Sunday, October 22, 2023

सांस्कृतिक-विविधता में एकता के वाहक हमारे पर्व और त्योहार

भारत की विविधता में एकता को देखना है, तो उसके पर्वों और त्योहारों पर नज़र डालें। नवरात्र की शुरूआत के साथ ही चौमासे का सन्नाटा टूट गया है। माहौल में हल्की सी ठंड आ गई है और उसके साथ बढ़ रही है मन की उमंग। बाजारों में रौनक वापस आ गई है। घरों में साज-सफाई शुरू हो गई है। नई खरीदारी शुरू हो गई है। वर्षा ऋतु की समाप्ति के साथ भारतीय समाज सबसे पहले अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए पितृ-पक्ष मनाता है। उसके बाद पूरे देश में त्योहारों और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है, जो अगली वर्षा ऋतु आने के पहले तक चलता है। जनवरी-फरवरी में वसंत पंचमी, फिर होली,  नव-संवत्सर, अप्रेल में वासंतिक-नवरात्र, रामनवमी, गंगा दशहरा, वर्षा-ऋतु के दौरान रक्षा-बंधन, जन्‍माष्‍टमी, शिव-पूजन, ऋषि पंचमी, हरतालिका तीज, फिर शारदीय नवरात्र, करवाचौथ, दशहरा और दीपावली।

हमारा हर दिन पर्व है। यह खास तरह की जीवन-शैली है, जो परंपरागत भारतीय-संस्कृति की देन है। जैसा उत्सव-धर्मी भारत है, वैसा शायद ही दूसरा देश होगा। इस जीवन-चक्र के साथ भारत का सांस्कृतिक-वैभव तो जुड़ा ही है, साथ ही अर्थव्यवस्था और करोड़ों लोगों की आजीविका भी इसके साथ जुड़ी है। आधुनिक जीवन और शहरीकरण के कारण इसके स्वरूप में बदलाव आया है, पर मूल-भावना अपनी जगह है। यदि आप भारत और भारतीयता की परिभाषा समझना चाहते हैं, तो इस बात को समझना होगा कि किस तरह से इन पर्वों और त्योहारों के इर्द-गिर्द हमारी राष्ट्रीय-एकता काम करती है।

अद्भुत एकता

कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक कुछ खास तिथियों पर अलग-अलग रूप में मनाए जाने वाले पर्वों के साथ एक खास तरह की अद्भुत एकता काम करती है। चाहें वह नव संवत्सर, पोइला बैसाख, पोंगल, ओणम, होली हो या दीपावली और छठ। इस एकता की झलक आपको ईद, मुहर्रम और क्रिसमस के मौके पर भी दिखाई पड़ेगी। दीपावली के दौरान पाँच दिनों के पर्व मनाए जाते हैं। नवरात्र मनाने का सबका तरीका अलग-अलग है, पर भावना एक है। गुजरात में यह गरबा का पर्व है और बंगाल में दुर्गा पूजा का। उत्तर भारत में नवरात्र व्रत और रामलीलाओं का यह समय है। देवोत्थान एकादशी के साथ तमाम शुभ कार्य शुरू हो गए हैं।  

Saturday, October 21, 2023

समानव अंतरिक्ष-यात्रा की दिशा में पहला कदम


चंद्रयान-3 आदित्य एल-1 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मिशन-गगनयान के टेस्ट वेहिकल की सफल लॉन्चिंग के साथ अब समानव-अंतरिक्ष यात्रा की दिशा में पहला कदम रख दिया है। भविष्य की समानव उड़ानों के मद्देनज़र यह मानवरहित परीक्षण-उड़ान बड़ी खबर है। इसरो ने टेस्ट वेहिकल एबॉर्ट मिशन-1 (टीवी-डी1) के जरिए पहले क्रू मॉड्यूल का परीक्षण किया है।

