अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक तरफ कोरोना वायरस की मार से पीड़ित हैं कि जॉर्ज
फ़्लॉयड के प्रकरण ने उन्हें बुरी तरह घेर लिया है। आंदोलन से उनकी नींद हराम है। क्या
वे इस साल के चुनाव में सफल हो पाएंगे? चुनाव-पूर्व ओपीनियन पोल खतरे की घंटी बजा रहे हैं। ऐसे में गत 26 मई को ट्रंप
ने एक ऐसा ट्वीट किया, जिसे पढ़कर वह अंदेशा पुख्ता हो रहा है कि चुनाव हारे तो वे
राष्ट्रपति की कुर्सी नहीं छोड़ेंगे। यानी नतीजों को आसानी से स्वीकार नहीं
करेंगे। और इससे अमेरिका में सांविधानिक संकट पैदा हो जाएगा।
Sunday, June 14, 2020
Saturday, June 13, 2020
चीन का मुकाबला कैसे करें?
भारत और चीन के
बीच लद्दाख में चल रहा टकराव टल भी जाए, यह सवाल अपनी जगह रहेगा
कि चीन से हमारे रिश्तों की दिशा क्या होगी?
क्या हम उसकी
बराबरी कर पाएंगे? या हम उसकी धौंस में आएंगे? पर पहले वर्तमान विवाद के पीछे चीनी मंशा का पता लगाने को
कोशिश करनी होगी। तीन बड़े कारण गिनाए जा रहे हैं। भारत ने वास्तविक नियंत्रण के
पास सड़कों और हवाई पट्टियों का जाल बिछाना शुरू कर दिया है। हालांकि तिब्बत में
चीन यह काम काफी पहले कर चुका है, पर वह भारत के साथ हुई
कुछ सहमतियों का हवाला देकर कहता है कि ये निर्माण नहीं होने चाहिए।
दूसरा कारण है
दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना की भूमिका। हम कमोबेश
चतुष्कोणीय सुरक्षा व्यवस्था यानी ‘क्वाड’ में शामिल हैं। यों हम औपचारिक रूप से
कहते हैं कि यह चीन के खिलाफ नहीं है। इसी 4 जून को भारत और
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौते पर दस्तखत किए हैं, जिसपर चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कड़ी प्रतिक्रिया
व्यक्त की है। अखबार ने चीनी विशेषज्ञ सु हाओ के हवाले से कहा है कि भारत अपनी
डिप्लोमैटिक स्वतंत्रता का दावा करता रहा है,
पर देखना होगा कि
वह कितना स्वतंत्र है।
Monday, June 8, 2020
लपटों से घिरा ट्रंप का अमेरिका
लम्बे अरसे से साम्यवादी कहते रहे हैं, ‘पूँजीवाद हमें वह रस्सी बनाकर बेचेगा, जिसके सहारे हम
उसे लटकाकर फाँसी देंगे।’ इस उद्धरण का श्रेय मार्क्स, लेनिन, स्टैलिन और माओ जे दुंग
तक को दिया जाता है और इसे कई तरह से पेश किया जाता है। आशय यह कि पूँजीवाद की
समाप्ति के उपकरण उसके भीतर ही मौजूद हैं। पिछली सदी के मध्यकाल में ‘मरणासन्न पूँजीवाद’ और ‘अंत का प्रारम्भ’ जैसे वाक्यांश वामपंथी
खेमे से उछलते रहे। हुआ इसके विपरीत। नब्बे के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद
दुनिया को लगा कि अंत तो कम्युनिज्म का हो गया।
उस परिघटना के तीन दशक बाद ‘पूँजीवाद का संकट’ सिर उठा रहा है। अमेरिका में इन दिनों जो हो रहा है, उसे
पूँजीवाद के अंत का प्रारम्भ कहना सही न भी हो, पश्चिमी उदारवाद के अंतर्विरोधों
का प्रस्फुटन जरूर है। डोनाल्ड ट्रंप का उदय इस अंतर्विरोध का प्रतीक था और अब
उनकी रीति-नीति के विरोध में अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिकों का आंदोलन उन
