Saturday, December 3, 2016

ड्रामा बनाम ड्रामा, आज मुरादाबाद में होगी आतिशबाजी

बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं और नरेंद्र मोदी की रैलियों ने उत्तर प्रदेश में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के पहले ही माहौल को रोचक और रंगीन बना दिया है. इन रैलियों की मदद से नरेंद्र मोदी एक ओर वोटर का ध्यान खींच रहे हैं, वहीं दिल्ली के रंगमंच पर तलवारें भाँज रहे अपने विरोधियों को जवाब भी दे रहे हैं.
ये रैलियाँ इंदिरा गांधी की रैलियों की याद दिलाती हैं, जिनमें वे अपने विरोधियों की धुलाई करती थीं. इस बात की उम्मीद है कि आज की मुरादाबाद रैली में मोदी अपने विरोधियों के नाम कुछ करारे जवाब लेकर आएंगे. पहले सर्जिकल स्ट्राइक और फिर नोटबंदी को लेकर पार्टी पर हुए हमलों का जवाब मोदी अपनी इन रैलियों में दे रहे हैं.

आज मुरादाबाद की मोदी-रैली कई लिहाज से महत्वपूर्ण होगी. इसका इस्तेमाल पार्टी रूहेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में सरगर्मी बढ़ाने के लिए करेगी, क्योंकि आसपास के जिलों से लोग मुरादाबाद पहुँच रहे हैं.
अलबत्ता राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से रोचक यह देखना होगा कि वे इस सभा के माध्यम से ममता बनर्जी और राहुल गांधी को क्या जवाब देते हैं. इन दोनों ने पिछले दो-तीन दिनों में मोदी पर करारे वार किए हैं.
बीजेपी इन रैलियों को चुनाव-पूर्व गरमाहट के तौर पर ले रही है, पर संयोग है कि उसे हर रैली के पहले कोई न कोई मसला भी मिल रहा है. 14 नवंबर की गाजीपुर रैली का सबसे बड़ा विषय नोटबंदी था.
वह रैली नोटबंदी के फैसले के फौरन बाद हुई थी और आम जनता की परेशानियाँ शुरुआती दौर में थीं. मोदी ने उस रैली में जनता की दिक्कतों को अपनी दिक्कत बताया था. उन्होंने कहा, इस फैसले के बाद गरीब लोग चैन की नींद सो रहे हैं और काले धन वालों को नींद की गोलियां लेनी पड़ रहीं हैं.
आगरा रैली कानपुर में हुई रेल दुर्घटना के फौरन बाद हुई थी. उस रैली में उन्होंने सबसे पहले रेल दुर्घटना पर बात की. उन्होंने मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की और दुर्घटना की पूरी जांच होने का आश्वासन दिया.
कुशीनगर रैली विपक्ष के आक्रोश दिवस के एक दिन पहले हुई. इस मौके पर उन्होंने जनता से पूछा, भ्रष्टाचार बंद हो या भारत बंद हो? हम कालेधन का रास्ता बंद कर रहे हैं और वो देश को बंद करने में लगे हैं. यानी इन रैलियों के माध्यम से वे राष्ट्रीय राजनीति में हो रहे हमलों का जवाब दे रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की राजनीति के बरक्स पार्टी पूरी ताकत के साथ उतर पड़ी है. ढाई महीने के भीतर मोदी की 8 रैलियाँ उत्तर प्रदेश में हो जा रहीं हैं, जिनमें से यह पाँचवीं है. मुरादाबाद के बाद 11 दिसम्बर को बहराइच और 18 दिसम्बर को कानपुर में रैली होगी. इन सबके बाद 3 जनवरी को लखनऊ बड़ी समापन रैली होगी.
इन रैलियों की शुरुआत 24 अक्टूबर को महोबा की रैली से हुई है. प्रदेश के चारों कोनों से चार परिवर्तन यात्राएं अलग से चल रहीं हैं, जो लगभग सभी जिलों को कवर करेंगी. पड़ोस के राज्य उत्तराखंड में भी यात्राएं चल रहीं हैं. दोनों राज्यों का वोटर एक-दूसरे को प्रभावित करता है. खासतौर से सीमांत इलाकों में. मुरादाबाद भी उत्तराखंड के दोनों हिस्सों के करीब पड़ता है.
यूपी के चुनाव में बीजेपी ‘मिशन 265 प्लस’ का लक्ष्य लेकर उतर रही है. पार्टी ने साफ कर दिया है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के किसी प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं किया जाएगा, इसलिए नरेंद्र मोदी ही पार्टी के फेस या मुख के रूप में सामने हैं.
बिहार में यह रणनीति सफल नहीं हुई थी, पर पार्टी की समझ है कि दोनों राज्यों की स्थिति एक जैसी नहीं है. इस रणनीति में थोड़ा सा बदलाव किया गया है. बिहार में पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी को आगे किया गया था, जबकि उत्तर प्रदेश में स्थानीय नेताओं को प्रचार-अभियान में आगे रखा जाएगा. पार्टी का मानना है कि चुनाव में सामूहिक नेतृत्व को महत्व दिया जाएगा. सन 2012 के विधान सभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी के भीतर का समन्वय भी बेहतर नजर आ रहा है.
चारों परिवर्तन यात्राओं के कार्यक्रम में विधायकों और सांसदों से लेकर राष्ट्रीय नेताओं तक की भागीदारी है. पर चेहरों का चयन जातीय समीकरणों के हिसाब से भी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी के दर्जन से ज्यादा सांसद और तीन मंत्री हैं, पर सहारनपुर में यात्रा की जिम्मेदारी संजीव बालियान और हुकुम सिंह को देना स्थानीय समीकरणों को रेखांकित करता है.
इस जाट-बहुल इलाके में जातीय प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है और इस इलाके में यह बीजेपी का महत्वपूर्ण जनाधार है. सहारनपुर से निकलकर यात्रा ऐसे इलाकों से गुजरी है, जो 2013 के दंगों के दौरान सबसे प्रभावित इलाकों में शामिल थे. इस इलाके में पलायन की राजनीति भी चुनाव का महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज मोदी की दूसरी महत्वपूर्ण रैली है. इससे पहले 20 नवंबर को आगरा में उनकी रैली हो चुकी है. इसी तरह पिछड़े, दलित और जनजाति-बहुल इलाके बुंदेलखंड की यात्रा के साथ थावर चंद गहलोत और एसपी सिंह ने बघेल संभाली. उत्तर प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व केशव प्रसाद मौर्य को देना भी इस समीकरण के अनुरूप है. 
हिंदी फर्स्ट पोस्ट में प्रकाशित

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