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Sunday, February 21, 2021

पिछड़ा क्यों दक्षिण एशिया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले गुरुवार को चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय सहयोग योजना के संदर्भ में कहा कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ कोविड-19 प्रबंधन, अनुभव और आगे बढ़ने का रास्ता विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही। इस बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया। बैठक में यह भी कहा गया कि अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी। पाकिस्तान ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।

मोदी ने कहा, महामारी के दौरान देखी गई क्षेत्रीय एकजुटता की भावना ने साबित कर दिया है कि इस तरह का एकीकरण संभव है। कई विशेषज्ञों ने घनी आबादी वाले एशियाई क्षेत्र और इसकी आबादी पर महामारी के प्रभाव के बारे में विशेष चिंता व्यक्त की थी, लेकिन हम एक समन्वित प्रतिक्रिया के साथ इस चुनौती सामना कर रहे हैं। इस बैठक और इस बयान के साथ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर गौर करना बहुत जरूरी है। कोविड-19 का सामना करने के लिए भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी इन दिनों खासतौर से चर्चा का विषय है।

वैक्सीन राजनय

पाकिस्तान को छोड़कर, सभी पड़ोसी देशों को भारत ने वैक्सीन दी है। पाकिस्तान को चीन से पाँच लाख खुराकें मिली हैं, पर वहाँ इन दिनों कहा जा  रहा है कि हमें भारत से वैक्सीन माँगनी चाहिए। पाकिस्तान के औषधि नियामक ने सबसे पहले भारत के सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को स्वीकृति दी है। इसका मतलब क्या है? भारत की हर पहल, हर प्रस्ताव पर सिर्फ विरोध करने की अपनी आदत में क्या पाकिस्तान बदलाव ला रहा है? क्या हम दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की उम्मीद करें? क्या हम दक्षेस को फिर से सक्रिय कर सकते हैं?

Wednesday, September 6, 2023

ठंडा क्यों पड़ा दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय-सहयोग?

 


भारत-उदय-05

भारतीय विदेश-नीति की सबसे बड़ी परीक्षा अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने में है. दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम कुछ इस प्रकार घूमा है कि दक्षिण एशिया की घड़ी की सूइयाँ अटकी रह गई हैं. भारत ने दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ को अपनाया है. ‘नेबरहुड फर्स्ट’ का अर्थ अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने से है.

इस उदार दृष्टिकोण के बावजूद दक्षिण एशिया दुनिया के उन क्षेत्रों में शामिल है, जहाँ क्षेत्रीय-सहयोग सबसे कम है. हम आसियान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर सकते हैं, पर दक्षिण एशिया में उससे कहीं कमतर समझौता भी पाकिस्तान से नहीं कर सकते. 1985 में बना दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) आज ठंडा पड़ा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कश्मीर.

Wednesday, October 16, 2024

असमंजस और अशांति के दौर में एससीओ का इस्लामाबाद सम्मेलन


पाकिस्तान में मंगलवार से शुरू हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक भारत-पाकिस्तान रिश्तों के लिहाज से भले ही महत्वपूर्ण नहीं हो, पर क्षेत्रीय सहयोग, ग्लोबल-साउथ और खासतौर से चीन के साथ भारत के रिश्तों े लिहाज से महत्वपूर्ण है.  

यह बैठक पाकिस्तानी-प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई है. हाल की आतंकवादी हिंसा और राजनीतिक-अशांति का साया सम्मेलन पर मंडरा रहा है. अंदेशा है कि इस दौरान कोई अनहोनी न हो जाए.

शिखर सम्मेलन से पहले के कुछ हफ्तों में, पाकिस्तान सरकार ने अपने विरोधियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की है. एक जातीय-राष्ट्रवादी आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया है और राजधानी में विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित कर दिया गया है.

राजधानी को वस्तुतः शेष देश से अलग कर दिया गया है और सड़कों पर सेना तैनात कर दी गई है. जेल में कैद इमरान खान के सैकड़ों समर्थकों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने इस महीने इस्लामाबाद में मार्च करने का प्रयास किया था.

पिछले सप्ताह कराची में चीनी इंजीनियरों के काफिले पर हुए घातक हमले ने भी देश में सुरक्षा संबंधी आशंकाओं को बढ़ा दिया है, जहाँ अलगाववादी समूह लगातार चीनी नागरिकों को निशाना बनाते रहे हैं.

जयशंकर की उपस्थिति

एससीओ की कौंसिल ऑफ हैड ऑफ गवर्नमेंट्स (सीएचजी) की इस बैठक में सात देशों के प्रधानमंत्री और ईरान के प्रथम उपराष्ट्रपति भाग लेंगे. भारत का प्रतिनिधित्व विदेशमंत्री एस जयशंकर करेंगे.

Thursday, August 22, 2024

दक्षिण एशिया में भारत पर बढ़ता दबाव


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को भारत की ओर से ‘ग्लोबल साउथ' के लिए कुछ पहलों की घोषणाएं की हैं, वहीं कुछ पर्यवेक्षक बांग्लादेश की परिघटना का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि भारत की भूमिका, दक्षिण एशिया में कमतर हो रही हैं, ऐसे में ‘ग्लोबल साउथ' को कैसे साध पाएंगे

चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (बीआरआई) के तहत कई देशों के ‘ऋण-जाल' में फँसने की चिंताओं के बीच पीएम मोदी ने भारत द्वारा आयोजित तीसरे ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ' सम्मेलन में ‘कॉम्पैक्ट' (वैश्विक विकास समझौते) की घोषणा की.

शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में उन्होंने कहा, मैं भारत की ओर से एक व्यापक वैश्विक विकास समझौतेका प्रस्ताव रखना चाहूंगा. इस समझौते की नींव भारत की विकास यात्रा और विकास साझेदारी के अनुभवों पर आधारित होगी.

भारत की पहल

शिखर सम्मेलन में भारत समेत 123 देशों ने हिस्सा लिया और ग्लोबल साउथ की साझा चिंताओं और प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श किया. उल्लेखनीय है कि चीन और पाकिस्तान इस सम्मेलन में शामिल नहीं थे. बांग्लादेश के शासनाध्यक्ष डॉ यूनुस ने इसमें भाग लिया.

सम्मेलन के वैचारिक-पक्ष को विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट करते हुए कहा कि इसकी टाइमिंग महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बाद न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र का समिट ऑफ द फ्यूचर होगा. जिन मुद्दों पर यहां चर्चा हुई है, उन पर वहाँ भी चर्चा होगी.

फिलहाल यह सम्मेलन भारत की पहल और विकासशील देशों के बीच उसकी आवाज़ को रेखांकित करता है. चीन भी इस दिशा में सक्रिय है. ग्लोबल साउथ से ज्यादा इस समय बड़े सवाल दक्षिण एशिया को लेकर पूछे जा रहे हैं.

