Friday, May 7, 2021

चुनाव-परिणामों का कांग्रेस पर असर



पिछले कई महीनों से कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति का विश्लेषण बाहर के बजाय भीतर से ज्यादा अच्छा हो रहा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका ग्रुप-23 की है, जो पार्टी में हैं, पर नेतृत्व की बातों से असहमति को पार्टी के मंच पर और बाहर भी व्यक्त करते हैं। बहरहाल हाल में हुए पाँच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर पार्टी ने बहुत संकोच के साथ ही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राहुल गांधी ने 2 मई को तीन ट्वीट किए थे। एक में कहा गया था कि हम जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं। ऐसा ही ट्वीट पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने किया। राहुल गांधी के शेष दो ट्वीट में ममता बनर्जी और एमके स्टालिन को जीत पर बधाई दी गई थी। उन्होंने ममता बनर्जी को बधाई दी, पर ऐसी ही बधाई पिनाराई विजयन को नहीं दी।

विस्तार से पार्टी का कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ, पर जी-23 के दो वरिष्ठ सदस्यों कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद ने कहा कि देश में महामारी की स्थिति को देखते हुए यह समय टिप्पणी करने के लिहाज से उचित नहीं है। बंगाल की हार को लेकर अधीर रंजन चौधरी ने दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार को कुछ सफाई दी है। खबर थी कि उन्होंने कोई ट्वीट भी किया है, पर वह नजर नहीं आया। शायद हटा दिया गया। ऐसा लगता है कि फिलहाल पार्टी की रणनीति है कि चुनाव-परिणामों पर चर्चा नहीं की जाए। इसकी जगह महामारी को लेकर केंद्र पर निशाना लगाया जाए। यह रणनीति एक सीमा तक काम करेगी, पर यह एक प्रकार का पलायन साबित होगा।

केरल में असंतोष

नेतृत्व ने भले ही चुनाव-परिणामों पर चुप्पी साधी है, पर कार्यकर्ता मौन नहीं है। केरल से उनकी आवाज सुनाई पड़ी है। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी की सत्ता में वापसी होगी। केरल में इससे पहले सत्ता में बैठी सरकार ने कभी वापसी नहीं की है, इसलिए यूडीएफ को वापसी की उम्मीद थी। बहरहाल शुरूआती चुप्पी के बाद, केरल दबे-छिपे बातें सामने आने लगी हैं। एर्नाकुलम के युवा कांग्रेस सांसद हिबी एडेन ने फेसबुक पर लिखा, हमें क्या अब भी लगातार सोते हाईकमान की आवश्यकता क्यों है?

केरल में कांग्रेस की अंतर्कलह का अंदाज मार्च में वरिष्ठ नेता पीसी चाको के पार्टी छोड़ने से समझ में आ जाना चाहिए था। उन्होंने पार्टी छोड़ते समय राज्य के दो वरिष्ठ नेताओं रमेश चेन्नीथला और ओमान चैंडी और उनके गुटों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि दोनों नेता हमेशा सीटें और संगठन के बाद आपस में बांट लेते हैं। केरल में केवल उन नेताओं का भविष्य है जो इनमें से किसी ग्रुप का हिस्सा हैं, बाकी को दरकिनार किया जाता है। केरल में कांग्रेस पार्टी हमेशा से दो गुटों में बंटी रही है। एक गुट के करुणाकरन का है और दूसरा एके एंटनी का। सन 2000 के बाद से करुणाकरन गुट का नेतृत्व चेन्नीथला और एंटनी गुट का ओमान चैंडी के पास है।

यह गुटबंदी आज भी जारी है। पिछले दो वर्षों में राहुल गांधी के करीबी केसी वेणुगोपाल के रूप में एक नया शक्ति केंद्र सामने आया है। बहरहाल केरल में निचले स्तर पर कार्यकर्ता नाराज है, जिसका असर भविष्य में दिखाई पड़ेगा। ऐसी अंतर्कलह बंगाल से भी सुनाई पड़ेगी। अभी यह भी पता नहीं कि हार की जिम्मेदारी कौन लेगा। फिलहाल बंगाल, असम और केरल के पार्टी प्रमुखों के सिर पर तलवार लटकी है।

नए अध्यक्ष का चुनाव

चुनाव-परिणामों के विश्लेषण से ज्यादा बड़ा मसला पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का है, जो जून में होने वाले हैं। सुनाई पड़ रहा है कि यह चुनाव कोरोना के कारण स्थगित किया जा सकता है। शायद कुछ महीनों के लिए चुनाव टल जाएं। इसकी जरूरत इसलिए भी होगी, ताकि निचले स्तर पर जो असंतोष पैदा हो रहा है, वह कम हो जाए। पर ऐसा कब तक होगा? पार्टी ने जून में चुनाव कराने को बेहतर समझा था, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि असम और केरल से खुशखबरी सुनाई पड़ेगी। ऐसा हुआ नहीं, बल्कि पुदुच्चेरी भी हाथ से निकल गया।

अब इन सभी बातों पर विचार करने के लिए देर-सबेर कार्यसमिति की बैठक बुलाई जाएगी। शुक्रवार, 22 जनवरी को हुई बैठक में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर दो गुटों के बीच काफी बहस हुई थी, जिसमें राहुल गांधी ने भी दखल दिया। बैठक में गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक और  चिदंबरम ने तत्काल संगठनात्मक चुनाव के लिए कहा था। वे उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने कई चुनावों में हार के बाद हाल के महीनों में पार्टी के नेतृत्व और प्रबंधन पर असहज सवाल उठाए हैं।

इस मांग के खिलाफ अशोक गहलोत, अमरिंदर सिंह, एके एंटनी, तारिक अनवर और ओमान चैंडी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव बंगाल और तमिलनाडु सहित पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के बाद होना चाहिए। उस बैठक के बाद कहा गया था कि कांग्रेस महासमिति का सत्र 29 मई को आयोजित किया जाएगा। महामारी को देखते हुए लगता है कि अब नया कार्यक्रम आएगा।

फिर से राहुल

पार्टी के ज्यादातर नेताओं की मांग है कि राहुल गांधी एकबार फिर पार्टी की कमान संभालें, पर राहुल गांधी अध्यक्ष बनने की बात पर कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। यह बात भी कही जा रही है कि आखिरकार अध्यक्ष राहुल गांधी को ही बनना हो तो फिर क्या जून और दिसम्बर... उन्हें पार्टी की कमान सौंप देनी चाहिए। पर क्या यह सम्भव है? ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के मन में कोई योजना है।

बिहार चुनाव की हार अभी तक साल रही है। पार्टी नहीं चाहती कि नए अध्यक्ष को हार के उपहार के साथ कुर्सी पर बैठाया जाए। व्यावहारिक स्थिति यह है कि राहुल गांधी भले ही अध्यक्ष नहीं हैं, पर ज्यादातर फैसले वही करते हैं। उन्हें केवल औपचारिक रूप से अध्यक्ष बनना है। उसमें भी किसी न किसी वजह से अड़ंगे लग रहे हैं।

एक सम्भावना यह भी है कि राहुल गांधी स्वयं अध्यक्ष बनने के बजाय किसी विश्वस्त व्यक्ति को अध्यक्ष पद सौंप दें। इस स्थिति के लिए भी कुछ नाम हवा में हैं जैसे कि अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, केसी वेणुगोपाल या मुकुल वासनिक। पार्टी पर नजर रखने वालों में से कुछ का विचार है कि प्रियंका वाड्रा भी आगे आ सकती हैं, हालांकि इसकी सम्भावना सबसे कम है। राहुल गांधी 2019 में कह चुके हैं कि परिवार का कोई व्यक्ति अध्यक्ष नहीं होना चाहिए। उनकी यह बात भी महत्वपूर्ण है।     

  

1 comment:

  1. कांग्रेस का खेल खत्म हो गया है। फिर से राहुल की मांग का क्या मतलब? बाकी बहुत से दिग्गज नेता हैं कांग्रेस में जिन्हें दरकिनार किया जा रहा है..! पूरी पार्टी एक परिवार पर निर्भर हो गई है.. बाकी उलूल जुलूल बयान देखने को मिलते ही है राहुल के और इसमें उन्हे टक्कर देने के लिए सूरजेवाला है😅

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