Friday, November 4, 2016

चिंता का विषय है एनडीटीवी को मिली सजा

एडिटर्स गिल्ड का वक्तव्य
 भारत सरकार ने टीवी चैनल एनडीटीवी इंडिया को एक दिन के लिए ऑफ-एयर करने को कहा है. यह आदेश भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भेजा है और यह मामला पठानकोट हमलों की कवरेज़ से जुड़ा है. पठानकोट हमलों के दौरान टीवी चैनलों की कवरेज़ को लेकर एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन हुआ था. इस बैन को लेकर अधिकतर पत्रकार नाराज हैं, पर इसे उचित बताने वाले भी हैं. वस्तुतः इसके पीछे वही सामाजिक ध्रुवीकरण दिखाई पड़ रहा है, जो मोदी सरकार की देन बताया जाता है. 

कुछ लोगों ने इसे विनाशकाले विपरीत बुद्धि बताया है और कुछ ने इसे इमर्जेंसी की पुनरावृत्ति कहा है. पर क्या यह राजनीतिक सवाल है? क्या एनडीटीवी को राजनीतिक कारणों से सजा दी गई है? इस किस्म की पाबंदी अच्छे लक्षण नहीं हैं. एक दिन के लिए ही सही, पर यह रोक चिंता का विषय है. पर चिंता का विषय यह भी है कि मीडिया कवरेज के कारण रक्षा से जुड़ी संवेदनशील विवरणों पर रोशनी पड़ी. मीडिया की जिम्मेदारी भी बनती है. अलबत्ता सरकार को स्पष्ट करना ही चाहिए कि वे कौन सी बातें हैं, जिनके कारण यह कदम उठाया है. मीडिया हाउस कहता है कि हमारी तरफ से गलती नहीं हुई है, पर यह तय कौन करेगा कि गलत हुआ या नहीं. लगता यह है कि चैनल अब अदालत के दरवाजे खटखटाएगा. यही सबसे अच्छा रास्ता है.  

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार एक पैनल ने एनडीटीवी इंडिया के कवरेज़ पर आपत्ति जताते हुए इसे एक दिन के लिए ऑफ एयर करने की सिफारिश की थी. पैनल के अनुसार एनडीटीवी इंडिया ने पठानकोट हमले की कवरेज़ के दौरान सामरिक रूप से संवेदनशीलसूचनाएं प्रसारित की थीं. मार्च 2015 में भारत सरकार ने आतंकी हमलों की लाइव कवरेज पर रोक लगा दी थी. 

एनडीटीवी ने एक बयान में कहा कि उनकी कवरेज बिल्कुल संतुलित थी और इस तरह से उन्हें निशाना बनाया जाना सही नहीं है. कंपनी के अनुसार अधिकतर अखबारों और चैनलों ने पठानकोट हमलों की कमोबेश एक जैसी कवरेज की थी. कंपनी ने कहा है कि आपातकाल के काले दिनों के दौरान प्रेस की आज़ादी छीनी गई और अब ये अभूतपूर्व है जिस तरह से एनडीटीवी के खिलाफ़ कदम उठाए गए हैं. एनडीटीवी इस मामले में सभी विकल्पों पर विचार कर रहा है.

सरकार के इस कदम पर पत्रकारों की और से तीखी प्रतिक्रिया हुई है. जिस तरह पाकिस्तान में चैनल को ऑफ-एयर किया जाता है तकरीबन उसी तरह अब भारत में होने लगा है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सरकार के इस कदम की भर्त्सना की है. पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट किया है, "भारत के सबसे संयमित और ज़िम्मेदार चैनलों में से एक एनडीटीवी इंडिया को प्रसारण मंत्रालय एक दिन के लिए बंद कर रहा है. आज एनडीटीवी है, कल कौन होगा? सागरिका घोष ने ट्वीट किया, "एनडीटीवी को प्रतिबंधित करना स्वतंत्र मीडिया पर सरकार का चौंकाने वाला शक्ति प्रदर्शन है. मीडिया की हत्या मत करो." पत्रकार सिद्धार्थ बरदराजन ने ट्वीट किया, "एनडीटीवी पर सरकार का एक दिन का प्रतिबंध सरकार की मनमानी और ताक़त का दुर्भावनापूर्ण उपयोग है. एनडीटीवी को इसे अदालत में चुनौती देनी चाहिए.

फर्स्ट पोस्ट पर प्रकाशित अपने आलेख में टीएस सुधीर ने सरकारी कदम को अविवेकपूर्ण बताया है. सुधीर ने लिखा है कि पत्रकारों को देशद्रोही साबित करना चिंताजनक है. उनके अनुसारः-

NDTV India had deployed one of its senior reporters, who has 20 years of experience in covering defence and a track record for sober reportage, to Pathankot. Even otherwise, when compared to its shrill chest-thumping rival channels, NDTV India is known for a more restrained approach. Which is perhaps why it is the laggard in the TRP game, one that does not even figure in the top 10.

But what the order attempts to do is to label NDTV as 'irresponsible'. What the motivated army of cacophony-makers on social media will do is to turn that into a label of 'anti-national'. Accuse it of sleeping with the enemy. It is the kind of ugly certification high on circulation these days where just about every Twitter handle, perched on every gali ka nukkad smartphone, dishes out "tum gaddaar ho" spiel. The highly objectionable tag of 'presstitute' that is repeatedly thrown at journalists to insult. Recently, the instance of NDTV's Barkha Dutt being "praised" by terror mastermind Hafiz Saeed was milked by trolls and even rival channel anchors to paste convenient labels.
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कुछ लोगों ने प्रतिबंध का स्वागत भी किया है. विवेक अग्निहोत्री ने ट्वीट किया, #NDTVBanned पर मातम मनाने वालों ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है इससे पहले भी हुआ है. हाँ तब जुबान खोलने की हिम्मत नहीं होती थी आपकी क्यों??  वीरेन्द्र सहवाग का ट्वीट है, रब्बिश कुमार को बहुत शौक है ना स्क्रीन काली करने का, अब सरकार ने ही कर दी. तेजिंदर पाल बग्गा ने ट्वीट किया, "एनडीटीवी की पठानकोट हमलों की लाइव कवरेज के दौरान दी गई अहम जानकारियां चरमपंथियों के हाथ में भी आ सकती थी जिससे लोगों की जान ख़तरे में पड़ सकती थी." राहुल सिंगला ने लिखा, "एनडीटीवी की सज़ा तीस दिनों से कम करके एक दिन कर दी गई है. लेकिन क्यों. एनडीटीवी को पूरी तरह बंद कर देना चाहिए, हमें इसकी ज़रूरत नहीं है."





2 comments:

  1. चैनल की उस दिन की रिपोर्टिंग निश्चित ही अनुचित थी व इस भावना से ही प्रेरित थी कि वह सरकारके हर कदम का विरोधी हैऔर इस हेतु वह देश हित की भी कोई चिंता नहीं करता। इस चैनल के कुछ पत्रकार पूर्व में भी संदेह के घेरे में रहें हैं , बेबाक राय रखना अलग बात है , राष्ट्रविरोध अलग बात , आप सरकार की आलोचना कीजिये , उसके गन दोष बताइये , स्वतंत्र राय रखिये , लेकिन देश के विरुद्ध नहीं उसके हित के विरुद्ध नहीं

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  2. बहुत ही उम्दा .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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