दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने तय किया है कि वह अपने स्कूल के छात्रों को आकाश टेबलेट पीसी मुफ्त में देगा। एमसीडी के 1740 स्कूलों में इस वक्त 9,42,135 बच्चे पढ़ने जाते हैं। इस काम पर 45 करोड़ रुपया खर्च करने की योजना बनाई गई है। देश में इस वक्त तकरीबन 22 करोड़ बच्चे स्कूल या कॉलेजों में पढ़ते हैं। भारत सरकार की योजना है कि अगले कुछ साल में इन सभी को आकाश पर काम करने का मौका मिलेगा। जिन बच्चों के पास अपना कम्प्यूटर नहीं होगा तो उन्हें स्कूल या कॉलेज की लाइब्रेरी से इसे हासिल करने का मौका मिलेगा।
आईआईटी राजस्थान और लंदन की कम्पनी डेटाविंड के सहयोग से बढ़ रही इस परियोजना के दो पहलू हैं। एक स्वदेशी टेक्नॉलजी और दूसरे आर्थिक विकास के दरवाजे खोलने वाली शिक्षा-क्रांति की शुरुआत। इस अर्थ में आकाश मामूली टेबलेट पीसी नहीं है। टेबलेटों को इस्तेमाल करने वालों ने तीन बातों पर ध्यान दिलाया है। एक, इसका बाहरी ढाँचा और मजबूत होना चाहिए। दो, इसकी मैमरी बढ़ाने और फास्ट प्रोसेसर की ज़रूरत है और इसकी बैटरी में सुधार होना चाहिए। अब इसके अपडेटेड वर्ज़न में 366 मेगाहर्ट्ज़ के एआरएम प्रोसेसर की जगह 700 मेगाहर्ट्ज़ का कॉर्टेक्स एबी प्रसेसर होगा और 3200 एमएएच की बैटरी। उसके बेहतर वर्जन में सिम लगाकर फोन का काम भी लिया जा सकता है।
जिस स्तर पर आकाश के विस्तार की योजना है उससे दुनिया की टेबलेट टेक्नॉलजी में तूफान आएगा। इसके कुछ किन्तु-परन्तु भी हैं। आकाश की तुलना में अमेरिका की दो संस्थाओं द्वारा शुरू किया गया वन लैपटॉप पर चाइल्ड (ओएलपीसी) कार्यक्रम है, जिसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(यूएनडीपी) का सहयोग प्राप्त है। इसकी एक्सओ-3 टेबलेट आकाश की तुलना में बेहतर प्रोसेसर और रिज़ॉल्यूशन वाली है। यह इस साल लांच होगी। इसकी कीमत आकाश की कीमत से दुगनी होगी। आकाश का मार्केट वर्ज़न यूबीस्लेट भी जल्द सामने आएगा। इसका निर्माण ताइवान में होगा। इस टेबलेट का मुकाबला आईपैड या एचपी स्लेट से नहीं है। इनके बनने मात्र से शैक्षिक क्रांति नहीं हो जाएगी। उसके लिए हमें अपने शैक्षिक कार्यक्रम में भी बदलाव करने होंगे। यह भी देखिए कि एमसीडी के स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों के प्रति आकर्षण क्यों है। क्या वजह है कि हमारे देश में स्कूल स्टेटस सिम्बल होते हैं?
