Wednesday, February 27, 2013

पवन बंसल का राम भरोसे रेल बजट

रेल किराए या इसी किस्म की लोकलुभावन बातों पर गौर न करें तो भारत के आधुनिकीकरण में रेलवे की भावी भूमिका और अंदेशों का संकेत तो इस बार के रेल बजट में मिलता है, पर जवाब कहीं नहीं मिलता। रेल बजट को लोकलुभावन बनाने का ममता बनर्जी का फ़र्मूला किराया न बढ़ाना था तो पवन बंसल का फ़ॉर्मूला विकास के कार्यों को रोक देने का है। लगता है सरकार ने सारे काम भविष्य पर छोड़ दिए हैं। रेलवे की सबसे बड़ी ज़रूरत है माल ढोने के लिए आधार ढाँचे को तैयार करना, यात्रियों की सुरक्षा और सहूलियतों में इज़ाफा, विद्युतीकरण, आमान परिवर्तन और नई लाइनों का निर्माण। हमें अपने बजट को इसी लिहाज से देखना चाहिए। और यह देखना चाहिए कि सरकार कितना निवेश इन कामों पर करने जा रही है। इसके लिए पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे के लिए 5.19 लाख करोड़ रुपए के निवेश की ज़रूरत है। इसमें से आंतरिक साधनों से 1.05 लाख करोड़ की व्यवस्था करने का निश्चय किया गया है। इसमें से केवल 10,000 करोड़ रुपए की व्यवस्था पिछले साल के बजट में की गई थी। यानी 95,000 करोड़ रुपए का इंतज़ाम अगले चार साल पर छोड़ दिया गया। पिछले साल रेलवे का योजनागत व्यय 60,100 करोड़ रुपए था, जो संशोधित कर 52,265 करोड़ रु कर दिया गया। यानी वह व्यवस्था भी नहीं हो पाई। इस साल 63, 363 करोड़ रु की व्यवस्था बजट में की गई है। यानी दो साल में योजनागत व्यय एक लाख 15, 628 करोड़ रु हुआ। यानी अगले तीन साल में 4.04 लाख करोड़ रु की व्यवस्था करनी होगी। यानी अगले तीन साल तक रेलवे को योजनागत व्यय में इस साल के व्यय का तकरीबन ढाई गुना खर्च करना होगा। यह काम लगभग असम्भव है।

