Sunday, June 27, 2021

कश्मीर से सकारात्मक-संदेश


इस हफ्ते 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कश्मीरी नेताओं की वार्ता ने न केवल जम्मू-कश्मीर में बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता की सम्भावनाओं का द्वार खोला है। इस बातचीत के सही परिणाम मिलेंगे या नहीं, यह भी कहना मुश्किल है, पर कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शब्दों में यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। कश्मीर में लोकतांत्रिक-प्रक्रिया की प्रक्रिया शुरू होने के साथ दूसरी प्रक्रियाएं शुरू होंगी, जिनसे हालात को सामान्य बनाने का मौका मिलेगा। इनमें सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक गतिविधियाँ शामिल हैं।

पहले परिसीमन

सरकार ने जो रोडमैप दिया है उसके अनुसार राज्य में पहले परिसीमन, फिर चुनाव और उसके बाद पूर्ण राज्य का दर्जा देने की प्रक्रिया होगी। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव होंगे। उसके पहले अगस्त 2019 में गृहमंत्री अमित साह ने संसद में कहा था कि समय आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा। वस्तुतः यह कश्मीर के नव-निर्माण की प्रक्रिया है।

सन 2019 में संसद से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद मार्च 2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक साल का समय दिया गया था, जिसे इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। 6 मार्च, 2020 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में आयोग का गठन किया था।

प्रधानमंत्री के साथ बातचीत का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि पूरी बातचीत में बदमज़गी पैदा नहीं हुई। बैठक में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री ऐसे थे, जो 221 दिन से 436 दिन तक कैद में रहे। उनके मन में कड़वाहट जरूर होगी। वह कड़वाहट इस बैठक में दिखाई नहीं पड़ी। बेशक बर्फ पिघली जरूर है, पर आगे का रास्ता आसान नहीं है।

Friday, June 25, 2021

जम्मू-कश्मीर में अब तेज होगी चुनाव-क्षेत्रों के परिसीमन की व्यवस्था


कश्मीर में पहले परिसीमन, फिर चुनाव और पूर्ण राज्य का दर्जा। सरकार ने अपना रोडमैप स्पष्ट कर दिया है। संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पारित होने के बाद मार्च  2020 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिए एक साल का समय दिया गया था, जिसे इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है।

पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव होंगे। 6 मार्च, 2020 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में आयोग का गठन किया। जस्टिस देसाई के अलावा चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर राज्य के चुनाव आयुक्त केके शर्मा आयोग के सदस्य हैं। इसके अलावा आयोग के पाँच सहायक सदस्य भी हैं, जिनके नाम हैं नेशनल कांफ्रेंस के सांसद फारूक अब्दुल्ला, मोहम्मद अकबर लोन और हसनैन मसूदी। ये तीनों अभी तक आयोग की बैठकों में शामिल होने से इनकार करते रहे हैं। अब आशा है कि ये शामिल होंगे। इनके अलावा पीएमओ के राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह और भाजपा के जुगल किशोर शर्मा के नाम हैं।

इस आयोग को एक साल के भीतर अपना काम पूरा करना था, जो इस साल मार्च में एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है। कोरोना के कारण आयोग निर्धारित समयावधि में अपना काम पूरा नहीं कर पाया। यदि लद्दाख की चार सीटों को अलग कर दें, तो पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र की सीटों को मिलाकर इस समय की कुल संख्या 107 बनती है, जो जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत 111 हो जाएगी। बढ़ी हुई सीटों का लाभ जम्मू क्षेत्र को मिलेगा।  

दक्षिण एशिया में शांति और विकास की राह भी कश्मीर से होकर गुजरेगी


 अच्छी बात यह है कि गुरुवार को प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की बातचीत में बदमज़गी नहीं थी। इस बैठक में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री ऐसे थे, जो 221 दिन से 436 दिन तक कैद में रहे। उनके मन में कड़वाहट जरूर होगी। वह कड़वाहट इस बैठक में दिखाई नहीं पड़ी। बेशक इससे बर्फ पिघली जरूर है, पर आगे का रास्ता आसान नहीं है।

इस बातचीत पहले देश के प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की वार्ता का एक उदाहरण और है। 23 जनवरी 2004 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कश्मीर के (हुर्रियत के) अलगाववादी नेताओं की बात हुई थी। तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें बुलाया था। उस बातचीत के नौ महीने पहले अटल जी ने श्रीनगर की एक सभा में इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का संदेश दिया था।

पाकिस्तान की कश्मीर-योजना

तब में और अब में परिस्थितियों में गुणात्मक परिवर्तन आया है। कश्मीरी मुख्यधारा की राजनीति के सामने भी अस्तित्व का संकट है और दिल्ली में जो सरकार है, वह कड़े फैसले करने को तैयार हैं। दोनों पक्षों के पास टकराव का एक अनुभव है। समझदारी इस बात में है कि दोनों अब आगे का रास्ता समझदारी के साथ तय करें। हालात को सुधारने में पाकिस्तान की भूमिका भी है। भारत-द्वेष की कीमत भी उन्हें चुकानी होगी। सन 1965 के बाद से पाकिस्तान ने कश्मीर को जबरन हथियाने का जो कार्यक्रम शुरू किया है, उसकी वजह से उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच गई है।

भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार यदि एक प्लेटफॉर्म पर आकर आर्थिक सहयोग करें तो यह क्षेत्र चीन की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से विकास कर सकता है। यह सपना है, जो आसानी से साकार हो सकता है। इसके लिए सभी पक्षों को समझदारी से काम करना होगा।

