Wednesday, February 19, 2020

सेना में नारी-शक्ति की बड़ी विजय


करीब दो दशक की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद थलसेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं. इसका लाभ सेना की 10 शाखाओं में काम कर रही महिलाओं को मिलेगा. अदालत ने केंद्र की उस दलील को निराशाजनक बताया, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्टिंग न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों का हवाला दिया गया था.
अभी तक सेना में 14 साल तक शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) में सेवा दे चुके पुरुष अफसरों को ही स्थायी कमीशन का विकल्प मिल रहा था, महिलाओं को यह हासिल नहीं था. वायुसेना और नौसेना में महिला अफसरों को पहले से स्थायी कमीशन मिल रहा है. यह केस पहली बार सन 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किया गया था और 2010 में हाईकोर्ट ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया था, पर उस आदेश का पालन नहीं किया गया और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

भारतीय सेना में महिलाओं की भरती सन 1992 में शुरू की गई थी. शुरू में उन्हें सेना के चुनींदा विभागों पाँच वर्ष के लिए नियुक्ति दी जाती थी. ये विभाग थे आर्मी एजुकेशन कोर, कोर ऑफ सिग्नल्स, इंटेलिजेंस कोर और कोर ऑफ इंजीनियर्स. महिलाओं की इस विशेष स्कीम (डब्लूएसईएस) के तहत उन्हें भरती किया जाता था. उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से शामिल होने वाले पुरुषों की तुलना में छोटी अवधि का प्रशिक्षण दिया जाता था.
सन 2006 में इस डब्लूएसईएस की जगह महिलाओं के लिए बाकायदा शॉर्ट सर्विस कमीशन का रास्ता खुल गया. उन्हें 10 साल के लिए नियुक्ति मिलने लगी, जिसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता था. इस नई स्कीम के तहत महिला अधिकारियों का पहला बैच सन 2008 में सेना में शामिल हुआ था. इस स्कीम में भी उनके विभाग सीमित ही रहे. उन्हें कॉम्बैट यानी लड़ाकू भूमिका में नहीं लिया गया. लड़ाकू मायने इनफेंट्री और आर्मर्ड कोर. शॉर्ट सर्विस कमीशन प्राप्त पुरुषों के पास 10 साल की सेवा के बाद स्थायी कमीशन में जाने का विकल्प होता है, वहीं स्त्रियों को इससे वंचित रखा गया. इस प्रकार वे कमांड की पोजीशन में नहीं आ पाती थीं, जो कि 20 साल की सेवा के बाद मिलती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अब जो फैसला सुनाया है, उसमें कहा गया है कि महिलाओं को बराबरी के अधिकार से वंचित करना कानूनन गलत है. उन्हें कमांड पोजीशन पर इसलिए प्रोन्नत नहीं किया गया, क्योंकि माना गया कि ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले अधीनस्थ फौजी उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेंगे. अदालत ने इस तर्क को गलत माना.
सन 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर एक पीआईएल दाखिल की गई, फिर 2006 में मेजर लीना गौरव ने सेवा से जुड़ी कुछ नियमों को लेकर .चिका दायर की. सितम्बर 2008 में रक्षा मंत्रालय ने एक और आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि शॉर्ट सर्विस कमीशन वाली महिला अधिकारियों को भविष्य में जज एडवोकेट जनरल तथा सेना शिक्षा कोर में स्थायी कमीशन दिया जा सकता है. इस आदेश को मेजर संध्या यादव और अन्य ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी कि यह देश भविष्य की बात करता है और इसमें सभी विभागों को शामिल भी नहीं किया गया है.
इन तीनों याचिकाओं पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने 2010 में फैसला सुनाया कि थलसेना और वायुसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन पर शामिल महिलाएं यदि स्थायी कमीशन में जाना चाहें, तो उन्हें अनुमति मिलनी चाहिए. सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित नहीं किया, फिर भी सरकार ने उसे लागू नहीं किया.
यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि सरकार ने फरवरी 2019 में सेना के न्यायिक और शिक्षा के अलावा आठ अन्य विभागों में महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन के द्वार खोल हुए कहा कि वे कमांड पोजीशन पर नहीं आ पाएंगी. सरकार ने पेशकश की कि वे 20 साल तक की सेवा कर सकेंगी और पेंशन के साथ सेवानिवृत्त भी हो सकेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने इन सब बातों को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह सब बातें लैंगिक असमानता से जुड़ी सामाजिक समझ पर आधारित हैं और स्त्रियों से भेदभाव करने वाली हैं. समय रहते हमें अपनी समझ को बदलना चाहिए.
इस फैसले के बाद महिला सैनिक अधिकारी सेना के 10 विभागों में अपनी सेवा के आधार पर प्रोन्नति पा सकेंगी और पुरुष अधिकारियों के समान कमांड पोजीशन पर भी जा सकेंगी. अभी तक वे कर्नल से ऊपर के पद पर नहीं जा सकती थीं. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस फैसले का स्वागत किया है. उम्मीद करनी चाहिए कि वरिष्ठ सैनिक पदाधिकारी और सैनिक इस फैसले का स्वागत करेंगे. बुद्धि, विवेक, कौशल और बहादुरी में स्त्रियाँ किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं.
स्त्रियों की कॉम्बैट भूमिका के लेकर बहस अब भी जारी रहेगी, फिलहाल यह फैसला उन्हें एक कदम आगे ले जाएगा. भारतीय वायुसेना में स्त्रियाँ अब लड़ाकू विमानों का संचालन भी कर रही हैं. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की योद्धा के रूप में तस्वीर भी हमारे पास है. एक दिन ऐसा आएगा, जब स्त्रियाँ थलसेना की लड़ाकू भूमिका में भी सफल होकर दिखाएंगी. बहरहाल उन्हें कॉम्बैट रोल देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और सेना पर छोड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'जंग में सीधे शामिल होने वाली जिम्मेदारियां (कॉम्बैट रोल) में महिलाओं की तैनाती नीतिगत मामला है. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यही कहा था. इसलिए सरकार को इस बारे में सोचना होगा.'




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