Friday, October 13, 2023

गठबंधन ‘इंडिया’ की विसंगतियाँ


गठबंधन ‘इंडिया’ ने मुंबई में हुई बैठक के दौरान तीन प्रस्ताव पास किए थे। पहला, सीट बँटवारे की प्रक्रिया जल्द ही पूरी की जाएगी, दूसरा, ‘इंडिया’ के घटक दल जनता के मुद्दों पर देश के अलग-अलग हिस्सों में जनसभाएं करेंगे और तीसरा, इंडिया के सभी घटक दलों का अपना चुनाव अभियान जुड़ेगा भार औरजीतेगा इंडिया की थीम पर होगा। इनमें पहला काम सबसे बड़ा और जरूरी होगा। शेष दो काम किसी न किसी रूप में चल जाएंगे, पर सीटों का बँटवारा सबसे जटिल विषय है। ऐसा लग रहा है कि फ़िलहाल गठबंधन उसे आगे के लिए टाल रहा है।

चार राज्यों में फज़ीहत

पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब और केरल कम से कम चार ऐसे राज्य हैं, जो साफ-साफ इस गठबंधन की किसी भी समय फज़ीहत कर सकते हैं। हाल में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने सनातन धर्म के बारे में टिप्पणी करके कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। इसी वजह से गठबंधन की भोपाल में होने वाली बैठक रद्द कर दी गई। इसका असर मध्य प्रदेश के चुनाव पर पड़ सकता है।

शुरू में लगता था कि नीतीश कुमार इस गठबंधन के समन्वय का काम करेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि उन्होंने अभी तक प्रत्यक्षतः कुछ ऐसा नहीं किया है, जिससे साबित हो कि वे नाराज हैं, पर गठबंधन ने जब टीवी के 14 एंकरों के बहिष्कार की घोषणा की, तो उन्होंने इस बात से अपनी असहमति व्यक्त कर दी। उधर सीपीएम ने गठबंधन की समन्वय समिति में शामिल नहीं होने की घोषणा करके एक और असमंजस पैदा कर दिया है।

कीर्तीश भट्ट का कार्टून बीबीसी से साभार
तस्वीर बदलेगी

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनावों के बाद राजनीति की तस्वीर और
बदलेगी। अभी सीटों के बँटवारे पर अगर बात हो भी और कल अगर आम आदमी पार्टी जैसे दल छिटक जाएं तो इसका असर पड़ेगा। इसका मतलब है कि सीटों के बँटवारे पर ठोस बातें लोकसभा चुनाव के एक-दो महीने पहले ही होंगी।

इस प्रश्न का उत्तर मिलना अभी बाकी है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में यह गठबंधन एक होकर उतरेगा या यह केवल लोकसभा चुनाव के लिए बन रहा है? अलग-अलग चुनाव-चिह्नों के साथ और यदि कई सीटों पर इससे जुड़े दल एक-दूसरे के खिलाफ लड़ेंगे, तब इसकी एकरूपता किस प्रकार से व्यक्त होगी? कुछ पहेलियाँ और हैं। मसलन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के रिश्ते। क्या आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में उतरेगी? अकेले या कांग्रेस के सहयोगी दल के रूप में? क्या लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी गुजरात में उसे सीटें देगी? ऐसे ही सवाल बंगाल की राजनीति को लेकर हैं। महाराष्ट्र में एनसीपी खुद पहेली बनी हुई है।

मुंबई की बैठक में चार समितियां बनाने का फ़ैसला किया गया था, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है कोऑर्डिनेशन कमेटी, जिसमें 13 सदस्यों के नाम घोषित किए गए थे और कहा गया था कि सीपीएम अपने प्रतिनिधि का नाम बाद में देगी। सीपीएम के पोलित ब्यूरो ने कहा कि हम इस समिति में शामिल नहीं होंगे। यह एक मंच है, राजनीतिक दल नहीं।

इसका मतलब है कि समन्वय समिति बन तो गई है, पर उसके भीतर समन्वय नहीं है। इसकी बैठकों में सीटों के बँटवारे पर चर्चा जैसे ही होती है, वैसे ही विवादास्पद मसले खड़े होने लगते हैं। फिलहाल इस गठबंधन का एक एजेंडा है कि किसी तरह इस बात को स्थापित किया जाए कि हमें मिलकर लड़ना है। गठबंधन में अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियां साथ आई हैं, जिनमें से कई की राज्यों में एक दूसरे से प्रतिद्वंद्विता है।

