बाबा रामदेव के पास अच्छा जनाधार है। योग के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के सहारे उन्होंने देश के बड़े क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाया है। पिछले कुछ वर्षों से वे राजनैतिक सवाल भी उठा रहे हैं। उनकी सभाओं में दिए गए व्याख्यानों को सुनें तो उनमें बहुत सी बातें अच्छी लगती हैं। ज्यादातर व्याख्यान उनके सहयोगियों के हैं। इनमें भारतीय गौरव, प्रतिभा और क्षमता पर जोर होता है। राष्ट्रवाद को जगाने का यह अच्छा तरीका है, पर आधुनिक दुनिया को देखने का केवल यही तरीका नहीं। युरोप को केवल गालियाँ देने से काम नहीं होगा। हमें अपने दोष भी देखने चाहिए। प्राचीन भारत में ज्ञान-विज्ञान था तो विज्ञान का विरोध भी था, वैसे ही जैसे युरोप में था। इतिहास को देखने और समझने की दृष्टि जनता के बीच विकसित करना अच्छा है, पर उसका लक्ष्य वैचारिक पारदर्शिता का होना चाहिए। इसी तरह वंचित वर्गों के बारे में रामदेव के पास कोई दृष्टिकोण नहीं है।
बावजूद इसके काले धन के बारे में उनसे असहमति नहीं हो सकती। पर उसके बारे में कोई भी कार्रवाई संवैधानिक दायरे में ही सम्भव है। ठंडे विमर्श का रास्ता लम्बा है। इसीलिए लगता है कि स्वामी रामदेव की इच्छा मुख्यधारा की राजनीति में जाने की है। इसमें भी किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, पर यह साफ होना चाहिए कि वे राजनीति में आना चाहते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ उनकी सहमति-असहमति भी मुद्दा नहीं है। मुद्दा है संघ की दोहरी समझ। वह खुद को अ-राजनैतिक और सांस्कृतिक संगठन घोषित करता है, पर भाजपा को पूरी तरह नियंत्रण में रखना चाहता है।
स्वामी रामदेव ग्यारह हजार युवकों को शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा क्यों देना चाहते हैं, इसे स्पष्ट करना चाहिए। क्या यह नया संघ होगा? नहीं होगा तो उससे अलग कैसा होगा? हालांकि बाबा ने इस बात की सफाई दी है, पर उनकी बातों में अंतर्विरोध है। ठीक उसी तरह जैसे देश की शेष राजनीति अंतर्विरोधी है। आप एक-एक पार्टी के सिद्धांत और व्यवहार को देखें तो उसमें परस्पर टकराव पाएंगे। अफसोस यह है कि हमारे वामपंथी साथियों ने देश के प्राचीन विचार और दर्शन को पूरी तरह प्रतिक्रियावादी घोषित कर दिया। इससे धर्मनिरपेक्षता का मज़ाक बनता गया। इसके विपरीत भारतीय गौरव पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद के तालिबानी रास्ते पर चले जाने का खतरा बना रहता है। हमें जिस रास्ते की तलाश है उसमें राष्ट्रवाद का अर्थ राष्ट्र के सामने खड़ी दिक्कतों को निपटाना भी होना चाहिए। उसका राष्ट्र गरीब देशवासियों के कंधों पर खड़ा होना चाहिए। अमीरों की पालकी से यात्रा करने वाला नहीं। रामदेव मध्यवर्ग के बीच सक्रिय हैं। यह मध्यवर्ग चाहेगा तो देश को प्रगति के रास्ते पर ले जाएगा। यह रास्ता संकीर्ण धारणाओं पर आधारित नहीं होना चाहिए।
प्रमोद जी, मेरी नज़र में इन बातों से बाबा का राजनीति के बारे में नौसिखियापन दिखता है. आज के पेशेवर राजनीति की दुनिया में, जहाँ गद्दी से करोड़ों रुपये जुड़े हैं, केवल अच्छा सोचने चाहने से बात नहीं बनती, पूरी रणनीति चाहिये.
ReplyDeleteसशस्त्र शब्द मीडिया के दिमाग की उपज है. और फिर बताएं की जब सर्कार ही खुलेआम अहिंसक भीड़ खिलाफ खुलेआम अत्याचार पर उतर आये तो क्या कोई ऐसी स्थिति आत्मरक्षा की बात भी न करे? क्योंकि जिहे रक्षा के लिए लगाया था वे ही भेड़िये बन गए. तो किससे उम्मीद रही?
