21 मार्च
को होली के दिन गुरुग्राम के भूपसिंह नगर के रहने वाले मोहम्मद साजिद के परिवार ने
अपने आसपास के समाज का ऐसा भयानक चेहरा देखा जिससे वे ख़ौफ़ में हैं. इस खौफ के
खिलाफ नागरिक समाज ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है. यह नाराजगी इतनी असरदार नहीं
होती या शायद होती ही नहीं, अगर इस हिंसा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल न हुआ
होता. इस वीडियो के कारण बड़ी संख्या में लोगों की अंतरात्मा को ठेस लगी. यह क्या
हो रहा है?
मीडिया का असर है कि हमारी भावनाएं भड़कने में देर नहीं लगती है. और हमें मानवीयता का एहसास भी किसी दूसरे वीडियो से होता है. नब्बे के दशक में जब महम की हिंसा
का वीडियो पहली बार सामने आया था, तब हमें लगा कि राजनीति में यह क्या हो रहा है.
वस्तुतः हमने पहली बार उसकी तस्वीरें देखी थीं, हो तो वह काफी पहले से रहा था.
आरक्षण के विरोध में आत्मदाह करने की पहले वीडियो ने काफी बड़े वर्ग को व्यथित कर
दिया था. फिर हाल के वर्षों में हमें दलितों की पिटाई के वीडियो देखने को मिले
हैं. गोरक्षकों की हिंसा और मॉब लिंचिंग के वीडियो भी बड़ी संख्या में सामने आए
हैं. इन वीडियो के राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए ऐसे फर्जी वीडियो भी सामने आए
हैं, जिनका उद्देश्य किसी एक खास तबके की भावनाओं को भड़काना होता है. यह खेल अभी
चलेगा, क्योंकि चुनाव करीब हैं.
बहरहाल गुरुग्राम की हिंसा जितनी अमानवीय, क्रूर और भयावह है, उसे
सामने लाने का श्रेय उस लड़की को जाता है, जिसकी समझदारी ने उसे वीडियो बनाने को
प्रेरित किया. बीबीसी हिंदी की संवाददाता कीर्ति दुबे ने अपनी रिपोर्ट में लिखा
है, 21 साल की दानिस्ता ने जब ये वीडियो बनाया तो उन्हें नहीं पता था इसे
वे शेयर कर भी पाएंगी या नहीं. दानिस्ता अपने चाचा के घर होली मनाने आई थीं. जिस
वक़्त भीड़ घर में दाख़िल हुई उस वक़्त वे खाना बना रही थीं और उनके हाथ में उनके
भाई इरशाद का मोबाइल फ़ोन था.
दानिस्ता कहती हैं, ''जब
वो लोग मार पीट कर रहे थे तो मेरे हाथ में फ़ोन था, मुझे लगा कि वीडियो बनाना चाहिए. हम
भाई बहन ऊपर वाली छत (दूसरी मंजिल) पर भागे और मैंने वीडियो रिकॉर्डिंग करना शुरू
किया. जैसे ही उन लोगों को पता चला कि वीडियो बन रहा है वो लोग चिल्लाए इस लड़की
को फ़ोन के साथ ही फेंक दो. मैं डर गई थी मुझे बस ये फ़ोन बचाना था. मैंने पास में
पड़ी ईंटों के बीच में ये फ़ोन छिपाया और सोचा कि मुझे मार भी देंगे तो भी ये
वीडियो हमारा सबूत होगा. लेकिन वे लोग दरवाज़ा तोड़ नहीं सके.''
आज के हिन्दू में हेमानी भंडारी ने भी इससे जुड़ी एक रिपोर्ट लिखी है.
इसके अनुसार दसवें दर्जे तक पढ़ाई कर चुकी दानिस्ता को समझ में आया कि वीडियो नहीं
होगा, तो किसी को हमारी बात पर भरोसा भी नहीं होगा. दानिस्ता के अनुसार, यह सब
झटके में हुआ, यह बात मुझे देर से समझ में आई कि मुझे वीडियो लेना चाहिए...हमलावर
ऊपर भी आए, पर मैंने और मेरे चचेरे भाइयों ने दरवाजा कसकर बंद कर दिया और उन्हें
आने नहीं दिया. उन्होंने दरवाजे पर लाठियाँ चलाईं, शुक्र है वह टूटा नहीं.
बहुत कुछ बदल चुका है। बहुत कुछ हो रहा है जिसका ना कोई सबूत होता है ना वीडियो। गिरोह कहना चाहिये हर मोड़ पर सक्रिय हैं।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (25-03-2019) को "सबके मन में भेद" (चर्चा अंक-3284) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फ़ारुख़ शेख़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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