Saturday, February 2, 2019

असमंजस से घिरी कांग्रेस की मंदिर-राजनीति

सही या गलत, पर राम मंदिर का मसला उत्तर प्रदेश समेत उत्तर के ज्यादातर राज्यों में वोटर के एक बड़े तबके को प्रभावित करेगा। इस बात को राजनीतिक दलों से बेहतर कोई नहीं जानता। हिन्दू समाज के जातीय अंतर्विरोधों के जवाब में बीजेपी का यह कार्ड काम करता है। चूंकि मंदिर बना नहीं है और कानूनी प्रक्रिया की गति को देखते हुए लगता नहीं कि लोकसभा चुनाव के पहले इस दिशा में कोई बड़ी गतिविधि हो पाएगी। इसलिए मंदिर के दोनों तरफ खड़े राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से वोटर को भरमाने की कोशिश में लगे हैं।
कांग्रेस की कोशिश राम मंदिर को लेकर बीजेपी को घेरने और उसके अंतर्विरोधों को उजागर करने की है, पर वह अपनी नीति को साफ-साफ बताने से बचती रही है। अभी जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि राम मंदिर का मसला अभी कोर्ट में है,  पर 2019 के चुनाव में नौकरी, किसानों से जुड़े मुद्दे पर अहम होंगे। उनका आशय यह था कि मंदिर कोई मसला नहीं है। पर वे इस मसले से पूरी तरह कन्नी काटने को तैयार भी नहीं हैं। इस मामले में उन्होंने विस्तार से कभी कुछ नहीं कहा।
हिन्दू छवि भी चाहिए
हाल में पाँच राज्यों में हुए चुनावों के दौरान उन्होंने अपनी हिन्दू-छवि को कुछ ज्यादा उजागर किया, पर मंदिर के निर्माण को लेकर सुस्पष्ट राय व्यक्त नहीं की। मंदिर ही नहीं मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा भी तत्कालीन सरकार ने किया था। उसके बारे में भी पार्टी ने साफ-साफ शब्दों में कुछ नहीं कहा। कांग्रेस पार्टी अदालत के फैसले को मानने की बात कहती है, पर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने अदालती फैसला विलंब से करने की जो प्रार्थना की थी, उसे लेकर पार्टी पर फैसले में अड़ंगा लगाने का आरोप जरूर लगता है। कांग्रेस पार्टी का यह असमंजस आज से नहीं अस्सी के दशक से चल रहा है। 

