यूनानी मिथकों का मृत्युंजय पक्षी फीनिक्स अपनी राख में से बार-बार जीवित होकर नए जोश के साथ उड़ान भरता है। अमेरिकी साइकिलिस्ट लैंस आर्मस्ट्रांग का जीवन फीनिक्स सरीखा है, कुछ विडंबनाओं के साथ। वैश्विक मीडिया इन दिनों अर्मस्ट्रांग के प्रति हमदर्दी से पटा पड़ा है। पर ऐसा कहने वाले भी हैं कि उन्होंने जिस तरीके से व्यवस्था से हार मानी वह ठीक नहीं। आर्मस्ट्रांग कहते हैं, “बहुत हुआ मैं कब तक जवाब देता रहूँगा? अब कोई जवाब नहीं, जिसको जो करना है करे।” अमेरिका की एंटी डोपिंग एजेंसी यूएसएडीए ने उन्हें न सिर्फ जीवन भर के लिए बैन कर दिया है, बल्कि ‘टुअर डी फ्रांस’ के सातों ताज़ और इनसे जुड़े सारे इनाम-इकराम वापस लेने की घोषणा की है। आर्मस्ट्रांग की उम्मीद तब खत्म हो गई, जब ऑस्टिन की एक अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालांकि अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज सैम स्पार्क्स ने यह भी लिखा कि यूएसएडीए का बर्ताव कुछ गम्भीर सवाल खड़े करता है कि उसका इरादा डोपिंग से लड़ना है या कुछ और। बहरहाल मामला जनता की अदालत में है। क्या एक कृतघ्न समाज अपने नायक के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है जैसा सॉक्रेटीस के साथ हुआ? या आर्मस्ट्रांग ने खुद को दोषी स्वीकार कर लिया है? यह हार है या रार?
कल्पना करें साइकिल पर बैठकर एक हफ्ते में बीस से ज्यादा मैराथन रेस पूरी करनी हों और प्रतियोगिता तीन हफ्ते तक लगातार चले। फ्रांस की टुअर डी फ्रांस प्रतियोगिता में 23 दिन के भीतर 3200 किलोमीटर की दूरी 21 अलग-अलग स्तरों पर एक स्ट्रेच में तय करनी होती है। अमेरिकी साइकिलिस्ट लैंस आर्मस्ट्रांग ने 1999 से 2005 तक लगातार सात बार इस प्रतियोगिता को जीता। पर वे इस वजह से महत्वपूर्ण नहीं हैं। बल्कि इस बात से हैं कि सन 1996 में उन्हें टेस्टिकल कैंसर हो गया था, जो फेफड़ों और दिमाग तक को प्रभावित कर रहा था। डॉक्टरों ने बच पाने की फिफ्टी-फिफ्टी सम्भावना जताई थी। सर्जरी और कीमोथिरैपी के बेहद तकलीफदेह दौर से गुजरते हुए उन्होंने ने न सिर्फ कैंसर को हराया, बल्कि उसके फौरन बाद लगातार सात बार टुअर डी फ्रांस का खिताब जीता। सन 2000 में ओलंपिक कांस्य पदक भी हासिल किया। दुनिया भर की तमाम प्रतियोगिताओं को वे जीतते रहे। खिलाड़ी के रूप में साइकिलिंग के ऑलटाइम बेस्ट एडी मर्क्स के बराबर माने गए। पर कैंसर जैसी व्याधि से लड़ने वालों में आर्मस्ट्रांग का कोई सानी नहीं। उनका फाउंडेशन कैंसर के मरीज़ों की मदद करता है। उसका संदेश है, हारो मत-जीतो।
आर्मस्ट्रांग के साथ हमें अपने युवराज सिंह की याद आती है, जिन्होंने हाल में कैंसर पर विजय पाई है। पिछले दिनों जब युवराज बीमार थे तब आर्मस्ट्रांग ने उन्हें जल्दी ठीक होने का संदेश दिया था। अमेरिका में इलाज के दौरान युवराज सिंह ने ट्वीट किया था कि आर्म्सट्रॉंग ने उन्हें जल्दी स्वस्थ होने का संदेश भेजा है। युवराज ने आर्मस्ट्रांग की जीवनी ‘इट्स नॉट अबाउट द बाइक’ को पढ़ा, जिससे उनका आत्मबल बढ़ा। युवराज ने आर्मस्ट्रांग को संदेश भेजा था और ट्वीट किया था कि मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। डोपिंग के दोषी पाए जाने वाले खिलाड़ी अक्सर कलंकित हो जाते हैं और जनता का समर्थन खो देते हैं। पर ख़िताब छीने जाने के बाद आर्मस्ट्रांग ने ट्वीट किया "लिवस्ट्रांग समर्थकों का शुक्रिया। ...हर दिन के आर्थिक सहयोग में आज 25 गुना की बढ़त हुई। धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद।" अचानक उनकी लोकप्रियता बढ़ गई। जनता उनके साथ हैं। अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग यूनियन यूसीआई भी उनके साथ है। खेल का सामान बनाने वाली कंपनी नाइके ने कहा है कि हम आर्मस्ट्रांग के साथ हैं।
