Thursday, August 3, 2023

विदेश-नीति और आंतरिक-राजनीति की विसंगतियाँ

विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते लोकसभा में विरोधी सदस्यों के हंगामे के बीच भारत की विदेश-नीति तथा देश के नेताओं की हाल की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी देने के लिए एक बयान दिया. उस बयान को जिस राजनीतिक-बेरुखी का सामना करना पड़ा, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आंतरिक-राजनीति, विदेश-नीति को कितना महत्व दे रही है.   

इस बात को स्वीकार करने की जरूरत है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, राष्ट्रीय-सुरक्षा और विदेश-नीति को लेकर आमराय होनी चाहिए. इन नीतियों में क्रमबद्धता होती है. ऐसा नहीं होता कि सरकार बदलने पर इन नीतियों में भारी बदलाव हो जाता हो.

इस महीने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन होने वाला है. उसके बाद सितंबर में जी-20 का शिखर सम्मेलन दिल्ली में होगा. ये सभी घटनाएं भारत के राष्ट्रीय-हितों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं.

कैसे इंडिया?

संसद में अपने बयान के प्रति बेरुखी को देखते हुए जयशंकर ने कहा कि वे ‘इंडिया’ (विरोधी गठबंधन) होने का दावा करते हैं, लेकिन अगर वे भारत के राष्ट्रीय हितों के बारे में सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, तो वे किस तरह के इंडिया हैं?

बहरहाल पिछले दिनों कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं, जिनपर मीडिया का ध्यान कम गया है. एक और घटना संसद से ही जुड़ी है. विदेशी मामलों से जुड़ी संसदीय समिति ने भारत सरकार को सलाह दी है कि यदि पाकिस्तान पहल करे, तो उसके साथ आर्थिक संबंध फिर से कायम करने चाहिए.

Wednesday, August 2, 2023

नीजेर की फौजी बगावत के निहितार्थ

अफ्रीकी देशों में तानाशाही और अलोकतांत्रिक-प्रवृत्तियों का पहले से बोलबाला है। अब मध्य अफ्रीका के साहेल (या साहिल) क्षेत्र के देश नीजेर की लोकतांत्रिक-सरकार का तख्ता पलट करके वहाँ की सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है। नीजेर, अफ़्रीका के गिने-चुने लोकतांत्रिक देशों में से एक था। दूसरे पड़ोसी देशों की तरह वहाँ भी सत्ता पर फौज क़ाबिज़ हो गई है। राष्ट्रपति मुहम्मद बज़ूम के समर्थकों ने भी 26 जुलाई को राजधानी नियामे में रैली निकाली। दूसरी तरफ 30 जुलाई को लोकतांत्रिक-सरकार विरोधी लोगों ने रूसी झंडे लेकर प्रदर्शन किया। वे फ्रांस मुर्दाबाद और पुतिन जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे।

राष्ट्रपति बज़ूम दो साल पहले ही इस पद पर चुनकर आए थे और देश के स्वतंत्र होने के बाद पहली लोकतांत्रिक सरकार थी। पश्चिम अफ्रीका में माली से लेकर पूरब में सूडान तक, अफ्रीका के एक बड़े इलाक़े में अब हुकूमत फौजी जनरलों के हाथों में आ गई है। नीजेर के राष्ट्रपति मुहम्मद बज़ूम, अफ्रीकी देशों में पश्चिम के सबसे करीबी दोस्तों में से एक रहे हैं। पश्चिम के ही नहीं ओआईसी में भारत के भी करीबी मित्र वे रहे हैं। उन्हें हिरासत में ले लिया गया है। गत 26 जुलाई को वहाँ की फौज ने सरकार पर कब्जा कर लिया है।

Tuesday, August 1, 2023

सत्तापक्ष और विपक्ष की गठबंधन-राजनीति का एक और नया दौर

भारत के 26 प्रमुख विरोधी-दलों ने 18 जुलाई को बेंगलुरु में नए गठबंधन इंडिया की बुनियाद रखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव का एक तरह से बिगुल बजा दिया है। उसी रोज दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में 38 दलों ने शिरकत करके जवाबी बिगुल बजाया। इन दोनों बैठकों का प्रतीकात्मक महत्व ही था, क्योंकि इसके फौरन बाद 20 जुलाई से संसद का सत्र होने के कारण दोनों पक्ष राजनीतिक गतिविधियों में लग गए। मणिपुर में चल रही हिंसक गतिविधियों के बीच एक भयावह वीडियो के वायरल होने के बाद राजनीतिक टकराव और तीखा हो गया, और फिलहाल दोनों पक्ष अपनी एकता के पैतरों को आजमा रहे हैं।