विस्मृत दक्षिण एशिया

एक विशेषज्ञ ने तो यहाँ तक माना है कि दक्षिण एशिया जैसी भौगोलिक-राजनीतिक पहचान अब विलीन हो चुकी है. जैसे पश्चिम एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया की पहचान है, वैसी पहचान दक्षिण एशिया की नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण है भारत-पाकिस्तान गतिरोध.

बांग्लादेश में शेख हसीना के पराभव और आसपास के ज्यादातर देशों में भारत-विरोधी राजनीतिक ताकतों के सबल होने के कारण पूछा जाने लगा है कि क्या इस दक्षिण एशिया में भारत का रसूख पूरी तरह खत्म हो गया है? इस इलाके के सर्वाधिक प्रभावशाली देश के रूप में क्या अब चीन स्थापित हो गया है, या हो जाएगा?

ऐसे सवालों का जवाब देने की घड़ी अब आ रही है. जवाब संयुक्त राष्ट्र के सुधार कार्यक्रमों और भारतीय अर्थव्यवस्था के बदलते आकार में छिपे हैं. ये दोनों बातें एक-दूसरे से जुड़ी हुई भी हैं.

नेबरहुड फर्स्ट

2014 में नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी तो उन्होंने पड़ोसी देशों के शासनाध्यक्षों को भारत आने का न्योता देकर चौंकाया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ भी उसमें शामिल हुए थे.

मोदी सरकार पहले दिन से कहती रही है कि भारत की विदेश नीति में पड़ोसी देशों को सबसे ज़्यादा महत्व मिलेगा. इसे 'नेबरहुड फ़र्स्ट' का नाम दिया गया है. मतलब यह कि दूर के देशों की तुलना में भारत, पड़ोसी देशों को ज़्यादा अहमियत देगा.

कोरोना महामारी के समय सहायता पहुँचाने और खासतौर से वैक्सीन देते समय ऐसा दिखाई भी पड़ा. बावजूद इसके दक्षिण एशिया में कारोबारी सहयोग का वैसा माहौल नहीं है, जैसा दक्षिण पूर्व एशिया सहयोग संगठन आसियान में है.

वैश्विक राजनीति

इस दौरान भारत ने अपने आर्थिक और सामरिक-संबंधों के लिए अमेरिका, रूस, जापान और इसराइल जैसे देशों को वरीयता दी. दक्षिण एशिया की तुलवा में उसके पश्चिम एशिया में यूएई, सऊदी अरब और ईरान के साथ रिश्ते बेहतर हैं. मोदी सरकार के पहले छह वर्षों में चीन से रिश्ते सुधारने की कोशिशें भी हुई थीं.

प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के नेपाल (अगस्त, 2014), श्रीलंका (मार्च, 2015) और बांग्लादेश (जून, 2015) में गर्मजोशी से स्वागत किया गया था. पाकिस्तान के साथ भी कुछ समय तक यह गर्मजोशी रही, पर जनवरी 2016 में पठानकोट हमले के बाद वह बात खत्म हो गई और फरवरी 2019 में पुलवामा और बालाकोट जैसी घटनाओं के बाद बड़े युद्ध की आशंकाओं ने जन्म भी दिया.

अगस्त, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी ने दोनों देशों के रिश्तों को ऐसा सीलबंद किया है कि उसके खुलने का अबतक इंतज़ार है. पाकिस्तान ने तो औपचारिक रूप से भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बंद ही कर रखे हैं.

श्रीलंका और मालदीव

भारी आर्थिक संकट के दौर में भारत ने श्रीलंका की काफी मदद की थी, वहां की सरकार ने भी दिल्ली की टेढ़ी निगाहों को नज़रंदाज़ किया और चीन के जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर लंगर डालने की अनुमति दी थी. ऐसा ही मालदीव में हुआ, जहाँ इंडिया आउट जैसा अभियान चला.

इस आंदोलन के सहारे भारत-समर्थक सरकार को सत्ता से हटा कर राष्ट्रपति बने मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने अपने देश से भारतीय सैन्यकर्मियों को हटाया और चीनी जासूसी जहाज को लंगर डालने की अनुमति दी, जबकि श्रीलंका तक ने उस जहाज को आने से रोक दिया है.

नेपाल में नए संविधान को लागू करने के दौरान भारत के मौन समर्थन से चलाए गए 'आर्थिक नाकेबंदी' कार्यक्रम को लेकर जो बदमज़गी पैदा हुई थी, वह दोनों देशों की सीमा को लेकर विवाद में बदल चुकी है. नेपाल ने अपने नए आधिकारिक नक्शे के रूप में उस कड़वाहट को स्थायी रूप दे दिया है.

इस क्षेत्र का सबसे शांत देश भूटान सामरिक, विदेशी और आर्थिक, लगभग तमाम मामलों में भारत पर निर्भर है, उसने भी अकेले अपने दम पर चीन के साथ सीमा पर बातचीत शुरू कर दी है. केवल बातचीत ही शुरू नहीं की है, बल्कि राजनयिक स्तर पर रिश्ते बनाने की शुरुआत भी कर दी है.

हसीना का पराभव

इतने देशों के साथ कड़वाहट के बावज़ूद भारत-बांग्लादेश रिश्ते बेहतर स्थिति में थे. अब वहाँ शेख हसीना को अपदस्थ होना पड़ा है और वहाँ ऐसी राजनीतिक शक्तियाँ सक्रिय हो गई हैं, जिन्हें भारत का मित्र नहीं कहा जा सकता.

क्या यह बात भारत की विदेश नीति के दोषों की ओर इशारा कर रही है या ऐसी वैश्विक-परिस्थितियों की ओर इशारा कर रही हैं, जिनमें चीन-अमेरिका और यूरोपीय देशों की भूमिका है? या यह मानें कि दक्षिण एशिया के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास और इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक संरचना के कारण इस इलाके के देश भारत की केंद्रीयता को स्वीकार करने में हिचकते हैं?

पहले यह स्वीकार करना होगा कि दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे कम एकीकृत क्षेत्र है. यहां एक देश से दूसरे देश में आवाजाही या अंतरराष्ट्रीय सीमा संबंध जितने कठिन और जटिल हैं, उतना दुनिया के किसी और इलाक़े में नहीं हैं.

कारोबार की बात करें तो ग़रीब अफ़्रीकी देशों के बीच जितना आपसी व्यापार होता है उसकी तुलना में भी दक्षिण एशिया के देशों का आपसी व्यापार नहीं होता है, जबकि इस क्षेत्र में 200 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं.

भारत की केंद्रीयता

इन देशों के केंद्र में भारत जैसा देश है, जो इस समय दुनिया की सबसे तेज गति से विकसित होती अर्थव्यवस्था है. फिर भी इस इलाके में एकीकरण की भावना गायब है. दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (दक्षेस) संभवतः दुनिया का सबसे निष्क्रिय संगठन है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के साथ निरंतर टकराव के कारण भारत ने दक्षेस के स्थान पर बंगाल की खाड़ी से जुड़े पाँच देशों के संगठन बिम्स्टेक पर ध्यान देना शुरू किया है.

