Wednesday, June 27, 2012

सरबजीतः यह क्या हुआ?




देर रात टीवी की बहस देख और सुनकर जो लोग सोए थे उन्हें सुबह के अखबारों में खबर मिली कि धोखा हो गया, सरबजीत नहीं सुरजीत की रिहाई का आदेश है। दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस या देर से छूटने वाले अखबारों में ही यह खबर थी, पर फेसबुकियों ने सुबह सबको इत्तला कर दी। बहरहाल आज इस बात पर बहस हो सकती है कि धोखा हुआ या नहीं? पाकिस्तान सरकार जो कह रही है वह सही है या नहीं? मीडिया ने जल्दबाज़ी में मामले को उछाल दिया क्या? हो सकता है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर के ही किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति से गलती हो गई हो।

आज के हिन्दी अखबारों का सवाल है कि राष्‍ट्रपति आसिफ अली जरदारी क्‍यों पलट गए? राजस्थान पत्रिका के जालंधर संस्करण का शीर्षक है पाकिस्तान का दगा। कहीं शीर्षक है आधी रात को धोखा। बहरहाल विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सर्बजीत की रिहाई का स्वागत कर चुके हैं। आमतौर पर डिप्लोमेटिक जगत में बगैर पूर्व सूचना के ऐसा नहीं होता। पीटीआई के इस्‍लामाबाद संवाददाता रियाज उल लश्‍कर का भी कहना है कि राष्‍ट्रपति ने शायद फौज के दबाव में आकर पलटी मारी होगी। 


पाकिस्‍तान में मंगलवार शाम से ही मीडिया में खबरें चलने लगीं कि राष्‍ट्रपति ने फैसला किया है कि सरबजीत सिंह रिहा होंगे। इसे लेकर वहां मीडिया पर बहस भी चलने लगी। भारतीय विदेश मंत्री ने जरदारी को बधाई तक दे दी। तभी रात करीब 12 बजे राष्‍ट्रपति की ओर से सफाई जारी हुई कि रिहाई सरबजीत की नहीं, सुरजीत की हो रही है।


सुरजीत सिंह की रिहाई यों भी होनी थी, क्योंकि उनकी सजा पूरी हो चुकी है तब राष्ट्रपति को किसी आदेश पर दस्तखत करने की ज़रूरत क्या थी?  उन्‍हें तो सरबजीत पर ही फैसला करना था। दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार इससे पहले पाकिस्‍तानी मीडिया का भी रुख बदल गया। मीडिया पर बहस में बताया जाने लगा कि लोग इस तरह की रिहाई के खिलाफ हैं। बहस में एक मोहतरमा ने कहा कि ऐसे माहौल में जहां आतंकवादियों को पकड़ना और सजा दिलाना मुश्किल है, इस तरह से रिहाई का अच्‍छा संदेश नहीं जाएगा। पाकिस्‍तान के हालात बेहद खराब हैं। कहा जा रहा है कि आईएसआई ने उन्‍हें फैसला बदलने के लिए मजबूर कर दिया। 

भारत और पाकिस्तान के मीडिया में छह घंटे तक बहस चलने के बाद सरबजीत नहीं सुरजीत है का बयान ज़ारी हुआ। यह खबर गलत थी तो दस मिनट के अंदर उस दुरुस्त किया जा सकता था।

इस खबर को पाकिस्‍तानी मीडिया ने खास तवज्‍जो नहीं दी है। 'डॉन' की वेबसाइट पर एक छोटी सी खबर पोस्‍ट की गई है। इसमें राष्‍ट्रपति के प्रवक्‍ता का बयान छापा गया है, जिसमें उन्‍होंने कहा है कि सरबजीत नहीं सुरजीत की रिहाई होने वाली है। लेकिन खबर यह संदेश ज़रूर देती है कि पहले सरबजीत सिंह की रिहाई का ही फैसला हुआ था, क्‍योंकि इसमें कहा गया है कि पाकिस्‍तान ने 'यू टर्न' ले लिया है। एक और अखबार 'नेशन' ने खबर को प्रमुखता से पहले पन्‍ने पर छापा है और बताया है कि 'भारतीय जासूस' की रिहाई को लेकर राष्‍ट्रपति पलट गए हैं। एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने भी इसे महत्वपूर्ण जगह दी है। 


पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों को सरबजीत की रिहाई की सूचना नागवार गुज़री हिन्दू की संवाददाता अरिता जोशुआ ने लिखा हैः- The Presidency also sought to distance itself from the decision, with Mr. Babar adding that any reference to President Asif Ali Zardari in the decision was out of context. By the time the clarification came, the Jamaat-e-Islami (JI) and the Jamaat-ud-Da’wah (JuD) condemned the President for the decision to release Sarabjit Singh, describing the move as shameful.
The JI Ameer, Syed Munawar Hasan, also pointed out that Kasab had been sentenced by India without any evidence, and Pakistan had not provided him legal aid. In a Twitter message, the JuD said: “Not a single demand for Samjhota terrorists & innocent Pakistanis in Indian jails, instead convicted terrorist Sarabjit allowed to live. Shame.”
सरबजीत का मामलाः  सरबजीत सिंह को 1990 में लाहौर और फ़ैसलाबाद में हुए चार बम धमाकों के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था और अदालत ने उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई थी। सरबजीत की ओर से राष्ट्रपति जरदारी के समक्ष दया की अपील की गई है। पहले भी चार बार पाकिस्तान के राष्ट्रपति से उनकी रिहाई के लिए दया याचिका दायर की जा चुकी है। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट और पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ सरबजीत की दया याचिका ख़ारिज कर चुके हैं। मगर तत्‍कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी की दखलअंदाजी के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने सरबजीत की मौत की सज़ा अगले आदेश तक रोक दी थी। 
सुरजीतः सुरजीत सिंह पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में 30 साल से बंद हैं। उन्‍हें पहले फाँसी की जजा हुई थी पर बेनज़ीर भुट्टो के कार्यकाल में सन 1989 में उनकी सजा उम्र कैद में तब्कीदील कर दी गई। यह सजा उन्‍होंने पूरी भी कर ली है। इसके बावजूद पाकिस्‍तान ने उन्‍हें अब तक रिहा नहीं किया है। सुरजीत 1982 में गलती से सीमा पार कर पाकिस्‍तानी क्षेत्र में चले गए थे। उन्‍हें जासूसी के आरोप में पकड़ लिया गया था। 



मेरे भाई के साथ ऐसा क्यों किया? सीएनएन आईबीएन सरबजीत की बहन की प्रतिक्रिया


सरबजीत नही सुरजीतः पाकिस्तानी चैनल की खबर









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