Sunday, February 24, 2019

पाकिस्तान पर जकड़ता शिकंजा

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पुलवामा पर आतंकवादी हमले के फौरन बाद भारत ने और सहयोगी देशों ने जो कदम उठाए हैं उनके परिणाम नजर आने लगे हैं। अभी तक ज्यादा कार्रवाइयाँ राजनयिक हैं। कोई बड़ी फौजी कार्रवाई नहीं की गई है, पर वह नहीं होगी, ऐसा संकेत भी नहीं है। ऐसी कार्रवाई के लिए उचित समय और तैयारियाँ दोनों जरूरी हैं। इसमें महत्वपूर्ण होता है ‘सरप्राइज’ का तत्व। उसके समय की पहले से घोषणा नहीं की जाती। हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि भारत कोई बड़ा कदम उठाने की सोच रहा है। इस कदम को उठाने के पहले यह भी सोचना होगा कि टकराव किस हद तक बढ़ सकता है। यह भी स्पष्ट है कि भारत जो भी कार्रवाई करेगा, उसकी जानकारी अपने मित्र देशों को भी देगा।

इस राजनयिक दबाव का संकेत तीन बड़ी घटनाओं से मिलता है। गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पुलवामा के हमले की न केवल निन्दा की, बल्कि उसमें पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैशे-मोहम्मद का नाम भी लिया। सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी एवं 10 अस्थायी सदस्यों ने सर्वसम्मति से इसे पास किया। चीन ने इसकी भाषा के साथ छेड़खानी करने की कोशिश की, पर उसे सफलता नहीं मिली। वैश्विक नाराजगी इतनी ज्यादा है कि चीन ने अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल करने की हिम्मत भी नहीं की।


यह पहला मौका है, जब सुरक्षा परिषद ने जम्मू-कश्मीर में किसी आतंकी हमले की निन्दा की है। इसके तकनीकी कारण हैं, जिनका लाभ पाकिस्तान उठाता रहा है। सुरक्षा परिषद की दृष्टि में जम्मू-कश्मीर ‘विवादग्रस्त क्षेत्र’ है। संरा ने अभी तक आतंकवाद की सर्वमान्य परिभाषा तैयार नहीं की है। इसके पहले सुरक्षा परिषद ने कश्मीरी आतंकवाद को लेकर कभी कोई कड़ा बयान जारी नहीं किया था। आतंकी घटनाओं को राजनीतिक आंदोलन का आवरण पहना दिया जाता था। इस लिहाज से यह प्रस्ताव ऐतिहासिक है।
भारत सरकार ने फौरी तौर पर पाकिस्तान को दिया गया ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा खत्म करने, सीमेंट वगैरह पर 200 फीसदी ड्यूटी लगाने के अलावा 15 फरवरी को ही जी-20 देशों, पड़ोसियों, आसियान और यूरोपियन संघ के देशों से सम्पर्क साध लिया था। पर सुरक्षा परिषद से प्रस्ताव पास कराने की बड़ी चुनौती थी। इसकी सबसे बड़ी वजह था चीन का रवैया।

सन 2001 के संसद पर हुए हमले और 26 नवम्बर 2008 में मुम्बई पर हुए हमले के वक्त इतनी जल्द और इतनी कड़ी वैश्विक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई थी। इस बार अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस ने दृढ़ होकर भारत का साथ दिया, जिसके आगे चीन को झुकना पड़ा। सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अगले रोज शुक्रवार को पेरिस में फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की बैठक में पाकिस्तान को फिर से ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल करने का फैसला किया गया।

एफएटीएफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग पर नजर रखने वाली संस्था है। इसके पहले 2012 से 2015 तक पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा गया था। एफएटीएफ के 39 सदस्य देशों में से तुर्की को छोड़कर सभी ने अमेरिका की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ पेश किए गए प्रस्ताव का समर्थन किया। सुरक्षा परिषद के अलावा चीन ने यहाँ भी अपने रुख को बदला।

