इसे 'आइडिया ऑफ इंडिया' कहते हैं। अपने अतीत और वर्तमान के आधार पर हम अपने समाज की दशा-दिशा के बारे में सोचते हैैं। कुछ को इसमें राष्ट्रवाद दिखाई पड़ता है और कुछ को अंतरराष्ट्रीयतावाद। पर सपने पूरा समाज देखता है, तभी वे पूरे होते
हैं। नेता उन सपनों के सूत्रधार बनते हैं। आधुनिक भारत का सपना आजादी के आंदोलन के
दौरान इस देश ने देखना शुरू कर दिया था। क्योंकि आजादी एक सपना थी। पिछले महीने
इंडिया टुडे कॉनक्लेव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, आजादी के आंदोलन के
कालखंड में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं भारी पड़ती
थीं। उनकी तीव्रता इतनी थी कि वह देश को सैकड़ों सालों की गुलामी से बाहर निकाल
लाई। पर अब समय की मांग है-आजादी के आंदोलन की तरह विकास का आंदोलन- जो व्यक्तिगत
आकांक्षाओं का सामूहिक आकांक्षाओं में विस्तार करे और देश का सर्वांगीण विकास हो।
Saturday, April 1, 2017
Friday, March 31, 2017
सर्वेश्वर की कहानी 'लड़ाई'
अभी फेसबुक पर किसी का स्टेटस पढ़ा, 'क्या कोई 100 फीसदी सच बोल सकता है?' पता नहीं गांधी जी ने सौ फीसदी सच बोला या नहीं और सत्यवादी हरिश्चंद्र का क्या रिकॉर्ड था, पर व्यावहारिक दुनिया में कई बार सच से ज्यादा जरूरी होता है झूठ बोलना। कई बार सच अमानवीय भी हो सकता है। बरसों पहले मैेने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कहानी 'लड़ाई' पढ़ी थी। शायद अस्सी के दशक की शुरुआत थी। उसके बाद लखनऊ की संस्था दर्पण ने इस कहानी पर एक नाटक बनाया हरिश्चन्नर की लड़ाई। उर्मिल थपलियाल ने उसका निर्देशन किया था। काफी रोचक नाटक था और उसे देश भर में तारीफ मिली। उसके भी पहले वीरेंद्र शर्मा ने 'कुमारिल' नाम से एक पत्रिका निकाली। उसका एक अंक ही निकला, जिसमें यह कहानी भी थी। अक्सर यह कहानी मुझे याद आती है। आपने यदि उसे नहीं पढ़ा है, तो उसे एकबार पढ़ें जरूर। कहीं और न मिले तो मेरे ब्लॉग पर पढ़ें , जिसका लिंक मैं नीचे दे रहा हूँ-
आँख खुलते ही उसने निश्चय किया कि वह सत्य के लिए लड़ेगा| न खुद कोई गलत काम करेगा, न दूसरों को करने देगा| इस निश्चय से उसे एक विचित्र प्रकार की शान्ति मिली| अचानक दुनिया छोटी लगने लगी और वह उसके लिए अपने को बड़ा महसूस करने लगा| अपने अंदर एक नयी ताकत उसने पायी| उसे लगा, उसकी कमर सीधी हो गयी है और लटकी हुई गर्दन उठ गयी है| वह ज़्यादा देर लेटा नहीं रह सका| बिस्तरे से कूदकर खड़ा हो गया| मुट्ठियाँ बांधकर और दोनों हाथ ऊपर उठाकर वह चिल्लाया – “अब मैं सत्य के लिए लडूंगा|”
उसकी आवाज़ सुनकर उसकी स्त्री जो रजाई में सुख की नींद सो रही थी, घबरा गयी| रजाई में से सिर निकालकर उसने पूछा –
“यह तुम्हें क्या हो गया है?”