भारत के पड़ोस के राजनीतिक माहौल पर एक नज़र डालें. 2021 में म्यांमार और अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन हुए. 2022 में पाकिस्तान में इमरान सरकार का पराभव हुआ. उसी साल श्रीलंका में भीड़ ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षा को भागने को मज़बूर किया. 2023 में मालदीव में सत्ता परिवर्तन हुआ.

नेपाल में लगातार राजनीतिक अस्थिरता चल रही है. और अब बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन हुआ है. यह सब शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित लोकतांत्रिक तरीके से हुआ होता, तब अलग बात थी. इस बात का श्रेय भारत को मिलना चाहिए, जिसने इस इलाके में अराजकता को फैसले से रोक रखा है. 

अराजक राजनीति

दक्षिण एशिया की आर्थिक बदहाली की वजह को खोजने के लिए भारत की नीतियों के अलावा इन सभी देशों की आंतरिक-परिस्थितियों पर भी नज़र डालनी चाहिए. हमारे सभी पड़ोसी देशों में जबर्दस्त उथल-पुथल चल रही है, जिसकी अभिव्यक्ति लगातार बदलते रिश्तों के रूप में होती है. इसके सबसे अच्छे उदाहरण श्रीलंका और मालदीव हैं.

जिस समय बांग्लादेश की उथल-पुथल की खबरें आ रही थी, हमारे विदेशमंत्री एस जयशंकर मालदीव के दौरे पर थे. वहां उन्हें राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू  का जैसा दोस्ताना रवैया दिखा, वह भी विस्मय की बात थी.

पिछले एक साल में मालदीव को भी कई प्रकार के अनुभव हुए हैं, पर भारत ने धैर्य के साथ परिस्थितियों के अनुरूप खुद को बदला और लगता है कि उसे सफलता मिली है. और अब ऐसा ही बांग्लादेश में भी देखने को मिल सकता है.

कुछ दूसरी बातों की ओर भी हमें ध्यान देना होगा. भारत के साथ इन देशों के क्षेत्रफल, सैनिक और आर्थिक शक्ति तथा वैश्विक प्रभाव में भारी अंतर है. केवल पाकिस्तान ही एक बड़ा देश है, जो ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने से घबराता है.

पाकिस्तान की भूमिका

पाकिस्तानी शासक मानते हैं कि भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने का मतलब है विभाजन की निरर्थकता को स्वयंसिद्ध मान लेना. उनके अंतर्विरोध लगातार टकराव के रूप में व्यक्त होते हैं, जो उनके लिए ही घातक साबित होते हैं. पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली में इसी नज़रिए का हाथ है.

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सुधरेंगे, तो दक्षिण एशिया का न केवल रूपांतरण होगा, बल्कि उस भू-राजनीतिक पहचान का महत्व भी रेखांकित हो सकेगा, जो हजारों वर्षों में विकसित हुई है. इस बात को स्वीकार करना होगा कि भारतीय भूखंड का सांप्रदायिक आधार पर हुआ कृत्रिम राजनीतिक-विभाजन तमाम समस्याओं के लिए जिम्मेदार है.

अमेरिका समेत ज्यादातर पश्चिमी देशों ने भारत के उभार को स्वीकार नहीं किया, बल्कि उसके स्थान पर चीन को महत्व दिया. वहीं भारतीय राजव्यवस्था ने खुली अर्थव्यवस्था को अपनाने में कम से कम चीन-चार दशक की देरी की. अब चीन हमारे पड़ोस में बड़े निवेश करने की स्थिति में है, जिससे उसे सामरिक लाभ भी मिलता है.

हिंदू-देश की छवि

दक्षिण एशिया का इतिहास भी रह-रहकर बोलता है. शक्तिशाली-भारत की पड़ोसी देशों के बीच नकारात्मक छवि बनाई गई है. मालदीव और बांग्लादेश का एक तबका भारत को हिंदू-देश के रूप में देखता है. पाकिस्तान की पूरी व्यवस्था ही ऐसा मानती है और भारत को दुश्मन की तरह पेश करती है.

इन देशों में प्रचार किया जाता है कि भारत में मुसलमान दूसरे दर्ज़े के नागरिक हैं. श्रीलंका में भारत को बौद्ध धर्म विरोधी हिंदू-व्यवस्था माना जाता है. हिंदू-बहुल नेपाल में भी भारत-विरोधी भावनाएं बहती हैं. वहाँ मधेशियों, श्रीलंका में तमिलों और बांग्लादेश में हिंदुओं को भारत-हितैषी माना जाता है.

दूसरी तरफ चीन ने इन देशों को बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) और इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश का लालच दिया है. पाकिस्तान और चीन ने भारत-विरोधी भावनाओं को बढ़ाने में कसर नहीं छोड़ी है.

चीनी सहयोग

कुछ पर्यवेक्षकों को लगता है कि भारत को चीन के साथ मिलकर अपने पड़ोस के साथ रिश्ते बेहतर बनाने चाहिए. शायद मोदी सरकार का पहला इरादा ऐसा ही था, पर 2020 के गलवान प्रकरण के बाद इस रास्ते पर बढ़ना देश की आंतरिक राजनीति के दृष्टिकोण से व्यावहारिक नहीं रहा. 

दक्षिण एशिया का आर्थिक और लोकतांत्रिक विकास तभी संभव है, जब भारत की केंद्रीयता को स्वीकार किया जाएगा. यदि भारत के विरुद्ध चीनी-पाकिस्तानी कार्ड खेले जाते रहेंगे. तब तक इस इलाके में स्थिरता आ भी नहीं पाएगी. यह बात पड़ोसी देशों की समझ में भी आनी चाहिए.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

Thursday, July 9, 2015

अमेरिका के बाद अब रूस-चीन दोस्ती

आज उफा में भारत और पाकिस्तान के एकसाथ शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने की घोषणा होगी. रूस और चीन दोनों का आग्रह और समर्थन इनकी सदस्यता को लेकर है. मई की चीन यात्रा के बाद से घटनाक्रम काफी बदला है. खासतौर से पाकिस्तान के बरक्स चीन और रूस दोनों के रिश्तों में बदलाव आया है. शायद वैश्विक राजनीति की धारा बदल रही है, पर देखना यह है कि भारत एक ओर अमेरिका और जापान के साथ और दूसरी ओर रूस-चीन के साथ रिश्तों का मेल किस तरह बैठाएगा. हालांकि अभी काफी बातें साफ नहीं हैं, पर लगता है कि रूस और चीन की धुरी बन रही है. देखते ही देखते चीन का रूस से पेट्रोलियम आयात कहाँ से कहाँ पहुँच गया है. दोनों देश अब मध्य एशिया में सक्रिय हो रहे हैं. अफगानिस्तान में भी दोनों की दिलचस्पी है.  शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. यह संगठन वैश्विक आर्थिक-राजनीतिक गतिविधियों का नया केंद्र बनेगा. इसे पूरी तरह रूस-चीन धुरी का केंद्र नहीं कह सकते, पर इसके तत्वावधान में बन रहा विकास बैंक  एक नई समांतर व्यवस्था के रूप में जरूर उभरेगा. उधर चीन ने एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) की आधारशिला डालकर एशिया विकास बैंक और अमेरिकी-जापानी प्रभुत्व को चुनौती दे दी है. इन व्यवस्थाओं से लाभ यह होगा कि विकासशील देशों में पूँजी निवेश बढ़ेगा और खासतौर से आधार ढाँचा मजबूत होगा, पर सामरिक टकराव भी बढ़ेंगे.  भारतीय विदेश नीति में 'एक्ट ईस्ट' के बाद 'कनेक्ट सेंट्रल एशिया' की योजना भी नरेंद्र मोदी की इस विदेश-यात्रा के दौरान सामने आई है.