ReplyDeleteपुलिसिया बर्बरता के सामने रामदेव यही तो कह रहे हैं की 'इस बार तो तुमने निहत्थी भीड़ पर ताकत आजमा ली, अबकी बार हमसे चुपचाप पीटने की उम्मीद मत रखना.' इसमें गलत क्या है? लोकतंत्र में जनविरोध सत्ता के खिलाफ एक प्रमुख हथियार है, उसे भी कुचल देंगे तो क्या लोग खुद को पीटने से भी न बचाएं? रामदेव युवक-युवतियों का ऐसा समूह तैयार करना चाहते हैं जो आत्मरक्षा में सक्षम हो। "हम किसी को मारना नहीं चाहते लेकिन अपने को इतना सक्षम बनाना चाहते है कि कोई हमें मार नहीं सके।"
वह हताशा में आत्मरक्षा की भी बात न करें? जो उसके और उसके समर्थकों पर बीती उसे याद कर उसकी ऑंखें भी नम न हों? क्यों इतनी पत्थरदिली की उम्मीद करते हो किसी से? यह तो ज्यादती है.
बाबा भीद्ड़ जुटाउ हो सकते है पर लीड करने के लिये न उनके व्यक्तित्व मे गरिमा है न ही वे अभी इतने राजनैतिक तप से गुजरे हैं । मैने भी आंदोलन शुरू होने के पहले और बाद मे जो लिखा उससे लोग खुश नही थे पर आज चीजे साफ़ होते नजर आ रहीं हैं ।
ReplyDeleteबाबा एक नम्बर के झूठे और दोहरे व्यक्तित्व के आदमी हैं ये भगवाँ चोला तो केवल धन लूटने के लिये धारण किया है मुफ्त का बिना टैक्स के पैसे कमा कर भी योग सिखाने की जो फीस लेते हैं उनसे किसी तरह की उमीद रखना खुद को धोखा देनी जैसा है अह्म भारतीय केवल भगवां देख कर आस्था मे डूब जाते हैं। सब से पहले सरकार को धार्मिक भ्रष्टाचार पर लगाम कसनी चाहिये बाकी मुद्दे बाद मे ताकि लोग इनके दुआरा दिखाये जा रहे सब्ज बाग देखना बंद करें। धन्यवाद।
ReplyDeleteबामपंथी साथियों के सम्बन्ध में आपकी शिकायत जायज है,इसी बात को मैं अपने 'क्रन्तिस्वर'के माध्यम से लगातार उठाता आ रहा हूँ.बामपंथी विचार-धरा के ब्लाग्स पर भी टिप्पणियों में मैं यह बात उठा रहा हूँ और मौका मिलने पर अंदरूनी बैठकों में भी सुझाव दे रहा हूँ -हमारा अर्वाचीन ज्ञान-धर्म सब कुछ समष्टिवादी होने के कारण हमारे बामपंथ के नजदीक है जिसे हमारे ठुकराने से साम्राज्यवादियों के पृष्ठपोषक अपने स्वार्थों में तोड़-मरोड़ कर भुनाते रहते हैं.
ReplyDeleteअच्छा आलेख है। साधुवाद!
ReplyDeleteIn Ramdev's whole agitation, lack of experience in team of leaders, make it a less important issue. It seems center government suppressed this movement.
ReplyDeletegreat article!
ReplyDeleteSwachchh Sandesh
एक संतुलित और विचारपूर्ण आंकलन।
ReplyDelete@निर्मला कपिला जी दुर्भाग्य या सौभाग्य से कई जगह ३-४ दिनों मे आपकी एक रस टिप्पड़ियाँ देखी। लगा जैसे कुछ कहनें के बजाए एक विशेष एजेण्ड़े के तहत आप उक्त-प्रकार की टिप्पड़ियाँ कर रही हैं। बाबाओं,आश्रमों,मदरसों, मस्जिदों,चर्चों सब की जाँच करा लीजिए किसनें रोका है लेकिन पहले अपनीं जाँच भी तो करा लीजिये। तेलगी जेल में घिसटकर मर गया-क्या रह्स्य खुला? हर्षद मेहता मर गया, लख्खू भाई पाठक भी मर गया और सीबू सोरेन भी क्या रहस्य खुला। अभी जितनें बंद हैं क्या इनसे कुछ रहस्य उजागर होंगे..या अपनें पापों को छुपाने के लिए ये भी निफटा दिये जायेंगे? क्या अब हसन अली का नम्बर है?
