इसी हफ्ते गृहमंत्री सुशील शिंदे ने बताया कि नेशनल
काउंटर टैररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) के गठन का प्रस्ताव पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।
उसे देश की राजनीति खा गई। इन दिनों इंटेलीजेंस ब्यूरो और नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी
तथा सीबीआई के बीच इशरत जहाँ के मामले को लेकर जवाबी कव्वाली चल रही है। सीबीआई के
ऊपर आपराधिक मामलों की जांच की जिम्मेदारी है। और खुफिया एजेंसियों के पास देश के खिलाफ
होने वाली आपराधिक गतिविधियों पर नजर रखने की। दुनिया के किसी देश की खुफिया एजेंसी
नियमों और नैतिकताओं का शत-प्रतिशत पालन करने का दावा नहीं कर सकती। इसीलिए खुफिया
एजेंसियों के कई प्रकार के खर्चों को सामान्य लेखा परीक्षा के बाहर रखा जाता है। उनकी
गोपनीयता को संरक्षण दिया जाता है। बहरहाल इस मामले में अभी बहस चल ही रही थी कि बोधगया
में धमाके हो गए। वहाँ तेरह बम लगाए गए थे, जिनमें से दस फट गए। यह सब तब हुआ जब खुफिया
विभाग ने पहले से सूचना दे रखी थी कि बोधगया ही नहीं अनेक बौद्ध स्थलों पर हमला होने
का खतरा है।
नरेन्द्र मोदी भारत के ध्रुवीकारी नेताओं में सबसे आगे हैं, इसे मान लिया जाना चाहिए. उनका समर्थन और विरोध लगभग समान आक्रामक अंदाज़ में होता है. इस वजह से उन्हें ख़बरों में बने रहने के लिए अब कुछ नहीं करना पड़ता.
ख़बरों को उनकी तलाश रहती है. इसमें आक्रामक समर्थकों से ज़्यादा उनके आक्रामक विरोधियों की भूमिका होती है.
दूसरी बात यह कि उनसे जुड़ी हर बात घूम फिर कर सन 2002 पर जाती है. रॉयटर्स के रॉस कॉल्विन और श्रुति गोत्तीपति का पहला सवाल इसी से जुड़ा था. वे जानना चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी को क्या घटनाक्रम पर कोई पछतावा है.
पिल्ले का रूपक
मोदी का वही जवाब था जो अब तक देते रहे हैं. उनका कहना था, "फ्रस्टेशन तब आएगा जब मैने कोई ग़लती की होगी. मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं."