Thursday, February 2, 2017

इंफ्रा-मुखी लुभावना बजट

भारत का बजट लोक-लुभावन राजनीति, राजकोषीय अनुशासन और अर्थशास्त्रीय नियमों की रोचक चटनी होता है. इसकी बारीकियां केवल वित्तमंत्री का भाषण सुनने भर से समझ में नहीं आतीं. अलबत्ता पहली नजर में सार्वजनिक प्रतिक्रिया समझ में आ जाती है. इस लिहाज से इसबार का बजट काफी बड़े वर्ग को खुश करेगा. इसमें सामाजिक क्षेत्र का ख्याल है, ग्रामीण क्षेत्र की फिक्र है, साथ ही छोटे करदाता की परेशानियों को कम करने का इरादा भी. शेयर बाजार भी खुश है.

सरकार ने करीब चार लाख करोड़ रुपये के आसपास के जिस भारी इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश की घोषणा की है, उसके बेहतर परिणाम अगले साल दिखाई पड़ेंगे. इस निवेश के कारण राजकोषीय घाटे के मसले खड़े होंगे, पर अर्थ-व्यवस्था की गति बनाए रखने के लिए इसकी जरूरत थी. वित्तमंत्री ने कहा कि निजी क्षेत्र के सुस्त निवेश और धीमी वैश्विक वृद्धि दर के कारण सार्वजनिक व्यय की जरूरत महसूस हुई. राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 3.2 फीसदी तक रखने का लक्ष्य है. वित्तमंत्री वाले वर्षों में इसे 3 फीसदी करने पर प्रतिबद्ध है.  
बजट मूलतः आर्थिक सुधारों और ग्रामीण विकास पर केंद्रित है. देश में विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा है. उसे और बढ़ाने की जरूरत है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर पूँजी निवेश विकास की गाड़ी को देश के सुदूर इलाकों तक ले जाएगा. सरकार ने इस बजट में फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड को खत्म करने की घोषणा करके विदेशी निवेशकों को संदेश दिया है कि लालफीताशाही का घेरा हटाया जा रहा है. भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी के रूप में सामने है.  
नोटबंदी ने लोगों की परेशानियाँ बढ़ाईं, और कुछ बातों पर से पर्दा भी हटाया. मध्यवर्ग का बड़ा हिस्सा गैर-जिम्मेदार है. वह लाखों की कार खरीदता है, विदेश यात्राएं करता है, पर टैक्स देने से बचता है. ईमानदारी से टैक्स देने वाला पिसता है. आयकर रिटर्न को देखते हुए सालाना पाँच लाख रुपये से ज्यादा आय पाने वाले व्यक्तियों को संख्या केवल 76 लाख है, जिनमें से 56 लाख लोग वेतन भोगी हैं, जो टैक्स से बच नहीं सकते.
नोटबंदी के बाद राहत के रूप में वित्तमंत्री ने सबसे निचले स्तर पर आयकर को 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी किया है. इससे निम्न मध्यवर्ग को राहत मिलेगी और वे लोग टैक्स दायरे में आएंगे जो अभी इससे बाहर हैं. बड़ी मछलियों के लिए बैंकों में जमा नकदी की मदद ली जाएगी. काफी लोग टैक्स के दायरे में आएंगे. सरकार ने तीन लाख से ऊपर के नकद लेन-देन को पूरी तरह रोकने की घोषणा की है. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और इसके समांतर बढ़ती डिजिटल इकोनॉमी को सहारा मिलेगा. दोनों बातें एक-दूसरे की पूरक है.
सरकार ने राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की सलाह को सुना है. अभी तक 20,000 रुपये तक के चंदे का विवरण आयकर विभाग को नहीं देना पड़ता था. यानी राजनीतिक दलों को पिछले रास्ते से बेनामी चंदा मिलता था. हाल में चुनाव आयोग ने सलाह दी थी कि इसे 2,000 रुपये कर दिया जाए. हालांकि यह समस्या का समाधान नहीं है. पिछले रास्ते को छोटा करने की कोशिश भर है. पर महत्वपूर्ण बात है कि सरकार ने इसके महत्व को समझा. इसी तरह सरकार ने आर्थिक नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए नया कानून लाने की घोषणा भी बजट में की है.
कम्पनी कर में कोई छूट नहीं दी गई है. अलबत्ता लघु और मध्यम उद्योगों को पाँच फीसदी की राहत देकर एक ऐसे क्षेत्र को बढ़ावा देने की कोशिश की है, जो आने वाले वक्त में अर्थ-व्यवस्था को गति देने में मददगार होगा. रोजगार बढ़ाने में इन उद्योगों की बड़ी भूमिका है. उत्पाद कर और दूसरे अप्रत्यक्ष करों के बारे में सरकार ने कोई घोषणा नहीं की है, क्योंकि जीएसटी लागू होने जा रहा है. उसमें सारे अप्रत्यक्ष कर आएंगे.
पूँजीगत व्यय में 25.4 फीसदी की भारी वृद्धि करके सरकार ने बड़े स्तर पर निर्माण कार्यों में सरकारी निवेश का रास्ता खोला है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर 3,96,135 करोड़ रुपये का आबंटन बहुत बड़ा फैसला है. देश में इतने बड़े स्तर पर निर्माण पर निवेश पहले कभी नहीं हुआ. इस निवेश के व्यावहारिक अर्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए. सड़कों, पुलों, भवनों, बिजली की लाइनों और रेल लाइनों के निर्माण से विकास की गाड़ी तेज होगी.
आधार संरचना का काफी बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्गों के रूप में है, जिसके लिए 64,000 करोड़ रखे गए हैं. वहीं 3900 किलोमीटर लंबी नई रेल लाइनें बनाने का लक्ष्य भी है. पीपीपी मॉडल के तहत छोटे शहरों में एयरपोर्ट बनाए जाएंगे.
प्रधानमंत्री कौशल केन्द्रों को मौजूदा 60 जिलों से बढ़ाकर देशभर के 600 जिलों में फैलाने की घोषणा भी महत्वाकांक्षी है. देशभर में 100 भारतीय अंतर्राष्ट्रीय कौशल केन्द्र स्थापित होंगे. इनमें उन्नत प्रशिक्षण तथा विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे. इससे विदेशों में रोजगार की संभावना तलाश रहे युवाओं को लाभ होगा. रोजगार का मतलब सरकारी नौकरियाँ ही नहीं हैं, अपने रोजगार खड़े करना भी है.
बजट के एक दिन पहले पेश की गई आर्थिक समीक्षा ने बताया था कि इस साल खेती में 4.1 प्रतिशत की दर से संवृद्धि की उम्मीद है. इसके पीछे बेहतर मॉनसून का हाथ भी है. फसल का रकबा भी बढ़ने की सूचनाएं हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में गतिविधियाँ बढ़ रहीं है. हालात ठीक रहे तो अगले साल खेती की विकास दर 6 फीसदी होगी. कुछ साल पहले हमारी कृषि विकास दर गिरते-गिरते शून्य तक पहुँचने जा रही थी. सरकार की घोषणा है कि सन 2022 तक हम देश के किसानों की आय दुगनी करेंगे.
मनरेगा में अब तक का सबसे बड़ी रकम 48,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. मनरेगा का इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों में आधार संरचना को खड़ा करने में भी किया जा रहा है. इस साल इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पाँच लाख तालाब तैयार किए गए. अगले साल भी इतने ही तालाब बनाने की योजना है. ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर का दूसरा महत्वपूर्ण कार्यक्रम है प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जिसके लिए 19,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. इसमें राज्यों की धनराशि को भी जोड़ दें तो पूरी धनराशि 27,000 करोड़ रुपये होती है. सरकार ने मार्च 2018 तक हरेक गाँव में बिजली पहुँचाने और 50,000 गाँवों को गरीबी से पूरी तरह मुक्त करने की घोषणा भी की है.




प्रभात खबर में प्रकाशित

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