Sunday, June 2, 2019

अमित शाह, सफलता के द्वार पर


असाधारण क्षमताओं वाले व्यक्ति अपने लिए खुद रास्ते बनाते हैं और अक्सर ऐतिहासिक परिस्थितियाँ उनका इंतजार करती हैं। देश की नई सरकार के गठन के बाद जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचती है, वह है अमित शाह का गृहमंत्री बनना। इसमें संदेह कभी नहीं था कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र के सबसे विश्वस्त सहयोगी हैं। और उनकी यह जोड़ी वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी के मुकाबले ज्यादा व्यावहारिक, प्रभावशाली और सफल है। यह अलग बात है कि वाजपेयी-आडवाणी इस पार्टी की बुनियाद पर हमेशा बने रहेंगे।  
नरेन्द्र मोदी से अमित शाह की मुलाकात 1986 में हुई थी, जो आज तक चली आ रही है। उस वक्त अमित शाह छात्र नेता थे। पर पिछले चार वर्षों से ज्यादा समय में पार्टी अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जो भूमिका निभाई, वह असाधारण है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है पार्टी को काडर-बेस के बजाय मास-बेस बनाना। पार्टी का दावा है कि उसके 11 करोड़ सदस्य हैं और वह दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। यह उपलब्धि अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दूसरे वर्ष में ही उन्होंने प्राप्त कर ली थी।

