अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के बाद भारत-अमेरिका संबंध एक नई ऊँचाई पर
पहुँचे हैं। इन रिश्तों का असर दूर तक और देर तक देखने को मिलेगा। बेशक राजनयिक
संबंध इंस्टेंट कॉफी की तरह नहीं होते कि किसी एक यात्रा से रिश्तों में नाटकीय
बदलाव आ जाए, पर ऐसी यात्राएं मील के पत्थर का काम जरूर करती हैं। दोनों देशों ने मंगलवार
को तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। उम्मीद है आने वाले वर्षों में ऐसे तमाम समझौते
और होंगे। इस यात्रा से यह निष्कर्ष जरूर निकाला जा सकता है कि आने वाले वर्षों
में यह गठबंधन क्रमशः मजबूत होता जाएगा।
ट्रंप की यात्रा
के पहले दिन अहमदाबाद और आगरा में ये रिश्ते सांस्कृतिक धरातल पर थे और दिल्ली में
दूसरे दिन के कार्यक्रमों में इनका राजनयिक महत्व खुलकर सामने आया। दोनों नेताओं
की संयुक्त प्रेस वार्ता में ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका ने तीन अरब डॉलर के
रक्षा समझौतों पर मुहर लगाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि ट्रेड डील
को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रखने पर सहमति बनी है। इसके अलावा पेट्रोलियम
और नाभिकीय ऊर्जा से जुड़े तथा अंतरिक्ष अनुसंधान और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी
कुछ समझौते हुए हैं। अमेरिका भारत को 5-जी से भी आगे की टेली-तकनीक से जोड़ना
चाहता है।
इन क्षेत्रों में
समझौते पहले भी हुए हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे, पर भारतीय जनता इस वक्त
डोनाल्ड ट्रंप के मुँह से जो बातें सुनना चाहती थी, वह दूसरे दिन दिल्ली में
उन्होंने कही। उन्होंने कहा कि कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई
जारी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि हम पाकिस्तान के साथ बात कर रहे हैं
और आतंकवाद के खिलाफ एक्शन लेने के लिए उसपर दबाव बना रहे हैं।
सोमवार के ट्रंप ने अहमदाबाद में कहा था कि पाकिस्तान हमारा मित्र देश है और
उसके साथ भी हमारे अच्छे रिश्ते हैं। इससे भारत और भारत के बाहर भी यह संदेश गया
कि ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसे
उन्होंने मंगलवार को स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि पाकिस्तान
की धरती से चलने वाले आतंकवाद पर लगाम लगाने की जरूरत है। हम पाकिस्तान की धरती से
चल रहे आतंकवाद को रोकने के लिए कई सकारात्मक कदम उठा रहे हैं। हाल में पाकिस्तानी
प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक से ज्यादा बार कहा है कि हमारे यहाँ आतंकवादी हुआ
करते थे, पर अब नहीं हैं। ट्रंप का यह बयान उनकी इस बात को गलत साबित करता है।
आगामी 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता होने जा रहा है, जिसमें
पाकिस्तान ने अमेरिका की मदद की है, इसलिए ट्रंप का रुख नरम है। पर भारत और
अमेरिका के रिश्तों की जमीन बहुत गहरी है। अफगानिस्तान में भी ट्रंप को भारत की
जरूरत होगी। यह भी सच है कि तालिबान के साथ समझौते के पीछे तालिबान की मजबूरियाँ
भी हैं। वे भी ज्यादा लंबे समय तक लड़ने की स्थिति में नहीं थे। अफगानिस्तान को
यदि आधुनिक दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलना है, तो उसे इस अंधी लड़ाई से बाहर
निकलना ही होगा।
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच सामरिक संबंध बहुत महत्वपूर्ण हो गए