टेक्नॉलजी वैसी होती है जैसा समाज होता है। उसे खरीदा भी जा सकता है। हमारी सामाजिक ज़रूरत है इनोवेशन यानी नवोन्मेष की। अमेरिका की प्रगति के पीछे है इनोवेशन और इनवेंशन। हमें फॉलोवर नहीं लीडर बनना चाहिए। पर कैसे? डार्टमाउथ के टक स्कूल ऑव बिजनेस के प्रोफेसर विजय गोविन्दराजन के अनुसार इसका एक रास्ता है रिवर्स इनोवेशन। पश्चिमी टेक्नॉलजी को अपनी मेधा और बाजार के सहारे सस्ता बना दो।
सन 1995 में जब भारत में मोबाइल फोन और इंटरनेट की शुरूआत हुई थी तब हम इस तकनीक में यूरोप के देशों से करीब दो दशक पीछे थे। हम सायबर जेनरेशन की पहली सीढ़ी यानी 1-जी पर थे, जबकि फिनलैंड में 1991 में 2-जी तकनीक शुरू हो चुकी थी। 10 जनवरी 2008 को ए राजा ने 2-जी तकनीक के लाइसेंस जारी किए। उसके सात साल पहले 2001 में जापान में 3-जी तकनीक आ चुकी थी। उसके फौरन बाद 3.5-जी तकनीक विकसित हो गई। पिछले साल जब भारत और चीन 3-जी तकनीक लागू कर रहे थे कोरिया की कम्पनी केटी ने घोषणा की कि हम देश की 85 फीसदी आबादी तक 4-जी टेक्नॉलजी पहुँचा चुके हैं। हमारे लिए 1-जी बुनियादी क्रांति थी, जिसने आवाज को दूर तक पहुँचाने का काम किया।
कौन कह सकता था कि मोबाइल फोन भारत के गरीबों की मदद करेगा। परम्परागत समझ है कि तकनीक उपभोक्ता के वास्ते आती है। और उपभोक्ता अमीर ही होता है। वैश्वीकरण ने बताया कि गरीब भी उपभोक्ता होता है। वीआरसोशल डॉट नेट के सर्वेक्षण के अनुसार इस वक्त देश में 89.8 करोड़ मोबाइल फोन हैं। इनमें से 29.2 करोड़ देहाती इलाकों में हैं। आज भी गाँव इस बदलाव से अछूते हैं। पर वहाँ सम्भावनाएं हैं। टीआरएआई का अनुमान है कि इस साल 20 करोड़ नए फोन लिए जाएंगे। देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद 12 करोड़ से ऊपर हो चुकी है, जो चीन के 48 करोड़ से काफी कम है। पर इस मामले में हमारी गति चीन के मुकाबले तेज है। आश्चर्य नहीं कि अगले चार या पाँच साल में हम चीन को पीछे छोड़ दें।
हमारे देश में कभी टेलीफोन की दरें सबसे महंगी होती थीं, वहाँ आज फोन कॉल सबसे सस्ती है। बाजार सस्ते हैंडसेटों से पटे पड़े हैं। जबकि इनकी बुनियादी तकनीक हमारी नहीं है। दूसरी उपलब्धि है नेशनल नॉलेज नेटवर्क। देश की ज्ञान-विज्ञान से जुड़ी संस्थाओं को करीब लाने वाला हाईस्पीड नेटवर्क। इस नेटवर्क की उपयोगिता तभी है जब हमारे विश्वविद्यालयों में उच्चस्तरीय शोध हो। अपनी सामाजिक स्थितियों के अध्ययन के लिए भी हम विदेशी विश्वविद्यालयों पर आश्रित हैं।
दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने पिछले दिनों कहा था कि हम 2012 के अंत तक देश में 4-जी भी लांच कर देंगे। हाल में टीआरएआई ने देश में 4-जी तकनीक की सम्भावनाओं को लेकर सर्विस प्रोवाइडरों से सलाह भी ली। देश का मध्य वर्ग 4-जी स्मार्ट फोन खरीदने की सामर्थ्य भी रखता है। सायबर जेनरेशन में उत्तरोत्तर विकास के दो अर्थ हैं। एक ओर यह अमीरों के वास्ते 3-डी गेमिंग, हाई डेफिनीशन वीडियो और मनोरंजन के उपकरण और 100 एमबीपीएस की स्पीड की डाउनलोडिंग उपलब्ध कराता है वहीं शिक्षा और वैज्ञानिक कार्यों के मौके भी तैयार करता है। संस्कृति के तमाम अनजाने पहलुओं से एक-दूसरे को जोड़ता है। पर क्या हम ऐसा करना चाहते हैं? शिकायत यह भी है कि हमने शानदार हार्डवेयर तैयार किया, पर इस्तेमाल घटिया मनोरंजन तक सीमित रह गया। विद्या-बुद्धि का इस्तेमाल करें तो सॉल्यूशन दरवाजे पर दस्तक देंगे।
