Sunday, April 7, 2013

अलोकप्रियता के ढलान पर ममता की राजनीति

राजनेता वही सफल है जो सामाजिक जीवन की विसंगतियों को समझता हो और दो विपरीत ताकतों और हालात के बीच से रास्ता निकालना जानता हो। ममता बनर्जी की छवि जुनूनी, लड़ाका और विघ्नसंतोषी की है। संसद से सड़क तक उनके किस्से ही किस्से हैं। पिछले साल रेल बजट पेश करने के बाद दिनेश त्रिवेदी को उन्होंने जिस तरह से हटाया, उसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती। उनकी तुलना जयललिता, मायावती और उमा भारती से की जाती है। कई बार इंदिरा गांधी से भी। मूलतः वे स्ट्रीट फाइटर हैं। उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने वाम मोर्चा के 34 साल पुराने मजबूत गढ़ को गिरा कर दिखा दिया। पर लगता है कि वे गिराना जानती हैं, बनाना नहीं। इन दिनों बंगाल में अचानक उनकी सरकार के खिलाफ आक्रोश भड़क उठा है। सीपीएम की छात्र शाखा एसएफआई के नेता सुदीप्तो गुप्ता की मौत इस गुस्से का ट्रिगर पॉइंट है। यह सच है कि वे कोरी हवाबाजी से नहीं उभरी हैं। उनके जीवन में सादगी, ईमानदारी और साहस है। वे फाइटर के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी हैं और सात-आठ मंत्रालयों का काम सम्हालती हैं। यह बात उनकी जीवन शैली से मेल नहीं खाती। फाइलों में समय खपाना उनका शगल नहीं है। उन्होंने सिर्फ अपने बलबूते एक पार्टी खड़ी कर दी, यह बात उन्हें महत्वपूर्ण बनाती है, पर इसी कारण से उनका पूरा संगठन व्यक्ति केन्द्रित बन गया है।  


सन 2011 में उनका नारा था पोरीबोर्तन। परिवर्तन शब्द में जादू था, जिसने उन्हें चुनाव जिताया। उन दिनों पत्रकार शेखर गुप्ता ने बंगाल के इलाकों का दौरा करने के बाद लिखा था कि वहाँ के गाँवों में भूख जैसी चीज़ दिखाई नहीं पड़ती। भिखारी नहीं। हैंडपम्प चौकस। स्कूल की बिल्डंग, अस्पताल, सड़कें ठीक-ठाक। सब कायदे से ढके। कोई नंगे पैर नहीं। फिर लोग नाराज़ क्यों हैं? माकपा ने वहां अपने और पराए की संस्कृति को जन्म दे दिया है। पानी की टंकी लगी तो उस पर लाल झंडा लग गया। जो हमारे साथ हैं उन्हें मिलेगा पानी। पूरे बंगाल में यह हो रहा था। किसी पार्टी के लगातार 34 साल तक सत्ता में बने रहने से पैदा हुई निरंकुशता का जवाब जनता ने दिया। पर बदले में ममता बनर्जी ने क्या दिया? बंगाल में अब भी अपने और पराए हैं, सिर्फ चेहरे बदल गए हैं। बंगाल पर 23,000 करोड़ रुपए का कर्ज़ है, जिसमें से कुछ वे माफ करा सकती थीं, पर उन्होंने केन्द्र से टकराव का रास्ता पकड़ा। समन्वय की कोशिश ही नहीं की। क्या इसमें उनका कोई दूरगामी हित है? शायद उन्हें लगता है कि लोकप्रिय होने का यह कोई फॉर्मूला है। बहरहाल उनकी तुनक-मिजाज़ी आने वाले वक्त में उन्हें भारी पड़ेगी।

बंगाल के एक प्रकाशक ने आरोप लगाया है कि एक किताब के कारण पुलिस उनका उत्पीड़न कर रही है।  यह किताब मुसलमानों को क्या करना चाहिए। इसे लिखा है डॉ. नजरुल इस्लाम जो वरिष्ठ पुलिस अफसर हैं। उन्हें ईमानदार अफसर माना जाता है। इसके प्रकाशक को रात के ग्यारह बजे टेलीफोन पर इत्तला दी गई कि किताब बाज़ार में नहीं जानी चाहिए। इस किताब में लेखक ने मुसलमानों की बदहाली का जिक्र किया है और उनके राजनीतिक दोहन को रेखांकित किया है। सरकार का कहना है कि इससे साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ता है। ममता बनर्जी को आलोचना पसन्द नहीं। पिछले साल मार्च में जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश बनर्जी को एक कार्टून को ई-मेल से फारवर्ड करने के आरोप में जेल की सजा भुगतनी पड़ी। इसके कुछ दिन बाद एक टीवी शो में एक सवाल पूछने वाली छात्रा तानिया भारद्वाज को उन्होंने मंच पर ही माओवादी साबित कर दिया। कोलकाता के पार्क स्ट्रीट इलाके में एक महिला के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में उन्होंने जांच के पहले ही कह दिया कि कहीं कोई बलात्कार नहीं हुआ है। उनकी ही पुलिस ने युवती के आरोप को सही माना, पर खुफिया विभाग की जिस महिला अधिकारी ने जाँच की पहल की उसका तबादला कर दिया गया। पिछले साल जुलाई में पश्चिम मेदिनीपुर के बेलपहाड़ी में उनकी सभा के दौरान जब एक किसान ने खड़े होकर उनसे खाद की बढ़ती कीमत के बारे में सवाल किया तो ममता ने उसे वहीं पर माओवादी घोषित कर दिया और पुलिस को आदेश दिया कि इसे गिरफ्तार कर लो। उसे 14 दिन जेल में रहना पड़ा। कोलकाता में डेंगू फैलने की खबर के पीछे भी उन्हें साजिश नज़र आती है। उन्हें अपने चारों ओर साज़िशें दिखाई पड़ रहीं हैं।

ममता का आरोप है कि मीडिया में सरकार-विरोधी खबर लिखने-दिखाने के लिए 50 हजार से एक लाख तक दिए जाते हैं। उनकी सरकार के अभी दो साल पूरे नहीं हुए हैं और वे अपने अटपटे अंदाज़ के कारण अलोकप्रियता के ढलान पर पहुँच गईं हैं। अभी समय है कि वे समझें कि मैं मुख्यमंत्री हूँ, विपक्ष की नेता नहीं। अग्निकन्या होना एक बात है और कुशल प्रशासक होना दूसरी बात है। पगड़ी उछालने का काम उन्हें आता है तो अपनी आलोचना को सुनने की कला भी सीखनी होगी। वर्ना इतिहास के पास एक कूड़ेदान भी होता है।  

सबसे बड़ा जोखिम !!!   ममता पर कार्टून !!!
mamata cartoon 1052774f
surendra3


15TH CARTOON COL 951620f
prasannan

Cartoon 201203140738 620x355
railway amul 600x450
banerjee karl marx




No comments:

Post a Comment