वैश्विक राजनीति और अर्थ-व्यवस्था में तेजी से बदलाव आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्य एशिया और रूस की इस यात्रा पर गौर करें तो इस बदलाव की झलक देखने को मिलेगी. इस यात्रा के तीन अलग-अलग पहलू हैं, जिनका एक-दूसरे से सहयोग का रिश्ता है और आंतरिक टकराव भी हैं. इसका सबसे बड़ा प्रमाण आज 9 जुलाई को रूस के उफा शहर में देखने को मिलेगा, जहाँ शंघाई (शांगहाई) सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन है. इसमें भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्य का दर्जा मिलने वाला है. यह राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक सहयोग का संगठन है. इसमें भारत और पाकिस्तान का एकसाथ शामिल होना निराली बात है. इसके बाद उफा में ब्रिक्स देशों का सातवाँ शिखर सम्मेलन है. ब्रिक्स देश एक नई वैश्विक संरचना बनाने में लगे हैं, जो पश्चिमी देशों की व्यवस्था के समांतर है.

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के समांतर एक नई व्यवस्था कायम होने जा रही है. यह व्यवस्था ऐसे देश कायम करने जा रहे हैं, जिनकी राजनीतिक और आर्थिक संरचना एक जैसी नहीं है और सामरिक हित भी एक जैसे नहीं हैं, फिर भी वे सहयोग का सामान इकट्ठा कर रहे हैं. यह व्यवस्था पश्चिमी देशों के नियंत्रण वाली व्यवस्था के समांतर है, बावजूद इसके यह उसके विरोध में नहीं है. ब्रिक्स में भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की राजनीतिक व्यवस्था पश्चिमी देशों के तर्ज पर उदार है, वहीं चीन और रूस की व्यवस्था अधिनायकवादी है. बावजूद इसके सहयोग के नए सूत्र तैयार हो रहे हैं. इससे जुड़े कुछ संशय भी सामने हैं.

Sunday, November 16, 2014

मोदी का 'एक्ट ईस्ट'

भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी को देश के नए नेतृत्व ने एक्ट ईस्ट का एक नया रंग दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर हैं, जहाँ एक और भारत-ऑस्ट्रेलिया रिश्तों पर बात होगी वहीं वे ब्रिसबेन में हो रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। वैश्विक अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने, पश्चिम एशिया में इस्लामिक स्टेट के नाम के एक नए आंदोलन के खड़े होने और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बदलते परिदृश्य के विचार से यह सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण है। ब्राजील में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के बाद नरेंद्र मोदी का यह सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय संवाद भी है। इसके पहले वे म्यांमार में हुए आसियान शिखर सम्मेलन और ईस्ट एशिया समिट में हिस्सा लेकर आए हैं, जहाँ उन्होंने भारत के आर्थिक बदलाव का जिक्र करने के अलावा भारत की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं का उल्लेख भी किया। उन्होंने लुक ईस्ट के संवर्धित रूप एक्ट ईस्ट का जिक्र भी इस बार किया।

Thursday, September 15, 2016

पूरब में भारत

अगस्त 2014 में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने वियतनाम की राजधानी हनोई में कहा कि मोदी सरकार भारत की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ को सार्थक बनाते हुए उसे ‘एक्टिंग ईस्ट’ का रूप देना चाहती है। मई में विदेशमंत्री बनने के बाद वह सुषमा स्वराज की छठी विदेश यात्रा थी। उसके अगले महीने सितम्बर 2014 में तीन बड़ी गतिविधियों ने भारत की विदेश नीति को नई दिशा दी। महीने के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान यात्रा पर गए। तीसरे हफ्ते में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आए और महीने के अंतिम सप्ताह में प्रधानमंत्री अमेरिका यात्रा पर गए।

Friday, February 26, 2021

भारत-पाक रिश्तों को लेकर सकारात्मक खबर


पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान की ओर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया था, जिसमें उन्होंने चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय सहयोग योजना के संदर्भ में कहा कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ कोविड-19 प्रबंधन, अनुभव और आगे बढ़ने का रास्ता विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही थी। उस बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया था। बैठक में यह भी कहा गया कि अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी। पाकिस्तान ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।

यह केवल संयोग नहीं है कि दोनों देशों ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच गोलीबारी रोकने के सन 2003 के समझौते को पुख्ता तरीके से लागू करने की घोषणा की है। उधर दूसरी खबर यह है कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जून तक ग्रे लिस्ट में ही रखने का फैसला किया है। पाकिस्तान लगातार अपनी छवि सुधारने का प्रयास कर रहा है। तीसरे भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर शांति बनाए रखने की जो बातचीत चल रही है, उसके बहुत से पहलू भारत-पाकिस्तान रिश्तों से भी जुड़ते हैं। चीन की दिलचस्पी भारत से रिश्तों को एकदम खराब करने में नहीं है। यों लगता है कि भारत ने अपने मित्र देशों को घटनाक्रम से परिचित करा रखा होगा। अमेरिका की प्रतिक्रिया से ऐसा लगता है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता का कहना है कि हमने दोनों देशों को आपसी मसलों को सीधे बातचीत से सुलझाने की  सलाह दी है। 

भारतीय प्रतिक्रिया

युद्धविराम की घोषणा के कुछ घंटों के भीतर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि भारत, पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी जैसे रिश्ते चाहता है और शांतिपूर्ण तरीके से सभी मुद्दों को द्विपक्षीय ढंग से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा, ‘भारत, पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी जैसे रिश्ते चाहता है और शांतिपूर्ण तरीके से सभी मुद्दों को द्विपक्षीय ढंग से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।’ दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम को लेकर फैसला बुधवार आधी रात से लागू हो गया।

इन खबरों के पीछे की खबर यह है कि भारत-पाकिस्तान के बीच पिछले तीन महीने से बैक-चैनल बातचीत चल रही थी। इस सिलसिले में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के रक्षा मामलों में विशेष सलाहकार मोईद युसुफ के बीच किसी तीसरे देश में मुलाकात भी हुई है। बताया यह भी जाता है कि अजित डोभाल और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच भी सम्पर्क है। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने भी इसकी पृष्ठभूमि पर रोशनी डाली है। इसका मतलब यह भी है कि दोनों देशों के बीच आने वाले समय में कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। हालांकि पाकिस्तानी सूत्रों ने दोनों देशों के रक्षा सलाहकारों के बीच मुलाकात की बातों का खंडन किया है, पर लगता यह है कि दोनों सरकारें इस सम्पर्क को धीरे-धीरे ही सामने लाना चाहती हैं। दोनों तरफ इतनी ज्यादा बदमज़गी फैल चुकी है कि उसे रास्ते पर लाने में समय लगेगा।

Thursday, October 10, 2024

भारत-पाकिस्तान रिश्ते और क्षेत्रीय-सहयोग के स्वप्न


इस महीने 15-16 को इस्लामाबाद में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेशमंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान जा रहे हैं. उनकी यात्रा को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या इसे दोनों देशों के संबंध-सुधार की शुरुआत माना जाए?  