एकीकरण की जरूरत

गत 18 फरवरी को नरेंद्र मोदी ने चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय सहयोग योजना के संदर्भ में कहा था कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ ‘कोविड-19 प्रबंधन, अनुभव और आगे बढ़ने का रास्ता’ विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही। इस बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया। बैठक में यह भी कहा गया कि ‘अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी।’ पाकिस्तान ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।

मोदी ने कहा, महामारी के दौरान देखी गई क्षेत्रीय एकजुटता की भावना ने साबित कर दिया है कि इस तरह का एकीकरण संभव है। कई विशेषज्ञों ने घनी आबादी वाले एशियाई क्षेत्र और इसकी आबादी पर महामारी के प्रभाव के बारे में विशेष चिंता व्यक्त की थी, लेकिन हम एक समन्वित प्रतिक्रिया के साथ इस चुनौती सामना कर रहे हैं। इस बैठक और इस बयान के साथ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर गौर करना बहुत जरूरी है। कोविड-19 का सामना करने के लिए भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी इन दिनों खासतौर से चर्चा का विषय है। इस वक्तव्य के एक हफ्ते बाद 25 फरवरी को भारत और पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम की घोषणा की।

Thursday, June 24, 2021

परिसीमन के बाद होंगे कश्मीर में चुनाव

 


प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की करीब तीन घंटे तक चली वार्ता सम्पन्न हो गई है। हालांकि अभी सरकारी ब्रीफिंग नहीं हुई है, पर बातचीत से बाहर निकले कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने बताया कि बातचीत ने हमारी तरफ से पाँच बातें रखी गईं। राज्य का दर्जा जल्द बहाल हो, विधान सभा चुनाव कराए जाएं, कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो, सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाए और स्थायी निवास को बनाए रखा जाए।

जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के नेता अल्ताफ बुखारी ने बैठक के बाद कहा, बातचीत बड़े अच्छे माहौल में हुई। प्रधानमंत्री ने सभी नेताओं के मुद्दे सुने। पीएम ने कहा कि परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चुनाव को लेकर प्रक्रिया शुरू की जाएगी। गुलाम नबी ने बताया कि बैठक में सभी नेताओं को किसी भी विषय पर, कितना भी बोलने की छूट थी। पहले प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने अपनी बात रखी।

आजाद के मुताबिक, सरकार ने कोविड को चुनावों में देरी की वजह बताया। बैठक में शामिल बीजेपी नेता कवींद्र गुप्ता ने बताया कि पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) की नेता महबूबा मुफ्ती ने बैठक के दौरान पाकिस्तान का नाम लिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ व्यापार जारी रहना चाहिए।

उधर सरकारी सूत्रों का कहना है कि हम सभी मसलों पर विचार-विमर्श के लिए तैयार हैं। फिलहाल हम चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि चुनाव कराए जा सकें। परिसीमन का काम पूरा होने के बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराए जाएंगे। गृहमंत्री ने कहा कि पूरी प्रक्रिया के तहत पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल किया जाएगा।

पंजाब में कांग्रेस का संशय


कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से 18 चुनावी वायदों को एक समय-सीमा में पूरा करने को कहा है। वायदों को पूरा करने के निर्देश में कुछ गलत नहीं है, पर इस बात की सार्वजनिक घोषणा के मायने हैं। दूसरे अमरिंदर सिंह दिल्ली आए, दो दिन रहे और सोनिया गांधी या राहुल गांधी से उन्हें मिलने का अवसर नहीं मिला। बुधवार को राहुल गांधी ने हरीश रावत, पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़, सांसदों मनीष तिवारी और प्रताप सिंह बाजवा, राज्य के वित्तमंत्री मनप्रीत बादल और विधायक इंदरबीर बुलारिया से मुलाकात की।

ऐसा लगता है कि पार्टी हाईकमान पंजाब को लेकर सक्रिय जरूर है, पर समाधान आसान नहीं है। कैप्टेन की अनदेखी नहीं हो सकती और सिद्धू की महत्वाकांक्षाओं को रोका नहीं जा सकता। दूसरी तरफ राजस्थान में सचिन पायलट के खेमे की सुनवाई उस स्तर पर नहीं हो रही है, जिस स्तर पर नवजोत सिद्धू खेमे की है। सिद्धू प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष बनना चाहते हैं, ताकि अगले चुनाव में ज्यादा से ज्यादा विधायक उनके समर्थक हों। पर वे बाहर से पार्टी में आए हैं और संगठन में मामूली पैठ और सीमित जानकारी ही उनके पास है। यह स्पष्ट है कि वे राहुल गांधी के सम्पर्क से पार्टी में आए हैं और उनका वह बयान प्रसिद्ध है, जिसमें उन्होंने कहा था, कौन कैप्टेन, मेरे कैप्टेन राहुल गांधी हैं।

पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने कहा है कि पार्टी अध्यक्ष जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते तक इस मामले में कोई फैसला करेंगी। अलबत्ता पार्टी ने मुख्यमंत्री से 18 मामलों पर काम करने को कहा है। मुख्यमंत्री इस विषय पर प्रेस कांफ्रेंस करके जानकारी देंगे। दूसरी तरफ हाईकमान ने सिद्धू के हाल के बयानों को लेकर भी अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में बनी तीन सदस्यीय समिति ने सिद्धू को दिल्ली बुलाया है और अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।

सूत्रों के मुताबिक हाईकमान ने माना है कि सिद्धू को किसी भी तरह के मतभेद की बात पार्टी फोरम में ही रखनी चाहिए थी पार्टी के पैनल ने अमरिंदर सिंह को ही 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए कैप्टन बनाए रखने पर सहमति जताई है और उन्हें टीम चुनने के लिए फ्री-हैंड दिया है।