अंतर्विरोधों को रेखांकित कर रहा है। पश्चिमी लोकतंत्र के सबसे पुराने गढ़ में
उसके सिद्धांतों और व्यवहार की परीक्षा हो रही है।
Sunday, June 7, 2020
हथनी की मौत पर राजनीति
केरल में एक गर्भवती
हथनी की दर्दनाक मौत की जहाँ देशभर ने भर्त्सना की है, वहीं इस मामले के राजनीतिकरण
ने हमारा ध्यान बुनियादी सवालों से हटा दिया है। केरल पुलिस ने इस सिलसिले में एक
व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। तीन संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है और दो अन्य की
तलाश की जा रही है। जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह शायद पटाखों की आपूर्ति करता है।
दूसरे आरोपी बटाई पर केले की खेती करने वाले छोटे किसान हैं। क्या पुलिस की जाँच
सही दिशा में है? केरल की राजनीति इन दिनों
ध्रुवीकरण का शिकार हो रही है। राज्य विधानसभा चुनाव के लिए अब एक साल से भी कम
समय बचा है, इसलिए यह परिघटना राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गई है।
राजनीति के कारण
यह परिघटना विवाद का विषय बनी, पर इसके कारण हम मूल मुद्दे से भटक गए हैं। एलीफैंट
टास्क फोर्स के चेयरमैन प्रोफेसर महेश रंगराजन ने हाल में एक चैनल से बातचीत में
इससे जुड़े कुछ पहलुओं को उठाया है। उन्होंने कहा कि हर साल 100 हाथियों की हत्या
कर दी जाती है। हाथी सबसे सीधा जानवर होता है और वह खुद भी इंसानों से दूरी रखता
है। लेकिन कभी-कभी भूख प्यास के कारण ये बस्तियों में चले जाते हैं। उनपर सबसे
बड़ा खतरा हाथी दांत के तस्करों का है। ये तस्कर हाथियों को मारकर उनके दांतों की
तस्करी करते हैं।
भविष्य का मीडिया
अखबारों का रूपांतरण किस तरह किया जा सकता है, इसे देखने के लिए दुनिया के अखबारों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए. एक बात तय है कि कागज के बजाय अब सूचनाएं वैब पर आ रही हैं. भविष्य के माध्यम क्या होंगे, यह बताना मुश्किल है, पर उसकी दिशा देखी जा सकती है. दूसरे सूचना के माध्यमों में अब प्रिंट, टीवी और रेडियो यानी लिखित-पठित और दृश्य-श्रव्य दोनों का समावेश होगा. यही वैब की ताकत है. अब ज्यादातर अखबार वैब पर आ गए हैं और वे वीडियो, वैबकास्ट और लिखित तीनों तरह की सामग्रियाँ पेश कर रहे हैं. तीनों के अलग-अलग प्रभाव हैं और यही समग्रता मीडिया की विशेषता बनेगी. जहाँ तक साख का सवाल है, यह मीडिया संस्थान पर निर्भर करेगा कि उसकी दिलचस्पी किस बात में है. मैं इस पोस्ट के साथ हिन्दू की एक क्लिप शेयर कर रहा हूँ, जिसमें भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि है. ऐसी छोटी क्लिप से लेकर घंटे-दो घंटे की बहसें आने वाले वक्त में अखबारों की वैबसाइटों में मिलेंगी.
https://www.thehindu.com/news/national/india-china-border-standoff/article31755218.ece?homepage=true&fbclid=IwAR2jK-rNsCbxUQ1Nad1BMLgJ38T5T-FYdu-XVaSskm857Fjxib_0VkZ0_qY
Subscribe to:
Posts (Atom)