रेलमंत्री ने अपने भाषण में इस बात का ज़िक्र तो ज़रूर किया है कि सरकार को साधनों की व्यवस्था करने के लिए शुल्क और गैर-शुल्क आमदनी में बढ़ोत्तरी करनी होगी, पर कहीं यह संकेत नहीं दिया कि यह काम कैसे होगा। रेलवे अपने आंतरिक साधनों से पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों का तकरीबन बीस फीसदी ही दे पाने की सामर्थ्य रखता है। उस लक्ष्य का बीस फीसदी भी इस साल सम्भव नहीं। यानी शेष राशि वित्तमंत्री देंगे, या बाहर से कर्ज की रूप में ली जाएगी या निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में प्राप्त की जाएगी। इस अर्थ में यह बजट भी पुराने रेलमंत्रियों की शैली में है जो लोकलुभावन बातों पर ज़ोर देते रहे हैं और कोई बड़ा कदम उठाने से घबराते हैं। राजनीतिक दृष्टि से देखें तो कांग्रेस को 17 साल बाद रेल बजट पेश करने का मौका मिला है, क्योंकि यूपीए के रेलमंत्री गैर-कांग्रेसी होते रहे हैं। कांग्रेसी रेलमंत्री की दृष्टि रायबरेली पर ठीक गई, पर देश को तमाम दूसरे इलाके भी उनकी ओर उम्मीद की नज़रें लगाए बैठे हैं।
सरकार की लोकलुभावन दृष्टि का परिचय विकास योजनाओं पर नज़र डालने से मिलेगा। पिछले साल के बजट में सरकार ने 700 किमी की नई रेल लाइनों के निर्माण का लक्ष्य रखा था, पर बनीं सिर्फ 470 किमी। अब अगले साल का लक्ष्य है केवल 500 किमी। लक्ष्य कम हो गया। इसी तरह से छोटी लाइन से बड़ी लाइन में परिवर्तन का लक्ष्य पिछले साल 800 किमी था, जबकि काम पूरा हुआ सिर्फ 577 किमी में। अगले साल का लक्ष्य है 450 किमी। सरकार इस साल 750 किमी सिंगल लाइन को डबल लाइन में तब्दील करेगी। पर सरकार रेलवे के विकास कार्यों पर ज़ोर देने के बजाय इस बात पर ज़ोर देना चाहती है कि वह इस साल एक लाख 52 हज़ार रिक्तियों को भरेगी। पिछले साल जब ममता बनर्जी ने दिनेश त्रिवेदी को हटाया तब रेल कर्माचारियों ने भी इस बात का विरोध किया था। वे जानते हैं कि यदि रेलवे की आमदनी नहीं बढ़ी को बाकी कर्मचारियों के लिए भी अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। यह ठीक है कि इससे रोजगार की स्थिति सुधरेगी, पर सरकार को रेलवे की माली हालत को सुधारने के प्रयास भी करने होंगे। रोज़गार के नए अवसर पैदा करने के लिए आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने की ज़रूरत है। हमारे यहाँ यात्री किराए के मुकाबले मालभाड़ा ज्यादा है। इस स्थिति को बदलने की ज़रूरत भी है। पर इस बजट में फ्यूल सरचार्ज के नाम पर माल भाड़े को बढ़ाया गया है, जो अंततः मुद्रास्फीति या महंगाई के रूप में जनता की जेब काटता है। रेलमंत्री को आशा है कि इस साल मालभाड़े में नौ फीसदी की वृद्धि होगी, जबकि अर्थ-व्यवस्था में पाँच से छह फीसदी की विकास दर है। यह लक्ष्य किस प्रकार पूरा होगा?
इस साल जनवरी में जब यात्री किराया बढ़ाया गया था, तब उसका एक राजनीतिक कारण भी था। सरकार नहीं चाहती कि लोकसभा चुनाव के पहले पेश होने वाले आखिरी बजट का असर नकारात्मक हो। असली बजट दस्तावेज़ दो दिन बाद आने वाला है। उसके पहले आर्थिक समीक्षा में राजकोषीय घाटे का ज़िक्र ज़रूर होगा। सामान्य जनता के लिए रेल किराया ही रेल बजट होता है। पिछले साल दिनेश त्रिवेदी ने रेल किराया बढ़ाने की ज़रूरत को रेखांकित किया था, पर उन्हें अपनी नौकरी से होथ धोना पड़ा। इस बार रेल मंत्री पवन बंसल ने यात्री किराया सीधे तो नहीं बढ़ाया, लेकिन उन्होंने पिछले दरवाजे से पैसा वसूल लिया। तत्काल टिकट, रिजर्वेशन, सुपरफास्ट और टिकट कैंसलेशन शुल्क बढ़ने का मतलब है कि सरकार सीधे पकड़ने के बजाय दूसरे तरीके से नाक पकड़ रही है। रेल किराए को फ्यूल सरचार्ज से जोड़ने पर साल में दो बार टिकट सस्ता या महंगा होगा। मालभाड़े पर भी फ्यूल सरचार्ज का पाँच फीसदी तक असर होगा।
देश के मध्य वर्ग के लिए रेल आवागमन का महत्वपूर्ण साधन है। नौजवानों को रोज़गार के लिए दूर-दराज जाना होता है। उनकी सुविधा के लिए रेलवे वेबसाइट पर जाम से निजात के लिए मार्च तक आधुनिकतम ई-टिकटिंग प्रणाली शुरू की जा रही है। नए सिस्‍टम से 1 मिनट में 7200 ई टिकट जारी करने पर काम चल रहा है। अभी तक यह 2000 प्रति मिनट है। पिछले साल के बजट में डिब्बों में बायो टॉयलेट लगाने की घोषणा की गई थी, जो काम ज़ारी है। कुछ ट्रेनों में शताब्दी और राजधानी की तरह आधुनिक सुविधाओं से लैस अनुभूति कोच लगाने की योजना ठीक है। साथ ही चुनिंदा ट्रेनों में मुफ्त वाई फाई सुविधा की घोषणा भी सामयिक है। ज़रूरत इस बात की है कि हमारी ज़्यादातर रेलगाड़ियाँ वाई-फाई सुविधा से लैस हों। इसके अलावा आरक्षण में नवीनतम तकनीक के इस्तेमाल के बावज़ूद होने वाले घपलों पर रोक ज़रूरी है। मोटे तौर पर रेल मंत्री ने सुरक्षा और यात्री सुविधाओं का नाम तो कई बार लिया है, पर बजट में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की है जो बताए कि यह काम कैसे होगा। उनका कहना है कि कहना है कि सुरक्षा और यात्री सुविधाओं को देखते हुए किराया बढ़ाने की जरूरत है। अगर 5 से 6 फीसदी किराया हर साल बढ़ाया जाए तो एक लाख करोड़ रुपए तक अधिक जुटाया जा सकता है, जो यात्री सुविधाएं देने में मदद करेगा। रेलमंत्री ने कहा कि पिछले दो साल में जो स्थिति रही है, हम उससे उलट कर सरप्‍लस की स्थिति में आ सकेंगे।
भारतीय रेलवे एक ओर बुनियादी सुविधाएं देने में अभी पीछे है वहीं हम बुलेट ट्रेन जैसी सुपरफास्ट ट्रेनों के बारे में सोच रहे हैं। यह बेहद खर्चीला काम है। उनकी ज़रूरत हमें भविष्य में होगी, पर उसके पहले हमारी रेल प्रणाली को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। इसके लिए आमदनी के तरीकों को बढञाना और खर्चों पर रोक लगाना बेहद ज़रूरी है। फिलहाल इलेक्शन की हवाएं फिज़ा में हैं इसलिए रेलमंत्री यात्री किराए को ज़्यादा बढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं। बहरहाल वे इस बजट को न तो पूरी तरह लोकलुभावन बना पाए हैं और न युगांतरकारी। 
नेशनल दुनिया में प्रकाशित
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

1 comment:

  1. The real fact of railway are here in your article Sir.

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