हालांकि विदेश मंत्रालय और स्वयं विदेशमंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा द्विपक्षीय-संबंधों को लेकर नहीं है, फिर भी सम्मेलन से बाहर, खासतौर से मीडिया में, रिश्तों को लेकर चर्चा जरूर होगी. पर यह चर्चा आधिकारिक रूप से नहीं होगी, सम्मेलन के हाशिए पर भी नहीं.

दूसरी तरफ सम्मेलन में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत-पाकिस्तान प्रसंग प्रतीकों के माध्यम से उठेंगे. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय-सहयोग और साइबर-सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा के दौरान ऐसी बातें हों, तो हैरत नहीं होगी.

Wednesday, June 24, 2015

दक्षिण एशिया में उप-क्षेत्रीय सहयोग के नए द्वार

सोमवार को चीन ने नाथूला होकर कैलाश मानसरोवर तक जाने का दूसरा रास्ता खोल दिया गया. चीन ने भारत के साथ विश्वास बहाली के उपायों के तहत यह रास्ता खोला है. इस रास्ते से भारतीय तीर्थ यात्रियों को आसानी होगी. धार्मिक पर्यटन के अलावा यहाँ आधुनिक पर्यटन की भी अपार सम्भावनाएं हैं. पर सिद्धांततः यह आर्थिक विकास के नए रास्तों को खोलने की कोशिश है.

Sunday, July 17, 2022

आई2यू2 यानी भारत की ‘लुक-वेस्ट’ नीति


भारत-इजराइल-अमेरिका और यूएई के बीच नवगठित समूह आई2यू2 की गुरुवार 14 जुलाई को हुई पहली शिखर बैठक में भारत के लिए नए अवसर खुले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, इजरायल के प्रधानमंत्री येर लेपिड और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान की इस वर्चुअल बैठक में दो अहम परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई गई, जो भारत में शुरू होंगी। भारत और यूएई के बीच फूड एक कॉरिडोर बनाया जाएगा। दूसरे भारत के द्वारका में अक्षय ऊर्जा हब बनाया जाएगा। यह आर्थिक कार्यक्रम है, पर इसके पीछे पश्चिम एशिया की भावी राजनीति और इसमें भारत की भूमिका को भी देखा जा सकता है। 

बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति और इजराइल के प्रधानमंत्री तेल अवीव से शामिल हुए थे। जो बाइडेन 13 से 16 जुलाई तक पश्चिम एशिया के दौरे पर थे। उनकी इस यात्रा के पीछे पश्चिम एशिया में अपने मित्र देशों के आधार को मजबूत करने के अलावा यूक्रेन युद्ध के कारण इस समय दुनिया में पेट्रोलियम की कीमतों में तेजी को रोकना भी है। इस तेजी का लाभ रूस को मिल रहा है। अमेरिका की कोशिश है कि सऊदी अरब के सहयोग से इस तेजी पर काबू पाया जाए।
फलस्तीन की समस्या

बाइडेन चाहते हैं कि इजरायल और फलस्तीनियों के बीच दीर्घकालीन समझौता हो जाए। पर यह समझौता फलस्तीनी अथॉरिटी के महमूद अब्बास के साथ होगा। जो बाइडेन टू स्टेट अवधारणा क समर्थन कर रहे हैं। उनकी महमूद अब्बास से मुलाकात भी हुई है। पर समझौता आसान नहीं है। खासतौर से हमस का रुख काफी कड़ा है और गज़ा पट्टी पर हमस का ही दबदबा है। महमूद अब्बास के संगठन और इजरायल दोनों के साथ भारत के रिश्ते अच्छे हैं, जिनका लाभ लिया जा सकता है।

हमस मूलतः उग्रवादी संगठन है, पर 2005 के बाद से उसने गज़ा पट्टी के इलाके में राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया। वह फलस्तीनी अथॉरिटी के चुनावों में शामिल होने लगा। गज़ा में फतह को चुनाव में हराकर उसने प्रशासन अपने अधीन कर लिया है। अब फतह गुट का पश्चिमी तट पर नियंत्रण है और गज़ा पट्टी पर हमस का। अंतरराष्ट्रीय समुदाय पश्चिमी तट के इलाके की अल फतह नियंत्रित फलस्तीनी अथॉरिटी को ही मान्यता देता है। 

शिखर बैठक के बाद भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि शुरूआती दौर में फिलहाल गुजरात और मध्य प्रदेश में यह पार्क बनाने की कवायद आगे बढ़ी है। उन्होंने बताया कि भारत की केला, चावल, आलू, प्याज और मसालों की फसलों को आरंभिक दौर में चिह्नित भी किया गया है। इन परियोजनाओं के जरिए भारतीय किसानों के उत्पादों को बड़ा बाजार मिलेगा, वहीं रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।

दो अरब डॉलर का निवेश

इस शिखर बैठक के बाद संयुक्त अरब अमीरात ने घोषणा की कि वह एकीकृत फूड पार्कों की श्रृंखला का विकास करने के लिए भारत में दो अरब डॉलर का निवेश करेगा। इसका उद्देश्य दक्षिण और पश्चिम एशिया में खाद्य असुरक्षा की समस्या का सामना करना है। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि इस कार्य के लिए भूमि और किसानों को जोड़ने का काम भारत करेगा। इस बैठक में इस इलाके की खाद्य-सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा, खाद्य उत्पादन तथा वितरण प्रणाली में बदलावों को सुनिश्चित करने पर विचार हुआ, ताकि वैश्विक खाद्य-सामग्री का भंडार बनाया जा सके।

इस कार्य में अमेरिका और इजराइल से निजी क्षेत्रों को आमंत्रित किया जाएगा और उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाएगा। वे परियोजना की कुल वहनीयता में योगदान देते हुए नवोन्मेषी समाधानों की पेशकश भी करेंगे। पूँजी निवेश से उपज बेहतर होगी और इससे दक्षिण एशिया एवं पश्चिम एशिया में खाद्य असुरक्षा से निपटा जा सकेगा।

आई2यू2 ग्रुप

आई2यू2 यानी अंग्रेजी आई 2 (इंडिया और इजरायल) और यू 2 (यानी यूएसए और यूएई)। इसे पश्चिम एशिया का क्वॉड भी कहा जा रहा है। इस अनौपचारिक समूह की शुरुआत अक्तूबर 2021 में विदेशमंत्री एस जयशंकर की इजरायल यात्रा के दौरान उपरोक्त चारों देशों के विदेशमंत्रियों की एक पहल के रूप में हुई थी। उस समय इसे आर्थिक सहयोग का अंतरराष्ट्रीय फोरम भी कहा गया था।