कांग्रेस ने इस मसले की राजनीति से खुद को अलग भी नहीं किया है। उसके बीच से रह-रहकर कोई न कोई बयान आता रहता है कि हमारे नेतृत्व में ही मंदिर बनेगा। पार्टी इस मामले में हो रहे विलंब का ठीकरा बीजेपी के सिर पर फोड़ने में भी देर नहीं लगाता है। बीजेपी पर शिवसेना समेत साधु-संत समाज का दबाव पहले से ही है। पहले उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट इस सिलसिले में कोई दिशा दिखाएगा, पर अब लगता नहीं कि चुनाव से पहले कुछ होगा। जनवरी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मामला अभी कोर्ट में है, ऐसे में सरकार न्यायिक प्रक्रिया पूरा होने का इंतजार करेगी। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला करेगा वह हमें मंजूर होगा।
कई तरह के बयान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी ने ढाई महीने पहले नवम्बर में कहा कि कांग्रेस की सरकार ही अयोध्या में राम मंदिर बनाकर दे सकती है। राजीव गांधी ने ही बाबरी मंदिर परिसर के ताले खुलवाए और उसके भीतर धार्मिक क्रिया-कलाप शुरू कराए थे। सिर्फ कांग्रेस का प्रधानमंत्री ही वहाँ मंदिर बनवा सकता है। ऐसी ही बात उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कही थी कि केन्द्र में कांग्रेस सरकार बनी तो राम मंदिर बन जाएगा। पर इसके पहले शशि थरूर ने कहा कि कोई भी अच्छा हिंदू विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर मंदिर नहीं चाहेगा। उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए पूछा कि क्या कोई अच्छा हिंदू हिंसा के बल पर राम मंदिर का निर्माण चाहेगा?
इस बयान से लगता था कि कांग्रेस मंदिर बनाने के पक्ष में नहीं है, इसलिए थरूर को फौरन इसकी सफाई देनी पड़ी। पीटीआई को दिए एक खास इंटरव्यू में उन्होंने कहा, वास्तव में, अगर कुछ है शास्त्रों में तो यह कि राम को अपने दिलों में बसाएं। और अगर राम आपके दिल में बसे हैं तो फिर इसके कोई ज्यादा मायने नहीं होने चाहिए कि वह और कहां हैं या कहां नहीं हैं, क्योंकि वह हर कहीं हैं। कोई भी हिन्दू ग्रंथ अपने काम के लिए हिंसा के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता और शास्त्रों का कहना है कि लोगों को राम को अपने दिलों में बसाना चाहिए। दरअसल बयानों की बारीकियों पर कोई नहीं जाता, महत्वपूर्ण होता है कि मीडिया किसी बयान को कैसा ट्विस्ट देता है।
जहाँ राम का जन्म हुआ
शशि थरूर ने अपनी बात को और स्पष्ट किया, ‘‘अधिकतर अच्छे हिन्दू जिन्हें मैं जानता हूं वह उस जगह पर राम मंदिर चाहते हैं जहां उनका मानना है कि उनका जन्म हुआ। लेकिन अधिकतर अच्छे हिन्दुओं को दूसरों के पूजास्थल को ध्वस्त कर यह नहीं चाहिए था। और यह कमोबेश वही है जो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने भी कहा है।’’ कांग्रेस नेता ने आडवाणी को उद्धृत किया जिन्होंने बाबरी मस्जिद गिराए जाने को ‘‘अपनी जिंदगी का सबसे दुखद दिन’’ करार दिया था। कुल मिलाकर सब कुछ अच्छे हिन्दू की परिभाषा में सिमट गया।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को नई बेंच के पास भेजने बाद यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने कहा कि राम मंदिर अयोध्या में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा। हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि अयोध्या में राम मंदिर कहां बनेगा, यह फैसला कोर्ट में तह हो सकता है। इसके पहले अक्तूबर में वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने कहा कि पार्टी ने राम मंदिर का कभी विरोध नहीं किया था। हम तो इसका सौहार्दपूर्ण समाधान चाहते हैं।
अंतर्विरोधी बातें
पार्टी सायास या अनायास राम मंदिर को लेकर अंतर्विरोधी बातें कह रही है। इन बातों के आशय दो हैं। एक, राम मंदिर बनवा पाना बीजेपी के बूते की बात नहीं है। और दूसरा यह कि हम बनवा सकते हैं। मस्जिद की पुनर्स्थापना भी होगी या नहीं? होगी तो कैसे और कहाँ, इसे लेकर भी पार्टी गोल-मोल जवाब देती है। बाबरी विध्वंस के फौरन बाद प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने वादा किया था कि मस्जिद का पुनर्निर्माण होगा। इंडिया टुडे को जनवरी 1993 में प्रकाशित एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यह वायदा फौरन करना बेहद जरूरी था। मैं ऐसा नहीं करता तो नवाज शरीफ करते।
बाद में लिबरहान आयोग के सामने जाकर राव साहब ने कहा, मैंने मस्जिद बनाने का वादा किया था, पर यह नहीं कहा था कि वहीं बनाएंगे। इंडिया टुडे के इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर के बाबत भी हमारी प्रतिबद्धता है, पर सब कुछ न्यायिक-प्रणाली के तहत होना चाहिए। उनका आरोप था कि बीजेपी कानूनी-प्रक्रिया को तोड़कर काम करना चाहती है।
अदालती प्रक्रिया में अड़ंगे
आज स्थिति यह है कि बीजेपी अदालती प्रक्रिया को जल्द पूरा करना चाहती है और वह कांग्रेस पर अड़ंगे लगाने आरोप लगा रही है। पर इतना साफ है कि तब से अब तक कांग्रेस इस मामले में एक स्थिर विचार पर कायम नहीं रही है। सन 2004 के बाद शुरू हुई सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर उसका यह अंतर्विरोध सामने आया। करीब एक दशक पहले 2008 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि वाल्मीकि की रामकथा इतिहास-सम्मत नहीं है। राम या रामायण में वर्णित अन्य चरित्रों के बारे में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। पुरातात्विक सर्वेक्षण के निदेशक ने तब अदालत में कहा था कि वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरित मानस प्राचीन भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं, पर उनसे इन पात्रों और घटनाओं की ऐतिहासिकता प्रमाणित नहीं होती। 
कांग्रेस पार्टी के अंतर्विरोधों की कहानी को समझने के लिए बाबरी विध्वंस के फौरन बाद के घटनाक्रम की बारीकी से जाँच करनी चाहिए। विध्वंस के एक महीने बाद ही सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश ले आई, जिसपर 7 जनवरी 1993 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने दस्तखत कर दिए। इसके तहत आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया। बाद में तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चह्वाण ने संसद में एक विधेयक भी पेश किया।
रोचक बात यह है कि आज बीजेपी समर्थक अध्यादेश लाने की बात कर रहे हैं, वहीं 1993 में पार्टी ने अध्यादेश और विधेयक का विरोध किया था। ऐसे अंतर्विरोध दोनों तरफ हैं। बीजेपी ने उत्तर भारत के काफी बड़े हिन्दू तबके के भीतर जगह बना ली है। दूसरी तरफ कांग्रेस ठीक से अपना वैचारिक स्थान तय नहीं कर पा रही है।  

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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