Sunday, June 14, 2020

लोकतांत्रिक महा-दुर्घटना के मुहाने पर अमेरिका


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक तरफ कोरोना वायरस की मार से पीड़ित हैं कि जॉर्ज फ़्लॉयड के प्रकरण ने उन्हें बुरी तरह घेर लिया है। आंदोलन से उनकी नींद हराम है। क्या वे इस साल के चुनाव में सफल हो पाएंगे? चुनाव-पूर्व ओपीनियन पोल खतरे की घंटी बजा रहे हैं। ऐसे में गत 26 मई को ट्रंप ने एक ऐसा ट्वीट किया, जिसे पढ़कर वह अंदेशा पुख्ता हो रहा है कि चुनाव हारे तो वे राष्ट्रपति की कुर्सी नहीं छोड़ेंगे। यानी नतीजों को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। और इससे अमेरिका में सांविधानिक संकट पैदा हो जाएगा। 

अमेरिका में सत्ता का हस्तांतरण अभी तक सदाशयता से होता रहा है। हारने वाला प्रत्याशी परिणाम घोषित होने के पहले ही जीतने वाले को बधाई दे देता है। जब इस बात की चर्चा हुई, तो ट्रंप ने सफाई दी है कि हार गया, तो चुपचाप हट जाऊँगा। पर सवाल यह नहीं है कि हार गए, तो। साव यह है कि क्या वे हार को हार मान लेंगे? क्या उसमें तकनीकी खामियाँ नहीं निकालेंगे? यह सवाल क्यों कि ट्रंप हारे तो हटेंगे नहीं? नहीं हटेंगे, तो करेंगे क्या? संशयी-संसार को लगता है कि 3 नवंबर, 2020 को दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में कोई बड़ी दुर्घटना होगी। शायद एक सफल लोकतंत्र सिर के बल खड़ा हो जाएगा। ऐसा सांविधानिक संकट जिसका हल संभव न हो। और जिसके बारे में पहले कभी सोचा भी नहीं गया हो। मान लिया वोट गिनते समय बिजली चली जाए। पेटियाँ बदल जाएं या कुछ और डर्टी ट्रिक हो जाए, जिसके बारे में आज आप सोच भी नहीं पाते हों।

किस बात की पेशबंदी?
शायद ट्रंप किसी बात की पेशबंदी कर रहे हैंउनका ट्वीट मेल-इन बैलट यानी डाक मतपत्रों के बाबत था। अमेरिका में मेल-इन बैलट काफी होते हैं। कोरोना वायरस के कारण इस बार लगता है कि काफी लोग मेल-इन बैलट का इस्तेमाल करेंगे। ट्रंप ने अपने ट्वीट में लिखा, ऐसा असंभव (शून्य) है कि मेल-इन बैलट में धोखाधड़ी नहीं होगी। मेल बॉक्स लूटे जाएंगे, फर्जी बैलट बनाए जाएंगे और फर्जी बैलट छापे और डाले भी जाएंगे। चुनाव में धांधली होगी…
यह ट्वीट एक अंदेशे को जन्म दे रहा है। ट्रंप साहब के ट्वीट अक्सर बेपर के होते हैं, पर वे उनकी मनोदशा को भी व्यक्त करते हैं। उन्होंने इसबार न तो अपनी तारीफ की है और न किसी की खिंचाई, बल्कि अमेरिकी चुनाव प्रणाली को लेकर सवाल खड़ा किया है। क्या यह सवाल वाजिब है? भारत में ईवीएम को लेकर जिस तरह सवाल खड़े होते हैं, करीब वैसे ही। पर भारत में ईवीएम का सवाल तब खड़ा हुआ, जब बूथ कैप्चरिंग की शिकायतें आईं। अब ट्रंप साहब बूथ कैप्चरिंग जैसा ही आरोप सिस्टम पर लगा रहे हैं। क्या यह वाजिब आरोप है?