आई2यू2 समूह को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि पश्चिम एशिया में भारत के साथ अमेरिकी साझेदारी गेम चेंजर हो सकती है। यह बात पूर्व इजरायल के पूर्व एनएसए मेजर जनरल याकोव अमिद्रोर ने गत 14 जुलाई को फोरम की पहली उच्च स्तरीय बैठक से पहले कही। भारत सरकार ने मंगलवार 12 जुलाई को आई2यू2 नेताओं के वर्चुअल शिखर सम्मेलन की घोषणा करते हुए कहा कि यह समूह पानी, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा जैसे छह पारस्परिक रूप से पहचाने गए क्षेत्रों में संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए काम करेगा।

इजरायल  के पूर्व एनएसए ने कहा,  आई2यू2 दुनिया के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें इजरायल  और यूएई में रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की उम्मीद है। उन्होंने कहा, भारत की भूमिका यूरोप और इजरायल  के साथ एक सेतु की है और पूरे संदर्भ में भारत एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है।

नया क्वॉड

इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में भारत ने इस इलाके में सम्पर्क बढ़ाया है। हाल में जर्मनी में हुई जी-7 की शिखर-बैठक में शामिल होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी यूएई की संक्षिप्त-यात्रा पर भी गए थे। अमेरिका की दिलचस्पी इस बात में भी है कि इजरायल के रिश्ते इस क्षेत्र के देशों के साथ बेहतर हों। इसमें यूएई के अलावा सऊदी अरब की भूमिका भी है। इसमें यूएई, मोरक्को और बहरीन के साथ हुआ अब्राहमिक समझौता मददगार होगा। इस प्रक्रिया को आई2यू2 समूह बढ़ाएगा।

Tuesday, December 18, 2012

लुक ईस्ट, लुक एवरीह्वेयर

डिफेंस मॉनिटर का दूसरा अंक प्रकाशित हो गया है। इस अंक में पुष्पेश पंत, मृणाल पाण्डे, डॉ उमा सिंह, मे जन(सेनि) अफसिर करीम, एयर वाइस एडमिरल(सेनि) कपिल काक, कोमोडोर रंजीत बी राय(सेनि), राजीव रंजन, सुशील शर्मा, राजश्री दत्ता और पंकज घिल्डियाल के लेखों के अलावा धनश्री जयराम के दो शोधपरक आलेख हैं, जो बताते हैं कि 1962 के युद्ध में सामरिक और राजनीतिक मोर्चे पर भारतीय नेतृत्व ने जबर्दस्त गलतियाँ कीं। धनश्री ने तत्कालीन रक्षामंत्री वीके कृष्ण मेनन और वर्तमान रक्षामंत्री एके एंटनी के व्यक्तित्वों के बीच तुलना भी की है। सुरक्षा, विदेश नीति, राजनय, आंतरिक सुरक्षा और नागरिक उड्डयन के शुष्क विषयों को रोचक बनाना अपने आप में चुनौती भरा कार्य है। हमारा सेट-अप धीरे-धीरे बन रहा है। इस बार पत्रिका कुछ बुक स्टॉलों पर भेजी गई है, अन्यथा इसे रक्षा से जुड़े संस्थानों में ही ज्यादा प्रसारित किया गया था। हम इसकी त्रुटियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरे अंक में भी त्रुटियाँ हैं, जिन्हें अब ठीक करेंगे। तीसरा अंक इंडिया एयर शो पर केन्द्रत होगा जो फरवरी में बेंगलुरु में आयोजित होगा। बहरहाल ताज़ा अंक में मेरा लेख भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी पर केन्द्रत है, जो मैं नीचे दे रहा हूँ। इस लेख के अंत में मैं डिफेंस मॉनीटर के कार्यालय का पता और सम्पर्क सूत्र दे रहा हूँ। 

एशिया के सुदूर पूर्व जापान, चीन और कोरिया के साथ भारत का काफी पुराना रिश्ता है। इस रिश्ते में एक भूमिका धर्म की है। दक्षिण पूर्व एशिया के कम्बोडिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड और मलेशिया के साथ हमारे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं। ईसा की दूसरी सदी में अरब व्यापारियों के आगमन के पहले तक हिन्द महासागर के पश्चिम और पूर्व दोनों ओर भारतीय पोतों का आवागमन रहता था। भारतीय जहाजरानी और व्यापारियों के अनुभवों और सम्पर्कों का लाभ बाद में अरबी-फारसी व्यापारियों ने लिया। ईसा के तीन हजार साल या उससे भी पहले खम्भात की खाड़ी के पास बसा गुजरात का लोथाल शहर मैसोपाटिया के साथ समुद्री रास्ते से व्यापार करता था। पहली और दूसरी सदी में पूर्वी अफ्रीका, मिस्र और भूमध्य सागर तक और जावा, सुमात्रा समेत दक्षिण पूर्वी एशिया के काफी बड़े हिस्से तक भारतीय वस्त्र और परिधान जाते थे।

Tuesday, September 5, 2023

हिंद-प्रशांत और ‘एक्ट-ईस्ट पॉलिसी’ का केंद्र-बिंदु आसियान


 भारत-उदय-03

हाल के वर्षों में भारतीय विदेश-नीति में सबसे ज्यादा हिंद-प्रशांत शब्द का इस्तेमाल हुआ है. इसकी वजह को समझने की कोशिश करनी चाहिए. हिंद-प्रशांत विशाल भौगोलिक-क्षेत्र है, जिसका कुछ हिस्सा भारत के पश्चिम में है, पर ज्यादातर हिस्सा पूर्व में है. पूर्व में भारत की दिलचस्पी के दो कारण हैं. एक, कारोबार और दूसरा चीनी-विस्तार को रोकना.

भारत का आसियान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है. और अब हम अलग-अलग देशों के साथ आर्थिक सहयोग के समझौते भी कर रहे हैं. पर यह हमेशा याद रखना चाहिए कि आर्थिक शक्ति की रक्षा के लिए सामरिक शक्ति की ज़रूरत होती है.

भारत को किसी देश के खिलाफ यह शक्ति नहीं चाहिए. हमारे जीवन में दूसरे शत्रु भी हैं. सागर मार्गों पर डाकू विचरण करते हैं. आतंकवादी भी हैं. इसके अलावा कई तरह के आर्थिक माफिया और अपराधी हैं. इन्हीं बातों के संदर्भ में भारत को अपने राष्ट्रीय-हितों की रक्षा करने के लिए तैयार रहना है.