गत 21 अक्तूबर को इस मिशन की टेस्ट उड़ान टीवी-डी1 को सुबह आठ बजे लॉन्च किया जाना था, लेकिन अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए इसका लॉन्च टाइम आगे बढ़ा दिया गया। खराब मौसम की वजह से इसरो ने मिशन को 10 बजे लॉन्च किया। अंतरिक्ष में भेजने के बाद इसे सफलतापूर्वक बंगाल की खाड़ी में उतार लिया गया। टेस्ट फ़्लाइट की सफलता की घोषणा के साथ ही इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ ने बधाई दी।

टीवी डी1 टेस्ट फ़्लाइट के डायरेक्टर एस शिवकुमार ने कहा, यह तीन प्रयोगों का गुलदस्ता है। हमने तीन सिस्टम की विशेषताओं को देखा है। इनमें टेस्ट वेहिकल, क्रू एस्केप सिस्टम और क्रू मॉड्यूल का पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। 2025 में प्रस्तावित समानव-प्रक्षेपण के पहले इसरो करीब 20 प्रकार के परीक्षण करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  2040 तक चंद्रमा पर भी भारत के अंतरिक्ष-यात्री को पहुँचाने की घोषणा कर चुके हैं। 

Wednesday, October 18, 2023

दोतरफा समझदारी से हो सकता है फलस्तीन समस्या का समाधान


आसार इस बात के हैं कि गत 7 अक्तूबर से गज़ा पट्टी में शुरू हुई लड़ाई का दूसरा मोर्चा लेबनॉन में भी खुल सकता है. इसराइली सेना और हिज़्बुल्ला के बीच झड़पें चल भी रही हैं. लड़ाई थम भी जाए, पर समस्या बनी रहेगी. पिछली एक सदी या उससे कुछ ज्यादा समय से फ़लस्तीन की समस्या इतिहास की सबसे जटिल समस्याओं में से एक के रूप में उभर कर आई है.

ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया इसके स्थायी समाधान के बारे में विचार करे. पहले राष्ट्र संघ, फिर संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के हस्तक्षेपों के बावजूद समस्या सुलझी नहीं है. जब भी समाधान का रास्ता दिखाई पड़ता है, कहीं न कहीं से व्यवधान पैदा हो जाता है.

समाधान क्या है?

अमेरिकी-पहल पर अरब देशों और इसराइल के बीच जिस समझौते की बातें इन दिनों हो रही हैं, क्या उसमें फलस्तीन के समाधान की भी कोई व्यवस्था है? ऐसा संभव नहीं है कि फलस्तीन की अनदेखी करके ऐसा कोई समझौता हो जाए. फिलहाल समझौते की कोशिश को धक्का लगा है, फिर भी सवाल है कि फलस्तीन की समस्या का समाधान क्या संभव है? संभव है, तो उस समाधान की दिशा क्या होगी?

दो तरह के समाधान संभव हैं. एक, गज़ा, इसराइल और पश्चिमी किनारे को मिलाकर एक ऐसा देश (वन स्टेट सॉल्यूशन) बने जिसमें फलस्तीनी और यहूदी दोनों मिलकर रहें और दोनों की मिली-जुली सरकार हो. सिद्धांततः यह आदर्श स्थिति है, पर इस समाधान के साथ दर्जनों किंतु-परंतु हैं. किसका शासन होगा, क्या अलग-अलग स्वायत्त इलाके होंगे, यरुसलम का क्या होगा वगैरह.

Friday, October 13, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ की विसंगतियाँ


गठबंधन ‘इंडिया’ ने मुंबई में हुई बैठक के दौरान तीन प्रस्ताव पास किए थे। पहला, सीट बँटवारे की प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी, दूसरा, ‘इंडिया’ के घटक दल जनता के मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जनसभाएं करेंगे और तीसरा, इंडिया के सभी घटक दलों का अपना चुनाव अभियान जुड़ेगा भार औरजीतेगा इंडिया की थीम पर होगा। इनमें पहला काम सबसे बड़ा और जरूरी होगा। शेष दो काम किसी न किसी रूप में चल जाएंगे, पर सीटों का बँटवारा सबसे जटिल विषय है। ऐसा लग रहा है कि फ़िलहाल गठबंधन उसे आगे के लिए टाल रहा है।