नए गठबंधन इंडियाऔर पुराने गठबंधन एनडीए की इन बैठकों में संख्याओं के प्रदर्शन के पीछे भी कुछ कारण खोजे जा सकते हैं। विरोधी-एकता की पटना बैठक में 15 पार्टियाँ शामिल हुईं थीं। एक सोलहवीं पार्टी भी थी, जिसके नेता जयंत चौधरी किसी वजह से उस बैठक में नहीं आ पाए थे। वे बेंगलुरु में शामिल हुए। बेंगलुरु में जो 16 नई पार्टियाँ आईं, उनमें कोई नई प्रभावशाली पार्टी नहीं थी। तीन तो वाममोर्चा के घटक थे। कुछ तमिल पार्टियाँ थीं, जो कांग्रेस के साथ पहले से गठबंधन में हैं। उधर एनडीए में भी कोई खास नयापन नहीं था। बिहार और उत्तर प्रदेश से जीतन राम मांझी, ओम प्रकाश राजभर चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के शामिल होने से यह संख्या बढ़ी हुई लगती है। इसके अलावा पूर्वोत्तर की अनेक छोटी-छोटी पार्टियाँ हैं, जिनकी लोकसभा में उपस्थिति नहीं है।

दोनों के संशय

इन दोनों बैठकों से एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों गठबंधनों के भीतर असुरक्षा का भाव है। कांग्रेस पार्टी दस साल सत्ता से बाहर रहने के कारण जल बिन मछली बनी हुई है। छोटे क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षाएं जाग रही हैं कि शायद उन्हें कुछ मिल जाए। बीजेपी के बढ़ते प्रभाव और ईडी वगैरह के दबाव के कारण इन्हें अस्तित्व का संकट भी नज़र आ रहा है।

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि बीजेपी ने 2019 में पीक हासिल कर लिया था। क्या अब ढलान है? इस ढलान से तभी बच सकते हैं, जब नए क्षेत्रों में प्रभाव बढ़े। बीजेपी-समर्थक चाहते है कि उसके एजेंडा को जल्द से जल्द हासिल करने के लिए कम से कम इसबार तो सरकार बननी ही चाहिए। यह एजेंडा एक तरफ हिंदुत्व से जुड़ा है, वहीं राष्ट्रीय-एकता और वैश्विक-मंच पर महाशक्ति के रूप में उभरने पर। उन्हें यह भी दिखाई पड़ रहा है कि पार्टी की ताकत इस समय नरेंद्र मोदी है, पर उसके बाद क्या?

Monday, July 31, 2023

गतिरोध की असंसदीय-परंपरा

जैसा कि अंदेशा था, संसद के मॉनसून सत्र का पहला हफ्ता शोरगुल और हंगामे की भेंट रहा। इस हंगामे या शोरगुल को क्या मानें, गैर-संसदीय या संसदीय? लंबे अरसे से संसद का हंगामा संसदीय-परंपराओं में शामिल हो गया है और उसे ही संसदीय-कर्म मान लिया गया है। गतिरोध को भी सकारात्मक माना जा सकता है, बशर्ते हालात उसके लिए उपयुक्त हों और जनता उसकी स्वीकृति देती हो। अवरोध लगाना भी राजनीतिक कर्म है, पर उसे सैद्धांतिक-आधार प्रदान करने की जरूरत है। यह कौन सी बात हुई कि सदन एक महत्वपूर्ण विधेयक पर विचार कर रहा है और बहुत से सदस्य हंगामा कर रहे हैं?  किसी मंत्री का महत्वपूर्ण विषय पर वक्तव्य हो रहा है और कुछ सदस्य शोर मचा रहे हैं।

बेशक विरोध व्यक्त करना जरूरी है, पर उसके तौर-तरीकों को परिभाषित करने की जरूरत है। जबसे संसदीय कार्यवाही का टीवी प्रसारण शुरू हुआ है, शोर बढ़ा है। शायद ही कोई इस बात पर ध्यान देता हो कि इस दौरान कौन से विधेयक किस तरह पास हुए, उनपर चर्चा में क्या बातें सामने आईं और सरकार ने उनका क्या जवाब दिया वगैरह। एक ज़माने में अखबारों में संसदीय प्रश्नोत्तर पर लंबे आइटम प्रकाशित हुआ करते थे। अब हंगामे का सबसे पहला शिकार प्रश्नोत्तर होते हैं। आने वाले हफ्तों की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही रहने की संभावना है।

