Friday, November 20, 2020

क्या चीन चाहता है कि अमेरिकी खेमे में जाए भारत?


एक धारणा है कि लद्दाख में चीनी आक्रामकता के कारण भारत ने अमेरिका का दामन पकड़ा है। यदि चीन का खतरा नहीं होता, तो भारत अपनी विदेश-नीति को संतुलित बनाकर रखता और अमेरिकी झुकाव से बचा रहता। क्या आप इस बात से सहमत हैं? इस बीच एक आलेख मुझे ऐसा पढ़ने को मिला, जिसमें कहा गया है कि चीन ने भारत को अमेरिकी खेमे में जाने के लिए जान-बूझकर धकेला है, ताकि दुनिया में फिर से दो ध्रुव तैयार हों। भारत के रहने से दो ध्रुव ठीक से बन नहीं पा रहे थे और चीन के खेमे में भारत के जाने की संभावनाएं थी नहीं।

इंडियन एक्सप्रेस में श्रीजित शशिधरन ने लिखा है कि लद्दाख में चीनी गतिविधियों की तुलना इतिहास की एक और घटना से की जा सकती है, जिसे सेवन ईयर्स वॉर के नाम से याद किया जाता है, जिसके कारण दुनिया की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। 1756 से 1763 के बीच फ्रांस और इंग्लैंड के बीच वह युद्ध एक तरह से वैश्विक चौधराहट के लिए हुआ था। क्या भारत-चीन टकराव के निहितार्थ उतने ही बड़े हैं? शशिधरन के अनुसार चीन की कामना है कि उसका और रूस का गठबंधन बने और दुनिया सीधे-सीधे फिर से दो ध्रुवों के बीच बँटे। उसकी इच्छा यह भी है कि भारत किसी न किसी तरह से अमेरिका के खेमे में जाए।

शशिधरन के अनुसार 18 वीं सदी के मध्य में फ्रांस और इंग्लैंड के तत्कालीन अमेरिकी उपनिवेशों (आज के संयुक्त राष्ट्र के पूर्ववर्ती इलाके) की सीमा रेखाएं उसी तरह अस्पष्ट थीं, जिस तरह से आज भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा है। सन 1753 में ब्रिटेन ने ओहायो नदी घाटी में कुछ दुर्गों के निर्माण को लेकर आपत्ति व्यक्त की थी, ताकि फ्रांस के उभार को रोका जा सके। इस विवाद का हल बातचीत से निकल नहीं पाया और एक दिन भिड़ंत हो गई, जिसमें फ्रांस के 10 सैनिक मारे गए। इससे लड़ाई की पृष्ठभूमि तैयार हुई। उन्हीं दिनों भारत में भी इंग्लैंड और फ्रांस के बीच टकराव चल रहा था। लगता है कि लद्दाख में भी वैसी ही स्थितियाँ बन रही हैं।

बहरहाल क्या इन दो परिघटनाओं को जोड़कर देखा जाना चाहिए? क्या आज औपनिवेशिक हालात हैं? और क्या ग्लोबलाइजेशन के दौर में दुनिया के देश शीत-युद्ध के दौर में वापस लौट सकते हैं? चीन हो या अमेरिका या रूस तीनों देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने के प्रयासों में जुटे हैं। करीब तीन सदी बाद दुनिया में कुछ ऐसी ताकतें और संस्थाएं भी हैं, जिनकी दृष्टि सार्वभौमिक है। आज की दुनिया में टकराव के साथ सहयोग और समन्वय के भी उदाहरण हैं। बहरहाल इस लेख को पढ़ें और मनन करें।

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