Sunday, July 12, 2015

भारत-पाक पहल के किन्तु-परन्तु

नरेंद्र मोदी की मध्य एशिया  और रूस यात्रा के कई पहलू हैं।  पर इन सबके ऊपर भारी है भारत-पाकिस्तान बातचीत फिर से शुरू होने की खबर।  इधर यह खबर आई और उधऱ पाकिस्तान से खबर मिली है कि ज़की-उर-रहमान लखवी की आवाज़ का नमूना देना सम्भव नहीं होगा। यह बात उनके वकील ने कही है कि दुनिया में कहीं भी आवाज़ का नमूना देने की व्यवस्था नहीं है। भारत और पाकिस्तान में भी नहीं। पाकिस्तान सरकार के एक वरिष्ठ अभियोजक का कहना है कि सरकार अब अदालत के उस फैसले के खिलाफ अपील नहीं करेगी, जिसमें कहा गया था कि आवाज का प्रमाण देने का कानून नहीं है। शायद भारत से भी अब कुछ दूसरी किस्म की आवाज़ें उठेंगी। भारत-पाकिस्तान के बीच शब्दों का संग्राम इतनी तेजी से होता है कि बहुत सी समझदारी की बातें हो ही नहीं पातीं। हमारी दरिद्रता के कारणों में एक यह बात भी शामिल है कि हम बेतरह तैश में रहते हैं। बाहतर हो कि दोनों सरकारों को आपस में समझने का मौका दिया जाए। अभी दोनों प्रधानमंत्री अपने देशों में वापस भी नहीं पहुँचे हैं। बहरहाल रिश्ते सुधरने हैं तो इस बयानबाजी से कुछ नहीं होगा। अलबत्ता पिछले एक साल का घटनाक्रम रोचक है। दोनों तरफ की सरकारें जनता, मीडिया और राजनीति के दबाव में रहती हैं। लगता नहीं कि यह दबाव आसानी से कम हो जाएगा।

रूस के उफा शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच संवाद फिर से शुरू होने जा रहा है। यह बात आश्वस्तिकारक है, पर इसके तमाम किन्तु-परन्तु भी हैं। यह भी साफ है कि यह फैसला अनायास नहीं हो गया। इसकी पृष्ठभूमि में कई महीने का होमवर्क और अनौपचारिक संवाद है, जो किसी न किसी स्तर पर चल रहा था। लम्बे अरसे बाद दोनों देशों के बीच पहली बार संगठित और नियोजित बातचीत हुई है, जिसका मंच विदेशी जमीन पर था। इसमें रूस और चीन की भूमिका भी थी।

Sunday, June 1, 2014

भारत के पड़ोस का महत्व

इस साल मॉनसून के देर से आने का अंदेशा है. बारिश कम हुई या असंतुलित हुई तो खेती-बाड़ी से जुड़े लोगों के सामने संकट पैदा हो जाएगा और अकाल के कारण पूरी अर्थ-व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. यह खतरा सिर्फ भारत के सिर पर नहीं है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया पर है. खासतौर से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान इसके शिकार होंगे. हम आतंकवाद को बड़ा खतरा समझते हैं और एक हद तक वह है भी. पर हमारे सामने खतरे दूसरे भी हैं. आतंकवाद और कट्टरपंथ भी अशिक्षा, नासमझी और गरीबी की देन है. इस किस्म के अनेक खतरे हम सब के सामने हैं. पर्यावरण और प्राकृतिक आपदाएं राजनीतिक सीमाओं को नहीं देखतीं. इन आपदाओं के बरक्स हमारे पास ऐसे अनुभव भी हैं जब इंसान ने सामूहिक प्रयास से इन पर काबू पाया. पिछले साल भारत के पूर्वी तट पर आए फाइलिन तूफान के कारण भारी नुकसान का अंदेशा था, पर मौसम विज्ञानियों को अंतरिक्ष में घूम रहे उपग्रहों की मदद से सही समय पर सूचना मिली और आबादी को सागर तट से हटा लिया गया. 1999 के ऐसे ही एक तूफान में 10 हजार से ज्यादा लोग मरे थे. अंतरिक्ष की तकनीक के साथ जुड़ी अनेक तकनीकों का इस्तेमाल चिकित्सा, परिवहन, संचार यहाँ तक कि सुरक्षा में होता. विज्ञान की खोज की सीढ़ियाँ हैं. पर क्या हम इन सीढ़ियों पर चलना चाहते हैं?

Monday, August 6, 2012

पाकिस्तान के साथ कारोबारी राह पर चलने में समझदारी है

पिछले बुधवार को भारत सरकार ने पाकिस्तान के निवेशकों पर भारत में लगी रोक हटा ली। अब पाकिस्तानी निवेशक रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अलावा अन्य कारोबारों में निवेश कर सकेंगे। हालांकि यह घोषणा अचानक हुई लगती है पर ऐसा नहीं है। पाकिस्तानी निवेश को स्वीकार करने का फैसला दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों की अप्रेल में दिल्ली में हुई बैठक में कर लिया गया था। परोक्ष रूप में यह आर्थिक निर्णय लगता है और इसके तमाम महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू हैं भी। फिर भी यह फैसला राजनीतिक है। उसी तरह जैसे पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को भारत बुलाने का फैसला। दोनों देशों के रिश्ते बहुत मीठे न भी नज़र आते हों, पर ऐसा लगता है कि दोनों नागरिक सरकारों के बीच संवाद काफी अच्छे स्तर पर है। पाकिस्तान में एक बड़ा तबका भारत से रिश्ते बनाने के काम में लगातार अड़ंगे लगाता है। पर लगता है कि खेल, संगीत और कारोबारी रिश्ते दोनों देशों के बीच भरोसा कायम करने में मददगार होंगे।

Monday, March 8, 2021

क्या अब पिघलेगी भारत-पाक रिश्तों पर जमी बर्फ?


गुरुवार 25 फरवरी को जब भारत और पाकिस्तान की सेना ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम को लेकर सन 2003 में हुए समझौते का मुस्तैदी से पालन करने की घोषणा की, तब बहुतों ने उसे मामूली घोषणा माना। घोषणा प्रचारात्मक नहीं थी। केवल दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) ने संयुक्त बयान जारी किया। कुछ पर्यवेक्षक इस घटनाक्रम को काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनके विचार से इस संयुक्त बयान के पीछे दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की भूमिका है, जो इस बात को प्रचारित करना नहीं चाहता।

दोनों के बीच बदमज़गी इतनी ज्यादा है कि रिश्तों को सुधारने की कोशिश हुई भी तो जनता की विपरीत प्रतिक्रिया होगी। इस घोषणा के साथ कम से कम तीन घटनाक्रमों पर हमें और ध्यान देना चाहिए। एक, अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन की भूमिका, जो इस घोषणा के फौरन बाद अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता के बयान से स्पष्ट दिखाई पड़ती है। अफगानिस्तान में बदलते हालात और तीसरे भारत और चीन के विदेशमंत्रियों के बीच हॉटलाइन की शुरुआत।

उत्साहवर्धक माहौल

सन 2003 के जिस समझौते का जिक्र इस वक्त किया जा रहा है, वह इतना असरदार था कि उसके सहारे सन 2008 आते-आते दोनों देश एक दीर्घकालीन समझौते की ओर बढ़ गए थे। पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुर्शीद कसूरी ने अपनी किताब में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में हुई बैठकों का हवाला दिया है। भारतीय मीडिया में भी इस आशय की काफी बातें हवा में रही हैं। नवंबर 2008 के पहले माहौल काफी बदल गया था।

Wednesday, September 6, 2023

पश्चिम एशिया का बदलता परिदृश्य और भारत

 


भारत का उदय-04

दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में छह नए देशों को सदस्यता देने का फैसला हुआ है. अब अगले साल अर्जेंटीना, इथोपिया, ईरान, मिस्र, सऊदी अरब और यूएई भी ब्रिक्स के सदस्य बन जाएंगे. इन छह में से चार मुस्लिम देश हैं, जिनके साथ भारत के परंपरागत रूप से बहुत अच्छे रिश्ते हैं. फिर भी हमें बदलती परिस्थितियों को समझने की जरूरत होगी.

