Sunday, May 3, 2020

कोरोना-युद्ध के सबक


लॉकडाउन दो हफ्ते के लिए बढ़ा दिया गया। या आप कह सकते हैं कि हटा लिया गया, पर कोरोना वायरस के कारण देश के अलग-अलग इलाकों में प्रतिबंध लगाए गए हैं। सिर्फ समझने की बात है कि गिलास आधा भरा है या आधा खाली है। कोरोना के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को देखें, तो वहाँ भी यही बात लागू होती है। सवाल है कि क्या हम हालात से निराश हैं? कत्तई नहीं। यह एक नई चुनौती है, जिसपर हमें जीत हासिल करनी है। हमारे पास आशा या निराशा के विकल्प नहीं हैं। सकारात्मक सोच अकेला एक विकल्प है।
वैश्विक दृष्टि से हटकर देखें, तो भारत से संदर्भ में हमारे पास संतोष के अनेक कारण हैं। चीन को अलग कर दें, तो शेष विश्व में करीब 34 लाख लोग कोरोना के शिकार हुए हैं। इनमें से दो लाख 40 हजार के आसपास लोगों की मौत हुई है। इस दौरान भारत में करीब 37 हजार लोगो कोरोना के शिकार हुए हैं और 1200 के आसपास लोगों की इसके कारण मृत्यु हुई है। एक भी व्यक्ति की मौत दुखदायी है, पर तुलना करें। भारत की आबादी करीब एक अरब 30 करोड़ है, जिसमें 37 हजार को यह बीमारी लगी है। समूचे यूरोप और अमेरिका की आबादी भारत से कम ही होगी, पर बीमार होने वालों और मरने वालों की संख्या का अंतर आप देख सकते हैं।

इस अंतर के अनेक कारण हैं। कुछ लोग कहते हैं कि अमेरिका और यूरोप में टेस्ट ज्यादा होते हैं। भारत में कम होते हैं। हो सकता है कि बीमारों की संख्या ज्यादा हो। यह तर्क भी पक्का नहीं है। यह तर्क तीन-चार हफ्ते पहले उछाला गया था। तब भारत में प्रति 10 लाख (मिलियन) लोगों में करीब सवा सौ टेस्ट हो रहे थे। शनिवार को यह औसत 708 था। यह सम्पूर्ण भारत का औसत है, दिल्ली में तो यह 2400 के आसपास है। हम जब औसत निकालते हैं, तो समूचे भारत की जनसंख्या के आधार पर निकालते हैं, जबकि देश के एक बड़े इलाके में वायरस का प्रभाव है ही नहीं। 

Monday, April 27, 2020

पेट्रो-डॉलर सिस्टम को ध्वस्त करने पर उतारू कोरोना


कोरोना वायरस अभी उभार पर है। शायद इसका उभार रोकने में हम जल्द कामयाब हो जाएं। पर उसके बाद क्या होगा? इस असर का जायजा लेने के लिए कुछ देर के लिए तेल बाजार की ओर चलें। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने गत 13 अप्रेल को कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद तेल उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों ने प्रति दिन करीब 97 लाख बैरल प्रतिदिन की तेल आपूर्ति कम करने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद हालांकि ब्रेंट क्रूड बाजार में तेल की गिरती कीमतें कुछ देर के लिए सुधरीं, पर  वैश्विक स्तर पर असमंजस कायम है। दो हफ्ते पहले ये कीमतें 22 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुँच गई थीं। इस गिरावट को रूस ने अपना उत्पादन और बढ़ाकर तेजी दी। इस प्रतियोगिता से तेल बाजार में वस्तुतः आग लग गई। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय ब्रेंट क्रूड की कीमत 28 डॉलर के आसपास थी और अमेरिकी बाजारों में तेल 15 डॉलर के आसपास आने की खबरें थीं। इस कीमत पर इस उद्योग की तबाही निश्चित है। इस खेल में वेनेजुएला जैसे देश तबाह हो चुके हैं, जो पेट्रोलियम-सम्पदा के लिहाज से खासे समृद्ध थे।