आकाश को हासिल करने ज्यादा यह सोचने की ज़रूरत है कि उसका कंटेंट क्या होगा। वह छात्रों को क्या देगा, जिससे उनकी दुनिया बदले। एक लाख की कार, 749 रु का वॉटर प्यूरीफायर और एक लाख में ओपन हार्ट सर्जरी हमारे इनोवेशन हैं। आकाश भी एक कदम है। नेस्ले ने भारत के बाजार के लिए सस्ता नूडल बनाया था। उस नूडल को ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में हैल्दी फूड के रूप में सफलता मिल गई। मल्टीनेशनल कम्पनी जीई ने बेंगलुरु में जॉन एफ वेल्च टेक्नॉलजी सेंटर बनाया है, जहाँ विकासशील देशों के मार्केट के लिए टेक्नॉलजी विकसित हो रही है। ह्यूमन रिसोर्स हमारी सम्पदा है। प्रमाण है सॉफ्टवेयर उद्योग। सॉफ्टवेयर इनसानों के सहारे बनता है। अपनी बौद्धिक सम्पदा को पहचानिए, हार्डवेयर मिलते जाएंगे।
सम्पादित रूप में अमर उजाला में प्रकाशित
आईआईटी राजस्थान और लंदन की कम्पनी डेटाविंड के सहयोग से बढ़ रही इस परियोजना के दो पहलू हैं। एक स्वदेशी टेक्नॉलजी और दूसरे आर्थिक विकास के दरवाजे खोलने वाली शिक्षा-क्रांति की शुरुआत। इस अर्थ में आकाश मामूली टेबलेट पीसी नहीं है। टेबलेटों को इस्तेमाल करने वालों ने तीन बातों पर ध्यान दिलाया है। एक, इसका बाहरी ढाँचा और मजबूत होना चाहिए। दो, इसकी मैमरी बढ़ाने और फास्ट प्रोसेसर की ज़रूरत है और इसकी बैटरी में सुधार होना चाहिए। अब इसके अपडेटेड वर्ज़न में 366 मेगाहर्ट्ज़ के एआरएम प्रोसेसर की जगह 700 मेगाहर्ट्ज़ का कॉर्टेक्स एबी प्रसेसर होगा और 3200 एमएएच की बैटरी। उसके बेहतर वर्जन में सिम लगाकर फोन का काम भी लिया जा सकता है।
जिस स्तर पर आकाश के विस्तार की योजना है उससे दुनिया की टेबलेट टेक्नॉलजी में तूफान आएगा। इसके कुछ किन्तु-परन्तु भी हैं। आकाश की तुलना में अमेरिका की दो संस्थाओं द्वारा शुरू किया गया वन लैपटॉप पर चाइल्ड (ओएलपीसी) कार्यक्रम है, जिसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(यूएनडीपी) का सहयोग प्राप्त है। इसकी एक्सओ-3 टेबलेट आकाश की तुलना में बेहतर प्रोसेसर और रिज़ॉल्यूशन वाली है। यह इस साल लांच होगी। इसकी कीमत आकाश की कीमत से दुगनी होगी। आकाश का मार्केट वर्ज़न यूबीस्लेट भी जल्द सामने आएगा। इसका निर्माण ताइवान में होगा। इस टेबलेट का मुकाबला आईपैड या एचपी स्लेट से नहीं है। इनके बनने मात्र से शैक्षिक क्रांति नहीं हो जाएगी। उसके लिए हमें अपने शैक्षिक कार्यक्रम में भी बदलाव करने होंगे। यह भी देखिए कि एमसीडी के स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों के प्रति आकर्षण क्यों है। क्या वजह है कि हमारे देश में स्कूल स्टेटस सिम्बल होते हैं?
टेक्नॉलजी वैसी होती है जैसा समाज होता है। उसे खरीदा भी जा सकता है। हमारी सामाजिक ज़रूरत है इनोवेशन यानी नवोन्मेष की। अमेरिका की प्रगति के पीछे है इनोवेशन और इनवेंशन। हमें फॉलोवर नहीं लीडर बनना चाहिए। पर कैसे? डार्टमाउथ के टक स्कूल ऑव बिजनेस के प्रोफेसर विजय गोविन्दराजन के अनुसार इसका एक रास्ता है रिवर्स इनोवेशन। पश्चिमी टेक्नॉलजी को अपनी मेधा और बाजार के सहारे सस्ता बना दो।
सन 1995 में जब भारत में मोबाइल फोन और इंटरनेट की शुरूआत हुई थी तब हम इस तकनीक में यूरोप के देशों से करीब दो दशक पीछे थे। हम सायबर जेनरेशन की पहली सीढ़ी यानी 1-जी पर थे, जबकि फिनलैंड में 1991 में 2-जी तकनीक शुरू हो चुकी थी। 10 जनवरी 2008 को ए राजा ने 2-जी तकनीक के लाइसेंस जारी किए। उसके सात साल पहले 2001 में जापान में 3-जी तकनीक आ चुकी थी। उसके फौरन बाद 3.5-जी तकनीक विकसित हो गई। पिछले साल जब भारत और चीन 3-जी तकनीक लागू कर रहे थे कोरिया की कम्पनी केटी ने घोषणा की कि हम देश की 85 फीसदी आबादी तक 4-जी टेक्नॉलजी पहुँचा चुके हैं। हमारे लिए 1-जी बुनियादी क्रांति थी, जिसने आवाज को दूर तक पहुँचाने का काम किया।
