में सक्रिय कुछ लोगों की मदद से रेफरेंडम-2020 नाम से एक अभियान शुरू किया है. उन्हें अपना ठिकाना उपलब्ध कराया है. उनकी योजना करतारपुर कॉरिडोर बन जाने के बाद भारत से जाने वाले श्रद्धालुओं के मन में जहर घोलने की है.
दो साल पहले नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी ने कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा में 40 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी करके टेरर फंडिंग के कुछ सूत्रों को जोड़ने की कोशिश की थी. एक स्टिंग ऑपरेशन से यह बात उजागर हुई थी कि कश्मीर की घाटी में हुर्रियत के नेताओं के अलावा दूसरे समूहों को पाकिस्तान से पैसा मिल रहा है. इन छापों में नकदी, सोना और विदेशी मुद्रा के अलावा कुछ ऐसे दस्तावेज भी मिले थे, जिनसे पता लगा कि आतंकी नेटवर्क हमारी जानकारी के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़ा है. यह छापेमारी ऐसे दौर में हुई थी, जब आतंकी फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्था द फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स इस सिलसिले में जाँच कर रही है और पाकिस्तान उसकी ग्रे लिस्ट में है.

इसी रविवार को भारत सरकार ने ऐसी सम्पत्तियों को जब्त करना शुरू किया है, जिनके सहारे आतंकी संगठनों और पत्थरबाजों को पैसा मिलता था. ऐसे 13 व्यक्तियों की पहचान की गई है, जो यह काम कर रहे हैं. यह पैसा कई तरह की संस्थाओं के पास जा रहा था, जो भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में लगी हैं. एनआईए ने गुरुग्राम में कश्मीरी व्यवसायी ज़हूर अहमद शाह वाताली को गिरफ्तार किया है, जो इस टेरर फंडिंग का मुख्य स्रोत है. उसके ठिकाने से ऐसे दस्तावेज मिले हैं, जिनसे पता लगा है कि लश्करे तैयबा, आईएसआई और पाकिस्तानी उच्चायोग से पैसा आ रहा था.

पिछले हफ्ते की घटनाओं से लगता है कि सरकार ने राजनीतिक, राजनयिक और सैनिक स्तर पर एकसाथ बड़े स्तर पर कार्रवाई शुरू की है. इस कार्रवाई का निशाना प्रत्यक्ष रूप से हिंसा फैला रहे संगठनों के अलावा हुर्रियत भी है. हुर्रियत के दो महत्वपूर्ण घटकों जमाते-इस्लामी और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) पर प्रतिबंध लगाया गया है. पाकिस्तान दिवस (23 मार्च) की पूर्व-संध्या पर दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग में हुए कार्यक्रम में भारत सरकार के मंत्री इसलिए शामिल नहीं हुए, क्योंकि हुर्रियत को बुलाया गया था. यह एक प्रकार की लक्ष्मण रेखा है.

प्रधानमंत्री ने इमरान खान के नाम बधाई संदेश भी भेजा. कुछ लोग इसपर सवाल उठा रहे हैं. वस्तुतः इसमें अजब कुछ भी नहीं है. कश्मीर के मामले में भारत ने अपना कड़ा संदेश हाई कमीशन के समारोह का बहिष्कार करके दे दिया. पर बधाई एक परम्परा के तहत है, जो दुनिया के सभी देश एक-दूसरे के साथ निभाते हैं. यह औपचारिक बधाई है.

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के अनुसार कश्मीर में सुरक्षा बलों ने जनवरी में 19, फरवरी में 20 और 21 तारीख तक मार्च के महीने में 11 आतंकियों को मार गिराया है. पर सबसे महत्वपूर्ण घटना है जेकेएलएफ पर लगा प्रतिबंध. पिछले चार दशक से यासीन मलिक के नेतृत्व वाला यह संगठन कश्मीर के जेहादी आंदोलन की धुरी बना हुआ है. शुरुआत फरवरी 1984 में हुई थी, जब इसके सदस्यों ने बर्मिंघम में भारतीय राजनयिक रवीन्द्र म्हात्रे का अपहरण करके उनकी हत्या कर दी थी.

कश्मीर की घाटी में अस्सी के दशक तक आईएसआई का कोई नेटवर्क नहीं था. जेकेएलएफ ने वह नेटवर्क उपलब्ध कराया. 14 सितंबर, 1989 को बीजेपी के राज्य सचिव टिक्का लाल टपलू की हत्या हुई. पूर्व न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या उसके डेढ़ महीने बाद हुई. दिसम्बर 1989 में रुबैया सईद का अपहरण हुआ. फिर 13 फ़रवरी, 1990 को श्रीनगर दूरदर्शन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या हुई. तकरीबन चार लाख पंडितों को घाटी से भागने पर मजबूर किया गया. 25 जनवरी 1990 को वायु सेना के पाँच अधिकारियों की हत्या हुई. यह सब जेकेएलएफ का काम था. इतने बड़े अपराधों के बावजूद यह संगठन भारत के उदार कानूनों का लाभ उठाता रहा और इसका सरगना यासीन मलिक छुट्टा घूमता रहा. उसके खिलाफ कार्रवाई सही दिशा में एक कदम है.

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-03-2019) को "अपनी औकात हमको बताते रहे" (चर्चा अंक-3287) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व रंगमंच दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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