चार राज्यों में फज़ीहत

पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब और केरल कम से कम चार ऐसे राज्य हैं, जो साफ-साफ इस गठबंधन की किसी भी समय फज़ीहत कर सकते हैं। हाल में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने सनातन धर्म के बारे में टिप्पणी करके कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। इसी वजह से गठबंधन की भोपाल में होने वाली बैठक रद्द कर दी गई। इसका असर मध्य प्रदेश के चुनाव पर पड़ सकता है।

शुरू में लगता था कि नीतीश कुमार इस गठबंधन के समन्वय का काम करेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि उन्होंने अभी तक प्रत्यक्षतः कुछ ऐसा नहीं किया है, जिससे साबित हो कि वे नाराज हैं, पर गठबंधन ने जब टीवी के 14 एंकरों के बहिष्कार की घोषणा की, तो उन्होंने इस बात से अपनी असहमति व्यक्त कर दी। उधर सीपीएम ने गठबंधन की समन्वय समिति में शामिल नहीं होने की घोषणा करके एक और असमंजस पैदा कर दिया है।

2024 की सर्पिल राहें और संभावनाओं की शतरंज

पिछले कुछ समय से टीवी चैनलों पर और सोशल मीडिया में कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के परिणाम क्या होगे? इन कयासों की बुनियाद राष्ट्रीय स्तर पर बने दो गठबंधनों की हाल की गतिविधियों पर आधारित हैं। दो गठबंधन पहले से मौजूद हैं, पर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने मिलकर इंडिया नाम से राष्ट्रीय गठबंधन बनाया है, जो संगठनात्मक शक्ल ले ही रहा है। इंडिया के प्रायोजकों को लगता है कि भाजपा का लगातार सत्ता पर बने रहना उनके अस्तित्व के लिए खतरा है। 2024 में कुछ नहीं हुआ, तो फिर कुछ नहीं हो पाएगा।

दूसरी तरफ बीजेपी के कर्णधारों को लगता है कि उनके खिलाफ विरोधी दलों का एकताबद्ध होना खतरनाक है। हाल में पंजाब, हिमाचल और कर्नाटक में बीजेपी को आशानुकूल सफलता नहीं मिली। इससे भी उन्हें चिंता है। एंटी इनकंबैंसी का अंदेशा भी है। उन्हें यह भी लगता है कि बीजेपी ने 2019 में ‘पीक’ हासिल कर लिया था। इसके बाद ढलान आएगा। उससे तभी बच सकते हैं, जब नए इलाकों में प्रभाव बढ़े। उनके एजेंडा को जल्द से जल्द लागू करने के लिए इसबार सरकार बननी ही चाहिए। यह एजेंडा एक तरफ हिंदुत्व और दूसरी तरफ भारत के महाशक्ति के रूप में उभरने से जुड़ा है। उन्हें यह भी दिखाई पड़ रहा है कि पार्टी की ताकत इस समय नरेंद्र मोदी हैं, पर उनके बाद क्या?

एनडीए बनाम इंडिया

इन दोनों गतिविधियों में बुनियादी फर्क है। एनडीए, के केंद्र में बीजेपी है। शेष दलों की अहमियत अपेक्षाकृत कम है। इंडिया के केंद्र में कांग्रेस है, पर उसमें परिधि के दलों की अहमियत एनडीए के सहयोगी दलों की तुलना में ज्यादा है। इसमें जेडीयू और तृणमूल जैसी पार्टियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इन दो के अलावा समाजवादी पार्टी, डीएमके, वाममोर्चा और आम आदमी पार्टी जैसे दल हैं, जो इंडिया की रणनीति को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।  इसमें क्षेत्रीय-क्षत्रपों की भूमिका है, जो महत्वपूर्ण हैं, पर जिनके होने से फैसले करने में दिक्कतें भी हैं।