Sunday, August 1, 2010

तालिबान खतरनाक क्यों हैं?



अमेरिका ने इराक में पैर न फँसाए होते तो शायद उसे कम बदनामी मिली होती। इराक के मुकाबले अफगानिस्तान की परिस्थितियाँ फर्क थीं। इराक में सद्दाम हुसेन की तानाशाही ज़रूर थी, पर वह अंधी सरकार नहीं थी। अफगानिस्तान तो सैकड़ों साल पीछे जा रहा था। तालिबानी शासन-व्यवस्था सैकड़ों साल पीछे जा रही थी। बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को तोड़कर तालिबान ने साफ कर दिया था कि उनके कायम रहते उस समाज में आधुनिकता पनप नहीं सकेगी। तालिबान अपने आप सत्ता पर आए भी  नहीं थे। उन्हें स्थापित किया था पाकिस्तानी सेना ने। और तैयार किया था पाकिस्तानी मदरसों नें। 

तालिबान-शासन में सबसे बुरी दशा स्त्रियों की हुई थी। उनकी पराजय के बाद अफगान स्त्रियों ने राहत की साँस ली, पर वह साँस सिर्फ साँस ही थी राहत नहीं। साथ के चित्र को देखें। यह 9 अगस्त की टाइम मैगज़ीन का कवर पेज है। इस लड़की का नाम है आयशा। इसके ससुराल में इसके साथ गुलामों जैसा बर्ताव होता था। इसपर यह ससुराल से भाग खड़ी हुई। 

स्थानीय तालिबान कमांडर ने पति का पक्ष लिया। आयशा के देवर ने उसे पकड़ा और उसके पति ने चाकू से उसके कान और नाक काट ली। यह तालिबान न्याय है। पर यह दस साल पहले की बात नहीं है। यह पिछले साल की बात है। यानी तालिबान आज भी ताकतवर हैं। 

पाकिस्तान कोशिश कर रहा है कि हामिद करज़ाई की सरकार तालिबान के साथ सुलह करके उन्हें सत्ता में शामिल कर ले। अमेरिका भी शायद इस बात से सहमत हो गया है। पर क्या तालिबान की वापसी ठीक होगी? तमाम लोग चाहते हैं कि अमेरिका को अफगानिस्तान से हट जाना चाहिए। ज़रूर हटना चाहिए, पर उसके बाद क्या होगा? कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार है?

9 comments:

  1. दरसल अमेरिका और पाकिस्तान दोनों ही इंसानियत के दुश्मनों का साथ तन,मन,धन से दे रहें हैं और यही रोग भारतीय व्यवस्था में भी बढ़ता जा रहा है ..?

    ReplyDelete
  2. सर, तालिबान और पंजाब का आतंकवाद शीतयुद्ध की ही नाजायज सन्ताने हैं। दक्षिणपंथियों को हथियार और पैसा देकर लोगों के अतीत मोह (ओल्ड इज गोल्ड) को हथियार बनाया गया। अतीत मोह, जिसमें सिर्फ स्त्रियों की यौन सुचिता ही इज्जत होती है, और दूसरे धर्म के अनुयायियों की गर्दन काटना या उन्हें एके-४७ से भूनना ही धर्म। अमेरिका ने सत्तर-अस्सी के दशक में अरबों डालर बहा कर पाकिस्तान पर प्यार लूटाकर ये संतानें खड़ी कीं और अब ये अपने हो जाने को साबित कर रही हैं तो अमेरिका परेशान है, दुनिया परेशान है। दमन से स्थितियां नहीं सुधरेंगी। इससे प्रतिरोध बढ़ता ही रहेगा। समाज अपने ही आघातों से सुधरता है। अमेरिका सुधारने का ठेका लेकर चले तो इसकी कीमत चुकाता रहे।

    ReplyDelete
  3. और तालिबानों की समर्थक हमारी सरकार ....जय हो .....सोहराबुद्दीन जैसों के बारें मैं पेट दुखा दुखाकर सरकार क्या कर रहीं है.....वो दिन दूर नहीं जब आप को ये सब देखने के लिये पाकिस्तान या अफगानिस्तान नहीं जाना पङेगा ....यहीं आपके आस पास होगा........

    ReplyDelete
  4. kyaa hoga us desh ka bhavishya jo taliban ke giraft se dashko baad chuta aur fir bhi usne apna nam "islamik republic of afghanistan " rakha. kuchh log itne pichde hote hain jo dharma uar parampara chhodna hi nahi chahte. agr hampar dharma ke thekedaro ne itna julma kiya hota aur hum ladkar unse jeete hota to hamare jivan me kabhi dharma nahi aata par afghanistan to islamik republic hi rahega. islam me jitni buri sthiti striyo ki hai utni kahi nahi hai. haa jaha bhi ashiksha hai waha striyo ki halat kharab hai par islam me to padhe likhe logo tak me hai. UAE me ladkiyo ko driving licence nahi mil sakta aaadi. talibaan ne to bahut buri sthiti kar di thi. unke raj me to aisa tak tha ki purush doctor mahilao ka ilaj nahi kar sakte aur mahilaye doctor ban nahi sakti. agar mahilaye beemar hui to unhe marna hi tha. islam me mahilao ki sabse buri sthiti haai is bat par kuchh fake secularist hain unki aankhe tedhi ho jayengi mujhpar aur aankade ginane lagenge par ye maine dekha hai aur mai janta hu.

    ReplyDelete
  5. sir nice piece.
    ajay shukla, kanpur

    ReplyDelete
  6. पाकिस्तान और अमेरिका भारत क़े मामले में एक सिक्के क़े दो पहलु है.

    ReplyDelete
  7. हमें पाकिस्तान और अमेरिका एक सिक्के के दो पहलू लगते हैं, पर ऐसा नहीं है। पाकिस्तान का कट्टरपंथी तत्व हमारे खिलाफ है। वह वहाँ मध्ययुगीन धर्म आधारित राज-व्यवस्था चाहता है। यदि ऐसा नहीं हुआ और वहाँ आधुनिक धर्म निरपेक्ष व्यवस्था बन गई तो फिर पाकिस्तान को अलग देश बनाने की ज़रूरत ही क्या थी। इसलिए कट्टरपंथी तत्व पाकिस्तान को अनंतकाल तक भारत-विरोधी देश बनाकर रखना चाहेंगे। इस प्रयास में वे 1990 के पले तक अमेरिका से मदद लेते थे। तब तक भारत ने भी अमेरिका के प्रति कठोर नीति अपना रखी थी। ङमारा झुकाव रूस की तरफ था। 1990 के बाद से परिस्थितियाँ बदलीं हैं। मुस्लिम देशों के बीच अमेरिका अलोकप्रिय हुआ है। भारत मे अमेरिका का विरोध पहले से काफी कम है। साथ ही अमेरिका कट्टरपंथी इस्लाम का समर्थन नहीं कर सकता। उसे पाकिस्तान की ज़रूरत है, क्योंकि कट्टरपंथियों से लड़ने के अलावा उसके सामने दूसरा रास्ता नहीं है। बेशक अमेरिका से हमारी अनेक असहमतियाँ हैं, पर पाकिस्तान में कट्टरता के बरक्स वह हमारे विरोध में खड़ा नहीं हो पाएगा।

    ReplyDelete
  8. Anonymous6:14 PM

    it is very bad

    ReplyDelete