हैं। ट्रंप के इस दौरे में तीन अरब डॉलर के रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं।
जिसमें नौसेना के लिए 23 एमएच 60 रोमियो हेलिकॉप्टर और थलसेना के लिए छह एएच 64ई
अपाचे हेलिकॉप्टर शामिल हैं। देश की जरूरतों को देखते हुए अभी कई बड़े समझौते
भविष्य में होंगे। खासतौर से वायुसेना के लिए 110 और नौसेना के लिए 57 लड़ाकू
विमानों की तलाश भी हो रही है।
भारत अब केवल हथियार ही नहीं खरीदेगा, उनकी तकनीक का हस्तांतरण भी चाहता है। दोनों देशों के बीच
लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लेमोआ) के बाद कम्युनिकेशंस कंपैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट
(कोमकासा) दो समझौते हो चुके हैं। अब बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट
(बेका) और होने वाला है। इस समझौते के बाद दोनों देशों को मिलने वाली सामरिक
सूचनाएं रियल टाइम में एक-दूसरे को मिलने लगेंगी। दोनों देशों के बीच हिंद-प्रशांत
क्षेत्र में सामरिक सहयोग चल रहा है।
जैसाकि पहले से कहा गया था, इस यात्रा में दोनों देशों के बीच दीर्घकालीन
व्यापार समझौते पर दस्तखत नहीं हो पाए। अब यह समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के
बाद ही होगा। इस समझौते के साथ भारत की अर्थव्यवस्था के तमाम पहलू जुड़े हैं। आम
समझ है कि भारत का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी देश चीन है, पर आँकड़ों से यह बात
गलत साबित होती है। हमारा सबसे बड़ा सहयोगी देश अमेरिका है। इतना ही नहीं हमारा
सबसे बड़ा निर्यात भी अमेरिका को होता है। बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका में काम
करते हैं और वहाँ से विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं।
हालात ठीक रहे तो अमेरिकी कंपनियों को भारत में पूँजी निवेश के लिए प्रेरित
किया जा सकता है। भारत को पूँजी और उच्चस्तरीय तकनीक की आवश्यकता है। यह तकनीक
रक्षा के अलावा चिकित्सा, वैज्ञानिक अनुसंधान तथा उपभोक्ता सामग्री के क्षेत्र से
जुड़ी है। चीन के उदय के पीछे भी अमेरिकी तकनीक और पूँजी का हाथ है। हमने अपनी
अर्थव्यवस्था को खोलने में देरी की और साथ ही आधुनिक व्यापार के लिए पर्याप्त
इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं किया। अब हमारा जोर हाइवे, बंदरगाहों और डेडिकेटेड रेलवे
फ्रेड कॉरिडोर जैसे कार्यक्रमों पर है। इनका परिणाम अब मिलने लगा है।
इस यात्रा के साथ ट्रंप अपने देश की जनता को दिखाना चाहते हैं कि मैं भारत में
कितना लोकप्रिय हूँ। ट्रंप परिवार के साथ अमेरिकी जनता ने भारत की विविधता से
परिपूर्ण संस्कृति के दर्शन भी किए। अहमदाबाद की सड़कों पर जिस तरह भारतीय
संस्कृति की झाँकी उनके सामने पेश की गई, उससे भारत की सॉफ्ट पावर भी दुनिया को
नजर आई है। 21 जून, 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय ‘योग’ को मान्यता देकर इसकी शुरुआत की थी। आज दुनिया योग के महत्व को स्वीकार कर
रही है। भारतीय सिनेमा, संगीत और क्रिकेट ने भी इस सॉफ्ट पावर के मार्फत अपनी जगह
बनाई है।
संयुक्त प्रेस
वार्ता में पीएम मोदी ने कहा कि अहमदाबाद में सोमवार को राष्ट्रपति ट्रंप का जैसा
स्वागत हुआ, उसे हमेशा याद रखा जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप खुद
सवा लाख लोगों की उस जनसभा से अभिभूत हैं। पिछले आठ महीने में मोदी और ट्रंप की
पाँचवीं मुलाकात का होना अपने आप में महत्वपूर्ण है।
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