सच है कि आरोप लगाने में ट्रंप साहब की सानी नहीं है। 2016 में उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति चुनाव में 30 से 50 लाख फर्जी वोट पड़े हैं। यह बात दीगर है कि बावजूद इसके वे जीते। पर इसबार हारे तो क्या वे आरोप नहीं लगाएंगे? आरोप ही क्यों इसके आगे भी कुछ कर सकते हैं क्या? मेल-इन बैलट आमतौर पर शहरी इलाकों में आते हैं और ज्यादातर डेमोक्रेट्स के पक्ष में जाते हैं। इनकी गिनती कई दिन तक चलती है। पहले इनका नंबर बहुत ज्यादा नहीं होता था, पर शायद इसबार होगा। शायद इतना हो कि बाजी पलट दें। कोई वजह है कि ट्रंप ऐसी परिस्थिति का वर्णन कर रहे हैं, जो पैदा हो सकती है। वे न केवल अपने देश की चुनाव प्रणाली को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि यह ऐलान भी कर रहे हैं कि मुकाबला काँटे का हुआ, तो अमेरिकी व्यवस्था में इसबार कोई बड़ा हेरफेर हो जाएगा। इस अंदेशे को लेकर कई विशेषज्ञ परेशान हैं।

क्या वे हारेंगे?
2016 में ट्रंप की जीत के पीछे पेंसिल्वेनिया, मिशीगन और विस्कांसिन में उनकी जीत थी। इनमें उनकी जीत का अंतर 70,000 से भी कम का था। इसबार हो सकता है कि ट्रंप बेहद कम अंतर से इन राज्यों में जीत रहे हों और मेल-इन बैलट की गिनती से नतीजा बदल जाए। तो क्या ट्रंप साहब नतीजों को मान लेंगे? 2016 के चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप की बातें भी हुईं थीं। इस साल के शुरू में ट्रंप के खिलाफ संसद में आए महाभियोग की पृष्ठभूमि भी राष्ट्रपति के चुनाव से जुड़ी थी। अब कोरोना की महामारी के बाद हालात कुछ और बिगड़े हैं, इसलिए चुनाव में डर्टी ट्रिक्स को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं।

इन दिनों चर्चा में एमहर्स्ट कॉलेज के प्रोफेसर लॉरेंस डगलस की किताब है, विल ही गो?’ उन्होंने ऐसे सिनारियो का जिक्र किया है, जिसमें ट्रंप हार गए हैं और पद से हटनेको तैयार नहीं है। इस किताब में भी उस सांविधानिक अराजकता की कल्पना की गई है, जो ट्रंप के चुनाव से जुड़ी है। लॉरेंस डगलस को लगता है कि अमेरिका की सांविधानिक व्यवस्था ऐसे क्षणों के लिए तैयार नहीं है।

उन्हें लगता है कि जैसे रूस के चेर्नोबिल एटमी हादसे के पीछे संयंत्र का संरचनात्मक दोष था, उसी तरह अमेरिका की सांविधानिक व्यवस्था में ऐसी स्थितियों से निपटने का माद्दा नहीं है। हमें देखना होगा कि संघीय व्यवस्था के पास वे कौन से अधिकार और कानून हैं, जो इस नैया को पार लगाएंगे। हमारे पास इस वक्त एक ऐसा राष्ट्रपति है, जो मामूली अंतर से परास्त हुआ, तो हार नहीं मानेगा। पर आसार इस बात के हैं कि फैसला बहुत छोटे अंतर से होने वाला है। इस बार भी तीन राज्य निर्णायक होंगे। मिशीगन, पेंसिल्वेनिया और विस्कांसिन।

इलेक्शन मैल्टडाउन!
इन सवालों को कानून और राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर रिचर्ड हैसेन ने भी अपनी किताब में उठाया है। उन्होंने इलेक्शन मैल्टडाउन: डर्टी ट्रिक्स, डिस्ट्रस्ट एंड द थ्रैट टु अमेरिकन डेमोक्रेसीमें चेतावनी दी है कि इस चुनाव में दंद-फंदों की भरमार होगी। वोटरों को भ्रमित करने, डराने, चुनाव मशीनरी को प्रभावित करने का अंदेशा है और विदेशी हस्तक्षेप का खतरा। 2016 और 2018 के चुनावों में ऐसा हुआ है और इसबार अंदेशा पहले से ज्यादा है। प्रोफेसर हैसेन देश के सबसे सम्मानित विधिवेत्ताओं में गिने जाते हैं।

