गज़ा में चल रही फौजी कार्रवाई और क़तर की एक अदालत से आठ भारतीयों को मिले मृत्युदंड और वैश्विक-राजनीति में इस वक्त चल रहे तूफान के बरक्स भारतीय विदेश-नीति से जुड़े कुछ जटिल सवाल खड़े हो रहे हैं. बेशक गज़ा की लड़ाई और क़तर के अदालती फैसले का सीधा रिश्ता नहीं है, पर दोनों संदर्भों का देश की पश्चिम-एशिया नीति से नज़दीकी रिश्ता है.
पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में गज़ा
की लड़ाई के संदर्भ में हुए मतदान से अलग रहने के बाद भारत की नीति को लेकर कुछ और
सवाल पूछे जा रहे हैं. यह प्रस्ताव जॉर्डन की ओर से रखा गया था. इसका अर्थ है कि
इसके पीछे अरब देशों की भूमिका थी. उससे अलग रहने के जोखिम हैं, पर यह समझना होगा
कि हमास को लेकर अरब देशों की राय क्या है और उन देशों के इसराइल के साथ बेहतर
होते रिश्तों की राजनीति का मतलब क्या है.
बाइडन का बयान
पिछले बुधवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी
अल्बानीज़ के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का
एक बयान भारतीय मीडिया में काफी उछला था. उसके राजनीतिक निहितार्थ पढ़ने की जरूरत
भी है.
बाइडन ने कहा था कि 7 अक्तूबर को गज़ा में हमास ने जो हमला किया था, उसके पीछे ‘भारत-पश्चिम एशिया कॉरिडोर’ को रोकने का इरादा था. मुझे विश्वास है कि हमास ने हमला किया तो यह उन कारणों में से एक था. बाद में ह्वाइट हाउस ने सफाई दी कि बाइडेन की टिप्पणी को गलत समझा जा रहा है. संभवतः उनका आशय था कि इसराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते में धीरे-धीरे हो रहे सुधार ने ‘हमास को हमले के लिए प्रेरित किया हो.’