Saturday, October 5, 2019

कांग्रेस के लिए अशनि संकेत



लोकसभा चुनाव में मिली भारी पराजय के बाद कांग्रेस पार्टी को संभलने का मौका भी नहीं मिला था कि कर्नाटक और तेलंगाना में बगावत हो गई। राहुल गांधी के इस्तीफे के कारण पार्टी के सामने केंद्रीय नेतृत्व और संगठन को फिर से खड़ा करने की चुनौती है। फिलहाल सोनिया गांधी को फिर से सामने लाने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं था। अब पहले महाराष्ट्र और हरियाणा और उसके बाद झारखंड और फिर दिल्ली में विधानसभा चुनावों की चुनौती है। इनका आगाज़ भी अच्छा होता नजर नहीं आ रहा है।
महाराष्ट्र में संजय निरुपम और हरियाणा में अशोक तँवर के बगावती तेवर प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः की कहावत को दोहरा रहे हैं। महाराष्ट्र में संजय निरुपम भले ही बहुत बड़ा खतरा साबित न हों, पर हरियाणा में पहले से ही आंतरिक कलह के कारण लड़खड़ाती कांग्रेस के लिए यह अशुभ समाचार है। संजय और अशोक दोनों का कहना है कि पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है। दोनों की बातों से लगता है कि पार्टी में राहुल गांधी के वफादारों की अनदेखी की जा रही है।

Friday, October 4, 2019

बदलते मौसम का संकेत है बिहार की बाढ़


बिहार इन दिनों बारिश और बाढ़ की मार से जूझ रहा है. पटना शहर डूबा पड़ा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन पर तंज कसे जा रहे हैं. उन्होंने भी पलट कर कहा है कि क्या बिहार में बाढ़ ही सबसे बड़ी समस्या है? कभी हम सूखे का सामना करते हैं और कभी बाढ़ का. जब उनसे बार-बार सवाल किया गया तो वे भड़क गए. उन्होंने कहा, ‘मैं पूछ रहा हूं कि देश और दुनिया के और कितने हिस्से में बाढ़ आई है. अमेरिका का क्या हुआ?
उनकी पार्टी बिहार में बाढ़ प्रबंधन की आलोचना होने पर मुंबई और चेन्नई की बाढ़ का हवाला दे चुके हैं. अब नीतीश कुमार ने अमेरिका का जिक्र करके मौसम की अनिश्चितता की ओर इशारा किया है. बेशक इससे बाढ़ प्रबंधन और जल भराव से जुड़े सवालों का जवाब नहीं मिलता, पर यह सवाल इस बार शिद्दत के साथ उभर कर आया है कि जब मॉनसून की वापसी का समय होता है, तब इतनी भारी बारिश क्यों हुई? इससे जुड़ा दूसरा सवाल यह है कि मौसम दफ्तर की भविष्यवाणी थी कि इस साल सामान्य से कम वर्षा होगी, तब सामान्य से ज्यादा वर्ष क्यों हुई?

केवल बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी इस साल आखिरी दिनों की इस बारिश ने जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया. देश के मौसम दफ्तर के अनुसार दक्षिण पश्चिम मॉनसून को इस साल सोमवार 30 सितंबर को समाप्त हो जाना चाहिए था, बल्कि आधिकारिक तौर पर वह वापस चला गया है. पर सामान्य के मुकाबले 110 प्रतिशत वर्षा के बावजूद बरसात जारी है और अनुमान है कि मॉनसून की वापसी 10 अक्तूबर से शुरू होगी. संभवतः यह पिछले एक सौ वर्षों का सबसे लंबा मॉनसून साबित होगा. इसके पहले सन 1961 में मॉनसून की वापसी 1 अक्तूबर को हुई थी और 2007 में 30 सितंबर को.

