Thursday, December 17, 2020

सोनू सूद और लंगर-संस्कृति


तमाम नकारात्मक बातों के बीच बहुत सी अच्छी बातें हो रही हैं। वे ध्यान खींचती हैं। मार्च के महीने में देश-व्यापी लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने घर जाने की समस्या पैदा हो गई। उस दौरान फिल्म अभिनेता सोनू सूद गरीबों के मसीहा के रूप में सामने आए। उनके ‘घर भेजो अभियान’ ने देखते ही देखते उन्हें करोड़ों लोगों के बीच पहचान दिला दी। दूसरों की मदद करने का उनका यह कार्यक्रम रुका नहीं है, बल्कि कई नई शक्लों में सामने आ रहा है। हाल में उन्होंने एक नई पहल की शुरुआत की, जिसका नाम 'खुद कमाओ घर चलाओ' है। इसके तहत वे उन लोगों को ई-रिक्शे दिलवा रहे हैं, जो इस दौरान बेरोजगार हो गए हैं।

लॉकडाउन के दौरान जहाँ सड़कों पर पुलिस के डंडे खाते प्रवासी मजदूरों की खबरें थीं, वहीं कुछ खबरें ऐसी भी थीं कि लोगों ने दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों के भोजन की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। पुलिस की छवि एक तरफ इस डंडेबाजी से खराब हुई वहीं ऐसी खबरें भी थीं कि पुलिस ने गरीबों के भोजन का इंतजाम किया। बहुत से लोगों ने व्यक्तिगत रूप से और कुछ लोगों ने आपस में मिलकर संगठित रूप से  इस काम को किया। फिर भी यह पर्याप्त नहीं था। इसे जितने बड़े स्हातर पर जिस तरीके से संचालित होना चाहिए, उसपर विचार करने की जरूरत है। गुरुद्वारों के लंगर एक बेहतरीन उदाहरण हैं।  पंजाब के किसानों के दिल्ली आंदोलन के दौरान लगे लंगरों में उन गरीबों को भी देखा गया है, जो आसपास रहते हैं। इन बातों ने देश की अंतरात्मा को झकझोरा है। क्यों नहीं ऐसी कोई स्थायी व्यवस्था बने, जो गरीबों को भोजन देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले। 

पीपुल्स आर्काइव्स ऑफ रूरल इंडिया की वैबसाइट की हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इन लंगरों में आसपास के फुटपाथों और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले कई परिवार शामिल हैं, जो विरोध प्रदर्शन वाली जगह पर मुख्य रूप से लंगर—मुफ़्त भोजन—के लिए आते हैं जो दिन भर चलता है। यहाँ भोजन के अलावा कई तरह की उपयोगी वस्तुएं जैसे दवा, कंबल, साबुन, चप्पल, कपड़े आदि मुफ़्त में मिलते हैं।

डाउन टु अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के कारण पैदा हुआ आर्थिक संकट गरीब व कमजोर तबके के लिए मुसीबतों के पहाड़ लेकर आया। सर्वे में शामिल आबादी के एक बड़े हिस्से को भूखा भी रहना पड़ा। सितंबर और अक्टूबर में जब हंगर वाच को लेकर सर्वे किया गया था, तो पता चला कि हर 20 में से एक परिवार को अक्सर रात का खाना खाए बगैर सोना पड़ा। नकारात्मक माहौल में ऐसी सकारात्मक बातें, हमारी चेतना को चुनौती देती हैं और बदहाल लोगों के लिए कुछ करने का आह्वान करती हैं। 



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