Sunday, July 30, 2023

संसद में शोर, यानी चुनाव के नगाड़े


जैसा कि अंदेशा था, संसद के मॉनसून सत्र का पहला हफ्ता शोरगुल और हंगामे की भेंट रहा। इस हंगामे या शोरगुल को क्या मानें, गैर-संसदीय या संसदीय? लंबे अरसे से संसद का हंगामा संसदीय-परंपराओं में शामिल हो गया है और उसे ही संसदीय-कर्म मान लिया गया है। शायद ही कोई इस बात पर ध्यान देता हो कि इस दौरान कौन से विधेयक किस तरह पास हुए, उनपर चर्चा में क्या बातें सामने आईं और सरकार ने उनका क्या जवाब दिया वगैरह। एक ज़माने में अखबारों में संसदीय प्रश्नोत्तर पर लंबे आइटम प्रकाशित हुआ करते थे। अब हंगामे का सबसे पहला शिकार प्रश्नोत्तर होते हैं। आने वाले हफ्तों की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही रहने की संभावना है। पीआरएस की वैबसाइट के अनुसार इस सत्र में  अभी तक लोकसभा की उत्पादकता 15 प्रतिशत और राज्यसभा की 33 प्रतिशत रही। शुक्रवार को दोनों सदनों में हंगामा रहा और उसी माहौल में लोकसभा से तीन विधेयकों को भी पारित करवा लिया गया। इस हफ्ते कुल आठ विधेयक पास हुए हैं। गुरुवार को जन विश्वास बिल पास हुआ, जिससे कारोबारियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इससे कई कानूनों में बदलाव होगा और छोटी गड़बड़ी के मामले में सजा को कम कर दिया जाएगा। पर अब सारा ध्यान अविश्वास-प्रस्ताव पर केंद्रित होगा, जिसे इस हफ्ते कांग्रेस की ओर से रखा गया है। कहना मुश्किल है कि यह चर्चा विरोधी दलों के पक्ष में जाएगी या उनके पक्ष को कमज़ोर करेगी।

काले-काले कपड़े

गुरुवार और शुक्रवार को विरोधी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलायंस (इंडिया) से जुड़े सांसद मणिपुर मुद्दे पर सरकार के विरोध में काले कपड़े पहनकर संसद पहुंचे थे। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि काले कपड़े पहनने के पीछे विचार ये है कि देश में अंधेरा है तो हमारे कपड़ों में भी अंधेरा होना चाहिए। राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि ये काले कपड़े पहनने वाले लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि देश की बढ़ती हुई ताकत आज क्या है? इनका वर्तमान, भूत और भविष्य काला है, लेकिन हमें उम्मीद है कि उनकी जिंदगी में भी रोशनी आएगी। इस शोरगुल के बीच आम आदमी पार्टी के संजय सिंह की सदस्यता भी इस हफ्ते निलंबित कर दी गई। उन्हें पिछले सोमवार को हंगामा करने और आसन के निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए वर्तमान मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया था। निलंबन के बाद से संजय सिंह संसद परिसर में लगातार धरने पर बैठ गए। नेता विरोधी दल मल्लिकार्जुन खरगे भी कुछ देर धरना स्थल पर बैठे और उनसे रात के समय धरना नहीं देने की अपील की। अब वे केवल दिन में ही धरने पर बैठ रहे हैं।

अविश्वास प्रस्ताव

प्रकटतः हंगामे के पीछे मुद्दा मणिपुर में पिछले तीन महीने से जारी जातीय हिंसा है, लेकिन असली वजह सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच का टकराव है, जिसमें संसद के भीतर संजीदगी के साथ कही गई बातों का अब कोई मतलब रह नहीं गया है। विपक्ष ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाकर इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। ऐसा ही सोलहवीं लोकसभा के मॉनसून-सत्र में हुआ था। उस प्रस्ताव के समर्थन में 126 वोट पड़े थे और उसके खिलाफ 325 सांसदों ने मत दिया था। वर्तमान सदन में सत्ताधारी पक्ष के पास 331 और इंडिया नाम के गठबंधन में शामिल दलों के पास 144 सांसद है। बीआरएस के नौ सांसद भी सरकार के खिलाफ वोट करेंगे, क्योंकि बीआरएस ने अलग से नोटिस दिया है। विपक्ष चाहता है कि इस पर तत्काल चर्चा हो, उसके बाद ही सदन में कोई भी विधायी कार्य हो। जब तक अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक सरकार को नीतिगत मामलों से जुड़ा कोई भी प्रस्ताव या विधेयक सदन में नहीं लाना चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने चुनौती दी कि विपक्ष के पास संख्या बल है तो उसे विधेयकों को पारित होने से रोककर दिखाना चाहिए।