तृणमूल बनाम वाममोर्चा

सबसे ज्यादा तनाव तृणमूल कांग्रेस और वाममोर्चे के बीच है। हालांकि बीजेपी को हराने के इरादे सो दोनों एक मंच पर हैं, पर पश्चिम बंगाल में दोनों की प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। विवाद केवल तृणमूल और वाममोर्चे का ही नहीं है। कांग्रेस और सीपीएम बंगाल में सहयोगी हैं और केरल में प्रतिस्पर्धी। दोनों भूमिकाओं को निभाना आसान नहीं है।

उधर एनसीपी नेता शरद पवार इंडिया गठबंधन में तो शामिल हैं, लेकिन बीजेपी के साथ गए अपने भतीजे अजित पवार से संबंधों को लेकर उन्होंने अभी स्थिति स्पष्ट नहीं की है। जब महा विकास अघाड़ी की सरकार थी, तब भी स्थानीय कांग्रेस नेता एनसीपी पर आरोप लगाते रहते थे। 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी के सामने शिवसेना इसलिए घुटने टेकने पर मजबूर हुई, क्योंकि शरद पवार ने बीजेपी को समर्थन दे दिया था। शरद पवार की भूमिका को लेकर कांग्रेस हमेशा संशय में रही है।

सीटों का बँटवारा

सीटों का बँटवारा इस गठबंधन का सबसे जटिल मुद्दा है। आम आदमी पार्टी इस गठबंधन में शामिल है, जो दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस की राजनीतिक विरोधी है। इतना ही नहीं वह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव के मैदान में उतरना चाहती है। पिछले साल दिसंबर में गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में उसने 12.9 प्रतिशत मत पाकर राष्ट्रीय पार्टी बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। उसका विस्तार कांग्रेस के क्षय के साथ जुड़ा हुआ है। 2017 में गुजरात में कांग्रेस का वोट शेयर 41.44 फ़ीसदी था, जो दिसंबर में 14.14 फ़ीसदी गिरकर 27.30 हो गया, जो करीब पूरा का पूरा आम आदमी पार्टी के पास चला गया। 2017 में आप केवल 0.6 फ़ीसदी वोट हासिल कर सकी थी, और इस बार उसे 12.0 फ़ीसदी वोट मिले हैं।  

अब पंजाब में कांग्रेस के विधायक सुखपाल सिंह खैरा की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच तनाव और बढ़ा है। इस मसले पर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि यह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मोहब्बत की दुकान है। मैं इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। मैं आपको बताना चाहता हूं कि पंजाब और दिल्ली में विपक्षी पार्टियों का आईएनडीआईए का गठबंधन टूट रहा है। बीजेपी लगातार इसे खिचड़ी गठबंधन बताकर इसका मज़ाक उड़ा रही है।

इस मसले पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी अपना रोष व्यक्त किया है। कांग्रेस के नेता अब यह कह रहे हैं कि हमने दिल्ली सेवा विधेयक के मामले पर आम आदमी पार्टी को पूरा समर्थन दिया और सांसद संजय सिंह और राघव चड्ढा के निलंबन का भी विरोध किया, पर बदले में हमारे साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है। पंजाब और दिल्ली के स्थानीय कांग्रेस नेता आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का पहले से विरोध कर रहे हैं। हाल में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में यह विरोध खुलकर सामने आया।

दिल्ली शराब घोटाले में जब मनीष सिसौदिया गिरफ़्तार हुए तब बहुत चर्चा थी कि केसीआर की बेटी कविता और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर भी ईडी का शिकंजा कस सकता है। बाद में यह कहा गया कि केसीआर ने पर्दे के पीछे से बीजेपी से नजदीकियां बढ़ा लीं और वहां ईडी ने हाथ खींच लिया। इधर जैसे ही केजरीवाल इंडिया गठबंधन में शामिल हुए, शराब घोटाले की कार्रवाई धीमी पड़ गई है। सामने जो हो रहा है, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है, पर्दे के पीछे का घटनाक्रम। वह क्या है, उसके बारे में भी आप कयास लगाने से ज्यादा कर क्या सकते हैं।

विश्ववार्ता में प्रकाशित

 

 

 

 

1 comment:

  1. पता नहीं बस लगता है आयेगा तो मोदी ही | हम तो गांधी के तीन बंदरों से भी बेकार हो चुके बन्दर हैं अपनी पूँछ खुजला लें वही बहुत है |

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