Sunday, September 29, 2019

संरा में धैर्य और उन्माद का टकराव


संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषणों में वह अंतर देखा जा सकता है, जो दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है। दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएंगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है। इसबार वह नाटकीयता सारी सीमाएं पार कर गई। इमरान खान के विपरीत भारत के प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कश्मीर और पाकिस्तान का एकबार भी जिक्र किए बगैर एक दूसरे किस्म का संदेश दिया है।

नरेंद्र मोदी ने न केवल भारत की विश्व-दृष्टि को पेश किया, बल्कि कश्मीर के संदर्भ में यह संदेश भी दिया कि वह हमारा आंतरिक मामला है और किसी को उसके बारे में बोलने का अधिकार नहीं है। पिछले आठ साल में पहली बार संरा महासभा में प्रधानमंत्री या विदेशमंत्री ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है। दुनिया के सामने पाकिस्तान के कारनामों का जिक्र हम बार-बार करते रहे हैं। इसबार नहीं कर रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान खुद चीख-चीखकर अपने कारनामों का पर्दाफाश कर रहा है। इमरान खान ने एटमी युद्ध, खूनखराबे और बंदूक उठाने की खुली घोषणा कर दी।

चूंकि इमरान खान ने भारत और कश्मीर के बारे में अनाप-शनाप बोल दिया, इसलिए उन्हें जवाब भी मिलना चाहिए। भारत के विदेश मंत्रालय की प्रथम सचिव विदिशा मित्रा ने उत्तर देने के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कहा कि क्या पाकिस्तान इस बात को नहीं मानेगा कि वह दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी को पेंशन देता है? क्या वह इस बात से इंकार करेगा कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने अपने 27 में से 20 मानकों के उल्लंघन पर उसे नोटिस दिया है? क्या इमरान खान न्यूयॉर्क शहर से नहीं कहेंगे कि उन्होंने ओसामा बिन लादेन का खुलकर समर्थन किया है?

Friday, September 27, 2019

भारत और पाकिस्तान का फर्क आज देखेगी दुनिया


संयुक्त राष्ट्र महासभा में आज भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषण होने वाले है। दोनों देशों की जनता और मीडिया की निगाहें इस परिघटना पर हैं। क्या कहने वाले हैं, दोनों नेता?  पिछले कुछ वर्षों में इस भाषण का महत्व कम होता गया है। यह भाषण संबद्ध राष्ट्रों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है। इससे ज्यादा इसका व्यावहारिक महत्व नहीं होता।
दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे, तो पाएंगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है। शायद उनके पास कोई विश्व दृष्टि है ही नहीं। इस साल भी वही होगा। देखना सिर्फ यह है कि नाटक किस किस्म का होगा। इसकी पहली झलक गुरुवार को मिल चुकी है।

भारत-पाक नजरियों का अंतर क्या है?


संयुक्त राष्ट्र महासभा में आज भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषण होने वाले है. दोनों देशों में मीडिया की निगाहें इस परिघटना पर हैं. क्या कहने वाले हैं, दोनों नेता?  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस अधिवेशन के लिए अमेरिका रवाना होने के पहले अपने देश के निवासियों से कहा था, मैं मिशन कश्मीर पर जा रहा हूँ. इंशा अल्लाह सारी दुनिया हमारी मदद करेगी. पर हुआ उल्टा महासभा में अपने भाषण के पहले ही उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण के अपने प्रयासों में फेल रहा है. दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री ने हाउडी मोदी रैली में केवल एक बात से सारी कहानी साफ कर दी. उन्होंने कहा, दुनिया जानती है कि 9/11 और मुंबई में 26/11 को हुए हमलों में आतंकी कहाँ से आए थे।
संरा महासभा के भाषणों का औपचारिक महत्व बहुत ज्यादा नहीं होता. अलबत्ता उनसे इतना पता जरूर लगता है कि देशों और उनके नेतृत्व की विश्व दृष्टि क्या है. फिलहाल आज की सुबह लगता यही है कि महासभा के भाषण में इमरान खान केवल और केवल भारत-विरोधी बातें बोलेंगे और भारत के प्रधानमंत्री भारत की विश्व दृष्टि को दुनिया के सामने रखेंगे. भारत चाहता है कि पाकिस्तान भी एक सकारात्मक और दोस्ताना कार्यक्रम लेकर दुनिया के सामने आए, ताकि इस इलाके की गरीबी, मुफलिसी, अशिक्षा और बदहाली को दूर किया जा सके. आप खुद देखिएगा दोनों भाषणों के अंतर को.