Friday, June 29, 2012

सरबजीत या सुरजीत, गलती मीडिया की थी !!!

सरबजीत या सुरजीत के नाम को लेकर जो भी भ्रम फैला उसके लिए जिम्मेदारी पाकिस्तान सरकार के ऊपर डाली जा रही है, पर जो बातें सामने आ रहीं हैं इनसे लगता है कि गलती मीडिया से हुई है। दोनों देशों के मीडिया ने इस मामले में जल्दबाज़ी की। पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर ने इस मामले में स्पष्टीकरण देने में आठ घंटे क्यों लगाए यह ज़रूर परेशानी का विषय है।

28 जून के हिन्दू में अनिता जोशुआ की छोटी सी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार ने पहली बार भी सुरजीत सिंह का नाम लिया था, सरबजीत का नहीं। इस रिपोर्ट की निम्न लिखित पंक्तियों पर ध्यान दें-
'Farhatullah Babar, media adviser to President Asif Ali Zardari, can be clearly heard in his interviews to Indian television channels referring to Surjeet Singh as the Indian prisoner Pakistan planned to release. But after a Pakistani news channel referred to the person as Sarabjit, that became the name the media ran away with.'



गलती होना बड़ी बात नहीं है। गलतियाँ हो जाती हैं, पर किसी मीडिया हाउस ने इसे गलती नहीं माना।कम से कम मेरी जानकारी में सिवा हिन्दू के और कहीं यह बात देखने को नहीं मिली। बहरहाल आज हिन्दू ने अपने सम्पादकीय में इसे फिर से स्वीकार किया है। हिन्दू के सम्पादकीय के अंश देखें-
No excuses, no nitpicking. The entire media got the ‘Sarabjit to be released’ story wrong — including The Hindu, in its early editions before we stopped press at midnight to make the correction. If anything, the Sarabjit/Surjeet Singh mix-up has held a mirror to the beast that the media has become: easily excitable, know-it-all and supremely confident to the extent of being tone deaf even when Pakistan’s Presidential spokesman Farhatullah Babar was clearly saying on Indian television channels — and by extension to the tuned-in print media — that “Surjeet Singh” was entitled to be released. The media stands exposed but still does not have the grace to admit it was wrong, let alone introspect or apologise for giving false hope to the family of a condemned man. Worse, a section of the media has topped it all up with theories galore on why Islamabad made the “midnight switch”. ... 
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर दोनों देशों के मीडिया की भूमिका  मामले को सनसनीखेज बनाने की है। दोनों देशों की सरकारों ने काफी हद तक संयम रखा है, पर बात का बतंगड़ बनाने का मौका मिलते ही मीडिया चालू हो जाता है। इसकी वजह यह है कि मीडिया की नज़र में सनसनी फैलाना ही उसका काम है। दुर्भाग्य से टीवी नेटवर्क इस सनसनी को प्रफेशनलिज़्म समझते हैं और टीवी स्क्रीन पर उत्तेजना पैदा करने वाले को सुयोग्य एंकर माना जाता है।

सुरजीत सिंह की रिहाई का एक पहलू और है, जिसकी ओर भारतीय मीडिया ने भी ध्यान दिया है। वाघा सीमा पार करते ही भारतीय मीडिया ने उसे घेर लिया। उसके वक्तव्यों के आधार पर पाकिस्तानी मीडिया में इस आशय की खबरें छपी हैं कि सुरजीत ने मान लिया कि मैं जासूसी करने गया था। बीबीसी की वैबसाइट पर दी गई खबर में भी यह बात है, Wearing marigold garlands around his neck, Mr Singh admitted to reporters: "I had gone there for spying." इस बात का ज्यादा महत्व नहीं है, पर इतना ज़रूर है कि दोनों देशों के तमाम लोग जासूसी के आरोप में जेलों में बंद हैं। 


यह विषय बहुत सी बातों पर खोल कर चर्चा करने की अनुमति नहीं देता, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा के तमाम मसले इससे जुड़े होते हैं। अप्रेल 2011 में गोपाल दास पाकिस्तानी जेलों में 27 साल रहने के बाद रिहा होकर वापस आए तो उन्होंने स्वीकार किया कि मैं जासूसी के लिए गया था और भारत सरकार ने मुझे रिहा कराने के लिए कुछ नहीं किया। इसी तरह 1973 में कश्मीर सिंह को पाकिस्तान में मौत की सजा हो गई थी। पर मार्च 2008 में उन्हें रिहा कर दिया गया। उन्होंने ने भी कहीं कहा कि मैं जासूसी के लिए गया था और सरकार ने कुछ नहीं किया। इसे बीबीसी ने भारतीय समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से अपनी वैबसाइट पर प्रकाशित किया। "I did the duties assigned to me as a spy," Mr Singh said on Friday, the Press Trust of India (PTI) reports. अप्रेल 2010 में भारतीय उच्चायोग में काम करने वाली माधुरी गुप्ता को भारतीय सूचनाएं पाकिस्तान को देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 


दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास है। मीडिया की जिम्मेदारी माहौल को बेहतर बनाने की है। उससे उम्मीद की जाती है कि वह पुख्ता जानकारी देगा। गलती होने पर उसे जल्द से जल्द सुधार भी देगा। व्यवहार में ऐसा होता नहीं। 
रीडिफ में सीमा मुस्तफा का आलेख


 मीडिया से सुरजीत की बातचीत



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