इस किताब में जो तमाम अंदेशे गिनाए गए हैं उनमें एक यह भी है कि कोई प्रत्याशी चुनाव परिणामों को मानने से ही इंकार कर दे, तो क्या होगा? लेखक का कहना है कि हो सकता है मेरा अंदेशा जरूरत से ज्यादा हो, पर वह है। लड़ाई काँटे की हुई, तो अंदेशा और ज्यादा है। इसलिए मनाइए कि फैसला साफ-साफ हो, हालांकि लगता है कि 2020 की लड़ाई काँटे की होने वाली है। बीस साल पहले बुश और अल गोर का मुकाबला जैसा काँटे का हुआ था, वैसा ही। ट्रंप हारे और हटने से इंकार कर दिया, तब क्या होगा? क्या सेना की मदद लेनी होगी?

फिर बाहरी खतरे हैं। इसमें आतंकी हमला भी शामिल है। सायबर हमला भी हो सकता है, जिससे वोटिंग पर असर पड़े या परिणाम बदल जाए। जो बिडेन और उनके बेटे हंटर और यूक्रेन की एक नेचुरल गैस कंपनी बुरिस्मा से जुड़े दस्तावेज अचानक सामने आने लगें। इनमें कुछ दस्तावेज फर्जी हों। मशीनी गड़बड़ियाँ पैदा हो सकती हैं। कोई रूसी हैकर सारे सिस्टम को हैक कर ले। कुछ राज्य वोटिंग की नई तकनीक का इस्तेमाल करने वाले हैं। उनमें खामियाँ पैदा हो जाएं वगैरह।

खिसकती जमीन
कोरोना पैंडेमिक और ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के कारण ट्रंप के चुनाव आसार बिगड़ते जा रहे हैं। क्या उन्हें दुबारा राष्ट्रपति बनाने वाले 270 वोट मिलेंगे? सीएनएन न्यूज ने पिछले हफ्ते हुए पोल के कुछ परिणामों को सामने रखा है, जिनपर नजर डालें:
·      एरिज़ोना में फॉक्स न्यूज़ के पोल के अनुसार जो बिडेन ट्रंप से 42 के मुकाबले 46 फीसदी वोट पाकर आगे हैं।
·      ओहायो में फॉक्स न्यूज़ का पोल बता रहा है कि बिडेन के 45 और ट्रंप के 43 फीसदी वोट हैं।
·      विस्कांसिन में फॉक्स न्यूज़ के पोल में बिडेन को 49 और ट्रंप को 40 फीसदी वोट मिल रहे हैं।
·      टेक्सास में क्विनीपिएक विश्वविद्यालय के एक पोल में ट्रंप को 44 और बिडेन को 43 फीसदी वोट मिले हैं।

एरिज़ोना तो रिपब्लिकन पार्टी का गढ़ है। इस इलाके से राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता प्राप्त करने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी के अंतिम प्रत्याशी बिल क्लिंटन थे, जो 1996 के चुनाव में यहाँ से जीत पाए थे। सीएनएन के डेविड राइट ने इन हालात की गणना करते हुए कहा है कि इस साल ओहायो, विस्कांसिन और एरिज़ोना में ट्रंप के अभियान में विज्ञापनों पर करीब एक डॉलर खर्च किया जा चुका है, पर वोटर अभी तक असमंजस में है। राइट का कहना है कि ट्रंप यदि टेक्सास हार गए तो फिर वे उन सब जगहों पर जीत जाएं, जहाँ 2016 में जीते थे, तब भी उन्हें 270 वोट नहीं मिलेंगे।



1 comment:

  1. कहाँ जा रहे हैं लोकतंत्र इक्कीसवीं सदी के साफ नजर आ रहा है आपके इस लेख से।

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