एक साफ सुथरा लेख ।
ReplyDeleteसंतुलित आकलन ।
विदेश में काला धन ।
बाबा का अनशन ।
जागेगा जन गण मन ।
मन बनाएं सु-मन।
मन में है सच्चा धन।
सबको दें सच्चा धन।
बाबा पे है दुनिया का धन।
इसीलिए हुआ दे दनादन दन।
यह एक मौलिक टिप्पणी आपके लिए गिफ़्ट , बाबा के सुरक्षित बच निकलने की ख़ुशी में ।
...और यह भी :
कोई भी कारोबारी आदमी सरकार के ख़िलाफ़ लड़ ही नहीं सकता और लड़ता भी नहीं । जो ऐसा करता है सरकार उस पर और उसके मददगार व्यापारियों पर ढेर के ढेर मुक़ददमे लगा देती है और ऐसी लड़ाईयों में जानें तक भी गवाँ चुके हैं लोग ।
क्या बाबा जी अपनी जान माल का नुक्सान सह पाएंगे ?
हमारा आकलन यह है कि जल्दी ही बाबा और केंद्र सरकार में फिर से कोई समझौता गुपचुप हो जाएगा और इस बार बाबा पूरी ईमानदारी से उसका पालन भी करेंगे ।
मामले की नज़ाकत योग सेना वाले बाबा अच्छी तरह समझ चुके हैं ।
एक साफ सुथरा लेख ।
ReplyDeleteसंतुलित आकलन ।
विदेश में काला धन ।
बाबा का अनशन ।
जागेगा जन गण मन ।
मन बनाएं सु-मन।
मन में है सच्चा धन।
सबको दें सच्चा धन।
बाबा पे है दुनिया का धन।
इसीलिए हुआ दे दनादन दन।
यह एक मौलिक टिप्पणी आपके लिए गिफ़्ट , बाबा के सुरक्षित बच निकलने की ख़ुशी में ।
...और यह भी :
कोई भी कारोबारी आदमी सरकार के ख़िलाफ़ लड़ ही नहीं सकता और लड़ता भी नहीं । जो ऐसा करता है सरकार उस पर और उसके मददगार व्यापारियों पर ढेर के ढेर मुक़ददमे लगा देती है और ऐसी लड़ाईयों में जानें तक भी गवाँ चुके हैं लोग ।
क्या बाबा जी अपनी जान माल का नुक्सान सह पाएंगे ?
हमारा आकलन यह है कि जल्दी ही बाबा और केंद्र सरकार में फिर से कोई समझौता गुपचुप हो जाएगा और इस बार बाबा पूरी ईमानदारी से उसका पालन भी करेंगे ।
मामले की नज़ाकत योग सेना वाले बाबा अच्छी तरह समझ चुके हैं ।
प्रमोद जी, बहुत अच्छा लिखा है आपने, बिलकुल सही विश्लेषण है. लेकिन इस सारे नाटक के बाद एक विचार मन में आता है -- अगर एक गणतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध का दमन किया जाता है, निहत्थे लोगों की पिटाई होती है, और जिन नियमों की दुहाई दी जाती है, उन्ही नियमों का सरकार उल्लंघन करती है, तो कोई बेचारा क्या करे.
ReplyDeleteशायद बाबा रामदेव को अब यह मालूम हो गया है कि अगर उनके जैसे मशहूर व्यक्ति की सरे आम धुनाई हो सकती है, तो फिर छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहनेवाला बेचारा आदिवासी क्या करेगा, जब सरकार उसकी जीविका छीन लेती है. क्या वह इस देश में शांतिपूर्ण विरोध कर सकता है?
अगर बाबा व्यक्तिगत सेना और बन्दूक की बात कर सकते हैं, तो हम उस नक्सली को क्या कह सकते हैं, जिसने बन्दूक उठा रखी है, क्योंकि उसे इन्साफ नहीं मिला?