Sunday, June 7, 2020

हथनी की मौत पर राजनीति


केरल में एक गर्भवती हथनी की दर्दनाक मौत की जहाँ देशभर ने भर्त्सना की है, वहीं इस मामले के राजनीतिकरण ने हमारा ध्यान बुनियादी सवालों से हटा दिया है। केरल पुलिस ने इस सिलसिले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। तीन संदिग्धों से पूछताछ की जा रही है और दो अन्य की तलाश की जा रही है। जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह शायद पटाखों की आपूर्ति करता है। दूसरे आरोपी बटाई पर केले की खेती करने वाले छोटे किसान हैं। क्या पुलिस की जाँच सही दिशा में है? केरल की राजनीति इन दिनों ध्रुवीकरण का शिकार हो रही है। राज्य विधानसभा चुनाव के लिए अब एक साल से भी कम समय बचा है, इसलिए यह परिघटना राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गई है।

राजनीति के कारण यह परिघटना विवाद का विषय बनी, पर इसके कारण हम मूल मुद्दे से भटक गए हैं। एलीफैंट टास्क फोर्स के चेयरमैन प्रोफेसर महेश रंगराजन ने हाल में एक चैनल से बातचीत में इससे जुड़े कुछ पहलुओं को उठाया है। उन्होंने कहा कि हर साल 100 हाथियों की हत्या कर दी जाती है। हाथी सबसे सीधा जानवर होता है और वह खुद भी इंसानों से दूरी रखता है। लेकिन कभी-कभी भूख प्यास के कारण ये बस्तियों में चले जाते हैं। उनपर सबसे बड़ा खतरा हाथी दांत के तस्करों का है। ये तस्कर हाथियों को मारकर उनके दांतों की तस्करी करते हैं।

विवाद सिर्फ इस बात पर नहीं है कि हत्या किन लोगों ने की और उनका इरादा क्या था, बल्कि विवाद इस बात को लेकर भी है कि हत्या हुई कहां? इसे तूल तब मिला, जब पशु अधिकारों के लिए काम करने वाली बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने कहा कि केरल में हाथियों के हत्यारों को राज्य सरकार का संरक्षण मिलता है और मल्लापुरम ऐसी घटनाओं के कुख्यात है। यह भारत के सबसे हिंसक ज़िलों में एक है। यहां सड़कों पर ज़हर फेंक दिया जाता है जिसे खाकर 300-400 पक्षी या कई कुत्ते मर जाते हैं वगैरह।

पहले खबर थी कि यह घटना मल्लापुरम में हुई। बाद में केरल सरकार ने कहा कि नहीं पलक्कड़ जिले में हुई। मल्लापुरम मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और पलक्कड़ हिन्दू बहुल। मेनका गांधी का आशय क्या था, इसे भी समझना होगा। उनका आरोप केवल मुस्लिम बहुल क्षेत्र को लेकर नहीं था। उन्होंने मंदिरों में हाथियों की दुर्दशा का भी उल्लेख किया था। इन बातों के तमाम तरह के निष्कर्ष हैं। दक्षिण में ज्यादातर मंदिरों का प्रबंधन सरकार के जिम्मे है। इसीलिए घूम फिरकर बातें राजनीतिक रंग पकड़ लेती हैं।

मंदिरों के व्यवस्थापक कहते हैं कि जब उत्सवों में हाथियों को निकाला जाता है, तब उनके पैर बाँध दिए जाते हैं, ताकि वे अपने आप को या श्रद्धालुओं को घायल न कर दें। यह सब क्रूर तरीके से नहीं होता है। इन मामलों को लेकर अदालतों में कई तरह के मुकदमे भी हैं। मेनका गांधी के इस बयान को लेकर भी पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। कुल मिलाकर बातों की दिशा बदल गई है और उन्होंने राजनीतिक रंग पकड़ लिया है। हथनी की कारुणिक मौत को भुलाकर हम राजनीति खेलने लगे हैं, जो उचित नहीं है।