ईरान और सऊदी अरब को ब्रिक्स में शामिल करने के पीछे चीन की भूमिका है, जिसने इन दोनों देशों के बिगड़े रिश्तों को ठीक किया है. चीन ने इस इलाके में अपनी गतिविधियाँ तेज की हैं. यूएई और सऊदी अरब तथा इस इलाके के दूसरे देशों की दिलचस्पी तेल की अर्थव्यवस्था से हटकर नए कारोबारों में पूँजी निवेश करने की है.

इन देशों के हमारे साथ भी रिश्ते इसीलिए अच्छे हैं. दुनिया में आ रहे तकनीकी, कारोबारी और भू-राजनीतिक बदलावों के साथ हमें भी कदम मिलाकर चलने की जरूरत है.

Saturday, October 23, 2021

पश्चिमी क्वॉड यानी भारत की ‘एक्ट-वेस्ट पॉलिसी’


भारत, इसराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की हाल में हुई एक वर्चुअल बैठक के दौरान एक नए चतुष्कोणीय फोरम की पेशकश को पश्चिम एशिया में एक नए सामरिक और राजनीतिक ध्रुव के रूप में देखा जा रहा है। राजनयिक क्षेत्र में इसे 'न्यू क्वॉड' या नया 'क्वॉडिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग' कहा जा रहा है। गत 18 अक्तूबर को यह बैठक उस दौरान हुई, जब भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर, इसराइल के दौरे पर थे।

इस बैठक में वे इसराइल के विदेशमंत्री येर लेपिड के साथ यरुसलम में साथ-साथ बैठे। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायेद अल नाह्यान वर्चुअल माध्यम से इसमें शामिल हुए। बैठक में  एशिया और पश्चिम एशिया में अर्थव्यवस्था के विस्तार, राजनीतिक सहयोग, व्यापार और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। कुल मिलाकर इस समूह का कार्य-क्षेत्र बहुत व्यापक है।

जिस समय जयशंकर इसराइल की यात्रा पर थे, उसी समय इसराइल में 'ब्लू फ्लैग 2021' बहुराष्ट्रीय हवाई युद्धाभ्यास चल रहा था। इसराइल के अब तक के सबसे बड़े इस एयर एक्सरसाइज़ में भारत समेत सात देशों की वायु सेनाओं ने भाग लिया। इनमें जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, फ़्रांस, ग्रीस और अमेरिका की वायु सेनाएं भी शामिल थीं। भारतीय वायुसेना के कुछ दस्ते मिस्र के अड्डे पर उतरे थे। इस युद्धाभ्यास और नए क्वॉड के आगमन को आने वाले समय में पश्चिम एशिया की नई सुरक्षा-प्रणाली के रूप में देखना चाहिए।

पश्चिम पर निगाहें

एक अरसे से भारतीय विदेश-नीति की दिशा पूर्व-केन्द्रित रही है। पूर्व यानी दक्षिण-पूर्व और सुदूर पूर्व, जिसे पहले लुक-ईस्ट और अब एक्ट-ईस्ट पॉलिसी कहा जा रहा है। पिछले कुछ समय से भारत ने पश्चिम की ओर देखना शुरू किया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी हमारे पश्चिम में हैं। वैदेशिक-संबंधों के लिहाज से यह हमारा समस्या-क्षेत्र रहा है। बहुसंख्यक इस्लामी देशों के कारण कई प्रकार के जोखिम रहे हैं। एक तरफ इसराइल और अरब देशों के तल्ख-रिश्तों और दूसरी तरफ ईरान और सऊदी अरब के अंतर्विरोधों के कारण काफी सावधानी बरतने की जरूरत भी रही है।

भारतीय विदेश-नीति को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि हमने सबके साथ रिश्ते बनाकर रखे। पाकिस्तान की नकारात्मक गतिविधियों के बावजूद। खासतौर से मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी में पाकिस्तान ने भारत के हितों पर चोट करने में कभी कसर नहीं रखी। भारतीय नजरिए से पश्चिम एशिया समस्या-क्षेत्र रहा है। एक वजह यह भी थी कि भारत और अमेरिका के दृष्टिकोण में साम्य नहीं था। अमेरिका ने भी पश्चिम-एशिया में भारत को अपने साथ नहीं रखा। पर अब हवा का रुख बदल रहा है। पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्वॉड में भारत और अमेरिका साथ-साथ हैं।

Monday, April 5, 2021

बांग्लादेश पर चीनी-प्रभाव को रोकने की चुनौती

 


बांग्लादेश की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती समारोह के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा ने बांग्लादेश के महत्व पर रोशनी डाली है। मैत्री के तमाम ऐतिहासिक विवरणों के बावजूद पिछले कुछ समय से इन रिश्तों में दरार नजर आ रही थी। इसके पीछे भारतीय राजनीति के आंतरिक कारण हैं और चीनी डिप्लोमेसी की सक्रियता। भारत में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ, नागरिकता कानून में संशोधन, रोहिंग्या और तीस्ता के पानी जैसे कुछ पुराने विवादों को सुलझाने में हो रही देरी की वजह से दोनों के बीच दूरी बढ़ी है।

पिछले कुछ समय से भारतीय विदेश-नीति में दक्षिण एशिया के देशों से रिश्तों को सुधारने के काम को महत्व दिया जा रहा है। म्यांमार में फौजी सत्ता-पलट के बाद भारत की संतुलित प्रतिक्रिया और संरा मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव पर मतदान के समय भारत की अनुपस्थिति से इस बात की पुष्टि होती है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर जो चुप्पी साधी है, वह भी विदेश-नीति का असर लगता है।  

भारत-बांग्‍लादेश सीमा चार हजार 96 किलोमीटर लंबी है। दोनों देश 54 नदियों के पानी का साझा इस्तेमाल करते हैं। दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार-सहयोगी बांग्लादेश है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच 10 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था प्रगतिशील है और सामाजिक-सांस्कृतिक लिहाज से हमारे बहुत करीब है। हम बहुत से मामलों में बेहतर स्थिति में हैं, पर ऐतिहासिक कारणों से दोनों देशों के अंतर्विरोध भी हैं। उन्हें सुलझाने की जरूरत है।