Sunday, April 26, 2020

कोरोना-दौर में मीडिया की भूमिका


कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैला है, शायद अतीत में किसी दूसरी बीमारी का नहीं फैला। इसी दौरान दुनिया में सच्ची-झूठी सूचनाओं का जैसा प्रसार हुआ है, उसकी मिसाल भी अतीत में नहीं मिलती। इस दौरान ऐसी गलतफहमियाँ सामने आई है, जिन्हें सायास पैदा किया और फैलाया गया। कुछ बेहद लाभ के लिए, कुछ राजनीतिक कारणों से, कुछ सामाजिक विद्वेष को भड़काने के इरादे से और कुछ शुद्ध कारोबारी लाभ या प्रतिद्वंद्विता के कारण। उदाहरण के लिए कोरोना संकट से लड़ने के लिए पीएम-केयर्स नाम से एक कोष बनाया गया, जिसमें पैसा जमा करने के लिए एक यूपीआई इंटरफेस जारी किया गया। देखते ही देखते सायबर ठग सक्रिय हो गए और उन्होंने उस यूपीआई इंटरफेस से मिलते-जुलते कम से कम 41 इंटरफेस बना लिए और पैसा हड़पने की योजनाएं तैयार कर लीं। लोग दान करना चाहते हैं, तो उस पर भी लुटेरों की निगाहें हैं।

Monday, April 20, 2020

कैसा होगा उत्तर-कोरोना तकनीकी विश्व?


कोरोना की बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद दुनिया को कई तरह के प्रश्नों पर विचार करना होगा। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि दुनिया का तकनीकी विकास क्या केवल बाजार के सहारे होगा या राज्य की इसमें कोई भूमिका होगी? इन दो के अलावा विश्व संस्थाओं की भी कोई भूमिका होगी? तकनीक के सामाजिक प्रभावों-दुष्प्रभावों पर विचार करने वाली कोई वैश्विक व्यवस्था बनेगी क्या? इससे जुड़ी जिम्मेदारियाँ कौन लेने वाला है?
इस हफ्ते की खबर है कि मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी एपल और गूगल ने नोवेल कोरोनावायरस के विस्तार को ट्रैक करने के लिए आपसी सहयोग से स्मार्टफोन प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया है। ये दोनों कंपनियां मिलकर एक ट्रैकिंग टूल बनाएंगी, जो सभी स्मार्टफोनों में मिलेगा। यह टूल कोरोना वायरस की रोकथाम में सरकार, हैल्थ सेक्टर और आम प्रयोक्ता की मदद करेगा। यह टूल आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग का काम करेगा। यह काम तभी सम्भव है, जब दुनिया के सारे स्मार्टफोन यूजर्स एक ही ग्रिड या ऐप पर हों।

Sunday, April 19, 2020

‘कोरोना-दौर’ की खामोश राजनीति


कोरोना संकट के कारण देश की राजनीति में अचानक ब्रेक लग गए हैं या राजनीतिक दलों को समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है, पर विरोधी दलों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। वे लॉकडाउन का समर्थन करें या विरोध? लॉकडाउन के बाद जब हालात सामान्य होंगे, तब इसका राजनीतिक लाभ किसे मिलेगा? बेशक अलग-अलग राज्य सरकारों की भूमिका इस दौरान महत्वपूर्ण हुई है। साथ ही केंद्र-राज्य समन्वय के मौके भी पैदा हुए हैं।
हाल में दिल्ली की राजनीति में भारी बदलाव आया है और वह ‘कोरोना-दौर’ में भी दिखाई पड़ रहा है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा ने अपनी कार्यकुशलता को व्यक्त करने की पूरी कोशिश की है, साथ ही केंद्र के साथ समन्वय भी किया है। पश्चिम बंगाल और एक सीमा तक महाराष्ट्र की रणनीतियों में अकड़ और ऐंठ है। पर ज्यादातर राज्यों की राजनीति क्षेत्रीय है, जिनका बीजेपी के साथ सीधी टकराव नहीं है। महत्वपूर्ण हैं कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अनुभव।