इतना स्पष्ट है कि हथनी ने पटाखों से भरा अनन्नास खा लिया था, जो उसके मुँह में फट गया। घबराकर वह कई दिन तक पलक्कड़ जिले से होकर बहने वाली वेलियार नदी में खड़ी रही, जहाँ 27 मई को उसकी मौत हो गई। उसकी चिकित्सा करने के प्रयास विफल रहे, क्योंकि उसे नदी से बाहर निकाल कर बेहोश नहीं किया जा सकता था। इसके पहले अप्रेल के महीने में कोल्लम जिले के पाथनापुरम वन क्षेत्र में भी इन्हीं परिस्थितियों में एक हथनी की मौत हुई थी।

इस मौत को मामूली बात कहकर नहीं छोड़ा जा सकता। कुछ लोगों का कहना है कि कोरोना के दौर में जब इंसानों के जीवन पर खतरा पैदा हो गया है, तब एक हथनी की मौत को तूल देना गलता है। सच यह है कि कोरोना का प्रकोप भी इसीलिए सामने हैं, क्योंकि हमने प्राकृतिक संतुलन की उपेक्षा की। इस हत्या से जुड़े सवालों के जवाब मिलने ही चाहिए।

सवाल है कि हथनी को क्या जानबूझकर मारा गया, या गलती से उसकी मौत हो गई? क्या केरल में हाथियों की मौत के पीछे कोई साजिश है? क्या पटाखों से भरा अनन्नास जंगली सुअरों को मारने के लिए रखा गया था, जो फसल को बर्बाद कर जाते हैं? हाथी भी खेतों को नुकसान पहुँचाते हैं, इसलिए यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि कहीं यह हाथियों को मारने का उपक्रम तो नहीं था। रेड लिस्ट ऑफ थ्रैटंड स्पीसीज के अनुसार भारतीय हाथी के विलुप्त होने का खतरा है।

कुछ दशक पहले तक भारत में हाथियों की संख्या करीब 10 लाख थी, जो सन 2017 में 27,312 रह गई थी। देश में पहली बार हाथियों की जनगणना के बाद इस संख्या का निर्धारण हुआ था। उसके पहले 2012 में भी एक गणना हुई थी, पर उसमें कई दोष थे। अलबत्ता 2017 की संख्या 2012 की संख्या से कम थी। अगस्त 2017 में जो संख्या बताई गई थी, उसके अनुसार कर्नाटक में सबसे ज्यादा 6,049, उसके बाद असम में 5,719 और तीसरे नम्बर पर केरल में 3,054 हाथी थे।

भारतीय संस्कृति में हाथी का महत्वपूर्ण स्थान है। हजारों साल से वह हमारा मित्र और मददगार है। दक्षिण भारत में तो हाथियों का विशेष सम्मान है। आर्थिक विकास के कारण मनुष्य और हाथियों के हितों में टकराव हो रहा है। हाथी दांत और उनकी हड्डियों की अच्छी कीमत मिलने के कारण भी उनकी हत्या हो रही है। यह बात छिपी नहीं है कि हाथियों की हत्या करने वाले गिरोह देश में सक्रिय हैं। यह चिंताजनक स्थिति है।

हथनी की मौत की खबर जब पहली बार आई, तब कहा गया कि उसकी मौत मल्लापुरम जिले में हुई है। बाद में केरल सरकार ने स्पष्ट किया कि यह इलाका मल्लापुरम में नहीं, पलक्कड़ जिले में पड़ता है। सवाल यह भी था कि हथनी यहाँ कैसे आ गई? यह इलाका साइलैंट वैली के अभयारण्य के भी करीब है और लगता है कि हथनी भोजन की तलाश में सौ-सवा सौ किलोमीटर चलकर यहाँ तक आ गई। विश्वास के साथ कहना मुश्किल है कि उसने अनन्नास कहाँ खाया। मल्लापुरम में या पलक्कड़ में या कहीं और?

1 comment:

  1. सूचना देने और फैलाने के मामले में हम कितने ईमानदार है इसी पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है आज। जहाँ एक शहर में एक इलाके में मारा गया चूहा तक शहर के दूसरे कोने में शेर बना कर पेश कर दिया जाता हो तो दूर देश की खबरें ? सच में भगवान ही मालिक है हमारा :) सुन्दर पड़ताल।

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