यूएसएडीए का कहना है कि आर्मस्ट्रांग 1996 से प्रतिबंधित दवाएं ले रहे थे जिनमें खून का प्रवाह बढ़ाने वाले स्टेरॉयड्स थे। उनपर दूसरे खिलाड़ियों को डोपिंग की आदत डालने का आरोप है। आर्मस्ट्रांग का कहना है कि डोपिंग के सारे टेस्टों में मैं खरा उतरा हूँ। नियमानुसार आठ साल पुराने मामलों पर जाँच नहीं होती है, यूएसएडीए 17 साल पुराने मामले उठा रहा है। यह विच हंटिंग है। इस मामले में लड़ने से क्या फायदा? आपने फैसला कर लिया है। वास्तव में अभी तक के टेस्टों से उनके खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं हुए। कुछ खिलाड़ियों की गवाही और कुछ ई-मेल जैसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य उनके खिलाफ हैं। पर आर्मस्ट्रांग कहते हैं कि कैंसर और कीमोथिरैपी से पीड़ित मेरा शरीर स्टीरॉयड और दूसरी नशीली दवाएं झेलने लायक है ही नहीं।
उन्होंने पिछले साल खेल से रिटायरमेंट ले लिया। दो साल तक अमेरिका की संघीय सरकार ने उनके खिलाफ आपराधिक जाँच की थी, जिसमें वे बच गए। यूएसएडीए का कहना है कि हमारे पास 2009-10 के ब्लड सैम्पल हैं, जिनमें नशीली दवाएं मिली हैं, पर ये सैम्पल तो उनके चैम्पियन होने के चार-पाँच साल बाद के हैं।
डोप टेस्टिंग ने बड़े-बड़े खिलाड़ियों का करिअर चौपट किया है। बेन जॉनसन और मेरियन जोन्स जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं। साइकिलिंग यों भी नशीली दवाओं के लिए बदनाम है। आर्मस्ट्रांग के खिलाफ भी शुरू से आरोप लगते रहे हैं। पर पेशाब और खून की जाँच में वे निर्दोष साबित हुए। अब सिर्फ कुछ व्यक्तियों की गवाहियाँ हैं। आर्मस्ट्रांग उनका सामना क्यों नहीं करना चाहते? शायद वे जानते हैं कि उन्हें दोषी साबित करना साज़िशन तय है। ऐसे भी और वैसे भी। बेहतर है कि फीनिक्स पंछी की तरह फिर से उड़ान भरी जाए। वे कहते हैं मैने खुद को दोषी नहीं माना। पर अब मैं कैंसर मरीजों की लड़ाई लड़ूँगा। एक सवाल फिर भी बाकी रहा। उनके जीते खिताब वापस होंगे तो क्या वे दूसरे नम्बर पर आए खिलाड़ियों को मिलेंगे? किसी ने सुझाव दिया, नहीं किसी न मिलें। एक ब्लैकहोल या ध्रुवतारा बना रहे हमेशा के लिए।
कल्पना करें साइकिल पर बैठकर एक हफ्ते में बीस से ज्यादा मैराथन रेस पूरी करनी हों और प्रतियोगिता तीन हफ्ते तक लगातार चले। फ्रांस की टुअर डी फ्रांस प्रतियोगिता में 23 दिन के भीतर 3200 किलोमीटर की दूरी 21 अलग-अलग स्तरों पर एक स्ट्रेच में तय करनी होती है। अमेरिकी साइकिलिस्ट लैंस आर्मस्ट्रांग ने 1999 से 2005 तक लगातार सात बार इस प्रतियोगिता को जीता। पर वे इस वजह से महत्वपूर्ण नहीं हैं। बल्कि इस बात से हैं कि सन 1996 में उन्हें टेस्टिकल कैंसर हो गया था, जो फेफड़ों और दिमाग तक को प्रभावित कर रहा था। डॉक्टरों ने बच पाने की फिफ्टी-फिफ्टी सम्भावना जताई थी। सर्जरी और कीमोथिरैपी के बेहद तकलीफदेह दौर से गुजरते हुए उन्होंने ने न सिर्फ कैंसर को हराया, बल्कि उसके फौरन बाद लगातार सात बार टुअर डी फ्रांस का खिताब जीता। सन 2000 में ओलंपिक कांस्य पदक भी हासिल किया। दुनिया भर की तमाम प्रतियोगिताओं को वे जीतते रहे। खिलाड़ी के रूप में साइकिलिंग के ऑलटाइम बेस्ट एडी मर्क्स के बराबर माने गए। पर कैंसर जैसी व्याधि से लड़ने वालों में आर्मस्ट्रांग का कोई सानी नहीं। उनका फाउंडेशन कैंसर के मरीज़ों की मदद करता है। उसका संदेश है, हारो मत-जीतो।