उनकी दूसरी उपलब्धि है बीजेपी की सोशल इंजीनियरी। यह पार्टी अब केवल सवर्ण हिन्दुओं की पार्टी नहीं है। इसमें ओबीसी और दलितों की बहुतायत है। तीसरी उपलब्धि है उत्तर प्रदेश और बिहार में उस जातीय चक्रव्यूह को तोड़ना, जिसमें फँसकर बड़े-बड़े नेता फेल हो गए। अमित शाह ने न केवल अनेक राज्यों में पार्टी की जीत सुनिश्चित की, बल्कि नरेन्द्र मोदी सरकार को पहले की तुलना में और ज्यादा ताकत के साथ सिंहासन पर बैठाया। यह उनकी उपलब्धि है, पर शायद उन्हें अभी और भी बड़ी भूमिकाओं को निभाना है।
देश 1947 के बाद एकबार फिर से बड़े बदलाव के द्वार पर खड़ा है। इस बदलाव को मूर्त रूप देने में अमित शाह की भूमिका होगी। पर भावी बदलाव केवल गृहमंत्री के रूप में ही नहीं हैं। वे नरेन्द्र मोदी के प्रति-पूरक हैं। अमित शाह अब सरकार में दूसरे नम्बर हैं। उनकी भूमिका को तीन धरातलों पर देखना होगा। पहले पार्टी, दूसरे समग्र रूप में सरकार और तीसरे, गृहमंत्री के रूप में।
पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनका दूसरा कार्यकाल खत्म हो रहा है। उनकी भावी भूमिकाओं में ज्यादा बड़ी चुनौतियाँ शामिल हैं। देर-सबेर नए अध्यक्ष आएंगे, पर अमित शाह की राय दिशा-निर्देश बनेगी। खासतौर से बंगाल विधानसभा के चुनाव होने तक। कैबिनेट के सदस्य होने के अलावा अमित शाह दो महत्वपूर्ण समितियों के भी सदस्य होंगे। इनमें कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) और अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) शामिल हैं। अपॉइंटमेंट कमेटी में केवल प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सदस्य होते हैं। यह कमेटी महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति करती है। सरकार चलाने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण काम है।
मोदी सरकार को यह दूसरा कार्यकाल बेहद महत्वपूर्ण समय में मिला है। अगले पाँच वर्षों में देश की व्यवस्था का रूपांतरण होगा। प्रशासनिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भारी बदलाव होने वाले हैं। इस नए दौर में आर्थिक उदारीकरण से जुड़े महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे, खेती-किसानी और श्रमिक कानूनों पर बड़े फैसले होंगे, शहरीकरण बढ़ेगा, राजनीति के केन्द्र में गाँव फिर भी रहेंगे, विदेश-नीति महत्वपूर्ण होगी, वैश्विक घटनाक्रम में बड़े बदलाव होंगे। इन सबके अलावा आंतरिक सुरक्षा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण काम होंगे, कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ अनसुलझे सवालों को सुलझाने की कोशिश होगी, आतंकवाद पर नकेल पड़ेगी, जिसमें माओवादी हिंसा शामिल है। इन सारी बातों के बरक्स अमित शाह की भूमिका को समझने में आसानी होगी।
राजनीतिक दृष्टि से बीजेपी अपनी विचारधारा से जुड़े दो बड़े ऐतिहासिक मसलों को इस दौर में सुलझाने की कोशिश करेगी। पहला मंदिर का और दूसरा कश्मीर में अनुच्छेद 35ए और 370 का। बीजेपी मानती है कि कश्मीर समस्या के समाधान में सबसे बड़ी बाधा ये दो सांविधानिक उपबंध हैं। इनके अलावा पार्टी असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को जल्द से जल्द लागू करना चाहती है और वह इसे देश के दूसरे इलाकों में भी लागू कराना चाहती है। इन बातों को पार्टी के संकल्प पत्र में दर्ज किया गया है। और ये सारे विषय अमित शाह के मंत्रालय से वास्ता रखते हैं। अमित शाह ने चुनाव के दौरान अपने भाषणों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की तुलना दीमक से की थी, जो हमारे देश को नुकसान पहुँचा रही है। उन्होंने कहा था कि हम बंगाल में भी नागरिकता रजिस्टर शुरू करेंगे और बाहर से आए लोगों को निकाल बाहर करेंगे।
अमित शाह के जीवन में जितनी सफलताएं हैं, उतने ही संघर्ष भी हैं। सन 2010 में वे सोहराबुद्दीन मामले में जेल में बंद कर दिए गए थे। कहा जा रहा था कि उनका राजनीतिक जीवन खत्म, वे अब अदालतों और जेलों के चक्कर काटते रहेंगे। जुलाई 2010 में पत्रकार शीला भट्ट ने लिखा था, इस बात में संदेह नहीं कि कांग्रेस ने बड़ी सावधानी से इस कहानी को बुना है। इसमें भी दो राय नहीं कि सीबीआई ने सरकार के इशारे पर अमित शाह के खिलाफ कार्रवाई की है
अमित शाह इस चक्रव्यूह से बाहर निकल आए। फिर कुछ साल के भीतर कहानी बदलती चली गई। उन्हें पहले सशर्त जमानत मिली, फिर बरी भी हो गए। सन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली और बीजेपी को ऐसी विजय दिलाई, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। इसके बाद वे पार्टी अध्यक्ष बने और देखते ही देखते अनेक राज्यों में बीजेपी का झंडा फहरा दिया। उनकी एक बड़ी उपलब्धि है पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी को प्रवेश दिलाना। इसबार के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बंगाल में तमाम विश्लेषकों को अनुमानों को झुठला दिया।
इसमें दो राय नहीं कि अमित शाह के भीतर असाधारण क्षमताएं हैं। सन 1989 के बाद से उन्होंने छोटे-बड़े 30 चुनाव लड़े हैं और उन्हें हरेक चुनाव में सफलता मिली है। काम करने की उनकी क्षमता अविश्वसनीय है। जब वे गुजरात सरकार में मंत्री थे, तो उनके पास एकसाथ 12 पोर्टफोलियो थे। इनमें गृह, कानून और न्याय, जेल, सीमा सुरक्षा, नागरिक सुरक्षा, एक्साइज, परिवहन, मद्य निषेध, होमगार्ड, ग्राम रक्षक दल, पुलिस आवास और विधायी मामले शामिल थे। एकसाथ इतने विषयों को उन्होंने किस तरह संभाला होगा, इसे समझा जा सकता है। समय बताएगा कि वे अपनी नई भूमिका में सफल होंगे या नहीं, पर इतना साफ है वे सफलता के द्वार पर खड़े हैं।


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