पाकिस्तान को इन दोनों बातों की सुगबुगाहट हो चुकी थी। एफएटीएफ की बैठक के ठीक पहले के बाद पाकिस्तान ने मुम्बई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे जुड़े फाउंडेशन फलाह-ए-इंसानियत पर भी पाबंदी लगा दी गई। दोनों संगठन लश्करे तैयबा से जुड़े हैं। आनन फानन राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक बुलाई गई और इन संगठनों पर पाबंदी की घोषणा की गई। फिर खबर आई कि जैश-ए-मोहम्मद के बहावलपुर स्थित मुख्यालय पर सरकार ने कब्जा कर लिया है। जैश का सरगना मसूद अज़हर भी यहीं पर है। पाकिस्तान सरकार के ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट में प्रवक्ता के हवाले से बताया गया कि सरकार ने कैंपस को अपने नियंत्रण में ले लिया है।

पिछले कुछ समय से भारतीय सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन ऑलआउट के तहत जैश और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों की हालत खराब कर रखी है। सैकड़ों आतंकी मारे गए हैं। वे दबाव में हैं इसलिए आईएसआई उनका मनोबल बनाए रखने के लिए कोई कार्रवाई चाहता था। आरडीएक्स, हथियार और गोला-बारूद पिछले कई महीनों से जुटाया जा रहा होगा। बर्फबारी की वजह से चौकसी कठिन होती है, तो ऐसा वक्त आतंकवादियों के लिए मुफीद रहता है।

सवाल है कि इन सब बातों पर पाकिस्तान पर क्या असर होगा? उसपर चौतरफा दबाव है। हाल में नितिन गडकरी ने कहा है कि अब हम तीन नदियों से पाकिस्तान को मिलने वाले पानी में से अपने हिस्से का पानी बंद कर रहे हैं। पानी के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह एक तरह का तोहफा था। पाकिस्तान ने घटिया हरकतें नहीं की होतीं, तो शायद यह पानी जाता रहता। भारत ने अपनी तरफ से कभी कोशिश भी नहीं की कि इसका इस्तेमाल अपने इलाके में किया जाए। पर पाकिस्तान ने ऐसी स्थितियाँ पैदा कर दीं, जिसके बाद यह फैसला किया गया। इस पानी को भारत की दिशा में मोड़ने के लिए भी बाँधों और नहरों का इंतजाम करना होता है। पिछले कुछ वर्षों में यह इंतजाम भी कर लिया गया है।

एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल होने के कारण पाकिस्तान से होने वाले हर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है, जिससे उसकी बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था और बिगड़ेगी। वह पहले से भारी कर्ज में दबा हुआ है। उस पर 13.70 लाख करोड़ रुपए (27 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए) से ज्यादा का कर्ज है। सऊदी अरब और यूएई ने उसे निवेश का भरोसा दिया है। ग्रे लिस्ट में जाने से आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक, यूरोपियन यूनियन, मूडीज़ और स्टैंडर्ड एंड पुअर जैसी एजेंसियों की रेटिंग में वह डाउनग्रेड होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजारों से लोन ऊंची ब्याज दर पर मिलेगा और विश्वसनीयता में गिरावट आएगी।

इतने डिप्लोमैटिक कदमों के बाद भी भारत के पास फौजी कार्रवाई का अधिकार सुरक्षित है। यह कार्रवाई कब और किस रूप में होगी, इसका इंतजार करना चाहिए। पर इस पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि युद्ध के परिणाम दूरगामी होते हैं। बेशक हम कश्मीर में निर्णायक कदम चाहते हैं, पर निर्णायक कदम दो रोज में ही पूरे नहीं होते। पाकिस्तान अपने बोझ तले पहले से दबा जा रहा है। वहाँ की आंतरिक राजनीति की दशा अच्छी नहीं है। सेना पूरी सत्ता पर कब्जा करना चाहती है। इन टकरावों का परिणाम भी सामने आने दीजिए। सच यह कि इतिहास पाकिस्तान को अपने तरीके से सज़ा दे रहा है। इंतजार कीजिए उसकी दशा-दिशा अपने आप नजर आएगी।




1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2019) को "आईने तोड़ देने से शक्ले नही बदला करती" (चर्चा अंक-3258) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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