आर्मस्ट्रांग के साथ हमें अपने युवराज सिंह की याद आती है, जिन्होंने हाल में कैंसर पर विजय पाई है। पिछले दिनों जब युवराज बीमार थे तब आर्मस्ट्रांग ने उन्हें जल्दी ठीक होने का संदेश दिया था। अमेरिका में इलाज के दौरान युवराज सिंह ने ट्वीट किया था कि आर्म्सट्रॉंग ने उन्हें जल्दी स्वस्थ होने का संदेश भेजा है। युवराज ने आर्मस्ट्रांग की जीवनी ‘इट्स नॉट अबाउट द बाइक’ को पढ़ा, जिससे उनका आत्मबल बढ़ा। युवराज ने आर्मस्ट्रांग को संदेश भेजा था और ट्वीट किया था कि मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। डोपिंग के दोषी पाए जाने वाले खिलाड़ी अक्सर कलंकित हो जाते हैं और जनता का समर्थन खो देते हैं। पर ख़िताब छीने जाने के बाद आर्मस्ट्रांग ने ट्वीट किया "लिवस्ट्रांग समर्थकों का शुक्रिया। ...हर दिन के आर्थिक सहयोग में आज 25 गुना की बढ़त हुई। धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद।" अचानक उनकी लोकप्रियता बढ़ गई। जनता उनके साथ हैं। अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग यूनियन यूसीआई भी उनके साथ है। खेल का सामान बनाने वाली कंपनी नाइके ने कहा है कि हम आर्मस्ट्रांग के साथ हैं।
यूएसएडीए का कहना है कि आर्मस्ट्रांग 1996 से प्रतिबंधित दवाएं ले रहे थे जिनमें खून का प्रवाह बढ़ाने वाले स्टेरॉयड्स थे। उनपर दूसरे खिलाड़ियों को डोपिंग की आदत डालने का आरोप है। आर्मस्ट्रांग का कहना है कि डोपिंग के सारे टेस्टों में मैं खरा उतरा हूँ। नियमानुसार आठ साल पुराने मामलों पर जाँच नहीं होती है, यूएसएडीए 17 साल पुराने मामले उठा रहा है। यह विच हंटिंग है। इस मामले में लड़ने से क्या फायदा? आपने फैसला कर लिया है। वास्तव में अभी तक के टेस्टों से उनके खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं हुए। कुछ खिलाड़ियों की गवाही और कुछ ई-मेल जैसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य उनके खिलाफ हैं। पर आर्मस्ट्रांग कहते हैं कि कैंसर और कीमोथिरैपी से पीड़ित मेरा शरीर स्टीरॉयड और दूसरी नशीली दवाएं झेलने लायक है ही नहीं।
उन्होंने पिछले साल खेल से रिटायरमेंट ले लिया। दो साल तक अमेरिका की संघीय सरकार ने उनके खिलाफ आपराधिक जाँच की थी, जिसमें वे बच गए। यूएसएडीए का कहना है कि हमारे पास 2009-10 के ब्लड सैम्पल हैं, जिनमें नशीली दवाएं मिली हैं, पर ये सैम्पल तो उनके चैम्पियन होने के चार-पाँच साल बाद के हैं।
डोप टेस्टिंग ने बड़े-बड़े खिलाड़ियों का करिअर चौपट किया है। बेन जॉनसन और मेरियन जोन्स जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं। साइकिलिंग यों भी नशीली दवाओं के लिए बदनाम है। आर्मस्ट्रांग के खिलाफ भी शुरू से आरोप लगते रहे हैं। पर पेशाब और खून की जाँच में वे निर्दोष साबित हुए। अब सिर्फ कुछ व्यक्तियों की गवाहियाँ हैं। आर्मस्ट्रांग उनका सामना क्यों नहीं करना चाहते? शायद वे जानते हैं कि उन्हें दोषी साबित करना साज़िशन तय है। ऐसे भी और वैसे भी। बेहतर है कि फीनिक्स पंछी की तरह फिर से उड़ान भरी जाए। वे कहते हैं मैने खुद को दोषी नहीं माना। पर अब मैं कैंसर मरीजों की लड़ाई लड़ूँगा। एक सवाल फिर भी बाकी रहा। उनके जीते खिताब वापस होंगे तो क्या वे दूसरे नम्बर पर आए खिलाड़ियों को मिलेंगे? किसी ने सुझाव दिया, नहीं किसी न मिलें। एक ब्लैकहोल या ध्रुवतारा बना रहे हमेशा के लिए।
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