कौन कह सकता था कि मोबाइल फोन भारत के गरीबों की मदद करेगा। परम्परागत समझ है कि तकनीक उपभोक्ता के वास्ते आती है। और उपभोक्ता अमीर ही होता है। वैश्वीकरण ने बताया कि गरीब भी उपभोक्ता होता है। वीआरसोशल डॉट नेट के सर्वेक्षण के अनुसार इस वक्त देश में 89.8 करोड़ मोबाइल फोन हैं। इनमें से 29.2 करोड़ देहाती इलाकों में हैं। आज भी गाँव इस बदलाव से अछूते हैं। पर वहाँ सम्भावनाएं हैं। टीआरएआई का अनुमान है कि इस साल 20 करोड़ नए फोन लिए जाएंगे। देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद 12 करोड़ से ऊपर हो चुकी है, जो चीन के 48 करोड़ से काफी कम है। पर इस मामले में हमारी गति चीन के मुकाबले तेज है। आश्चर्य नहीं कि अगले चार या पाँच साल में हम चीन को पीछे छोड़ दें।
हमारे देश में कभी टेलीफोन की दरें सबसे महंगी होती थीं, वहाँ आज फोन कॉल सबसे सस्ती है। बाजार सस्ते हैंडसेटों से पटे पड़े हैं। जबकि इनकी बुनियादी तकनीक हमारी नहीं है। दूसरी उपलब्धि है नेशनल नॉलेज नेटवर्क। देश की ज्ञान-विज्ञान से जुड़ी संस्थाओं को करीब लाने वाला हाईस्पीड नेटवर्क। इस नेटवर्क की उपयोगिता तभी है जब हमारे विश्वविद्यालयों में उच्चस्तरीय शोध हो। अपनी सामाजिक स्थितियों के अध्ययन के लिए भी हम विदेशी विश्वविद्यालयों पर आश्रित हैं।
दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने पिछले दिनों कहा था कि हम 2012 के अंत तक देश में 4-जी भी लांच कर देंगे। हाल में टीआरएआई ने देश में 4-जी तकनीक की सम्भावनाओं को लेकर सर्विस प्रोवाइडरों से सलाह भी ली। देश का मध्य वर्ग 4-जी स्मार्ट फोन खरीदने की सामर्थ्य भी रखता है। सायबर जेनरेशन में उत्तरोत्तर विकास के दो अर्थ हैं। एक ओर यह अमीरों के वास्ते 3-डी गेमिंग, हाई डेफिनीशन वीडियो और मनोरंजन के उपकरण और 100 एमबीपीएस की स्पीड की डाउनलोडिंग उपलब्ध कराता है वहीं शिक्षा और वैज्ञानिक कार्यों के मौके भी तैयार करता है। संस्कृति के तमाम अनजाने पहलुओं से एक-दूसरे को जोड़ता है। पर क्या हम ऐसा करना चाहते हैं? शिकायत यह भी है कि हमने शानदार हार्डवेयर तैयार किया, पर इस्तेमाल घटिया मनोरंजन तक सीमित रह गया। विद्या-बुद्धि का इस्तेमाल करें तो सॉल्यूशन दरवाजे पर दस्तक देंगे।
आकाश को हासिल करने ज्यादा यह सोचने की ज़रूरत है कि उसका कंटेंट क्या होगा। वह छात्रों को क्या देगा, जिससे उनकी दुनिया बदले। एक लाख की कार, 749 रु का वॉटर प्यूरीफायर और एक लाख में ओपन हार्ट सर्जरी हमारे इनोवेशन हैं। आकाश भी एक कदम है। नेस्ले ने भारत के बाजार के लिए सस्ता नूडल बनाया था। उस नूडल को ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में हैल्दी फूड के रूप में सफलता मिल गई। मल्टीनेशनल कम्पनी जीई ने बेंगलुरु में जॉन एफ वेल्च टेक्नॉलजी सेंटर बनाया है, जहाँ विकासशील देशों के मार्केट के लिए टेक्नॉलजी विकसित हो रही है। ह्यूमन रिसोर्स हमारी सम्पदा है। प्रमाण है सॉफ्टवेयर उद्योग। सॉफ्टवेयर इनसानों के सहारे बनता है। अपनी बौद्धिक सम्पदा को पहचानिए, हार्डवेयर मिलते जाएंगे।
सम्पादित रूप में अमर उजाला में प्रकाशित
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