“मैंने निश्चय किया है कि मैं सत्य के लिए लड़ूंगा| चाहे जो कुछ हो|” उसने दृढ़ स्वर में जवाब दिया|
स्त्री ने देखा, उसका चेहरा बदल गया है| आँखें जितना बाहर देख रही हैं, उतना ही भीतर भी देखने लगी हैं| सारी आकृति धनुष की तरह तन गयी है| उसे जाने कैसा डर लगने लगा| वह रजाई में उठकर बैठ गयी|
बाहर काफ़ी धूप निकल आयी थी| दिन चढ़ आया था| उसने दरवाज़ा खोला| सामने बंधा हुआ अखबार पड़ा था| उसने उसे उठाया और जेब से दियासलाई निकालकर उसमें आग लगा दी| अखबार भभककर जल उठा|
“यह क्या कर रहे हो?” घबराकर स्त्री चिल्लाई|
“कुछ नहीं| लड़ाई शुरू हो गयी है|” उसने सीधा-सा जवाब दिया|
“लोग तुम्हें पागल कहेंगे|”
“झूठा होने से पागल होना बेहतर है| मैं कायर और ढोंगियों से नफ़रत करता हूँ| अखबार कायर और ढोंगियों की वकालत करते हैं| झूठे हैं| मैं उनसे निपटूंगा?” उसने सख्त आवाज़ में कहा|
“हाय! यह तुम्हें क्या हो गया है? तुम्हारा दिमाग कैसे खराब हो गया? मुसीबत में ही सही, ज़िंदगी तो किसी तरह कट रही थी| अब कैसे कटेगी?” स्त्री की आँखों में आंसू आ गए|
“मैं नहीं जानता कैसे कटेगी| पर न मैं खुद कोई गलत काम करूँगा, न दूसरों को करने दूंगा|” उसने दोहराया|
“फिर घर का क्या होगा? बच्चों का क्या होगा? मेरा क्या होगा?” स्त्री ने पूछा|
“जो भी हो| झूठ अब नहीं चलेगा| कुछ भी चलाने के लिए उसका सहारा मैं नहीं लूँगा| अब तय हो गया|”
जला हुआ अखबार उड़ रहा था| उसकी कालिख उड़-उड़कर चारों ओर फैल रही थी – बाहर गली में, भीतर कमरे में| उसने पास उड़ते एक हल्के फूले हुए बेजान टुकड़े को पैर से दबा दिया| उतनी ज़मीन काली हो गयी|
Tuesday, March 28, 2017
ट्रंप को लगते शुरूआती झटके
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कामकाज के 100 दिन पूरे नहीं हुए हैं. इतने
कम समय में ही वे कई तरह के विवादों में फँसने लगे हैं. स्पष्ट है कि शत्रु उनका
पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. ट्रंप ने मीडिया की भी तल्ख आलोचना की है. इन विवादों की
वजह से उनके राजनीतिक एजेंडा को चोट लग रही है. आतंकवाद से लड़ाई की बिना पर
उन्होंने पश्चिम एशिया के कुछ देशों के नागरिकों के अमेरिका आगमन पर पाबंदियाँ
लगाने की जो कोशिशें कीं, उन्हें अदालती अड़ंगों सा सामना करना पड़ा. हैल्थ-केयर
और टैक्स रिफॉर्म के उनके एजेंडा पर भी काले बादल छाए हैं.
Monday, March 27, 2017
अब माइक्रो-आतंकी खतरा
पिछले बुधवार को लंदन के वेस्टमिंस्टर इलाके में आतंकी कार्रवाई करके इस्लामी चरमपंथियों ने आतंक फैलाने की जो कोशिश की उसकी गहराई तक जाने की जरूरत है। आतंकी रणनीतिकारों ने कम से कम जोखिम लेकर ज्यादा से ज्यादा पब्लिसिटी हासिल कर ली। उनका यही उद्देश्य था। अमेरिका में 9/11 हमले के बाद आतंकवादियों ने उच्च तकनीक की मदद ली थी। उसका तोड़ वैश्विक पुलिस व्यवस्था ने निकाल लिया। तकनीकी इंटेलिजेंस और हवाई अड्डों की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करके उनकी गतिविधियों को काफी सीमित कर दिया था। अब आतंकवादी जिस रास्ते पर जा रहे हैं उसमें मामूली तकनीक का इस्तेमाल है। इसे विशेषज्ञ माइक्रो-आतंकवाद बता रहे हैं।
लंदन पर हुए हमले के एक दिन बाद बेल्जियम के एंटवर्प शहर में लगभग इसी अंदाज में एक व्यक्ति ने अपनी कार भीड़ पर चढ़ा दी। इस घटना में भी कई लोग घायल हुए और हमलावर पकड़ा गया है। आतंक की इस नई रणनीति पर गौर करने की जरूरत है। लंदन का यह हमला पिछले आठ महीने में पाँचवाँ बड़ा हमला है, जिसमें मोटर वाहन का इस्तेमाल किया गया है।
लंदन पर हुए हमले के एक दिन बाद बेल्जियम के एंटवर्प शहर में लगभग इसी अंदाज में एक व्यक्ति ने अपनी कार भीड़ पर चढ़ा दी। इस घटना में भी कई लोग घायल हुए और हमलावर पकड़ा गया है। आतंक की इस नई रणनीति पर गौर करने की जरूरत है। लंदन का यह हमला पिछले आठ महीने में पाँचवाँ बड़ा हमला है, जिसमें मोटर वाहन का इस्तेमाल किया गया है।
Tuesday, March 21, 2017
आर्थिक मैदान में होगी योगी की परीक्षा
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने की
खबर पहली बार में चौंकाती है. पर किसी स्तर पर गहराई से विचार भी किया गया होगा.
इतना साफ है कि पार्टी ने भविष्य में ज्यादा खुले एजेंडा के साथ सामने आने का
फैसला कर लिया है. मध्य प्रदेश में पार्टी ने उमा भारती को तकरीबन इसी मनोभावना से
प्रेरित होकर मुख्यमंत्री बनाया था. वह प्रयोग सफल नहीं हुआ. पर योगी का प्रयोग
सफल भी हो सकता है.
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